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मंगलवार, 12 नवंबर 2019

चलते-चलते(श्रृंखला 12)

ये दूसरा साल है जब मैं दीपावली पर घर नहीं गया। मम्मी और पापा को आस थी कि मैं इस बार उनका बेटा जरूर आएगा। मैंने उनकी आस को तोड़ते हुए कहा कि मैं अब देवउठनी एकादशी पर आऊंगा। हमारे यहां देवउठनी एकादशी को ग्यारस भी कहा जाता है। कई लोग इसे छोटी दीवाली या देव दीपावली भी कहते हैं। दीवाली से ग्यारहवें दिन देवउठनी एकादशी होती है। यह त्यौहार हमारे घर पर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसी पर्व के साथ दीपावली के त्यौहार का समापन हो जाता है। 

इस साल एकादशी 8 नवंबर को थी। मैंने बॉस को पहले ही इत्तिला कर दिया था कि मुझे 8 नवंबर से 18 नवंबर तक छुट्टी चाहिए। मुझे जाने की इजाजत भी मिल गई थी। मैंने जाने और आने का थर्ड एसी का टिकट करा लिया था। जबसे नौकरी लगी है तबसे थर्ड एसी से नीचे टिकट नहीं ली भले सफर तीन घंटे का ही क्यों ना हो। यहां तो 16 घंटों की बात थी। घर जाने की उत्सुकता मन में संजोए मैं रोज कुछ नया सोचता रहा था। कभी सोचता घर जाकर ये करूंगा या घर जाकर वो करूंगा। मम्मी-पापा ने भी कई तरीके से सोचकर रखा था कि बेटा घर आ रहा है तो अच्छा है। 

इन सबके बीच मेरी मम्मी को सबसे ज्यादा उत्सुकता मेरे घर आने की थी और क्यों ना होती? मैं सात महीने बाद घर जा रहा था। मैं पिछली बार घर होली पर गया था। उसके बाद अब जाने का समय मिला था। जीवन में कई बार कुछ अनोखे काम होते हैं। मैं उन बच्चों में से था जो मां-बाप से कभी अलग नहीं रहा लेकिन आज मुझे घर से बाहर रहते हुए 6 साल हो गए हैं। इन 6 सालों में मुझे अलग-अलग अनुभव मिले। जीवन कैसे जिया जाता इन्ही 6 सालों में पता चला। जीवन में किरदार किस तरह के होते हैं इन्ही 6 सालों में पता चला। दोस्त क्या होते हैं? नशा क्या होता है? गाली क्या होती है? सबकुछ इन्हीं 6 सालों में पता चला। जिंदगी में एक बार ज्ञान जरूर मिलता है मुझे इन 6 सालों के हर एक दिन ज्ञान मिला। 

एक कहावत है कि "समय बड़ा बलवान" । मेरे साथ भी समय ने बड़ा खेल खेला। कई सम्मिलित कारणों की वजह से मेरी छुट्टी रद्द हो गई। ये पहली बार था कि जब मेरी छुट्टियों पर ग्रहण लगा। मैं पहली बार बहुत मायूस रहा ना तो मैंने उस दिन नाश्ता किया ना ही उस दिन में खाना खाया। मुझे अभी भी आशा किरण घोर अंधेरे में जलती हुई लौ की तरह दिखाई दे रही थी। कुछ हो ना सका। अब लग रहा था कि धरती फट जाए तो मैं उसमें समा जाऊं। मुझे सबसे ज्यादा चिंता मम्मी-पापा की थी कि मैं उन्हें किस तरह बताऊंगा कि मैं नहीं आ रहा। लेकिन जैसे-तैसे उनको समझाया और बताया कि मैं क्यों नहीं आ रहा। 

मैं छुट्टी लेने के बारे में ज्यादा नहीं सोचता लेकिन ये पहली बार था जब मुझे घर के लिए आस थी। मैंने बॉस को कई तरीके से मनाने की कोशिश की। इतना दुख तो मुझे टिकट कैंसिल करते समय एक हजार रुपये की बलि चढ़ाते वक्त भी नहीं हुआ। मैं जब इंदौर में रहा या भोपाल में रहा तब कई बार 15 दिनों से ज्यादा घर पर छुट्टियां मना चुका हूं। लेकिन अब ऑफिस में ऐसे स्वर्णिम पल कहां हैं? अब तो बमुश्किल 10 दिनों की छुट्टियां मिल जाएं तो बड़ी बात है। इस पोस्ट का मतलब यही है कि "समय बड़ा बलवान"। 

