यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 13 अगस्त 2020

लडूरे प्रसंग


पुरी से अजमेर जा रही ट्रेन भुवनेश्वर स्टेशन पर रुकती है। रात के लगभग 11:30 बजे है और स्टेशन पर लगभग सन्नाटा सा है। प्लेटफॉर्म की सफाई करने वाली मशीन की आवाज घड़ - घड़ सुनाई दे रही है और इक्का-दुक्का चलते लोगों की आवाजें। ट्रेन की बोगी नंबर एस5 से एक दुबला-पतला औसत कद-काठी का लड़का उतरता है। हिलते-डुलते कॉफी स्टॉल पर पहुंचता है और कहता है कि तीन कॉफी देना। तीन कॉफी के रुपए देते हुए वह दुकानदार से पूछता है कि 'लडूरे मिलेगें' । दुकानदार जबाव में एक सवाल पूछता है कि ये लडूरे क्या होते हैं; वो लड़का अपनी हंसी को रोकता हुआ कहता है कि ' 'एक छोटी सी मिठाई'। दुकानदार ने कहा, मेरे पास नहीं हैं। लड़के ने कहा, बाहर तो मिल रही थी कहकर मुस्कुराता हुआ ट्रेन की ओर चल दिया। उस लड़के का एक साथी और उतरता है उससे मुस्कुराहट का राज जानता है। सबकुछ मालूम चलने पर दोनों ठहाका मारकर हंसते है और ट्रेन में बैठे अपने तीसरे साथी को खिड़की से कॉफी देते हुए प्रसंग सुनाकर फिर हंसते है।

सच में लडूरे एक छोटी-सी मिठाई है या और कुछ, जानने के लिए हम थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं। पुरी स्टेशन के प्लेटफॉर्म छह पर बैठ कर विनय और इंद्रभूषण जोर-जोर से ठहाके लगा रहे थे। दूर खड़े शिवम् ने फोन से बात खत्म करते हुए पूछा क्या हुआ? इंद्रभूषण ने शिवम् को बताया कि जब हम भोपाल पहुंचेगें तो भैया से पूछेगें कि लडूरे खाओगे? मेरी तरफ से खाओगे या विनय की तरफ से या शिवम् कि तरफ से। आखिरकार लडूरे है क्या? एक छोटी-सी मिठाई? या और कुछ?

लडूरे के बारे में और जानने के लिए हम और फ्लैशबैक में चलते हैं। भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन करने बाद तीन दोस्त शिवम्, विनय और इंद्रभूषण ने जगन्नाथ के भात को खाकर मिठाई की दुकानों की ओर प्रस्थान किया। जहां तरह-तरह की और नई-नई मिठाईयां देखने को मिली। उत्तरी और मध्य भारत के घरों में एक विशेष प्रकार की मिठाई बनाई जाती है जिसे 'खाजा' कहते है। उसी प्रकार की मिठाई हमें देखने को मिली जिसका नाम रखा गया 'लडूरे'।

क्या सच वो लडूरे थे जो भैया ने खाया या और कुछ नाम था उसका। इति लडूरे प्रसंग।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें