व्यौहार राजेन्द्र सिंह का जन्म 14 सितंबर 1916 को हुआ और जन्मदिवस की 50वीं वर्षगांठ अर्थात् 14 सितंबर 1949 को भारत सरकार ने हिंदी को राजभाषा घोषित कर दिया। इसी दिन को 'हिंदी दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। यह बहुत कम लोग जानते है कि हिंदी को राजभाषा के रूप में स्थापित करने का श्रेय व्यौहार राजेन्द्र सिंह को जाता है। जबलपुर की जागीरदार के घर जन्मे राजेन्द्र सिंह गांधीवादी विचारधारा के व्यक्ति थे। समाजसेवी और साहित्यकार भी थे। व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने मैथिली शरण गुप्त, का का कालेलकर, सेठ गोविंददास और हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसी महान हस्तियों के साथ मिलकर दक्षिण भारत में हिंदी को राजभाषा के रूप में घोषित कराने के लिए अभियान चलाया। अमेरिका में सपन्न हुए पहले हिंदी सम्मेलन का सफल आयोजन कर भारतीय तिरंगा झंड़ा फहराया।
प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 343(1) के तहत इसे राजभाषा का दर्जा दिया गया। हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है न कि राष्ट्रभाषा का क्योंकि हमारे संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में चिन्हित नहीं किया गया है। हिंदी को संविधान की आठवी अनुसूची में शामिल किया गया है। स्वतंत्रता पश्चात् सरकारी कामकाज और जनसामान्य में व्यवहार करने के लिए एक भाषा की जरुरत पड़ी। तत्कालीन भारत बिखरा हुआ था जिसमें आज की तरह राज्य नहीं थे। देश की भाषा के रूप में कई भाषा के लिए जनप्रतिनिधियों और आमजन ने तमिल, बंगाली, असमिया, हिंदुस्तानी जैसी भाषा का नाम आगे किया। संविधान सभा की भाषा समिति ने सभी से राय लेते हुए और देश की बहुसंख्यक आबादी की बोलने वाली भाषा के रूप में हिंदी को राजभाषा स्वीकार किया गया। हिंदी के साथ-साथ इंग्लिश को पन्द्रह वर्षों के लिए सरकारी भाषा के रूप में स्वीकार किया गया।
हिंदी भाषा की जननी संस्कृत को कहा जाता है जबकि ऐसा नहीं है। हिंदी को हिंदी बनने में बहुत लंबा समय लगा है। सबसे पहले संस्कृत भाषा आई फिर प्राकृत फिर अर्द्धमागधी फिर अपभ्रंश फिर अवहट्ट अंतत: हिंदी भाषा का जन्म हो गया। हिंदी उपरोक्त भाषाओं से ताकतवर भाषा बन गई है क्योंकि हिंदी ने बहुत से शब्द भंड़ार बाहर से ग्रहण किए है जिनमें संस्कृत सबसे अहम है। तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी शब्दों का उपयोग करके हिंदी एक समृद्ध भाषा के रूप में विकसित हुई है। हिंदी भाषा की एक और ताकत है उसकी बोलियां जिसमें भोजपुरी, शौरसेनी अपभ्रंश, बघेली, छत्तीसगढ़ी, हडौती, ढूढांणी,मेवाती, मारवाडी, मालवी, निमाड़ी, ब्रज, अवधी, हरियाणवी, कुमायुनी आदि हैं। हिंदी भाषा को लिखने के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग किया जाता है।
भक्ति काल में हिंदी ने जनसामान्य में जगह बनाने की शुरुआत की इसमें बड़े-बड़े कवियों ने रचनाओं का सृजन कर हिंदी को समृद्ध किया। मीरा, कबीर, तुलसीदास, सूरदास, बिहारी, केशवदास, दादू , रहीम, भूषण आदि रचनाकार है जिन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने की नींव रखी। आचार्य रामचंद्र शुक्ल, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु, राही मासूम रज़ा, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, मैथिली शरण गुप्त, सुमित्रानंदन पंत, गजानन माधव मुक्तिबोध, गणेश शंकर विधार्थी, देवकीनंदन खत्री, माखनलाल चतुर्वेदी, भवानी प्रसाद मिश्र जैसे साहित्य के अग्रदूतों ने विशेष योगदान दिया।
हिंदी आज के समय में एक ऐसी भाषा बन चुकी है जिसका लोहा पूरी दुनिया मानती है। भाषाविद् हिंदी को भारोपीय श्रेणी में रखते है। हिंदी दुनिया की चौथी सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा बन चुकी है जिसके भारत समेत विश्व में लगभग 329 मिलियन बोलने वाले लोग है। हिंदी भारत में ही नहीं कई और देशों में बोली जाती है जिनमें गुएना, मॉरिशस, सिशेल्स, त्रिनिदाद और टुबैगो, फिजी आदि। फिजी की अधिकारिक भाषा फिजी हिंदी है। भारत के अलावा नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, भूटान और मालद्वीप में हिंदी को समझने वाले आसानी से मिल जाते हैं।
इंटरनेट और सोशल साइट पर जहां इंग्लिश का एकछत्र राज था जिसे हिंदी ने खत्म करने में सफलता पाई है। आज इंटरनेट पर लगभग सभी जानकारी हिंदी में उपलब्ध है। सोशल मीडिया में धडल्ले से हिंदी का उपयोग किया जा रहा है। बड़ी-बड़ी सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां और वेबसाइट्स हिंदी को महत्ता प्रदान कर रही है क्योंकि हिंदी आज विश्व में एक नवीन ताकत के रूप में उभर कर सामने आई है। जहां पहले उच्च शिक्षा बिना इंग्लिश माध्यम के सम्पन्न नहीं हो पाती थी वही आज भारत से लेकर विदेश तक उच्च शिक्षा के लिए हिंदी विश्वविधालय खुल रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र में पहली बार हिंदी में भाषण देने वाले प्रथम प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई हुए। आज नरेन्द्र मोदी अपने प्रत्येक कार्यक्रम में हिंदी ही भाषण देते है चाहे वे देश में हो या विदेश में। यह सब हिंदी भाषा को विश्व में गरिमामय उपस्थिति दर्ज कराने के लिए किया जा रहा है। हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की कामकाज की भाषा बनाने के लिए भारत प्रयासरत है।
हिंदी को किसी भाषा से डर नहीं परंतु कुछ लोग कुंठित मानसिकता के फलस्वरुप हिंदी भाषी और गैर हिंदी भाषी के बीच द्वंद कराने से नहीं चूकते है।
हिंदी तो सबकी है कृप्या हिंदी का प्रयोग करें।
हिंदी को बिंदी न बनाए।
📃विनय कुशवाहा कृत<
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