📃BY_vinaykushwaha


शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

एमपी अजब है, एमपी गजब है

एमपी हिन्दुस्तान का दिल। आज एमपी 63 साल का हो गया मतलब 1 नंवबर 1956 को एमपी बॉम्बे स्टेट से अलग हुआ था। साल 1956 के पहले तक एमपी को सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार के नाम से जाना जाता था। एमपी और छत्तीसगढ़ पहले एक ही थे फिर 1 नंबवर 2000 को छत्तीसगढ़ एक अलग राज्य बन गया। आज छत्तीसगढ़ पूरे 19 साल का हो गया। दोनों को मेरी तरफ से हैप्पी बर्थडे। मैं मध्यप्रदेश का मूल निवासी तो बात करूंगा केवल एमपी की। मैं हूं घुमक्कड़ इंसान तो एमपी की सैर कराता हूं। 
एमपी टूरिज्म के लिए भारत की सबसे मुफीद जगहों में से एक है। नेटिव प्लेनेट डॉट कॉम ने 2020 में एमपी को घूमने के लिए विशलिस्ट में बताया है। साइट का कहना है कि एमपी वाइल्डलाइफ के मामले में बेहद समृद्ध है इसमें विशेषतौर से बंगाल टाइगर हैं। भारत सरकार का हालिया सर्वे भी यही कहता है कि एमपी में सबसे ज्यादा टाइगर हैं। एमपी में दस नेशनल पार्क और 28 वाइल्डलाइफ सेंचुरी हैं। पन्ना नेशनल पार्क(पन्ना), बांधवगढ़ नेशनल पार्क(उमरिया), सतपुड़ा नेशनल पार्क(होशंगाबाद), कान्हा नेशनल पार्क (मंडला) , पेंच नेशनल पार्क(सिवनी), रातापानी अभ्यारण्य(रायसेन) में टाइगर रिजर्व भी है। साइट का कहना है कि जो लोग वाइल्डलाइफ का मजा लेने अफ्रीका जाते हैं उन्हें यहां सस्ते में वाइल्डलाइफ का मजा लेना चाहिए। 

