यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 13 अगस्त 2020

चलते-चलते (श्रृंखला 8)

         

एक रेस्टॉरेंट में मां अपने बच्चे से कहती है कि बेटा गिलास में वाटर है जल्दी पिओ। वही उसके दूसरे दिन एक टीचर अपने छात्रों से कहती है कि talk in English otherwise I will punish all of you. यह सब क्या हो रहा है। माना कि इंग्लिश बहुत जरुरी है परंतु मजबूरी तो नही है। बच्चे की प्रथम पाठशाला बच्चे की मां होती है। यदि मां ही अपने बच्चे को बचपन से ही अंग्रेजीनुमा हिंदी सिखाएंगी तो क्या होगा उस बच्चे के विवेक का? वह तो केवल अंग्रेजी की चकाचौंध में गुम हो जाएगा और हिंदी को भुलाता जाएगा। धीरे-धीरे वह हिंदी को तुच्छ भाषा के रूप में समझने लगेगा। प्रथम पाठशाला से लेकर आखिरी पाठशाला जब सभी इंग्लिश से युक्त हो जाएगें तब निष्कर्ष आपको पता है।

हमारी मानसिकता आज इंग्लिश वाली हो गई है जो केवल इंग्लिश में  सोचने, बोलने और लिखने के लिए विवश करती है। आज का बच्चा प्राथमिक से ही या कहे तो प्ले स्कूल से ही इंग्लिश के माहौल में धकेल दिया जाता है या चला जाता है और घर में भी माहौल इंग्लिश वाला ही रहता है। समाचारपत्र, टीवी चैनल, किताबें, मैग्जीन, रेडियो चैनल आदि सबकुछ इंग्लिशमय हो गया है। इंग्लिश आज भारतीय मानसिकता में इस तरह घर कर गई है कि बिना इसके कुछ संभव ही न हो। मानाकि आज का दौर इंग्लिश वाला है। इंग्लिश एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा बन चुकी है। चाहे व्यापार हो, शिक्षा हो, मनोरंजन हो आदि सभी जगह इंग्लिश ने अपने पैर पसार लिए है या हम यूं कह सकते है कि इंग्लिश अन्य भाषाओं के लिए बाधक बन गई है।

मैं तो केवल इतनी बात अच्छी तरह जानता हूं कि वही देश तरक्की कर सकता है जो अपनी मातृभाषा का सम्मान करता है। हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके कई उदाहरण देख सकते है। इजरायल ने हिब्रू को अपनी राष्ट्रभाषा स्वीकार की और आज अपनी भाषा को ताकत बनाकर बुलंदियों के शिखर पर काबिज है। इजरायल की तरह रूस, जर्मनी, जापान, फ्रांस आदि देशों ने भाषा के बल पर विकास किया जाता है,यह सिद्ध कर दिखाया है। चीन आज दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। मंडारिन भाषा को चीन ने अपनी पहचान बना ली और मंडारिन आज दुनिया की सबसे बड़ी सांकेतिक भाषा है। हिंदी दुनिया की चौथी सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा है, इस पर हमें गर्व होना चाहिए। विश्व में हिन्दी बोलने वालों की संख्या लगभग 70 करोड़ है। हिन्दी भारत में ही नहीं मॉरिशस, गुएना, सेशेल्स आदि देशों में प्रमुखता से बोली जाती है। यूएन में आधिकारिक भाषा के रूप में हिन्दी को दर्ज कराने का प्रयास जारी है।

मानाकि भारत भाषाओं का देश है लेकिन हिंदी माध्यम भाषा की भूमिका अदा करती है। हिंदी की लिपि देवनागरी कई अन्य भाषाओं जैसे गुजराती, मराठी आदि में प्रयोग हो रही है। हिंदी एक समृद्ध भाषा होने के पीछे एक सतत् प्रक्रिया है जिसमें हमें आज की हिंदी दिखाई देती है।

समृद्ध हिन्दी को स्वीकार करने में क्या परेशानी है? आज यदि हम अपनी भावी पीढ़ी को हिन्दी और अपनी मातृभाषा के प्रति जागरुक नहीं करते है तो वे उस ज्ञान से वंचित हो जाएंगे। हिन्दी के जागरुकता के साथ-साथ प्रचार-प्रसार की जरुरत भी है। देश के सभी नागरिक की यह जिम्मेदारी बनती है कि हम अपनी मातृभाषा के प्रति सजग और जिज्ञासु बनें।

📃BY_ vinaykushwaha

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें