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रविवार, 25 फ़रवरी 2018

चलते-चलते(श्रृंखला 11)


होली का त्यौहार कई युगों से मनाया जा रहा है। होली को कहते है कि बुराईयों को भुलाकर दुशमनों को गले लगाने वाला त्यौहार है। लाल,पीला, नीला, हरा रंगों में सराबोर होकर झूमने का पर्व है। अबीर, गुलाल, रंगों से सजे इस त्यौहार को सतरंगी त्यौहार कहा जाए तो सही होगा। केवल रंग ही नहीं मीठा-मिठास को फैलाने वाला है। रसगुल्ला, गुलाबजामुन, कुसली, खुरमी, गुझिया आदि इस मिठास को और ज्यादा बढ़ा देती है। सबसे जरूरी बात होली में भांग का रंग न पड़े तो फिर होली का का रंग निखर कर सामने नहीं आता है। गांव से लेकर शहर तक होली के नए-नए रंग देखने को मिलते हैं। कीचड़ होली हो या गुलाल होली, लट्ठमार होली हो या फूलों की होली हो, रंगों की होली हो या टमाटर की होली, देशी फाग पर होने वाली होली हो या डीजे की तेज धुन पर होने वाली होली सभी होली के कई रंग दिखाते हैं।

भारत में होली एक ऐसा त्यौहार है जो एक बड़ा माइग्रेशन होता है। देश के कोने-कोने से लोग अपने घर की ओर चलते है। बस, ट्रेन, फ्लाइट सभी यात्रियों से भरी होती है। 28 फरवरी 2018 का दिन मुझे हमेशा याद रहेगा जब मुझे घर जाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। हबीबगंज से अपने शहर कटनी जाने के लिए स्पेशल ट्रेन को चुना जिसने एक नए अनुभव को दिया। भीड़ का सैलाब और ट्रेन की दस घंटे की देरी ने मजे के साथ सजा भी दे दिया। हम इस भीड़ को केवल भीड़ के तरह ही न ले यह तो भारतीय है या यूं कहे कि सच्चे देशी भारतीय हैं। तरह-तरह की भाषा, खान-पान, शोर-शराबा सब कुछ एक नया अनुभव। हबीबगंज पर आती-जाती हर ट्रेन भीड़ नहीं भारतीय है। स्लीपर हो या जनरल, एसी हो या सेकेंड सीटिंग हर तरफ हूजूम दिखाई देता है।

ट्रेनों को भारत की आत्मा कहा जाए तो इसमें कोई गलती नहीं होगी। परिवार को मिलाने की बात कहे या संस्कृति को मिलाने की बात हो, दूरियां मिटाने की बात हो या मेल मिलाप कराने वाली एक लिंक है यह ट्रेन। ट्रेन एक राज्य से चलकर दूसरे राज्य तक केवल यात्रियों को अपने डेस्टिनेशन तक नहीं पहुंचाती बल्कि अपने साथ संस्कृति, भाषा, बोली, रंग-ढ़ंग, वेशभूषा, रहन-सहन, खान-पान लेकर जाती है। भारतीय रेल्वे को एक ही तरीके से नहीं देखा जा सकता है। यह तो देश की पावन भूमि का दर्शन करवाती है। कही पहाड़ तो कही पठार, कही नदी तो कही समुद्र, कही जंगल तो कही खाई, कही निर्जन तो कही सजन जगहों को दिखाती यह ट्रेन भारत के असली दर्शन करवाती है।

भारतीय ट्रेन एक वर्ग विशेष के लिए नहीं है यह तो भारत के समस्त नागरिकों को समाहित करती है। अमीर हो या गरीब, विद्यार्थी हो या प्रोफेशनल्स, बेरोजगार हो या रोजगार, किसान हो या जवान सभी को अपना आश्रय देती है भारतीय ट्रेन। कोई पहली बार सफर करने वाला भी होता है  तो कोई बार-बार सफर करने वाला होता है। कोई एसी क्लास से सफर करने वाला होता है तो कोई स्लीपर में सफर करने वाला होता है। कोई कॉउंटर से टिकिट लेकर सफर करने वाला होता है तो कोई ऑनलाइन टिकिट पर सफर करने वाला होता है। ट्रेन किसी के साथ भेदभाव नहीं करती है। अपने निजी जिंदगी में कोई कितना ही अमीर हो या गरीब सभी को एक समान सुविधा देती है।

भारतीय रेल का स्वरुप बदला है। भाप से डीजल, डीजल से इलेक्ट्रिक, और आज हाइड्रोजन इंजन का कॉन्सेप्ट भारतीय रेल लेकर आई है। पहले जहां रेल का उद्देश्य केवल यात्रियों को एक जगह से दूसरे जगह पहुंचाना था जो आज बदलकर सुख-सुविधा आदि का जरिया भी बन गया है। देरी का पर्याय रहने वाली ट्रेन आज समय की पाबंद हो गई है। जहां पहले साधारण सी ट्रेन होती थी आज ट्राम, मोनोरेल, मेट्रोरेल, बुलेटट्रेन, अब तो और आगे भारत में हाइपरलूप ट्रेन आ रही है। ट्रेन और भारतीय का मिलन कभी भी अधूरा नहीं हो सकता है। भारत और भारतीयता को जोड़ने वाला कोई और नहीं है वो भारतीय रेल ही है।

                           ।।जय हिंद।।

📃BY_ vinaykushwaha


शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

रॉकस्टार वर्सेज रॉकस्टार

  

जब मोदी ने मैडिसन स्कवायर गार्डन में 19000 की जनसभा को संबोधित किया तो दुनिया उन्हें एक नए नाम पुकारने लगी रॉकस्टार पीएम। नरेन्द्र मोदी की स्पीच देनी की स्किल आला दर्जे की है और वे जानते है कि कैसे लोगों के बीच रहकर किस प्रकार संवाद (conversation) किया जाता है। 2014 का वो दिन हर न्यूजपेपर, टीवी और रेडियो मोदीमय हो गया था। मोदी जी की सबसे अच्छी बात यह है कि वे भारतीयता और हिन्दी को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा। भारत हो या विदेश सभी जगह उन्होंने हिन्दी को ही अपने भाषण की भाषा चुना है। चाहे भारतीय संसद हो या संयुक्त राष्ट्र परिषद, चुनावी सभा हो या अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन सभी जगह मोदी ने हिन्दी का उपयोग किया है।

आज मोदी दुनिया की सबसे शक्तिशाली शख्सियत बन गए है। उन्होंने ली केकियांग के साथ सेल्फी ली थी जो दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेल्फी (powerful selfie) बनी। आज टाइम मैग्जीन हो या कोई और सर्वे करने वाली कंपनी सभी मोदी को टॉप टेन में शुमार करते है। आज दुनिया में ट्विटर पर सबसे ज्यादा फॉलो किए जाने वाले पीएम बन गए है। उनकी 'हग डिप्लॉमेसी' के तो सभी कायल हो गए है। कनाडा में जब जस्टिन ट्रूडो प्रधानमंत्री बने। उनके कामकाज करने के तौर-तरीके , लोगों से मिलनसारिता, व्यक्तिव्य के कारण उनकी खूब वाहवाही हुई और आज उन्हें कनाडा का रॉकस्टार कहा जाता है।

कनाडा और भारत के संबंध बहुत अच्छे है और बहुत पुराने भी। यह कहना ज्यादा सही होगा कि भारत और कनाडा के संबंधों की शुरुआत सत्रहवी शताब्दी में हो चुकी थी। संबंधों में मिठास घोलने का काम सिक्खों ने किया। भारत और कनाडा के बीच सिक्ख एक कड़ी के रूप में काम करते हैं। सबसे पहले भारत से सिक्ख ही कनाडा पहुंचे थे। आज कनाडा में सिक्खों की लगभग पांच लाख आबादी है जो पूरी आबादी का 1.4 प्रतिशत है। आपको यह जानकार हैरानी होगी कि कनाडा में सिक्खों की संख्या हिन्दुओं की कुल जनसंख्या से मात्र 0.1 प्रतिशत कम है। कनाडा आज विश्व की दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। एक समय था जब कनाडा भारत से बड़ी अर्थव्यवस्था था और आज आधी है। कनाडा प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण देश है। दुनिया का 20 प्रतिशत साफ जल कनाडा में है और तो और यहां का एक नेशनल पार्क पूरे स्विट्जलैण्ड के बराबर है।

कनाडा उत्तरी अमेरिका महाद्वीप पर बसा दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है जिसमें तीन भारत आसानी से समा जाएंगे। कनाडा एक विशेषता के लिए विश्व भर में ख्यातिलब्ध है वो है सहिष्णुता। कनाडा में विश्व के कोने-कोने से आई विभिन्न जाति-धर्म की कम्यूनिटी रहती है। हम ऐसा कह सकते है कि कनाडा को विदेशियों ने ही बनाया है। सिक्खों ने तो कनाडा में जान ही फूंक दी चाहे वो राजनीति हो, शिक्षा हो, व्यापार हो, सेना हो सभी जगह सिक्खों का अहम योगदान नजर आता है। कनाडा की संसद में लगभग 20 सिक्ख सांसद हैं और सरकार में चार सिक्ख मंत्री हैं। सिक्ख कम्यूनिटी ने कनाडा को आधार दिया है, शायद यही कारण रहा होगा इसलिए कनाडा सरकार ने पंजाबी को तीसरी भाषा के रुप में दर्जा दिया है। लेकिन हर पीली दिखने वाली चीज सोना नहीं होती है। आज भारत सरकार और कनाडा सरकार के बीच खटास का कारण भी कुछ ऐसे सिक्ख बनें है जिन्होंने देश विरोधी काम किया है।

भारत एक बहुत बड़ा देश है जहां लोगों के बीच असंतोष होना लाजिमी है लेकिन इस अवस्था को बदला जा सकता है ताकि यह अव्यवस्था न बदल सके। भारत और कनाडा सरकार के बीच खटास का सबसे बड़ा कारण है खालिस्तान को प्रोत्साहन देने वाले सिक्ख और ऐसा समूह का समर्थन करने वाली कनाडा सरकार। खालिस्तान एक प्रकार से कहा जाए तो अलगाववादी के साथ-साथ आतंकवादी भी है जो अलग देश की मांग करते हैं। कनाडा सरकार में ऐसे मंत्री भी है जो खालिस्तान को समर्थन देते हैं। कनाडा, नहीं चाहता कि सिक्ख समुदाय किसी भी प्रकार से नाराज हो क्योंकि कनाडा के निर्माण में सिक्खों का बहुत योगदान है। भारत सरकार कई बार कनाडा सरकार को कह चुकी है कि इन समूहों को किसी भी प्रकार का समर्थन नहीं दिया जाए।

कनाडा में वैशाखी एक बड़ा त्यौहार होता है जिसमें बड़ी मात्रा में लोग जुटते है जिसमें सिक्ख धर्म के साथ-साथ अन्य धर्म के लोग भी होते हैं। इसी फेस्टिवल में खालिस्तान समर्थकों का देखा जाना आम बात है। 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार के समय से सिक्खों के मन में एक आक्रोश की भावना है और होना भी चाहिए। लेकिन यदि सेना उस ऑपरेशन को सफलतापूर्वक पूरा नहीं करती तो जरनैल सिंह भिंडरावाले को मारना मुश्किल हो जाता। इसी दौरान हुए सिक्ख दंगों के कारण बहुत मात्रा में लोग कनाडा भाग गए। आज 2018 में जब जस्टिन ट्रूडो प्रधानमंत्री के रूप में भारत पधारे है तो उन्हें कुछ परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कनाडा दूतावास द्वारा आयोजित भोज में जब एक खालिस्तान समर्थक पहुंच गया जिसका भारत सरकार ने कड़ा विरोध किया। जस्टिन ट्रूडो एक समझदार व्यक्ति है और उनकी छवि साफ और शालीन इंसान की है।

भारत एक विकासशील देश है और कनाडा विकसित। दोनों को मिलकर काम करना होगा क्योंकि यह विश्व जरुरतों का है।

                     ।।जय हिन्द।।

📃BY_vinaykushwaha


बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

ईरान और भारत

       

अमेरिका के बार-बार मना करने पर भी ईरान परमाणु बमों का परीक्षण कर रहा था। जिसके कारण अमेरिका और  तमाम दूसरे देशों ने उस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। लेकिन एक देश अब भी ऐसा था जिसने ऐसा नहीं किया और ईरान का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करता रहा वो देश है भारत। भारत के ईरान के साथ रिश्तें कोई 200-400 साल पुराना नहीं है। यह रिश्ता तो लगभग 2000 साल से भी ज्यादा पुराना है। मौर्य काल हो या बाद के काल दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध रहे हैं। भारत भी कई सभ्यताओं के बाद जन्मा एक महान राष्ट्र है। ईरान में भी बेबीलोन जैसी सभ्यता ने जन्म लिया।

ईरान का पुराना नाम पर्सिया है। पर्सिया होने के पीछे परसियन साम्राज्य का होना है। यह वही देश है जहां पारसी धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। पारसी धर्म एक शांति प्रिय धर्म है जिसनेे जुल्म और सितम सहें। पारसी धर्म को हिंदु धर्म की तरह देखा जाता है। इस धर्म में भी अग्नि और जल को एक पवित्र तत्व माना गया है। पारसी धर्म विश्व के सबसे पुराने धर्मों में से एक है। जब ईरान में पारसी धर्म के मतावलम्बियों को कष्ट हुआ तो वे अपनी जन्मभूमि को छोड़कर भारत की ओर रुख कर लिया। मुंबई और गुजरात में साफ-साफ साक्ष्य मौजूद है। आज भी इन्हीं जगहों पर सर्वाधिक पारसी रहते हैं।

भारत और ईरान एक मित्र राष्ट्र के रुप में एक-दूसरे से व्यवहार करते है। ईरान कब शिया मुस्लिम बहुल राष्ट्र बन गया यह तो सर्वविद्यित है। जरुरत समाज की एक आवश्यकता है।  भारत और ईरान को भी एक-दूसरे की जरुरत है क्योंकि विश्व रुपी समाज में सभी देशों को एक-दूसरे की जरुरत है। ईरान के पास कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, और भौगोलिक स्थिति है। इन्हीं सारी चीजों की भारत को जरुरत है।

भारत आने वाले समय की महाशक्ति है। भारत की जरुरत को पूर्ण करने में कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस की आवश्यकता है। भारत अपनी जरुरत का 75 प्रतिशत तेल और गैस आयात करता है। भारत सस्ती और आसानी से उपलब्ध तेल और गैस की तलाश में है। ईरान पर जब आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए थे तब भी  भारत ही था जिसने ईरान से व्यापार जारी रखा और तेल का आयात करता रहा। आज के दौर में किसी भी देश के लिए तेल, गैस और भौगोलिक स्थिति (geographical position) के बहुत मायने है। हसन रुहानी भारत आए तो यही तीन मुद्दे हावी रहे। इसमें सर्वाधिक चर्चित मुद्दा चाबहार पोर्ट रहा।

चाबहार पोर्ट ईरान का एक पोर्ट है जो अरब सागर में स्थित है। यह पोर्ट ग्वादर पोर्ट के निकट है। यह वही ग्वादर पोर्ट है जो पाकिस्तान और चीन की संयुक्त परियोजना है जो कि ओबीओआर का भाग है। चीन आज के समय में दूसरे देश की जमीन का उपयोग करके अपने लिए एक बैकअप बनाने और उसके पड़ोसी देश को घेरने की तैयार करने की कोशिश कर रहा है। भारत भी अब चीन को चीन की तरह से ही घेरने की कोशिश में है। चाबहार पोर्ट एक रास्ता है जो भारत की पहुंच को मध्य एशिया तक आसान बनाएगा।

खासतौर पर पाकिस्तान, अफगानिस्तान में भारत की एंट्री नहीं होने देना चाहता। भारत ने पाकिस्तान के सामने एक प्रस्ताव रखा था कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत एक सड़क परियोजना से जुड़े लेकिन पाकिस्तान ने मना कर दिया। इस मनाही का विकल्प चाबहार के रूप में निकला। भारत ने एक तीर से कई सारे निशाने साधे हैं। पहला कि भारत को मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए आसान और छोटा रास्ता मिल गया। दूसरा अफगानिस्तान पहुंचने के लिए अब तक केवल हवाई मार्ग से ही सीधे पहुंचा जा सकता था जो कि आयात-निर्यात के लिए उपयुक्त माध्यम नहीं है।चाबहार के बन जाने के बाद इस समस्या का लगभग निराकरण हो जाएगा। तीसरा पाकिस्तान में हो रही गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है। चौथा, इस क्षेत्र में बढ़ रहे चीन के प्रभाव को कम करने और संतुलन स्थापित करने में महत्वपूर्ण है।

भारत और ईरान सदा का साथ है और बना रहेगा। ईरान, भारत से अपनापन जताता है और भारत, ईरान से। भौगोलिक दूरियों को कम किया जा सकता है।

                           ।।जय हिन्द।।

📃BY_vinaykushwaha

रविवार, 18 फ़रवरी 2018

अंबेडकर अभी जिंदा है!


बात उन दिनों की है जब सयाजी गायकवाड़ बडौदा रियासत के महाराज हुआ करते थे। डॉ भीमराव अंबेडकर जी ने आवश्यक शिक्षा प्राप्त कर ली थी और उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश जाना चाहते थे। सयाजी गायकवाड़ ने डॉ अंबेडकर की मदद की और उन्हें ब्रिटेन भेज दिया। जब अंबेडकर अपनी पढ़ाई करके वापस आए तो उन्हें एक नौकरी की सख्त जरुरत थी क्योंकि उनके घर की आर्थिक परिस्थितियां दयनीय थी। जब यह महाराजा सयाजी को पता चला तो उन्होंने बडौदा में ही क्लर्क की नौकरी दे दी जिससे उनका जीवन यापन होने लगा। जब उनके ऑफिस में ही उनके साथ सामान्य जाति के नौकरों के द्वारा दुर्व्यवहार किया जाने लगा जिसमें घंटों तक उनको प्यासा रहना पड़ता था, नौकर उनकी टेबिल को छूते भी नहीं थे। फाइलों को हाथ में न देकर फाइलों को फेंककर दिया जाता था। यह सब देखकर वे बहुत दु:खी हुए और नौकरी छोड़ने का मन बना लिया।

अंबेडकर को मां-बहन की गाली देने वालों क्या तुम्हारी आत्मा तुम्हें ऐसा करने के लिए एक बार भी मना नहीं करती? तुम्हें अंबेडकर को गाली देने से क्या मिलेगा? अंबेडकर ने जिस दंश को झेला है, उसी का सबसे बड़ा कारण संविधान में आरक्षण का प्रावधान है। अंबेडकर महाराष्ट्र की उस महार जाति से आते है जिसे उस सामान्य कुएं से पानी पीने पर प्रतिबंध था। जब वह रास्ते पर निकलता था तो उसकी कमर पर झाडू और मुहं के पास एक पात्र होता था। जब तक इस समाज में भेदभाव और छुआछूत की भावना रहेगी तब तक "अंबेडकर जिंदा रहेगा"।