सबसे ज्यादा वन क्षेत्र वाला प्रदेश कई सारे जीव-जंतुओं का घर है, इनमें तेंदुआ, भालू, जंगली सुअर, हिरण, बारहसिंगा वो भी ब्रेडरी प्रकार का, लकड़बग्गा, नीलगाय और भी बहुत से जानवर। केन अभ्यारण(छतरपुर) और चंबल अभ्यारण (भिंड) मगरमच्छ और घड़ियाल के लिए हैं। पन्ना नेशनल पार्क में सर्प उद्यान(Snake Park) है वहीं ओरछा में गिद्धों के लिए संरक्षित स्थान है। एमपी बड़े कमाल की जगह है। क्षेत्रीय विषमता के होते हुए भी भारत में प्राकृतिक विविधताओं को समेटे हुए। 
भारत सरकार के द्वारा दिए जाने वाले टूरिज्म एक्सीलेंस अवॉर्ड में एमपी ने चार अवॉर्ड जीते। अवॉर्ड तो केवल दिखाने के लिए होता है लेकिन एमपी के पास सचमुच दिखाने के लिए बहुत कुछ है। प्राकृतिक जगहों(Natural Places) से लेकर ऐतिहासिक जगहों(Historical Places) तक सबकुछ बेमिसाल है। एमपी के पास तीन-तीन विश्व धरोहर स्थल(world Heritage site) हैं जिनमें खजुराहो के मंदिर(छतरपुर), सांची के स्तूप(रायसेन) और भीमबेटका की गुफाएं(रायसेन) शामिल हैं। तीनों अपने-अपने समय की कहानी बयान करती हैं। हजारों साल से ये कहानी बयान कर रहे हैं कि एमपी कभी आधुनिकता की रेस में कभी पीछे नहीं रहा। भीमबेटका की गुफाएं दस हजार साल से भी ज्यादा पुरानी हैं। यहां आदिमानव(Primitive Man) द्वारा उकेरी गईं कलाकृतियां आज भी दिखाई पड़ती हैं जिनमें यूएफओ(UFO) तक का जिक्र मिलता है। सांची का स्तूप तो कलाकृति में एक कदम आगे है। बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले और अहिंसा को परम धर्म मानने वाले यहां आकर शांति और ध्यान करते हैं। हजारों साल पुराने खजुराहो के मंदिर की कला का कहना ही क्या। यहां आने वाला हर शख्स कहता है कि एमपी अजब है सबसे गजब है। कंदरिया महादेव मंदिर कलाकृति का बेमिसाल नमूना है। आज तक इतनी बेमिसाल कृति विश्व में नहीं है। 
भारत के सबसे शांत प्रदेशों में से एक मध्यप्रदेश हमेशा शांति और अहिंसा का संदेश देता रहा है। भारत की ऐसा कोई धार्मिक स्थल नहीं है जहां देवी अहिल्याबाई ने निर्माण कार्य ना कराया हो। काशी विश्वनाथ मंदिर से लेकर पुष्कर के घाट तक, कुरूक्षेत्र से लेकर भीमाशंकर तक देवी अहिल्याबाई की देन है। एमपी के पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक पवित्र स्थलों से भरा पड़ा है। चित्रकूट, जहां भगवान राम ने अपने वनवास के बारह वर्ष गुजारे। मैहर जहां माता सती का हार गिरा आज शारदा माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग भोजपुर में स्थित है। उज्जैन के महाकालेश्वर को कौन भूल सकता है। उज्जैन तो मंदिरों का शहर कहा जाता है। मांधाता स्थित ओमकारेश्वर दो शिवलिंगों से पूर्ण होते हैं। सोनगिर के जैन मंदिर, बावनगजा की मूर्ति, मुक्तागिरी हो या पुष्पागिरी सभी से अहिंसा का भावना सामने आती है। 
ऐतिहासिक स्थानों(Historical Places) के मामले में भारत के समृद्ध राज्यों में से एक है। सम्राट अशोक के शिलालेखों से लेकर आधुनिक भारत की स्थापत्य कला तक सब कुछ है मध्य प्रदेश में। उत्तर में मितावली के चौंसठ योगिनी के मंदिर से लेकर दक्षिण में बुरहानपुर की ऐतिहासिक विरासत तक, पूर्व में रीवा की रियासत से लेकर पश्चिम में महेश्वर के घाट तक सबकुछ अनोखा और नया अनुभव है। बटेश्वर के 11वीं शताब्दी के मंदिर हो या नरसिंहगढ़ का बेमिसाल किला। बुरहानपुर को तो दक्षिण का द्वार कहा जाता है। एक समय मुगलों के लिए ये जगह पड़ाव थी। यदि ताजमहल आगरा में ना होता तो बुरहानपुर में ही होता। मांडू को कैसे भूला जा सकता है? इसका दूसरा नाम सिटी ऑफ जॉय है। एक समय था जब इसे मुगलों की आरामगाह कहा जाता था। धार का मशहूर किला हो या रायसेन का दुर्ग अपनी विशालता का संदेश देते हैं। चंदेरी अपने नायाब कलाकृतियों के जाना जाता है। दतिया,लघु वृंदावन कहलाता है यहीं एक ऐसी इमारत जो भारत की पहली सात मंजिला इमारत है। 

ओरछा अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ भगवान राम को राजा के रूप पूजे जाने वाला एकमात्र जगह है। यहीं वीर सिंह बुंदेला पैलेस, जहांगीर महल जैसी अद्वितीय इमारतें हैं। उदयपुर का मंदिर हो या सागर का एरण लेख सभी को इतिहास की अनुपम झलक दिखाता है। महेश्वर का किला, घाट, मंदिरों तो अद्भुत, अकल्पनीय, अविश्वसनीय हैं। अमरकंटक के कल्चुरीकालीन मंदिर हों या बुरहानपुर का अजेय असीरगढ़ दुर्ग इनका कहना ही क्या। 
भारत में सबसे ज्यादा नदियों का उद्गम(Origin) एमपी ही है। नर्मदा, चंबल, सोन, बेतवा, ताप्ती, केन, माही, पेंच, क्षिप्रा, तमस जैसी नदियों का उद्गम स्थल एमपी में ही है। इनके उद्गम स्थलों को देखना आनंद से भर जाना जैसा है। अमरकंटक तो तीन-तीन नदियों का उद्गम स्थल है जिनमें नर्मदा, सोन और जोहिला सोन शामिल हैं। वहीं चंबल नदी का उद्गम स्थल जानापाव तो बेहद सुंदर है। यही वह स्थान है जहां भगवान परशुराम का जन्म हुआ। नदियों के उद्गम के अलावा एमपी में झरने भी ढेर सारे हैं। रीवा को झरनों का शहर कहना सही होगा यहां पूर्वा,बहुटी,चचाई जैसी कई झरने या फॉल है। इनके अलावा राहतगढ़, तिंचा,पातालपानी, कपिलधारा,दूधधारा, बीफॉल, डचेस फॉल, सहस्त्र धारा नाम से कई जलप्रपात (Falls) हैं। एमपी का एकमात्र हिल स्टेशन पचमढ़ी घूमने के लिए बेहद शानदार जगह है। सतपुड़ा पर्वत की सबसे ऊंची चोटी धूपगढ़ यहीं स्थित है यहां से सनराइज़ और सनसेट का आनंद लेना रोमांचक है। 

