भारत प्राचीन काल से ही स्थापत्य कला में समृद्ध देश रहा है। भारत की समृद्ध विरासत की झलकियां आज भी देखने को मिलती है। पूर्व में हमने सिंधु घाटी की सभ्यता और वैदिक सभ्यता की स्थापत्य कला के बारे में जाना। अब हम और आगे बढ़ते हैं और चलते है मौर्य काल की ओर। मौर्य काल से पहले ही पक्के घरों का और अन्य महत्वपूर्ण संरचनाओं का निर्माण शुरू हो चुका था। मौर्य काल में भी इस परम्परा को आगे बढ़ाया और भारतीय स्थापत्य कला को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मौर्यों से पहले नंद वंश था जिसके बारे में कहा जाता था कि उसकी सेना सिकंदर महान से बहुत बड़ी थी। यही कारण था कि सिकंदर की सेना ने आगे और युद्ध करने से मना कर दिया। घनानंद भले ही विलासता का आदि राजा रहा हो परंतु उसका राज्य सदा ही बहुत ही संपन्न रहा था। यदि घनानंद स्वभाव से भी अच्छा होता तो वह सम्पन्नता के शिखर के साथ-साथ लोगों के दिलों को भी छूता।
घनानंद के अत्याचारों से बचाने के लिए चंद्रगुप्त मौर्य ने घनानंद को मार दिया और मौर्य वंश की नींव डाली। मौर्य वंश में तीन सबसे प्रतापी राजा हुए चंद्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार और सम्राट अशोक। मौर्य साम्राज्य इन तीनों के राज में वैभव के चरम सीमा पर पहुंच गया था। जनता अपना सुखी जीवन व्यतीत करती थी। सम्राट अशोक ने तो जनता से संचार के लिए शिलालेख का सहारा लिया ताकि राज्य की जनता उसकी बात को जान सके और समझ सके।
मौर्य के समय महल का निर्माण लकड़ी से किया जाता था। छत भी लकड़ी की बनाई जाती थी। छत को सहारा देने के लिए पत्थर के स्तंभ होते थे जो कलात्मक ढ़ंग से सजाए जाते थे। लकड़ी के महल में रहने का अधिकार केवल राजसी परिवार को था। रसोईघर, स्नान घर आदि की व्यवस्था की गई थी। राजा जहां दरबार लगाता था वह एक बड़ा सा हॉल होता था। लकड़ी के फर्श को ढ़कने के लिए शानदार कालीन का प्रयोग किया जाता था। दीवारों को सोने की परत से कलात्मकता के साथ मढ़ा जाता था।
भवन की आकृति चौकोर या आयताकार होती थी। महल में 2-3 मंजिल हुआ करती थी। अंदरूनी छत पर शानदार तरीके से सोने से सजावट की जाती थी।
महल के बाहर सुंदर बगीचों का निर्माण किया जाता था। जिसमें तरह-तरह के फलदार और फूल के पेड़-पौधे लगे होते थे। फव्वारों का प्रयोग बगीचों की सुंदरता बढ़ाने के लिए किया जाता था।
महल चारों ओर से दीवार से ढंका होता था जिसमें अंदर आने के लिए कई दरवाजें होते थे। दीवार के सहारे एक खाई का निर्माण किया जाता था जो कई सौ मीटर गहरी होती थी। यह खाई शत्रु को महल में आने से रोकने के लिए बनाई जाती थी। दरवाजें भी इस प्रकार हुआ करते थे कि उन्हें रस्सी के सहारे उठा लिया जाए। सैनिक गस्ती के लिए दीवार पर बुर्ज बनाए जाते थे। आज भी इसके साक्ष्य पटना के आस-पास मिलते है।
अशोक ने यही व्यवस्था अपनाई साथ ही साथ उसने बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए पहाड़ियो को काटकर गुफाओं का निर्माण करवाया। जनता से संचार बनाने के लिए शिलालेख,गुहालेख लिखवाए। स्तूपों के निर्माण का श्रेय भी सम्राट अशोक को जाता है। सुंदरता से स्तूप बनाकर उन्हें गौतम बुद्ध की याद में शामिल कर दिया। जिसका सबसे सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है 'सांची'।
यही है मौर्यकालीन वास्तु कला।
📃BY_vinaykushwaha
अच्छी जानकारी।
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