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गुरुवार, 13 अगस्त 2020

हिंदी या बिंदी

        

कुछ दिनों पहले लोकसभा में हमारे देश की विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज और कांग्रेस के जाने-माने नेता शशि थरुर के बीच इस बात को लेकर बहस हो गई कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ में अधिकारिक भाषा बनाना चाहिए कि नहीं। 2014 में जब एनडीए नीत  नरेन्द्र मोदी सरकार आई तो निर्णय लिया कि सरकार विदेशी मंचों पर हिंदी भाषा का प्रयोग करेगी और जहां तक संभव होगा सरकारी कामकाज में भी हिंदी भाषा का उपयोग करेगी। संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को अधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए एनडीए सरकार ने भरसक प्रयास किया है और कर रही है। इस पूरी प्रक्रिया में एक सबसे बड़ी समस्या है कि अधिकारिक भाषा के लिए सभी सदस्य देशों को लागत वहन करना पड़ता है। इसी बात के कारण पेंच अटका हुआ है।

लागत वहन करना ही नहीं भाषा आधारित बोझ बढ़ना भी एक बहुत बड़ी समस्या है जिसके कारण कई देश इस प्रक्रिया को पूर्ण नहीं होने देना चाहते। रुस जो हमारा मित्र देश कहा जाता है उसने भी संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में यह स्वीकार किया है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में अधिकारिक भाषा बढ़ने से कार्य बढ़ जाएगा। परिषद में भाषा-रुपांतर का कार्य भी बढ़ जाएगा साथ ही लागत वहन भी। भाषा को उनकी संख्या के आधार पर अधिकारिक भाषा घोषित नहीं किया गया बल्कि प्रभाव के आधार पर। अभी संयुक्त राष्ट्र संघ में छह भाषाएं इंग्लिश, फ्रेंच, अरेबिक, रसियन, मंडारिन,और स्पेनिच है लेकिन इंग्लिश और फ्रेंच ही सभी अधिकारिक कार्य किए जाते है। यदि संख्या के लिहाज से कहा जाए तो हिंदी विश्व की चौथी सबसे बड़ी भाषा है और रसियन,फ्रेंच और अरेबिक से भी बड़ी भाषा है।

भारत में भी हिंदी को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। 2010 में गुजरात हाईकोर्ट ने हिंदी भाषा के विषय में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए, यह निर्णय दिया कि  हिंदी भारत की अधिकारिक भाषा नहीं है। इसका इस्तेमाल सरकारी कामकाज के रुप में किया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 343 में राजभाषा का दर्जा दिया है और हिंदी और इंग्लिश को सरकारी भाषा में उपयोग करने की बात कही गई है। राज्यों को अपनी अधिकारिक और सरकारी कामकाज करने के लिए स्वयं भाषा चुनने का अधिकार है। हिंदी न केवल भारत में बल्कि नेपाल, यूएसए, यूके, फिजी, गुएना, त्रिनिदाद, सूरीनाम, मॉरिशस आदि देशों में बोली जाती है। हिंदुस्तानी के रुप में हिंदी तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान, मालद्वीप आदि देशों में समझी और बोली जाती है। विश्व में हिन्दी बोलने वालों  की कुल संख्या लगभग 292 मिलियन है। फिजी, गुएना, सूरीनाम, मॉरिशस में तो हिंदी को अधिकारिक भाषा के रुप में स्वीकारा गया है।

शशि थरुर जी ने सदन में यह कहा कि यदि भविष्य कोई व्यक्ति यदि दक्षिण भारत से प्रधानमंत्री बनेगा तो वह अपनी मातृभाषा में संवाद करेगा। शशि जी बहुत विद्वान व्यक्ति है मैं उनकी बात को नहीं काट सकता। लेकिन मैं शशि जी को यह बताना चाहता हूं वर्तमान प्रधानमंत्री गुजरात से है और उनकी मातृभाषा गुजराती है। फिर भी वे भारत और विदेशी मंचों पर संवाद के लिए हिंदी भाषा का उपयोग करते है। वैसे प्रधानमंत्री भारत के किसी भी कोने से बने उसे संवाद करने लिए इंग्लिश या हिंदी को ही चुनना पड़ेगा चाहे उनकी मातृभाषा कुछ भी हो। भारत की लगभग 50 करोड़ आबादी हिंदी लिखती, पढ़ती और बोलती है।

हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए बहुत कार्य करने होगें। सर्वप्रथम उन देशों को मनाना पड़ेगा जो सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य देश है। चीन और रुस को खासकर क्योंकि चीन भारत का विश्व मंच पर सबसे बड़ा विरोधी देश है और रुस को इसलिए भी क्योंकि भारत जब से अमेरिका के करीबी मित्रों में शुमार हो गया है तब से रुस के दोस्ताने में परिवर्तन आ गया है। दूसरा, हमें उन देशों को एक मत करना होगा जिन देशों में हिंदी आम बोलचाल या अधिकारिक रुप से उपयोग की जाती है और लागत वहन करने पर एकजुट करना। तीसरा, सभी संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को हिंदी को अधिकारिक भाषा बनाने के लिए एक मंच पर लेकर आना और जहां तक संभव हो कूटनीतिक ताकत का सहारा लेना।

हिंदी , संस्कृत भाषा से बनी एक प्यारी सी भाषा जिसे बचाए रखना और अगली पीढ़ी तक पहुंचाना जरुरी है। 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस घोषित करने या मनाने से हिंदी की सार्थकता पूर्ण नहीं होती है।

                           ।।जय हिंद।।

📃BY_vinaykushwaha


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