एमपी के चार सबसे बड़े शहर इंदौर, भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर अपनी चार कहानियां बयां करते हैं। एमपी का सबसे बड़ा शहर इंदौर मिनी मुंबई के नाम से जाना जाता है। एक समय ये होल्कर साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। यहां राजबाड़ा, कृष्णपुरा छतरी, मालवा पैलेस, गांधी भवन, शिव विलास पैलेस, बोलिया सरकार की छतरी, गोमटगिरी, बड़ा गणपति, महू का किला, जाम गेट, अंबेडकर जन्मस्थली देखने लायक हैं। भोपाल की बात करें तो राजा भोज की नगरी कहा जाता है क्योंकि दुनिया का सबसे बड़ा मैनमेड स्ट्रक्चर बड़ी झील के रूप में यही है। भोपाल को झीलों का शहर भी कहा जाता है। एशिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक ताजुल मस्जिद और दुनिया की सबसे छोटी मस्जिद ढाई सीढ़ी मस्जिद दोनों भोपाल में हैं। इनके अलावा गौहर महल, गोलघर, ताजमहल, मोती मस्जिद, जामा मस्जिद, इंदिरा गांधी मानव संग्रहालय जैसी कई जगह हैं। और हां कभी भोपाल जाएं तो ट्राइबल म्यूजियम जाना ना भूलें। 
जबलपुर एमपी का तीसरा सबसे बड़ा शहर जिसे सिटी ऑफ मार्बल भी कहा जाता है। ये शहर अपने धुंआधार जलप्रपात के कारण जाना जाता है। ये शहर कल्चुरी राजाओं से लेकर आधुनिक भारत के राजनेताओं का पसंदीदा शहर रहा है। यहां पंचवटी, ग्वारीघाट, तिलवाराघाट, चौंसठ योगिनी मंदिर, त्रिपुरसुंदरी मंदिर, मदन महल, डुमना नेचर पार्क, रानी दुर्गावती की समाधि स्थल है। एमपी का चौथा सबसे बड़ा शहर ग्वालियर कई सारी ऐतिहासिक विरासत को समेटे हुए है। इसे सिटी ऑफ जिब्राल्टर भी कहा जाता है। ग्वालियर का किला भारत के सबसे लंबे दुर्गों में शुमार है। ग्वालियर किले की लंबाई 3 किमी है जो इसे अनोखा बनाती है। किले के अलावा यहां इटेलियन गार्डन, जयविलास पैलेस, महाराजबाड़ा, महारानी लक्ष्मीबाई की समाधि आदि है। 
अब एमपी आएंगे तो चटपटा, खट्टा-मीठा, जायकेदार खाने का स्वाद जरूर लेकर जाएंगे। रीवा के चंद्रहार से लेकर इंदौर के भुट्टे कीस तक, ग्वालियर की बेड़ई से लेकर बुरहानपुर की जलेबी तक सबकुछ एक नंबर है। इंदौर को चटोरों का शहर कहा जाता है। इसके अलावा इसे पोहे की राजधानी, नमकीन कैपिटल भी कहा जाता है। सुबह की शुरूआत पोहे से होती है और रात में सराफा में जाकर खत्म होती है। भोपाल का सींक कबाब हो या जबलपुर की मुंगोड़ी, ग्वालियर की चटपटी कचौड़ी हो या करेली का आलू बड़ा सबकुछ बेमिसाल है। दाल-बाटी चूरमा खाना बिल्कुल मत भूलना यदि भूल गए तो दाल-बाफले खा लेना। मुरैना की गजक कैसे भूल सकते हैं आप और फिर पेट पूजा हो जाए तो पुराने भोपाल का पान खाना मत भूलिएगा। 

