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गुरुवार, 13 अगस्त 2020

जीवन और सिध्दांत

कहा से शुरू करूँ , ठीक है समाज में विषमतायें विद्यमान हैं परंतु व्यक्ति दूसरो की भावनाओ को भी तो समझें । जीवन में मोड़ अनेक हैं जिन्हें सकारात्मक लेना हमारी जिम्मेदारी हैं और उसे रचनात्मक कार्यो में परिणित करना और अधिक जरूरी है क्योकिं केवल सकारात्मक सोच से सारी उपलब्धियों को प्राप्त करना आसान नहीं हैं।
    व्यक्ति विशेष के अपने सिध्दांत होते हैं और वह जहाँ तक संभव हो सके तो निभाने की कोशिश करता हैं , परंतु आज व्यक्ति अपने आप को समझाने की जगह वह दूसरों पर अपने विचार थोपनें , सिध्दांतों को लादने और अपने आप को सामने वाले से अधिक श्रेष्ठ जताने की
कोशिश करता हैं ।
                      बड़ो का सम्मान करना अति आवश्यक हैं क्योंकि वे घर की शान होते हैं । बड़े बूढ़ो के आदर्श ,नियम - कायदे ,आचार- विचार, व्यवहार करने के तरीके होते हैं । इसलिए कहा भी गया हैं कि -

अभिवादन शीलस्य नित्यम् वृध्दोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्ध्दन्ते आर्युविद्यायशोबलम्।।

अर्थात् बड़ो का आशीर्वाद प्राप्त करने से आयु ,विद्या ,यश और बल में वृध्दि होती हैं । बड़ो से कुछ न कुछ हमेशा सीखने के लिए मिलता हैं ।
जीवन के मूल्य को हम उन्हीं से सीख सकते है जो हमारे मार्गदर्शक हो अर्थात् हमारे बडे़ । संस्कार भी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचते हैं जिसमें बड़े बूढ़ो का विशेष योगदान होता हैं ।
अनुशासन कभी भी विरासत में नहीं मिलता परंतु उसे सिखाया या पालन करवाया जा सकता हैं ।जीवन में  संस्कार एवं अनुशासन दोनों का महत्व है पर हमारे अग्रजो के बिना संभव नहीं है ।
           बड़ो का कार्य प्रमुखता से मार्गदर्शन हैजो वे करते है पर कभी कभी अति मार्गदर्शन भी गंभीर होता हैं क्योकि व्यक्ति अपनी शक्तियों को भूलकर केवल दिखाये गये मार्ग पर चलता है और अपने प्रयासों को करना भूल जाता है । सिध्दांतो का प्रयोग आजकल हथियार के रूप में किया जानें लगा हैं ।अपनी बात को मनवाने के लिए सिध्दांतो का हवाला दिया जाता हैं।
                                                   
"जीवन एक नदी हैं ,जो सदैव आगे बढ़ता हैं।"

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