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गुरुवार, 13 अगस्त 2020

भारतीय वास्तुकला (श्रृंखला - एक )

 भारत का इतिहास  लगभग 5000 वर्ष पुराना है। सिंधु घाटी की सभ्यता से लेकर आज तक कई प्रकार के बदलाव हो चुके हैं। खान-पान, वेशभूषा, रहन-सहन और स्थापत्य कला आदि सब कुछ बदल चुका है। स्थापत्य कला में सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आज तक कई बदलाव हो चुके है। जहां सिंधु घाटी सभ्यता एक सुनियोजित नगरीय व्यवस्था थी वही वैदिक सभ्यता ग्रामीण व्यवस्था थी। कई दौर से गुजरते हुए स्थापत्य कला ने कई तरीके से विकास किया। हिंदु , मुस्लिम, मिश्रित, गोथिक आदि शैली में भवनों का निर्माण भारत में हुआ।

भारत में स्थापत्य कला का विकास  ईसा से 3500 वर्ष पूर्व शुरु हो गया था। सिंधु घाटी सभ्यता भारत की ही नहीं विश्व की सबसे प्राचीन और समृद्ध सभ्यताओं में से एक है। यह सभ्यता भारत के पश्चमोत्तर क्षेत्र में फैली थी। इस सभ्यता में लोगों के रोजगार का मुख्य स्त्रोत व्यापार था और यह व्यापार मिस्त्र, ईरान, मेसोपोटामिया आदि जगह अर्थात् पूरे विश्व में था। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि नगरीय सभ्यता होने के कारण आज के जैसे जल निकास व्यवस्था, सड़कें, जल प्रबंधन, अन्नागार आदि थे।

सिंधु घाटी सभ्यता में नगर की स्थापना में एक मुख्य बात को ध्यान रखा जाता था संभ्रांत लोगों के रहने के लिए  और आमजन के रहने के लिए अलग-अलग स्थान तय थे। संभ्रांत लोग ऊंची पहाड़ी पर महल नुमा आकृति के घर में रहते थे जो चारों ओर दीवार से घिरा होता था। आमजन एक निचले क्षेत्र में रहते थे। इनके मकानों में भव्यता नहीं होती थी और इनका रहवासी क्षेत्र दीवार से घिरा नहीं होता था। कई स्थानों पर इस प्रकार की व्यवस्था भी थी कि संभ्रांत और आमजन दोनों के घर दीवार से युक्त थे। घर एक मंजिल और दो मंजिल तक के होते थे। नीचे वाली मंजिल से ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां भी बनाई जाती थी। घरों का निर्माण पकी हुई ईंटों से किया जाता था।

घरों से निकलने वाले गंदे पानी के लिए नाली की व्यवस्था की गई थी। पेय जल की उत्तम व्यवस्था की गई थी। लोथल इसका शानदार उदाहरण है जहां आज भी उस समय के साक्ष्य मौजूद है। कुओं के माध्यम से पेय जल उपलब्ध कराया जाता था। उत्खनन (excavation) में एक विशाल स्नानागार का पता चला जो कि सामूहिक स्नान के लिए प्रयुक्त किया जाता होगा।

नगर विन्यास की सबसे अच्छी बात यह थी कि सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती है। छोटी सड़के बड़ी सड़को में आकर मिलती थी। घरों के दरवाजें मुख्य सड़क की ओर न खुलकर दूसरी तरफ खुलते थे। उत्खनन (excavation) से एक विशाल अन्नागार की खोज की गई जो अनाज आदि रखने के लिए प्रयुक्त होता था। व्यापार करने के लिए नदी-गोदी( rever port) का निर्माण किया था जो कि अपने आप में एक अद्वितीय उदाहरण है। सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान विभिन्न देवी-देवता के पूजन का उल्लेख मिलता है परंतु मंदिर का कोई नामोनिशान नहीं मिलता।

उपरोक्त वर्णन से हम समझ सकते है कि भारत की भवन निर्माण शैली कितनी समृद्ध और विकसित है। आज से  लगभग 5000 साल पहले भी इतना समृद्ध होना लाजबाव है।

इसी तरह पढ़ते रहिए भारत में स्थापत्य कला का विकास कैसे हुआ। आगे आने वाले पोस्ट में 

📃BY_ vinaykushwaha


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