अरे, जरा ठहरिए एक बात तो बताना ही भूल गया यदि आपको व्हाइट टाइगर देखना हो तो पूरी दुनिया में घूमने की जरूरत नहीं है। आप सीधे रीवा की मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी आ जाइए। 

एक बात तो पक्की है एमपी अजब है, एमपी गजब है। 
एमपी हिन्दुस्तान का दिल। आज एमपी 63 साल का हो गया मतलब 1 नंवबर 1956 को एमपी बॉम्बे स्टेट से अलग हुआ था। साल 1956 के पहले तक एमपी को सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार के नाम से जाना जाता था। एमपी और छत्तीसगढ़ पहले एक ही थे फिर 1 नंबवर 2000 को छत्तीसगढ़ एक अलग राज्य बन गया। आज छत्तीसगढ़ पूरे 19 साल का हो गया। दोनों को मेरी तरफ से हैप्पी बर्थडे। मैं मध्यप्रदेश का मूल निवासी तो बात करूंगा केवल एमपी की। मैं हूं घुमक्कड़ इंसान तो एमपी की सैर कराता हूं। 

एमपी टूरिज्म के लिए भारत की सबसे मुफीद जगहों में से एक है। नेटिव प्लेनेट डॉट कॉम ने 2020 में एमपी को घूमने के लिए विशलिस्ट बताया है। साइट का कहना है कि एमपी वाइल्ड के मामले में बेहद समृद्ध है इसमें विशेषतौर से बंगाल टाइगर हैं। भारत सरकार का हालिया सर्वे भी यही कहता है कि एमपी में सबसे ज्यादा टाइगर हैं। एमपी में दस नेशनल पार्क और 28 वाइल्डलाइफ सेंचुरी हैं। पन्ना नेशनल पार्क(पन्ना), बांधवगढ़ नेशनल पार्क(उमरिया), सतपुड़ा नेशनल पार्क(होशंगाबाद), कान्हा नेशनल पार्क (मंडला) , पेंच नेशनल पार्क(सिवनी), रातापानी अभ्यारण्य(रायसेन) में टाइगर रिजर्व भी है। साइट का कहना है कि जो लोग वाइल्डलाइफ का मजा लेने अफ्रीका जाते उन्हें सस्ते में यहां सस्ते में वाइल्डलाइफ का मजा लेना चाहिए। 

सबसे ज्यादा वन क्षेत्र वाला प्रदेश कई सारे जीव-जंतुओं का घर है, इनमें जंगली सुअर, हिरण, बारहसिंगा वो भी ब्रेडरी प्रकार का, लकड़बग्गा, नीलगाय और भी बहुत से जानवर। केन अभ्यारण(छतरपुर) और चंबल अभ्यारण (भिंड) मगरमच्छ और घड़ियाल के लिए हैं। पन्ना नेशनल पार्क में सर्प उद्यान(Snake Park) है वहीं ओरछा में गिद्धों के लिए संरक्षित स्थान है। एमपी बड़े कमाल की जगह है। क्षेत्रीय विषमता के होते हुए भी भारत में प्राकृतिक विविधताओं को समेटे हुए। 

भारत सरकार के द्वारा दिए जाने वाले टूरिज्म एक्सीलेंस अवॉर्ड में एमपी ने चार अवॉर्ड जीते। अवॉर्ड तो केवल दिखाने के लिए होता है लेकिन एमपी के पास सचमुच दिखाने के लिए बहुत कुछ है। प्राकृतिक जगहों(Natural Places) से लेकर ऐतिहासिक जगहों(Historical Places) तक सबकुछ बेमिसाल है। एमपी के पास तीन-तीन विश्व धरोहर स्थल(world Heritage site) हैं जिनमें खजुराहो के मंदिर(छतरपुर), सांची के स्तूप(रायसेन) और भीमबेटका की गुफाएं(रायसेन) शामिल हैं। तीनों अपने-अपने समय की कहानी बयान करती हैं। हजारों से ये कहानी बयान कर रहे हैं कि एमपी कभी आधुनिकता की रेस में कभी पीछे नहीं रहा। भीमबेटका की गुफाएं दस हजार साल से भी ज्यादा पुरानी हैं। यहां आदिमानव(Primitive Man) द्वारा उकेरी गईं कलाकृतियां आज भी दिखाई पड़ती हैं जिनमें यूएफओ(UFO) तक का जिक्र मिलता है। सांची का स्तूप तो कलाकृति एक कदम आगे है। बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले और अहिंसा को परम धर्म मानने वाले यहां आकर शांति और ध्यान करते हैं। हजारों साल पुराने खजुराहो के मंदिर की कला का कहना ही क्या। यहां आने वाला हर शख्स कहता है कि एमपी अजब है सबसे गजब है। कंदरिया महादेव मंदिर जो कलाकृति मिसाल है। आज तक इतनी बेमिसाल कृति विश्व में नहीं है। 

