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गुरुवार, 13 अगस्त 2020

चलते-चलते (श्रृंखला 9)


तीसरे आंग्ल-मराठा युद्ध के बाद पेशवाओं को निष्कासित होकर बिठुर जाना पड़ा। महाराष्ट्र से उत्तर भारत जाना उनकी इच्छा नहीं थी बल्कि उन्हें मजबूरी में ऐसा करना पड़ा। पेशवाओं की इस हालत के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि आपसी सामंजस्य न होना था। बडौदा में गायकवाड़, महेश्वर और इंदौर में होलकर, नागपुर में भोंसले और ग्वालियर में सिंधिया का अलग होकर शासन चलाना ही था। शासन चलाना तो ठीक था लेकिन अंग्रेजों की नीतियों का समर्थन करना साथ ही उनकी गलत नीतियों और कार्यों का जमकर समर्थन भी किया गया।होलकर,सिंधिया,भोंसले और गायकवाड़ में कुछ राजा या रानी तो बहुत अच्छे हुए जिन्होंने जनता के हित और देश को सर्वोपरि समझा। तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध , कई युद्धों का परिणाम था। जिनमें से एक युद्ध था 'भीमा-कोरेगांव युद्ध'।

भीमा-कोरेगांव युद्ध भीमा नदी के तट  पर हुआ बहुत ही छोटा युद्ध था। यह युद्ध अंग्रेजों और पेशवाओं के बीच हुआ था जबकि यह अधूरा सत्य है। अंग्रेजों के तरफ से यह युद्ध महार जाति की ओर से लड़ा गया और पेशवाओं की ओर से अरबी लड़ाकों ने इस युद्ध को लड़ा। इतिहासकार यह कहते है कि इस युद्ध में अंग्रेजों की विजय हुई और आज तक इसी बात को सत्य माना जाता है। इसी विजय के उपलक्ष्य में महार जाति के लोग मराठाओं पर अपनी विजय को शान के रुप में दिखाते और प्रत्येक वर्ष सालगिरह के रुप में मनाते हैं।

मैं नहीं मानता कि भीमा-कोरेगांव युद्ध अंग्रेजों ने जीता था जिसके पीछे एक अंग्रेज अफसर का कथन बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। माउंटस्टुआर्ट एलफिंस्टन ने इस युद्ध के बारे में कहा कि यह मराठाओं की अंग्रेजी शासन के विरुद्ध छोटी-सी जीत है। इस कथन का क्या पर्याय निकाला जा सकता है। जब कोरेगांव का युद्ध हुआ तब पेशवाओं के ओर 5000 सैनिकों और एक तोप ने हिस्सा लिया जबकि अंग्रेजों के ओर से 700 सैनिकों और 5 तोपों ने हिस्सा लिया। यह आंकड़ा गलत भी है या सही भी  है क्योंकि इसका सही-सही आंकड़ा तत्कालीन ब्रिटिश गजेटियर में भी नहीं है।

एक बात है जिसमें अंग्रेज हुकूमत सफल हो गई वह यह कि उन्होंने निम्न जाति के लोगों को रियायत और शह देकर महार और मराठो के बीच विद्रोह करा दिया। यह बात अलग है कि मराठाओं ने महारों के साथ सभ्य व्यवहार नहीं किया। महार जाति के लोग जब बाजार में निकलते थे तो कमर पर झाडू और मुहं के पास बर्तन बांधकर निकलना पड़ता। उनकी जिंदगी दुरुह थी।

1857 की क्रांति में जब महार जाति ने जमकर देश के समर्थन में युद्ध किया तो अंग्रेजों ने इनका तिरस्कार करना शुरु कर दिया और सेना में केवल सैनिक पद तक ही सीमित कर दिया। महार रेजिमेंट आज भारतीय सेना में एक महत्वपूर्ण रेजिमेंट है जो कि उन देश भक्तों के कारण है जो कि ब्रिटिश हुकूमत के सामने नहीं झुके।अंग्रेजों ने महारों का उपयोग उन्हीं के बंधुओं को मारने के लिए किया। इससे यह सिद्ध तो होता है कि अंग्रेज केवल फूट पैदा करना चाहते थे। यह युद्ध तो जाति ने जीता न अंग्रेजों ने ना ही मराठों ने।


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