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गुरुवार, 13 अगस्त 2020

नोबेल पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी

मैं जब भी विदिशा से भोपाल के बीच ट्रेन से आता जाता था तो कभी टिकिट नहीं लेता था लेकिन समय के साथ सब कुछ बदल गया और मैं समझ गया ऐसा नहीं करना चाहिए। यह कहना है शांति का नोबेल पुरस्कार 2014 जीतने वाले श्री कैलाश सत्यार्थी का। कैलाश सत्यार्थी भले ही एक महान हस्ती बन चुके है परंतु आज भी वे ऐसे वर्ग के प्रति संवेदना रखते है जो समाज में दबा-कुचला और पिछड़ा है। आज कैलाश सत्यार्थी को कौन नहीं जानता जिन्होंने बाल मजदूरी जैसे गंभीर विषय को विश्व पटल पर रखकर इसके प्रति ध्यानाकर्षण किया और यूएन समेत विश्व के लगभग सभी देशों को कानून बनाने के लिए प्रेरित किया। मध्यप्रदेश के एक छोटे से शहर विदिशा में पले बढ़े और अपनी शिक्षा को पूरा किया लेकिन नियति तो कुछ और ही चाहती थी। अध्यापन का कार्य छोड़कर 'संघर्ष जारी रहेगा' नामक पत्रिका की शुरुआत की।

कैलाश सत्यार्थी कहते है कि 'जब तक बेटा-बेटी अपने आप को सुरक्षित महसूस नहीं करते तब तक असली मायनों में आजादी नहीं मिली है।' उनका कहना है कि आजादी तभी पूर्ण रूप से सही मानी जा सकती है जबकि भयमुक्त और सुरक्षित भारत न बन जाए। सत्यार्थी जी ने बताया कि उन्होने एक संघर्ष  करके 36 बेटियों और मांओं को ऐसे समूह से छुड़ाया जो उन्हें वेश्यावृत्ति जैसे भंवर में ढ़केल रहे थे। इस घटना के दौरान संघर्ष जारी रहेगा पत्रिका को छोड़कर उन्होने इस प्रकार की घटना के खिलाफ झंड़ा बुलंद कर लिया और आंदोलन को तेज और सतत् बना दिया। पूरे विश्व में इस कुकृत्य के खिलाफ आवाज उठाकर यूएन समेत पूरे विश्व में मानव तस्करी और वेश्यावृत्ति के खिलाफ कानून बनवाने में सफल रहे। कैलाश सत्यार्थी बलात्कार जैसे गंभीर विषय को समाज के लिए अभिशाप बताते है और कहते है कि ' दुनिया के सारे नेता और धर्म गुरु सही से काम कर रहे होते और मार्गदर्शन कर रहे होते तो समाज की यह दुर्दशा नहीं होती।'

बचपन बचाओ आंदोलन के माध्यम से बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने में मदद की। कैलाश सत्यार्थी कहते है कि समाज में बाल मजदूरी जैसी मानवाधिकार हनन वाली घटनाएं नहीं होना चाहिए।

पत्रकारिता के बारे में सत्यार्थी कहते है कि ' सत्य को ही लिखना और बोलना चाहिए चाहे वह टीवी पर हो या चाहे अखबार या रेडियों पर हो। आजकल का मीडिया टीआरपी ड्रिवन हो गया है जो नहीं होना चाहिए। समाज के पिछड़े लोगों की बातों को छोड़कर अश्लीलता का प्रसारण किया जा रहा है। यह सब परोसना मीडिया का लक्षण नहीं है। फ्लोअप रिपोर्ट करके कैसे लोगों को अधिकार दिलाया जाए इसकी जानकारी होनी चाहिए।'

कैलाश सत्यार्थी ने बताया कि 'जब मैं एक बार दिल्ली के पास स्थित बुराड़ी गांव में एक बच्ची का प्रवेश कराने ले गया तो वहां उपस्थित शिक्षक ने मुझे बुरी तरह चिल्लाकर भगा दिया तो मैंने मन में ठान लिया कि शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल कराके रहूंगा। मैंने एक आंदोलन की शुरुआत कन्याकुमारी से शुरु की और विभिन्न राज्यों से होती हुई दिल्ली पहुंची। मेरी इस पहल को सभी दलों के सांसद, विधायक और मंत्रियों ने मेरा साथ दिया। अंतत: चार महीनें के अंदर सारा कार्य समाप्त हो गया।' कैलाश जी आगे कहते है कि 'एक साधारण व्यक्ति की ताकत दुनिया के कई राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बराबर होती है।'

भारत बदल रहा है, इसका कारण है भारत के लोग देश के लिए परिदृश्य तैयार कर रहे है। बहुत से लोग सोचते हैं कि युवा देश के लिए समस्या है। युवा देश के लिए समस्या नहीं समाधान है। जो आदर्शवादिता हमारे युवाओं में है वो बड़े लोगों में नहीं होती है। कैलाश सत्यार्थी आगे कहते है कि सरलता में जो ताकत है वो बनावट में नहीं बनावट में तो क्षणिक आनंद मिलता है लेकिन सरलता में तो स्थाई आनंद की प्राप्ति होती है।

' ताली बजाने वाले कभी इतिहास नहीं लिखते , बुराई करने कभी इतिहास नहीं लिखते , इतिहास तो वो लिखता है जो रिंग में कूदकर कुछ करके दिखाता है।'

( माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविधालय भोपाल के सत्रारंभ 2017 में श्री कैलाश सत्यार्थी के उद्बोधन का कुछ अंश)


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