भारत के सबसे शांत प्रदेशों में से एक मध्यप्रदेश हमेशा शांति और अहिंसा का संदेश देता रहा है। भारत की ऐसा कोई धार्मिक स्थल नहीं है जहां देवी अहिल्याबाई ने निर्माण कार्य ना कराया हो। काशी विश्वनाथ मंदिर से लेकर पुष्कर के घाट तक, कुरूक्षेत्र से लेकर भीमाशंकर तक देवी अहिल्याबाई की देन है। एमपी के पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक पवित्र स्थलों से भरा पड़ा है। चित्रकूट एमपी में ही जहां भगवान राम ने अपने वनवास के बारह वर्ष गुजारे। मैहर जहां माता सती का हार गिरा आज शारदा माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग भोजपुर में स्थित है। उज्जैन के महाकालेश्वर को कौन भूल सकता है। उज्जैन तो मंदिरों का शहर कहा जाता है। मांधाता स्थित ओमकारेश्वर दो शिवलिंगों से पूर्ण होते हैं। सोनगिर के जैन मंदिर, बावनगजा की मूर्ति, मुक्तागिरी हो या पुष्पागिरी सभी से अहिंसा का भावना सामने आती है। 

ऐतिहासिक स्थानों(Historical Places) के मामले में भारत के समृद्ध राज्यों में से एक है। सम्राट अशोक के शिलालेखों से लेकर आधुनिक भारत की स्थापत्य कला तक सब कुछ है मध्य प्रदेश में। उत्तर में मितावली के चौंसठ योगिनी के मंदिर से दक्षिण में बुरहानपुर की ऐतिहासिक विरासत तक, पूर्व में रीवा की रियासत से लेकर पश्चिम में महेश्वर के घाट तक सबकुछ अनोखा और नया अनुभव है। बटेश्वर के 11वीं शताब्दी मंदिर हो या नरसिंहगढ़ का बेमिसाल किला। बुरहानपुर को तो दक्षिण का द्वार कहा जाता है। एक समय मुगलों के लिए ये जगह पड़ाव थी। यदि ताजमहल आगरा में ना होता तो बुरहानपुर में ही होता। मांडू को कैसे भूला जा सकता है? इसका दूसरा नाम सिटी ऑफ जॉय है। एक समय था जब इसे मुगलों की आरामगाह कहा जाता था। धार का मशहूर किला हो या रायसेन का दुर्ग अपनी विशालता का संदेश देते हैं। चंदेरी अपने नायाब कलाकृतियों के जाना जाता है। दतिया इसे लघु वृंदावन कहलाता है यहीं एक ऐसी इमारत जो भारत की पहली सात मंजिला इमारत है। 

ओरछा अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ भगवान राम को राजा के रूप पूजे जाने वाला एकमात्र जगह है। यहीं वीर सिंह बुंदेला पैलेस, जहांगीर भवन जैसी अद्वितीय इमारतें हैं। उदयपुर का मंदिर हो या सागर का एरण लेख सभी को इतिहास की अनुपम झलक दिखाता है। महेश्वर का किला, घाट, मंदिरों तो अद्भुत, अकल्पनीय, अविश्वसनीय हैं। अमरकंटक के कल्चुरीकालीन मंदिर हों या बुरहानपुर का अजेय असीरगढ़ दुर्ग इनका कहना ही क्या। 

