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गुरुवार, 13 अगस्त 2020

चलते-चलते (श्रृंखला 7)


कभी-कभी मन में ख्याल आता है कि दुनिया बहुत छोटी है जैसे एक मेंढ़क को लगता है। कुएं में रहना वाले मेंढ़क को लगता है कि यही दुनिया है, इसके बाहर कुछ नहीं है। भारत एक विशाल देश है जहां एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए कई दिनों तक का समय लग जाता है। यही बात हमें बताती है कि दुनिया छोटी नहीं  हैं। सभी की अपनी एक दुनिया होती है परंतु दुनिया सबके लिए एक जैसी होती है।

हम इंसानों की एक आदत होती है कि हम अपनी-अपनी एक छोटी-सी दुनिया तैयार कर लेते हैं। हमारे दोस्तों वाली दुनिया, हमारे परिवार वाली दुनिया, कॉलेज वाली दुनिया, ऑफिस वाली दुनिया आदि मिलकर हम अपनी-अपनी दुनिया तैयार करते हैं। यह हमारे लिए एक घेरा बन जाता है जहां हम अपने आप को सहज महसूस करते है। हम अपने उस सहज घेरे को छोड़कर नहीं जाना चाहते क्योंकि हम कष्ट नहीं झेलना नहीं चाहते।

जब हम अपने घेरे से बाहर निकलते है तो एक नई दुनिया को देखते है; तब हमें मालूम चलता है कि दुनिया छोटी-सी नहीं है। दुनिया बहुत बड़ी है, यह हमें केवल घेरे से निकलकर ही पता चलता है। घेरे से बाहर निकलकर पता चलता है कि लोगों के व्यवहार में बदलाव नज़र आने लगता है, नए-नए खान-पान, पहनावा और यहां तक कि चेहरे तक बदलने लगते हैं। थोड़े समय पहले कि बात है मैं और मेरे दो दोस्त छत्तीसगढ़ और ओडिशा की यात्रा पर थे।

ओडिशा और छत्तीसगढ़ के लोग में रंग और रूप का अंतर होता है। वे उत्तर भारतीयों की तरह साफ रंग के नहीं होते हैं। मैं दुर्ग में था और रेस्टॉरेंट के तरफ जा रहे थे। मेरे एक दोस्त शिवम पोरवाल ने कहा कि यहां सब काले-काले और नक्सलवादी की तरह दिखते हैं। मैंने तुरंत जबाव देते हुए कहा यहां लोग ऐसे ही होते है क्योंकि वे जनजातीय समाज से संबंध रखते हैं। सारे लोग नक्सलवादी नहीं होते हैं। आखिरी में मैंने कहा कि असलियत में आरक्षण की इन्हीं लोगों को जरुरत हैं। तभी इंद्रभूषण ने बोला कि 'कभी आरक्षण से इनका भला नहीं हो सकता है।' मैंने तंज कसते हुए बोला कि सही है इन्हें कहां आरक्षण की जरुरत।

इंद्रभूषण को लगता है कि आरक्षण लोगों को अपंग बनाता और कभी भी आरक्षण से इनका भला नहीं हो सकता है। मैनें सोचा बहस करना मुनासिब नहीं होगा। मैनें मन में सोचा कि जब संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया गया था, तब उनका लक्ष्य यह था कि दलित, पिछड़े, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति जो समाज के अन्य वर्गों के समान सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक रूप से बराबर नहीं है उन्हें बराबरी पर लाना है। वो बात अलग है कि कुछ राजनीतिक पार्टियों और नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए आरक्षण का गलत उपयोग किया।

दुनिया छोटी-सी नहीं है बल्कि बहुत बड़ी है। यहां लोगों को समझना जरुरी है।

📃BY_ vinaykushwaha


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