भारत में सिंधु घाटी सभ्यता का काल लगभग 3500 से लेकर 1750 ईपू तक माना जाता है। जब इस सभ्यता का पतन हुआ तो एक नई सभ्यता ने जन्म लिया जिसका नाम है 'वैदिक सभ्यता'। वैदिक सभ्यता का काल 1500 ईपू से 500 ईपू तक माना जाता है। वैदिक सभ्यता कहने के पीछे सबसे बड़ा कारण है कि इसी समय इंडो-यूरोपियन भाषा में सबसे पहला ग्रंथ लिखा गया जिसका नाम था 'ऋग्वेद'। ऋग्वेद को भारत का ही नहीं विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ माना जाता है और जेंद अवेस्ता के समकक्ष माना जाता है। इस सभ्यता को स्थापित करने वालों को आर्य कहा गया।
आर्य कहां से आए इतिहासकारों के बीच मतभेद का विषय है परंतु एक सर्वमान्य मत है कि मध्य एशिया से आए। इस सभ्यता के बारे में कुछ जानकारी बोगाजकोई अभिलेख से प्राप्त होती है जो लगभग 1700 ईपू का है। इतिहासकारों ने वैदिक सभ्यता को दो भागों में बांटा है पहला ऋग्वैदिक काल जो लगभग 1500 से 1000 ईपू तक था। दूसरा उत्तर वैदिक काल जो लगभग 1000 से 500 ईपू तक था। यह सभ्यता सप्तसैंधव या सप्तसिंधु की निवासी थी जो सिंधु से लेकर गंगा नदी के दोआब का क्षेत्र था। ऋग्वैदिक काल में लोग पश्चिम क्षेत्र में रहते थे। लेकिन उत्तर वैदिक काल में लोग पूर्व और दक्षिण की ओर बढ़े।
इस सभ्यता में लोग खेती करना सीख गए थे। वैदिक काल में गाय और पशुओं का विशेष महत्व था। गाय का विशेष महत्व होता था। गाय के लिए युद्ध तक लड़े जाते थे जिसे 'गविष्ठि' कहा जाता था। आर्य कभी भी एक जगह नहीं रहते थे, सदा एक सथान से दूसरे स्थान पर विचरण करते थे।
खानाबदोश न होते हुए भी आर्य एक स्थान से दूसरे स्थान तक यात्रा करते और कबीलों का निर्माण करते थे। विशेष रूप से आर्यन कबीलाई ही थे। ईंटों से निर्मित घर की शुरुआत सिंधु घाटी सभ्यता से हो चुकी थी। वैदिक काल में मिट्टी और ईंट से बने घर उत्खनन (excavation) से मिले हैं।
ऋग्वैदिक काल में आर्यन अपने घरों का निर्माण मिट्टी से बनी दीवार छत पर घास-फूंस का प्रयोग करते थे। घर के अंदर का फर्श को पीट-पीटकर चिकना कर दिया जाता था। घर स्थाई नहीं होते थे। घर एक घेरे में बने होते थे जिसके बीचोंबीच एक हवनवेदी (अग्निकुण्ड)होती थी। पशुओं को रखने के लिए एक स्थान होता था विशेषकर गाय। ऋग्वैदिक काल में वास्तुकला कोई ज्यादा प्रभावशाली नहीं रही।
उत्तर वैदिक काल में वास्तुकला बिल्कुल ऋग्वैदिक काल की तरह थी। इस काल में एक और बात जुड़ गई जिसमें हवनवेदी(अग्निकुण्ड) जरुरी हो गई। लोगों में स्थायित्व आ गया क्योंकि लोगों ने पशुपालन को मुख्य व्यवसाय से हटकर कृषि को मुख्य व्यवसाय बना लिया। वर्ण व्यवस्था की व्यापकता बढ़ गई। कही-कही यह भी उदाहरण मिलता है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र की अलग-अलग बस्तियां करती थी।
यही है वैदिक सभ्यता की वास्तुकला।
📃BY_ vinaykushwaha
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