भारत की सबसे ज्यादा नदियों का उद्गम(Origin) एमपी ही है। नर्मदा, चंबल, सोन, बेतवा, केन, माही, पेंच, क्षिप्रा, तमस जैसी नदियों का उद्गम स्थल एमपी में ही है। इनके उद्गम स्थलों को देखना आनंद से भर जाना जैसा है। अमरकंटक तो तीन-तीन नदियों का उद्गम स्थल है जिनमें नर्मदा, सोन और जोहिला सोन शामिल हैं। वहीं तक चंबल नदी का उद्गम स्थल जानापाव तो बेहद सुंदर है। यही वह स्थान है जहां भगवान परशुराम ने तपस्या की थी। नदियों के उद्गम के अलावा एमपी में झरने भी ढेर सारे हैं। रीवा को झरनों का शहर कहना सही होगा यहां पूर्वा,बहुटी,चचाई जैसी कई झरने या फॉल है। इनके अलावा राहतगढ़, तिंचा,पातालपानी, कपिलधारा,दूधधारा, बीफॉल, डचेस फॉल, सहस्त्र धारा नाम से कई जलप्रपात (Falls) हैं। एमपी का एकमात्र हिल स्टेशन पचमढ़ी घूमने के लिए बेहद शानदार जगह है। सतपुड़ा पर्वत की सबसे ऊंची चोटी धूपगढ़ यहीं स्थित है यहां से सनराइज़ और सनसेट का आनंद लेना रोमांचक है। 

एमपी के चार सबसे बड़े शहर इंदौर, भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर अपनी चार कहानियां बयां करते हैं। एमपी का सबसे बड़ा शहर इंदौर मिनी मुंबई के नाम से जाना जाता है। एक समय ये होल्कर साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। यहां राजबाड़ा, कृष्णपुरा छतरी, मालवा पैलेस, गांधी भवन, शिव विलास पैलेस, बोलिया सरकार की छतरी, गोमटगिरी, बड़ा गणपति, महू का किला, जाम गेट, अंबेडकर जन्मस्थली देखने लायक हैं। भोपाल की बात करें तो राजा भोज की नगरी कहा जाता है क्योंकि दुनिया सबसे बड़ा मैनमेड स्ट्रक्चर बड़ी झील के रूप में यही है। भोपाल को झीलों का शहर भी कहा जाता है। एशिया का सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक ताजुल मस्जिद और दुनिया की सबसे छोटी मस्जिद ढाई सीढ़ी मस्जिद दोनों भोपाल में हैं। इनके अलावा गौहर महल, गोलघर, ताजमहल, मोती मस्जिद, जामा मस्जिद, इंदिरा गांधी मानव संग्रहालय जैसी कई जगह हैं। और हां कभी भोपाल जाएं तो ट्राइबल म्यूजियम जाना ना भूलें। 

जबलपुर एमपी का तीसरा सबसे बड़ा शहर जिसे सिटी ऑफ मार्बल भी कहा जाता है। ये शहर अपने धुंआधार जलप्रपात के कारण जाना जाता है। ये शहर कल्चुरी राजाओं से लेकर आधुनिक भारत के राजनेताओं का पसंदीदा शहर रहा है। यहां पंचवटी, ग्वारीघाट, तिलवाराघाट, चौंसठ योगिनी मंदिर, त्रिपुरसुंदरी मंदिर, मदन महल, डुमना नेचर पार्क, रानी दुर्गावती की समाधि स्थल है। एमपी का चौथा सबसे बड़ा शहर ग्वालियर कई सारी ऐतिहासिक विरासत को समेटे हुए है। इसे सिटी ऑफ जिब्राल्टर भी कहा जाता है। ग्वालियर का किला भारत के सबसे लंबे दुर्गों में शुमार है। ग्वालियर किले की लंबाई 3 किमी है जो इसे अनोखा बनाती है। किले के अलावा यहां इटेलियन गार्डन, जयविलास पैलेस, महाराजबाड़ा, महारानी लक्ष्मीबाई की समाधि आदि है। 

अब एमपी आएंगे तो चटपटा, खट्टा-मीठा, जायकेदार खाने का स्वाद जरूर लेकर जाएंगे। रीवा के चंद्रहार से लेकर इंदौर भुट्टे की किस तक, ग्वालियर की बेड़ई से लेकर बुरहानपुर की जलेबी तक सबकुछ एक नंबर है। इंदौर को चटोरों का शहर कहा जाता है। इसके अलावा इसे पोहे की राजधानी, नमकीन कैपिटल भी कहा जाता है। सुबह की शुरूआत पोहे से होती है और रात में सराफा में जाकर खत्म होती है। भोपाल का सींक कबाब हो या जबलपुर की मुंगोड़ी, ग्वालियर की चटपटी कचौड़ी हो या करेली का आलू बड़ा सबकुछ बेमिसाल है। दाल-बाटी चूरमा खाना बिल्कुल मत भूलना यदि भूल गए तो दाल-बाफले खा लेना। मुरैना की गजक कैसे भूल सकते हैं आप और फिर पेट पूजा हो जाए तो पुराने भोपाल का पान खाना मत भूलिएगा। 