मैंने भी छुआछूत का दंश झेला है और महसूस किया है कि कितना विध्वंसक है। भारत मेरा देश है जहां कुछ दो कौड़ी के लोग है जो गालियां देने में अपना जीवन बिताते हैं। कुछ अंबेडकर को गाली देते है और कहते है कि साला, आरक्षण लागू करके चला गया? ये तो उनके लिए सामान्य से शब्द हैं। इतने घटिया शब्दों का उपयोग किया जाता है कि मैं यहां चाहते हुए भी नहीं लिख सकता। गाली देने वाला सभी को गाली देता है, यहां तक की भगवान को भी। वर्तमान समय में लोग नरेन्द्र मोदी को भी गाली देते हैं। इससे यह सिद्ध तो नहीं होता कि नरेन्द्र मोदी घटिया व्यक्तिव्य के व्यक्ति है। नुक्स निकालना तो हर व्यक्ति का काम है लोगों ने तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आतंकवादी तक की संज्ञा दे दी। मैं तो केवल इतना जानता हूं कि ऐसे लोगों के मनोरंजन का यह विषय बन चुका है। इंसान अच्छा अपने कर्मों से होता है।

मेरी हमेशा ही आरक्षण को लेकर बहस होती रहती है। जो सामान्य वर्ग के व्यक्ति है वह चाहते है कि आरक्षण लाकर अंबेडकर ने गलत किया है। बोलते हैं कि आरक्षण से कभी अनुसूचित जाति(sc) और अनुसूचित जनजाति(st) का कभी भला नहीं हो सकता। मैं तो कहता हूं कि आरक्षण भला करने के लिए नहीं है बल्कि प्रोत्साहित करने के लिए था और है। पूना पैक्ट की बात करते है और कहते है कि किस प्रकार अंबेडकर गांधी के सामने अड़ गए थे। जरा जाकर सच्चाई तलाशों फिर आकर बात करना।

जब तक इस देश में छुआछूत, भेदभाव, जातिगत अत्याचार व्याप्त है तब तक अंबेडकर जिंदा रहेगा। जब तक कुछ सामान्य और सवर्ण जाति के लोग अपनी मानसिकता बदलकर पिछड़ों को अगड़े बनाने में मदद नहीं करते तब तक अंबेडकर जिंदा रहेगा। जब तक सामाजिक बुराइयों से समाज उलझा रहेगा तब तक अंबेडकर जिंदा रहेगा। मैं किसी व्यक्ति विशेष का पैरोकार नहीं हूं। मैं तो बस सच्चाई सामने रखने की कोशिश कर रहा हूं। मैं तो सभी का सम्मान करने वाले व्यक्ति में से एक हूं। मुझे स्कूल में तो यही सिखाया गया है। मैं उस व्यक्ति की बिल्कुल भी इज्जत नहीं करता जो देश विरोधी बात करते है, किसी भी प्रकार से देश को तोड़ने की बात करते हैं, सामाज में बुराइयां फैलाते है।

संविधान निर्माण का कार्य किसी एक व्यक्ति का काम नहीं था। प्रारुप समिति का अध्यक्ष डॉ भीमराव अंबेडकर को बनाया गया। जब प्रारुप संसद में पेश किया गया तब संसद सदस्यों ने इसे पास कर दिया और यह संविधान बन गया। इसी प्रारुप में आरक्षण का प्रावधान था। जिसे संसद सदस्यों ने पास किया। डॉ अंबेडकर का आरक्षण लागू कराने में कितना रोल है? यह सब जानते हैं, फिर भी फालतू की बहस करते है। अच्छा, एक बड़ी बात यह भी है कि कई ऐसे भी लोग है जिन्हें संविधान स्वीकार्य नहीं है। यही लोग अपने आप को बड़ा देश भक्त बताते हैं।

आरक्षण कोई मनोरंजन का विषय नहीं है। आरक्षण केवल उन पद दलित लोगों के लिए है जो समाज की तेज रफ्तार दौड़ में कहीं पीछे छूट गए। जिनकी एक भी पीढ़ी राजनीति, अर्थनीति, शास्त्रों, सांस्कृतिक व्यवहार आदि से परिचित नहीं है। आरक्षण उनके लिए है जिन्हें सामाजिक सहारे की जरुरत है जो समाज के जीवन से अनभिज्ञ हैं। आरक्षण उनके लिए नहीं है जो आरक्षण का उपयोग करके डॉक्टर, इंजीनियर, सांसद, विधायक बनकर लंबी-लंबी कारों में घूमें और अपनी आने वाली पीढ़ी को आरक्षण का लाभ दें। अन्य पिछड़ा वर्ग के व्यक्ति को आय के आधार पर आरक्षण मिलता है इसी प्रकार एससी और एसटी के लिए भी होना चाहिए ताकि नए लोगों को मौका मिल सकें। सरकार को इस प्रकार की व्यवस्था करनी चाहिए कि जिन्हें आरक्षण का लाभ नहीं चाहिए वे इसका त्याग कर सकें।

मैं तो केवल इतना जानता हूं कि मेरे प्यारे भारत देश में छुआछूत, भेदभाव, जातिगत अत्याचार नहीं होना चाहिए। जब तक सभी लोग मिलकर समभाव की भावना नहीं रखते तब तक भारत महान कैसे बनेगा।आपको तो अंबेडकर से ज्यादा अंग्रेजों को गाली देनी चाहिए जिन्होंने भारत को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, वैचारिक, बौद्धिक आदि अनेक रुप से कमजोर किया है। जिसका परिणाम हम आज तक भुगत रहे हैं। मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार लाकर जो अंग्रेजों ने किया है हमें तो उसे गाली देनी चाहिए। जातिवाद वर्जित है और वर्जित ही रहना चाहिए।

                          ।।जय हिंद।।

📃BY _vinaykushwaha


गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

एकात्म मानवतावाद और भारत


एकात्म मानवतावाद की परिभाषा से आज सभी कोई वाकिफ होगें। भारत में इस सिद्धांत के प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय जी है। दीनदयाल उपाध्याय जी ने इस सिद्धांत में जगतगुरु शंकराचार्य जी के अद्वैतवाद के सिंद्धात को जीवित रखते हुए केवल आत्मा और परमात्मा को नहीं दुनिया के समस्त मानव जाति को एक करने के बारे में कहा। संसार की सारी मानवजाति एक है। जहां जगतगुरु शंकराचार्य जी ने आत्मा और परमात्मा को एक होने की बात कही जिसमें आत्मा को मानव और परमात्मा को भगवान के रुप में प्रतिपादित किया है। वही दीनदयाल उपाध्याय जी ने विभिन्न धर्मों, जाति, वर्ग, वंश, क्षेत्र, कार्यशील व्यक्ति या मानवजाति एक है। भारत इस एकात्म मानवतावाद सिद्धांत का साक्षात् गवाह है।

भारत में विभिन्न संतों,ऋषियों,मनीषियों ने विभिन्न प्रकार के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। द्वैतवाद के सिद्धांत का प्रतिपादन माध्वाचार्य ने किया था। इस सिद्धांत में इस ब्रह्मांड में कोई भी एक पक्ष या वस्तु उपलब्ध नहीं इसका दूसरा भाग जरुर होगा। ईश्वर के विरुद्ध राक्षस, अच्छाई के विरुद्ध बुराई, भाव के विरुद्ध अभाव आदि जरुर होगा। द्वैतवाद का मूल अर्थ ही यही होगा कि कोई एक नहीं दो या तीन हो सकता है। द्वैतवाद के सिद्धांत में यह कहा जाता है कि यह सारी प्रक्रिया ईश्वर,प्रकृति और जीवात्मा से मिलकर बनती है।

शुद्धद्वैतावाद के सिद्धांत का प्रतिपादन वल्लभाचार्य ने किया था। यह सिद्धांत अद्वैतवाद की परिभाषा को और ज्यादा सुदृढ़ करने में मदद करता है। यह मानता है कि भगवान एक ही है और सभी चर-अचर उसी से है। विशिष्टाद्वैतवाद के सिद्धांत का प्रतिपादन रामनुजाचार्य जी ने की थी। यह एक प्रकार से कहा जाए तो किसी विशिष्ट को महत्व प्रदान करना है। द्वैताद्वैतवाद सिद्धांत का प्रतिपादन निम्बार्काचार्य जी ने की थी। इस सिद्धांत के अंतर्गत द्वैत और अद्वैत दोनों स्वरुपों  को  स्वीकारा गया है।

आज एक व्यक्ति भारतीय संस्कृति के इन्हीं सिद्धांतों और एकात्म मानवतावाद के सिद्धांत को एक बेहतरीन ढ़ंग से पूरी दुनिया के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है। यह व्यक्ति कोई आम व्यक्ति नहीं बल्कि यह तो भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी है। नरेन्द्र मोदी ने पूरी दुनिया को भारतीय संस्कृति और प्राचीन सिद्धांत एवं एकात्म मानवतावाद के सिद्धांत के माध्यम से नए-नए संबंध गढ़े हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के द्वारा शुरु की गई लुक ईस्ट एशिया पॉलिसी को और ज्यादा बेहतर बनाते हुए इसे एक्ट ईस्ट एशिया पॉलिसी नाम दिया। पूर्व एशिया के सारे देश से संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के लिए मोदी भरसक प्रयास कर रहे है। सार्क(SAARC: south asia association for regional cooperation) देशों को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाकर साफ कर दिया कि वे अपने पड़ोसियों से अच्छे संबंध रखना चाहते है।

