कुछ दिनों पूर्व मैं एक किताब पढ़ रहा था। जिसमें पत्रकारों के वास्तविक जीवन के बारे में प्रकाश ड़ाला गया है। किस प्रकार आज के दौर के पत्रकार आजादी से पूर्व , तत्समय और आजादी के बाद वाले पत्रकार से कितने भिन्न थे। उनका तन-मन-धन सब कुछ देश के लिए समर्पित था। अपनी पत्रकारिता वे देश के नाम किया करते थे। देशभक्ति से सराबोर होकर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया करते थे। ब्रिटिश काल में जब पत्रकारिता पर तमाम तरह की पाबंदियां लगाई गई थी तब भी वे अपने घर-परिवार की चिंता न करते हुए समाचार पत्रों और मैग्जीन आदि का प्रकाशन किया और इसी कारण उन्हें जेल जाना पड़ा। कुछ ऐसे ही भारत के महान पत्रकारों के बारे में बताया गया है पुस्तक "अनथक कलमयोद्धा" में।
"अनथक कलमयोद्धा" पुस्तक का प्रकाशन विश्व संवाद केन्द्र भोपाल के द्वारा संपादक लोकेन्द्र सिंह जी और मंयक चतुर्वेदी जी के मार्गदर्शन में हुआ। यह पुस्तक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विलक्षण प्रतिभा के धनी और पत्रकारिता में निपुण पत्रकारों को समर्पित है। आजादी की लड़ाई में आंदोलन के माध्यम से ही नहीं अपनी कलम के द्वारा अंग्रेजी हुकूमत को हिलाकर रख दिया। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के पत्रकारों ने केवल समाचार पत्रों और मैग्जीन के सहारे ही नहीं बल्कि देशभक्ति से ओतप्रोत साहित्य का सृजन करके लोगों के बीच जागरुकता फैलाई।
माखनलाल चतुर्वेदी जी के द्वारा लिखी गई 'पुष्प की अभिलाषा' कविता हो या कर्मवीर नामक राष्ट्रीय दैनिक का संपादन। कविता, लेख, समाचार पत्र के सहारे माखनलाल चतुर्वेदी ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था। छत्तीसगढ़ के महान साहित्यकार पदुमलाल पन्नालाल बक्शी को कौन भुला सकता है जिन्होंने साहित्य के साथ-साथ पत्रकारिता को देश सेवा का जरिया बनाया। विन्ध्यप्रदेश की पत्रकारिता के पुरोधा लाल बल्देव सिंह की बात करें तो वे केवल एक महान पत्रकार ही नहीं थे बल्कि सच्चाई का साथ देने वाले रीवा राज्य के सेनापति थे। "भारतभ्राता" नाम से समाचार पत्र का प्रकाशन किया और जनता के मुद्दों के साथ-साथ देश-विदेश की खबरों को प्रमुखता दी। पत्रकारिता की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपने राज्य के विरुद्ध खबरों को छापा जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा।
एक सच्चे पत्रकार का प्रथम कर्तव्य क्या होता है? कि वह सच को उजगार करें और निष्पक्षता के साथ खबरों को छापें। "अनथक कलमयोद्धा" इसी प्रकार के कर्तव्यपरायणता की परिचायक है। चाहे वे अब्दुल गनी हो या प्रदेश में पहले हिंदी दैनिक के संपादक मास्टर बल्देव प्रसाद हो या बनवारी लाल बजाज या पं. भगवतीधर बाजपेई सभी ने अपना शत-प्रतिशत योगदान देकर पत्रकारिता और लेखन को समृद्ध बनाया है। पत्रकारिता और साहित्य के ऋषि कहे जाने वाले पं. माधवराव सप्रे जी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में नए कीर्तिमान गढ़े हैं।
आज के दौर के पत्रकारों को यह सीखना अत्यावश्यक है कि खबरों के साथ-साथ देश प्रथम है न कि पैसा। इस किताब से तो यही जानकारी मिलती है कि पत्रकारिता जीवन का दूसरा पर्याय देशभक्ति से है। पत्रकार को सदा अपने विचारों और खबरों से सच्चाई के साथ देशभक्ति परक शिक्षा देना चाहिए। "अनथक कलमयोद्धा" महान पत्रकारों के बारे में तो यही बताती है। जो पत्रकार है या पत्रकारिता के छात्र है उन्हें कम से कम एक बार यह किताब जरुर पढ़ना चाहिए।
।।जय हिंद।।
📃BY_ vinaykushwaha
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