यायावरी का अपना ही मजा होता है , कहाँ जाना है ? क्या करना हैं ? कुछ जानकारी नहीं होती हैं । रास्ता चाहे धूल से भरा हो , चाहे उबड़ खाबड़ , चाहे चिकना सपाट हो , बस चलते जाना है । चाहे बारिश का मौसम हो या बादलों से घिरा आसमां , बस घूमना ही उद्देश्य होता है । दोस्तों का साथ हो या ना हो बस घूमना ,घूमना , घूमना ....
जब दोस्त भी यायावर मिल जाये तो फिर क्या पता काफिला कहा रुकेगा , किसी को भी नहीं पता । मनोरंजन , अल्हडपन , रोमांच , मौज - मजा , मस्ती सब कुछ होता है । यहां ज्ञान की बात करना मना होता है क्योकि ज्ञान यायावरी में दाल में कंकड़ की तरह होता है । चाय की चुस्की हो या पेटीस का स्वाद सब कुछ निराला लगता । बारिश की बौछार किसानों से लेकर सरकार तक को खुश कर देती है और यायावरों के लिए तो मानो सोने पर सुहागा हो ।
जिंदगी एक यात्रा की तरह है जिसमें सदैव चलते जाना ही काम है रुके तो समझो कुछ खो दिया । यायावरी भी कोह-ए- फिजा से शुरु होती हैं और दिलखुशाबाग होते हुए अशोका गार्डन पहुँच जाती है । मैं जिस यायावरी की बात कर रहा हूँ उसमें सिद्धार्थ , इंद्रभूषण और विनय शामिल हैं । जाना कहां है ? किसी को कुछ नहीं पता , केवल तीनों इतना जानते हैं कि घूमना है । सफर की शुरुआत एमपी नगर की चाय से होते हुए बड़ी झील के किनारे - किनारे चलते हुए वन विहार पहुंच जाती है। वन विहार के गेट पर ताले को देखकर हमें पता चल गया कि हमारी ठौर यहां नहीं है , अभी और उड़ना है ।
जाना था डीबी मॉल और हो लिये भोजपुर मंदिर के लिए । माता मंदिर होते हुए हमारा काफिला होशंगाबाद रोड़ पर चलता गया ग्यारह मील होते हुए चौराहे पर जाकर अटक गया मतलब प्लान चेंज । अब चले हम भीमबेटिका की ओर । मंडीदीप की धुंआ उगलती चिमनियों को पीछे छोड़ते हुए हम औबेदुल्लागंज होते हुए भीमबेटिका रॉक शेल्टर पहुंचे । यहां पहुंचने पर पता चला कि गेट बंद हो चुके है मतलब शटर डाउन । यहां आने पर पता चला कि बाघ नामक जीव होता है जिसे देखने पर इंसान भागता है इसलिए हमने " भागों बाघ आया " नारा बना दिया ।
यायावरों का सफर इतनी जल्दी कैसे खत्म हो सकता है , हमने तय किया कि हम भोजपुर चलेगें । औबेदुल्लागंज होते हुए गौहरगंज के रास्ते हमारा सफर मुरुम और अधबनी सड़क पर चलते हुए हम भोजपुर जा पहुंचे। यहां अँधेरी रात उतनी ही भयावह लग रही थी जितना की सपने में ऊँचाई से गिरना । भले ही यायावर कही रुके या नहीं परंतु काफिला थोड़ा विराम तो लेता ही है और रचना नगर में डिनर के बाद प्रभात चौराहे पर अलविदा हुए कि फिर मिलते है ।
यही तो यायावरी है ।
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