2014 में सरकार बनने के बाद मोदी सरकार ने विदेश नीति को बहुत ज्यादा महत्व दिया है। मोदी जब भी विदेशी दौरे पर होते है तो प्रवासी भारतीय की सभा को संबोधित करते है साथ उस देश के रंग में ढ़लने की कोशिश करते है और भारत की गहरी छाप छोड़कर आते है। चाहे ब्रिक्स सम्मेलन हो या बिम्सटेक , आसियान हो या जी20 सभी विश्व स्तरीय सम्मेलन में भारत की जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई है। संयुक्त राष्ट्र परिषद से लेकर किसी भी विश्व मंच से हिन्दी में भाषण देना हो। यह सब दिखाता है कि कैसे नरेन्द्र मोदी देशों और वहां के नागरिकों को भारत की ओर आकर्षित करते है। एकात्म मानवतावाद बाद का इससे बड़ा उदाहरण कही और कहां देखने को मिलेगा।


बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

चलते-चलते (श्रृंखला 10)


फिल्में समाज को सीख देती है। समाज को सामाजिक, धार्मिक,सांस्कृतिक,वैचारिक रुप से सुदृढ़ रखने में मदद करती हैं। सौह्यार्द्र की भावना को कायम करने में मदद करती है। फिल्मकारों के बीच फिल्मों को समाज का दर्पण कहा जाता है। दर्पण कहना सही भी है क्योंकि व्यक्ति समाज में रहकर सीखता है और अपनी जिंदगी में वही उतारता है। फिल्मकारों का यह कहना कि समाज में जो हो रहा है हम वही दिखा रहे है, यह बिल्कुल गलत है। समाज केवल व्यक्ति विशेष की सोच से नहीं चलता। समाज चलता है विचारों या यूं कहे कि सुविचारों से। आजकल कुछ फिल्मकार फिल्म को प्रसिद्धि दिलाने के लिए अव्यवहारिक बातों को बढ़ावा देते हैं।

हाल ही में रिलीज हुई  फिल्म पद्मावत पर हुए विवाद से यही बताया जा सकता है। समाज और देश की जनता के बीच इतना क्रोध एक फिल्म के प्रति कभी नहीं देखा गया। आप किसी भी वर्ग विशेष की भावना को ठेस पहुंचाकर फिल्म बना तो सकते है परंतु फिल्म को रिलीज करवाना आपके गले की फांस बन जाएगा। पद्मावत का विवाद कोई आम विवाद नहीं था। यह सरासर इतिहास के साथ छेड़छाड़ थी। इतिहास से छेड़छाड़ मतलब कि लोगों की भावनाओं से खिलवाड़। समाज केवल क,ख, ग,घ से नहीं चलता बल्कि यह तो प्रेम और भावनाओं के विश्वास से भी चलता है। पद्मावती का नाम पद्मावत होने तक इस फिल्म ने कई विवादों को जन्म दिया गया। मलिक मोहम्मद जायसी रचित पद्मावत एक महान महाकाव्य जिसकी फिल्म निर्माता ने छवि बिगाड़ने की कोशिश की है।

भारत की फिल्म इंडस्ट्री में कई महत्वपूर्ण फिल्मों का निर्माण हुआ है। इस इंडस्ट्री ने कई महान फिल्मों को जन्म दिया है। मदर इंडिया, मुगल-ए-आजम, पाथेर पांचाली, अंकुर, डॉ कोटनिस की कहानी जैसी फिल्मों ने समाज को बहुत कुछ दिया है। इन फिल्मों के माध्यम से दर्शक दीर्घा तालियां बजाने के साथ-साथ खुद को फिल्म से जोड़े बिना नहीं रह पाया। लेकिन हालिया कुछ फिल्मों ने इस छवि को मिट्टी पलीत कर दिया मतलब नाम मिट्टी में मिला दिया। फिल्म के नाम से लेकर स्टोरी तक आजकल एक क्रिएटिविटी नहीं बल्कि एक सोच को अंजाम देना या फिर कहे कि जानबूझकर तंग(tease) किया जा रहा है।

दक्षिण भारत में निर्मित फिल्में एक बड़ा परिदृश्य लेकर लोगों के सामने आती है। कई फिल्में है जिन्होंने सीख दी है साथ-साथ टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अहम भूमिका अदा की है। कई फिल्में ऐसी है  जिनमें सीन को इस तरह फिल्माया जाता है जो बेहद आपत्तिजनक लगते है। फिल्मकार यह बोलकर अपना तल्ला छुड़ाना चाहते है कि यह समाज की जरुरत है। परंतु यह फिल्में समाज की जरुरत नहीं बल्कि सेक्स उत्सुकता बढ़ाने के अलावा कुछ नहीं करती है। दक्षिण ही क्यों बॉलीवुड से लेकर भोजपुरी सिनेमा तक जमकर अश्लीलता परोसी जा रही है।

भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां हमें वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है। सभी को कहने, बोलने की आजादी के साथ-साथ किसी भी कृति को व्यक्त करने की आजादी है। इसी बात का फायदा उठाकर कई फिल्मकार धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाकर अपनी फिल्म रिलीज करते हैं। कई ऐसी फिल्में बनी है जिन्होंने किसी धर्म विशेष पर हमला करते हुए लोगों की भावनाओं को बहुत ठेस पहुंचाया है। हिन्दुओं की भावना को विशेष रुप से  ठेस पहुंचाया है। ऐसा किसी देश में नहीं है कि  वहां कि बहुलता वाली आबादी को टारगेट किया जाए। लेकिन ऐसा भारत में सहज ही होता है।

फिल्मकारों और समाज एवं दर्शकों  को यह समझना होगा कि यह क्या हो रहा है?


रविवार, 11 फ़रवरी 2018

इंदौर - मेरी याद


हर शहर में सुबह होती होगी पर मेरी जान इंदौर में सुबह नहीं धमाकेदार सुबह होती है। सुबह पोहा और जलेबी के बिना पॉसिवल हो ही नहीं सकती। पलासिया हो या भंवरकुआ, राजवाड़ा हो या एलआईजी , महुनाका हो या विजयनगर नमकीन और सेव के बिना एक इंदौरी का दिन पूरा नहीं हो सकता है। बोलने का स्टाइल सबसे अलग और  रहने का अंदाज एक नंबर। ऐसा मेरा इंदौर सबसे अलग और अनोखा। राजवाड़ा, इंदौर की वो जगह है जहां सुबह से लेकर रात तक लोगों का गवाह बनता है। रविवार तो इंदौर को एक मेले में तब्दील कर देता है। विजयनगर से लेकर राजवाड़ा तक जहां देखो वहां भीड़ दिखाई देती है। रविवार को राजवाड़ा का रास्ता गाड़ियों के कारण नहीं लोगों से जाम होता है। रीगल चौराहा से राजवाड़ा तक ट्रेफिक रेंगने लगता है। इंदौर के कोने-कोने में कपड़े के व्यापारी आसानी मिल जाते है। ऐसा है मेरा इंदौर।

मिनी मुंबई के नाम से मशहूर मेरा इंदौर यूं ही नहीं है। देश के हर जगह का प्रतिनिधित्व करता है। मारवाडी हो या मराठी , गुजराती हो या बिहारी, छत्तीसगढ़िया हो या तमिल सभी को अपनी बाहों में समेटे हुए है। अन्नपूर्णा मंदिर से लेकर खजराना गणेश मंदिर तक, बड़ा गणपति से लेकर जूनी इंदौर तक, बीजासन मंदिर से लेकर कृष्णपुराछत्री तक इंदौर की विरासत फैली हुई है। मेघदूत गार्डन हो या अटल बिहारी पार्क , शिवाजी वाटिका हो या चिडियाघर इंदौर के माहौल को खुशनुमा बनाते हैं। राजवाड़ा हो या मालवा पैलेस , सेंट्रल म्यूजियम हो या बोलिया सरकार की छत्री , गांधी भवन हो या कांच मंदिर हो सभी इंदौर की सांस्कृतिक विरासत को दिखाती है।

इंदौर उन लोगों के लिए बिल्कुल नहीं है जो खाना नहीं जानते। कैपिटल ऑफ नमकीन इंदौर चटकारे लगाने वालों का शहर है। मालवा की दाल-बाटी हो या दाल-बाफले मुंह में पानी ला देने वाले है। इंदौरी पोहा तो पूरी दुनिया में मशहूर है। 56 दुकान से लेकर सराफा तक चटोरे इंदौरी की पनाहगाह है। जैसे-जैसे रात शुरु होती है वैसे-वैसे इंदौरी तरह-तरह के अनसुनी डिशेस् खाने निकलते है। हां, एक बहुत जरुरी बात बिना सेव के कुछ भी नहीं चाहे पानीपुरी हो या बर्गर, समोसा हो या चाट। इंदौर के खाने की बात ही निराली है। यदि किसी ने मालवा थाली खाली तो फिर तो इंदौर से उसका नाता पक्का हो गया।

मॉल कल्चर हो या स्ट्रीट शॉपिंग इंदौर सभी जगह नंबर एक है। एमटी क्लॉथ मार्केट हो या कोठारी मार्केट सभी जगह एक सा माहौल है। यूं ही इंदौर टॉप टेन बेस्ट बिजनेस डेस्टिनेशन ऑफ इंडिया नहीं है। इंदौर को समझने जिसे देर लगे वो इंदौर के लायक ही नहीं है। इंदौर तो उस मालपुए कि तरह जिसकी सुगंध से उसके टेस्ट का पता लगाया जा सकता है।

मुझे इंदौर ने जीना सिखाया है। कैसे खुलकर जिंदगी जीते ये मुझे इंदौर ने सिखाया। खाने का अंदाज भी सिखाया और बाजार करना भी। कैसे अलग-अलग भाषा बोलने वालों के बीच रहा जाता है सब कुछ इंदौर ने मुझे सिखाया है। मैं शुरु से ही बोल रिया हूं इंदौर बेमिसाल। थैंक्यू इंदौर।