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गुरुवार, 13 अगस्त 2020

बनारस की बात


जनवरी की ठंड और गंगा का किनारा हो तो पल को और ज्यादा रोमांचक बना देता है। कोहरे में लिपटा हुआ गंगा के किनारे के साथ-साथ घाटों को और ज्यादा आकर्षक बना देती है। बनारस की हर बात निराली है। चाहे यहां का पान हो या साड़ी , चाहे चाय हो या फैना , चाहे गलियां हो या घाट , चाहे मंदिर हो या मौसम सब कुछ बिंदास है। बनारस की फिज़ा ही कुछ अलग है।बनारस कहो या काशी या वाराणसी सभी शहर के पर्याय होने के बाद भी वही अनुभव देता है। बनारस की एक खूबी हो तो कुछ बोलूं और लिखूं यहां तो इतना है कि कोटि-कोटि बोलना ही सही होगा।

बनारस के घाट का जीवन अनोखा ही है। एक तरह से कहा जा सकता है कि यहां सामान्य जीवन नहीं होता है। दैनिक जीवन में जो हम जिंदगी जीते है वह यहां लागू नहीं होती। या यूं कहा जाए कि इन घाटों ने सदियों से जीवन की रुपरेखा का बदलकर रख दी है। गंगा के पश्चिमी किनारे पर दूर-दूर तक फैले घाट अपनी विशालता का अनुभव कराते हैं। सामान्य जनमानस में जहां दशाश्वमेध और मणिकर्णिका घाट ही प्रचलित है वही ऐसे कई घाट है जो अपने अस्तित्व का परिचय खुद ही दे रहे हैं। घाटों का जीवन एक अलग ही दुनिया की ओर ले जाता है।

गंगा का जल घाटों पर बार-बार कुलाचें मारता है। गंगा पर नाव अपनी चहल-पहल से इस घाट वाली जिंदगी को सतरंगी दुनिया में प्रवेश करा देती हैं। गंगा के पश्चिमी किनारे से पूर्वी किनारे तक जहां केवल रेत का
टीला है नावों की आवा-जाही बनी रहती है। टीले से घाटों का नज़ारा देखने लायक होता है, जिसके लिए मेरे पास शब्दों की कमी हो गई है। मोबाइल का कैमरा भी वाइड एंगल नहीं ले पा रहा है। सच में धन्य है वाराणसी। मल्लाहों के बोल-बोला से घाट से रेत के टीले तक जाने का सफर और ज्यादा सुगम हो जाता है। कोहरे में लिपटी यह काशी अपने अनेकों रंग-बिरंगे परिवेश से लेकर घाटों पर अवतरित तरह-तरह के लोगों के लिए जानी जाती है।

बनारस की शुरुआत तो तभी हो जाती है जब लोगों में यह उत्सुकता बढ़ जाती है कि ट्रेन स्टेशन पहुंचने वाली है। भगवान भोलेनाथ की नगरी की फिज़ा बनारसी ठंडाई से महकने लगती है। कुल्हड़ की चाय से लेकर सतरंगी-अतरंगी बाजारों तक बनारस की बात ही कुछ और है। एक ओर तांबे-पीतल के चमकदार बर्तनों की दुकान तो एक ओर पेड़े की दुकान , वही एक ओर कंठी-माला तो दूसरी ओर प्रसादों से सजी दुकानें। कही छनती पूड़ियां-कचौडियां तो कही पान पर लगता गुलकंद सब की बात ही बेमिसाल है क्योंकि यह बनारस है।

हर-हर महादेव, बाबा विश्वनाथ की जय , बम-बम भोले के गान सहज ही कानों को छूकर जाते है। यहां की हर गलियां तो यही कह रही होती है यह बाबा विश्वनाथ का शहर है। यहां तो एक ही मालिक है बाबा विश्वनाथ। एक ओर जहां बाबा विश्वनाथ मंदिर में घंटा-ध्वनि सुनाई देती है वही दूसरी ओर ज्ञानवापी मस्जिद से सुनाई देती अज़ान समां में कुछ अलग ही रंग घोलती है।


दुकान में सजी या यूं कहा जाए कि दुकान की ओट से झांकती जरी वाली चटक रंग की बनारसी साड़ियां बरवश ही अपनी ओर खींचती है। कारीगरी की बेमिसाल नमूना यह साड़ी बनारस की आन-बान-शान कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगा। कपड़ों का सतरंगी आसमां बनारस की गलियों को और ज्यादा रोचक बना देता हैं। कही मंदिर के लिए लगी कतारें तो कही साधु-सन्यासियों का जमावड़ा बिल्कुल बनारस वाला टच देता है।

डॉ राजेन्द्र प्रसाद घाट हो या लाली घाट , पांडेय घाट हो या अहिल्या घाट सभी उसी तरह है जैसे सूर्य का प्रकाश। कोई इन घाटों पर ट्रेवलर बनाकर आया है तो कोई श्रद्धालु के रुप में मां गंगा का आशीर्वाद लेने आया है। कही साधु-सन्यासी ध्यान में मग्न नज़र आते है तो कही लोगों को ज्ञान बांटते हुए। कही कोई वैरागी चिलम पीते हुए मिलता है तो कोई अक्खड़पन में अपनी चाल में चलता हुआ। इस शहर में देशी क्या? विदेशी क्या? सभी एक ही रंग में नज़र आते हैं, वह रंग है बनारस। विदेशी अपनी जिज्ञासा को शांत करने, ज्ञान की तलाश में, भारतीयों की अटूट धार्मिक श्रद्धा देखने और कुछ पर्यटन के उद्देश्य से आते हैं। इन घाटों की जितनी महिमा गाई जाए उतनी कम है।

बनारस में सभी को एक रस प्राप्त होता है जिसे आनंद कहते है। मनुष्य यहां हर रुप में सहज ही मिल जाता है। जहां एक ओर मनुष्य दशाश्वमेध घाट पर धार्मिक अनुष्ठान के जरिए नए क्षण के लिए प्रतिबद्ध होता है वही दूसरी ओर मणिकर्णिका घाट से एक नए जीवन की शुरुआत करने के लिए देहार्पित करता है।

                          ।।जय हिंद।।

📃BY_vinaykushwaha



2 टिप्‍पणियां:

  1. गजब जी बनारस के घाटों का क्या सजीव वर्णन किया है क्योंकि मैंने यह सभी कार्ड देखे हैं इसलिए आपके इस घाट वर्णन में या कहो घाट पुराण को पढ़कर दिल खुश हो गया

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