यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 13 अगस्त 2020

हमारी स्वतंत्रता


अहो भाग्य हमारे कि हम स्वतंत्र भारत में जन्में। जीवन में स्वतंत्रता से खुलकर श्वास ले सके, घूम सके, वह सब कुछ कर सके जिसके लिए हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने ब्रिटिश हूकुमत से लड़ झगड़ कर हासिल किया था। आजादी का क्या मतलब होता है? हमें उस परिंदे से पूछना चाहिए जिसके पंख होने के बाद भी पिंजरे में होने के कारण उड़ नहीं पाता। यदि पंछी को पिंजरे से बाहर निकाल दिया जाता है तो वह गगन की नई ऊंचाईयों को छूता है। भारत को आज आजादी के 70 वर्ष हो चुके हैं। आज भारत कई बुलंदियों को छू चुका है और कई को छूना बाकी है।

भारत को यह आजादी बस यूं ही नहीं मिल गई। हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने स्वयं को बलि वेदी पर न्यौछावर कर मातृभूमि को बंधन से मुक्त कराने का प्रयास किया। अंग्रेजी  शासन की चूले हिलाकर रख दी साहस, अदम्य उत्साह और वीरता से। अपना परिवार छोड़कर सारे देश को अपना घर माना और देशवासियों को परिवार का सदस्य माना। किसी ने प्रेस की आजादी के लिए लड़ाई की, किसी ने स्वराज की मांग के लिए, किसी ने प्रकृति के लिए, किसी ने खेती के लिए लड़ाई कि तो किसी ने अधिकारों के लिए। सभी के उद्देश्य भले ही अलग-अलग हो परंतु ध्येय तो एक ही था 'स्वतंत्रता'। स्वतंत्रता, बिना संप्रभुता के बिना सहेजी नहीं जा सकती है। संप्रभुता किसी भी देश को स्वयं के पैरों पर खड़ा होना सिखाती है।

भारत के हर हिस्से से स्वतंत्रता के लिए लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कर्नाटक के सूदूर कोने में बसे कित्तूर की रानी चेनम्मा ने हडप नीति का विरोध करते हुए अंग्रेजों से युद्ध लड़ा और उनके दांत खट्टे कर दिए। रानी चेनम्मा ने रानी लक्ष्मीबाई से कई वर्ष पहले ही अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई।

भारत के सूदूर दक्षिण राज्य केरल में कोट्टयम राज्य के राजा पजहस्सी ने भी अपने अदम्य साहस से अपनी ओर ध्यान खींचा। पजहस्सी राजा को केरल सिंहम् की संज्ञा दी गई है। पजहस्सी ने कर वसूली के विरोध में आवाज उठाकर अंग्रेजों से लोहा लिया लेकिन कुछ विश्वासघातियों और छद्म युद्ध के कारण पजहस्सी ने अपने आप को देश के लिए न्यौछावर कर दिया।

अझगू मुत्तू कोणे एक महान क्रांतिकारी थे जो पोरिगर राजा के सेनापति थे। तमिलनाडु में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई। 1857 की क्रांति से लगभग 100 साल पहले ही उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बगावती सुर बुलंद करके उनका जीना मुहाल कर दिया था।

अल्लूरी सीताराम राजू ने आंध्रप्रदेश के वनवासी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा था। राजू एक प्रखर बुद्धि के धनी व्यक्ति थे। जब अंग्रेजों के वनवासी क्षेत्र में दमन बढ़ने लगा तो राजू ने अपने साहस और वनवासी दल बनाकर अंग्रेजों को नाकों चने दबाने पर मजबूर कर दिया। महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस ने सीताराम राजू भूरी-भूरी प्रशंसा की।

तिलका मांझी को स्वतंत्रता संग्राम का पहले शहीद होने का दर्जा प्राप्त है। तिलका मांझी ने संथाल विद्रोह को आगे बढ़ाया था। मुंडा विद्रोह को जन्म देने बिरसा मुंडा को कौन नहीं जानता। बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ तीर-कमान लेकर युद्ध छेड़ दिया था। तिलका मांझी और बिरसा मुंडा दोनों ने ही अपनी वीरता का जौहर दिखाया।

टंट्या भील को बहुत ही कम लोग जानते होगें। टंट्या भील आदिवासी क्रांतिकारी के रूप में जाना जाता है। मध्यप्रदेश के निमाड़ क्षेत्र से आने वाले टंट्या ने अंग्रेजों को सोचने पर मजबूर कर दिया था। उन्हें रॉबिनहुड के नाम से भी जाना जाता था। अंग्रेजों के द्वारा जब-जब गिरफ्तार किया तब-तब वे बिना जेल तोड़े भाग जाते थे जो कि एक आश्चर्य का विषय था। एक बार  गिरफ्तार करके अंग्रेजों ने उन्हें फांसी पर लटका दिया। आज भी  टंट्या भील जिंदा क्योंकि वे एक महान वीर है।

रानी गोडिनेल्यू पूर्वोत्तर में अंग्रेजों के खिलाफ विरोध करने वाली एक छोटी सी उम्र की लड़की से कौन अपरिचित होगा। नगालैण्ड में अंग्रेजों के अत्याचारों से तंग आकर उन्होने कई तरीकों से विरोध किया। इसी कारण पंडित जवाहर लाल नेहरू ने गोडिनेल्यू को 'नगा
रानी' की उपाधि दी थी।

शंभुधन फुलगो ने असम के कछार क्षेत्र में अंग्रेजों के खिलाफ लोहा लिया वही राजस्थान के दालजी भीची ने भी भील जनजाति की ओर से नेतृत्व किया। संन्यासी विद्रोह ने भी बंगाल में अंग्रेजों को सोचने पर मजबूर कर दिया।

भारत इन्हीं के त्याग, समर्पण और बलिदान से मिलकर बना है। कोटि-कोटि नमन। वंदे मातरम्।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें