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गुरुवार, 13 अगस्त 2020

सर्वकामना सिद्ध करें मां नर्मदा


नमामि देवी नर्मदे .... के स्वर से अमरकंटक से भरुच तक का कण-कण गुंजायमान होता है। आदिगुरू शंकराचार्य जी जब अमरकंटक आए और यहां मां नर्मदा का सौंदर्य निहारा तो उनका मन-मतिष्क नर्मदा का महिमा गान करने से नहीं रोक पाया। उन्होंने नर्मदाष्टक की रचना कर दी। भारत की पवित्रतम नदी जो मेरे लिए तो मां से कम नहीं है क्योंकि जिसने दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृति को जन्म दिया हो वो भला मां न हो तो क्या हो? जो लाखों-करोड़ों लोगों को अपना शीतल, मृदु , कंचन जल प्रदान करती हो वो भला मां न हो तो क्या हो? जो लाखों किसानों की मदद करते हुए धरती को शस्य-श्यामला बनाती हो तो वो भला मां न हो तो क्या हो? जो लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करें वो भला मां न हो तो क्या हो? जो अपने दोनों पार्श्वों ( सतपुडा पर्वत और विन्ध्याचल पर्वत) को पोषित करती हो वो भला मां न हो तो क्या हो? भांति-भांति...

मां नर्मदा ने अपने कई रुप धारण किए हुए है लेकिन वो रुप जिसमें भारत की अन्य सरिता बहती है वो है कुवांरी। मां नर्मदा भी अन्य नदियों की तरह कुवांरी है जो सदा कल-कल की धारा के साथ प्रवाहित होती रहती है। अमरकंटक में मां नर्मदा अपने बचपन की अटखेलियां करती है। माई की बगिया में आप अपने बचपन के बचपनों को साकार रुप देती है। भूगोलशास्त्री (geographer) के अनुसार नदी की तीन अवस्था होती है युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था। लेकिन मेरे अनुसार तो मां नर्मदा की केवल एक ही अवस्था है युवावस्था। उछल-कूद करता हुआ पानी मैकल की पहाड़ियों से पश्चिम दिशा में आगे बढ़ता जाता है। घने जंगलों और एक के बाद एक जलप्रपात बनाते हुए नर्मदा आगे बढ़ती जाती है। अमरकंटक में दुग्धधारा और कपिलधारा जलप्रपात बनाते हुए अपनी सखी सहेली और दोस्त(सोन, जोहिला सोन) को पीछे छोड़ते हुए आगे सतपुडा और विन्ध्याचल के बीच कही जॉर्ज तो कही महाखड्ड तो कही रैविन बनाते हुए आगे बढ़ते जाती है। घने जंगलों से होकर कही लुप्त हो जाती है तो कही प्रकट होकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा देती है।

कही मनोरम धुंआधार जलप्रपात बनाती है तो कही मार्बल रॉक के बीच से होकर गुजरते हुए मनभावन कलात्मक कारीगरी करती है तो कही सहस्त्र धाराओं में बंटकर सहस्त्रधारा जलप्रपात बनाती है। गुजरात में समुद्र में मिलने से पूर्व नर्मदा जलप्रपात का निर्माण करती है।

मां नर्मदा मनुष्यों को ही नहीं वन्यजीवों को भी जीवन प्रदान करती है। पेंच,कान्हा,सतपुडा जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्यान के जीवों को जीवन देती है। भारत के सबसे पुराने वनों में से एक को जीवित रखती है। महाशीर से लेकर राजासॉरस नर्मदेन्सिस और जबलपुरसॉरस को भी जीवन दिया ऐसी है मां नर्मदा।

मां नर्मदा को शंकर भगवान की पुत्री कहा जाता है इसलिए इन्हें शांकरी भी कहा जाता है। नर्मदा जिसका अर्थ है कि सुख को देने वाली अर्थात् सुखदात्री मां। नर्मदा का हर पत्थर एक शिवलिंग के समान है क्योंकि भगवान शिव ने स्वयं मां नर्मदा को वरदान दिया था कि नदी एवं तुम्हारे तट पर स्थित हर पत्थर एक शिवलिंग है जिसे बिना प्राण-प्रतिष्ठा के स्थापित किया जा सकता है। मां नर्मदा की बात ही निराली क्योंकि इस सृष्टि का सर्वनाश होने पर भी मां नर्मदा सदा प्रवाहित होती रहेंगी। हमारे धर्म ग्रंथों में नर्मदा को रेवा नाम से पुकारा गया है जिसका अर्थ है 'उछलने कूदने वाली नदी' क्योंकि मां नर्मदा ऐसा मार्ग चुनती है जो ऊंची-ऊंची पहाडियों और दुर्गम रास्ते वाला है। मां नर्मदा के इनके अलावा कई और नाम है जैसे नामोदास, सामोद्भवा (सोम पर्वत से जिसका उद्भव हुआ हो ), मैकलसुता (मैकल पुत्री)।

मां नर्मदा ने कई युगों को देखा। कई शासन को पोषित किया या यूं कहे कि कल्चुरी, गौंड जैसी शासक व्यवस्था को बनाए रखने में मदद किया। भारतीय पुरातत्व विभाग कहता है कि भारत की सबसे पुरानी सभ्यता जिसे हम नर्मदा घाटी सभ्यता कहते है उसने यही जन्म लिया। नर्मदा ने कई तीर्थों अमरकंटक, ओंकारेश्वर, महेश्वर को जन्म दिया। मां नर्मदा को मध्यप्रदेश की जननी कहा जाता है या यूं कहे कि जीवन का आधार या मध्यप्रदेश की जीवन रेखा।

जिस प्रकार जीवन प्रति क्षण देश लिए समर्पित है ठीक उसी प्रकार इस शरीर का रोम-रोम मां नर्मदा के लिए समर्पित। भगवान शंकर ने वरदान देकर मां नर्मदा को पापनाशिनी या नर्मदा को देखने वाले के पाप नष्ट हो जाएंगे। ऐसी मां सर्व कामना सिद्ध करें मां नर्मदा।


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