अचार की बरनी, रजाई, गद्दा और धूप सेंकते मानव शरीर सभी एक-दूसरे से बात कर रहे हैं ,धूप कच्ची है। ठंड की आवक वातावरण के साथ-साथ घर की दहलीज़ पर भी दस्तक देती है। धूप केवल धूप ही रह जाती है। ठंड के आने के साथ ही हवा में अलग ही तरह की ठंडक और मिठास घुल जाती है।ओस गिरने लगती है। ओस की बूंदें फूल की पखुंडियों पर एक नए तरीके की आकृतियां बनाती है, यही ओस की बूंदें पत्तियों पर से एक-एक बूंद मिलकर पानी की धार बनकर गिरती है। मकड़जाल को ओस तब और ज्यादा सुंदर बना देती है जब सूर्य की किरण मकड़जाल में गसी बूंदों में से होकर गुजरती है। रात के आगोश में ओस अपना खेल दिखाती है और सुबह की बेला में सूरज को किरणों को पीछे धकेलने का प्रयास करती है जिसके लिए साथ मिलता है धुंध का।
धुंध सूरज को एक ऐसे पारभासी चादर में समेट लेती जिसमें मानवजाति को लगता है कि सूरज का आभास होता है परंतु दिखाई नहीं देता। सूरज कोहरे की चादर में लिपटा हुआ संसार की सारी गतिविधियों को देखता रहता है। कोहरा, धुंध का बड़ा भाई है और भयावह रूप है। कभी-कभी सड़कों और रेल्वे ट्रेक पर अनहोनी का कारण बनता है। कोहरा सूरज को आसमान में आने से रोकने के लिए जीभर प्रयास करता है। कभी सफल हो जाता है तो दोपहर तक सूरज को अपना प्रकाश धरती पर नहीं आने देता और कोहरे के सामने सूरज बेबस नज़र आता है। कभी-कभी परिस्थितियां भिन्न होती जो सारी गतिविधियों को पलट देती है। सूरज कोहरे को किसी सुई की तरह भेदता हुआ अपनी किरणों से चहुंओर प्रकाशित कर देता है और कभी-कभी धीरे-धीरे कोहरे को चीरता हुआ अपनी लालिमा बिखेरता है। परंतु सूरज की किरणों में वो तीखापन नहीं होता जैसा शेष मौसम में होता है।
सुबह की रोशनी का फीकापन लिए सूरज दोपहर तक आसमान पर परवान चढ़ता है और अपने तेज से वातावरण को दीप्तमान करता है साथ ही गर्माहट भी। इस गर्माहट में वो ताकत नहीं होती जो हम सोचते हैं क्योंकि यह गर्माहट होती सर्दियों वाली धूप की। ठंड के मौसम में जीव और अजीव दोनों को धूप की जरुरत महसूस होती है। मगरमच्छ की तरह इंसान भी अपने शरीर को गर्म करने की कोशिश में लगे रहता ताकि विटीमिन डी की कमी न हो। धूप की जरुरत तो जीवों के लिए तो आसानी से समझ आती लेकिन यदि हम बारीकी से देखे तो अजीवों के लिए भी धूप का विशेष महत्व है। रेल की पटरियां ठंड के कारण सिकुड़ जाती है और धूप पाते ही अपनी वास्तविक अवस्था में आ जाती है, लेकिन धूप कच्ची होती है। पक्की वाली धूप का इंतजार कम से कम तीन महीनों का तो होता ही हैं। बरी, पापड़, चकली, बिजौरा के साथ-साथ विटीमिन डी पाने वालों के लिए धूप पर्याप्त होती है क्योंकि धूप कच्ची है।
जिस प्रकार हमारे जीवन में समय का महत्व होता है ठीक उसी प्रकार ठंड में धूप का होता है। ठंड की धूप एक निश्चित समय के लिए आती है फिर हमें लगता है कि आज दिन जल्दी ढ़ल गया। धूप कच्ची होती हुए भी कई सारे काम को अंजाम देती है। जैसे-जैसे सूरज आसमान में ऊपर चढ़ता जाता है वैसे-वैसे धूप मद्धम होती जाती है और अपना अस्तित्व खोती जाती है, अतत: दिन ढ़लने के बाद सूर्य के साथ-साथ धूप भी अस्त हो जाती है।
क्योंकि "धूप कच्ची" है।
📃BY_ vinaykushwaha
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