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गुरुवार, 13 अगस्त 2020

जय की ललिता

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता ।।

अर्थात जहाँ स्त्रियों का सम्मान होता है , वहाँ देवता निवास करते है ।
                           भारत एक ऐसा देश है, जहाँ स्त्रियों का सम्मान किया जाता है । स्त्रियों को ममता का प्रतीक तो माना ही जाता है और शक्ति का अवतार भी । भारत का नाम भले ही राजकुमार भरत से हो परंतु उसका लालन पालन विशाल ह्रदय वाली शकुंतला ने ही किया था । जिसके लालन - पालन ने भरत को  निर्भीक बनाया जो शेर के मुँह में हाथ डालने में सामर्थ्य प्राप्त कर सका।
                    प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक भारत तक स्त्रियों का सम्मान भी हुआ है और उनकी  शक्तियों में चार चांद भी लगे है । सिंधु घाटी सभ्यता जहां मातृसत्तात्मक थी वही आज इस पितृसत्तात्मक समाज के बीच भारत के पूर्वोत्तर राज्यों मे मातृसत्तात्मक समाज देखने को मिलता है । हमारे समाज के निर्माण में महिलाओं का बेजोड़ योगदान हैं जिसके अंतर्गत महिलाओं ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया । देश का निर्माण हो या साहित्य का निर्माण महिलायें सदैव तत्पर रही है ।
                                    ऋग्वैदिक काल से लेकर नूतन समय तक साहित्य के निर्माण में  स्त्रियों का योगदान हैं फिर चाहे वेदो के निर्माण में योगदान देने वाली सिक्ता, अपाला,  लोपामुद्रा या विशाला हो ,चाहे आधुनिक साहित्य रचने वाली महादेवी वर्मा, सुभद्राकुमारी चौहान हो । इन्होंने अपना जीवन देश एवं समाज के निर्माण में समर्पित कर दिया ।
                  भारत हमेशा से ही प्रगतिशील रहा है जिसकी प्रगति मे स्त्रियों को भूलना दुरास्वप्न  है । सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर अभिनूतन काल तक स्त्रियों के बिना समाज की कल्पना असंभव है । भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जहाँ पुरुषों ने अपने प्राण देश के लिए न्यौछावर किये वही स्त्रियाँ भी कहाँ पीछे रहने वाली थी । रानी लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती, रानी चेनम्मा आदि ने जहाँ अपने प्राण मातृभूमि को समर्पित कर दिए वही जीजाबाई जैसी महान स्त्री ने शिवाजी महान जैसे सूर का निर्माण किया ।
                                      भारतीय राजनीति दो तरह से कार्य करती है,  एक पर्दे के सामने वाली और दूसरी पर्दे के पीछे वाली । पर्दे के पीछे रहकर जहाँ स्त्रियों ने शासन चलाया वही पर्दे के सामने आने का भी साहस किया उसमे फिर चाहे नाम रजिया सुल्तान हो या रानी लक्ष्मीबाई दोनों को ही समाज ने स्वीकार्य किया परंतु लोभियों ने नहीं ।
                          आधुनिक राजनीति में जहाँ स्त्रियाँ राष्ट्रपति से लेकर मुख्यमंत्री के पद को शोभायमान किया । इसी कड़ी मे 21 वी सदी की राजनेत्रियाँ आती है फिर चाहे वे हेमा, रेखा, जया, सुषमा, सोनिया, माया, ममता हो । जयललिता दक्षिण भारत की महान नेत्री बनकर उभरी । जिन्होंने अपने सम्मान मे कभी भी दुर्भावना का दाग नहीं लगने दिया । तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने अफसरों को आजादी दी । लोगों को सस्ती से सस्ती सुविधाएं उपलब्ध कराई । विरोधियों के आक्षेप लगाने पर कीचड़ से कमल की तरह खिल कर दिखाया । यही है ललिता । इसलिए तो कहता हूँ कि जय की ललिता

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