अरे, जरा ठहरिए एक बात तो बताना ही भूल गया यदि आपको व्हाइट टाइगर देखना हो तो पूरी दुनिया में घूमने की जरूरत नहीं है। आप सीधे रीवा की मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी आ जाइए। 

एक बात तो पक्की है एमपी अजब है, एमपी गजब है। 

सोमवार, 15 जुलाई 2019

बारिश का जल 'वरदान'

तारीख 4 जुलाई 2019, जगह - गुरुग्राम, हरियाणा ; शहर को बारिश ने तरबतर कर दिया था। लगातार तीन घंटों की बारिश ने अव्यवस्था और बिना योजना के बनाए गए शहर की पोल खोल दी। गुरुग्राम से लेकर नोएडा तक पूरे एनसीआर का यही हाल है। बारिश के बाद रोड़ पर नाव चलाने जैसी हालत हो जाती है। भारत में औधोगिक दुनिया में धाक जमाने वाले ये शहर बारिश के आगे बेदम हो जाते है। बारिश में पानी-पानी होने वाले ये शहर छोटे-छोटे शहरों के लोगों को आकर्षित करते हैं क्योंकि ये रोजी-रोटी के लिए ये भारत के महत्वपूर्ण शहर हैं। लोगों की बढ़ती आबादी शहरों की कमर तोड़ रही है और जल व्यवस्था में कमी का कारण भी यही भीड़ है। लेकिन हम जल व्यवस्था में कमी को पूरी तरह से भीड़ और जनसंख्या वृद्धि से नहीं जोड़ सकते हैं। इस मामले में प्रशासन(Administration) को पाक-साफ नहीं कहा जा सकता। शासन और प्रशासन(government and administration) की असफल नीतियों का नतीजा ही है कि बारिश के समय शहरों में जलभराव  होता है।

आपने हर साल देखा होगा कि मुंबई में बारिश होती है और सड़कें तालाब बन जाती हैं। मानसून में करोड़ों लीटर पानी बह जाता है। घरों की छत से पानी छोटी नालियों और फिर नालों से होता हुआ सागर में समा जाता है। बारिश के इसी पानी को बचाने की जरूरत है। मैं इस लेख में दो मुद्दों पर बात करूंगा पहला स्वच्छ जल की आपूर्ति और जल भराव(water logging) का मुद्दा। बारिश के पानी से जलभराव के कई कारण हैं जिनमें नाले-नालियों की समय पर साफ-सफाई ना होना, रोड पर पानी निकासी की जगह ना होना, ड्रेनेज सिस्टम ना होना, रोड का डिजाइन सही ना होना, लोगों का जागरुक ना होना, सीवर सिस्टम का सही ना होना, अत्याधिक बारिश भी जलभराव का एक महत्वपूर्ण कारण है।

अत्याधिक बारिश से बाढ़ आती है ये तो सभी को मालूम है। सामान्य बारिश होने पर बारिश का पानी छतों से होता हुआ नालियों में बह जाता है और गंदा हो जाता है। बारिश के पानी को सहेजा जा सकता है। कई तरीकों से बारिश के पानी को सहेजकर हम सूखे की स्थिति को काफी हद तक कम कर सकते  हैं। ठंड का मौसम आने तक भारत के राजस्थान, मराठवाड़ा, विदर्भ, बुंदेलखंड, कच्छ में पानी के लिए मची चीख-पुकार सुनाई देने लगती है। गर्मियों के आने पर तस्वीर और भी ज्यादा भयावह हो जाती है। साल 2018 में शिमला के जलसंकट के बारे में सुनने को मिला जहां कुछ दिनों के लिए पानी बचा हुआ था। शिमला के आसपास के जलाशय सूख जाने से पानी की आपूर्ति(supply) में बहुत ज्यादा कमी आ गई। पर्यटकों को शिमला ना आने की हिदायत दी गई और निवासियों से कम से कम पानी के उपयोग के लिए प्रशासन ने गुजारिश की। साल 2019 में भी ऐसा ही एक और शहर हमारे सामने आया। उसका नाम था चेन्नई। चेन्नई शहर में लगभग 88 लाख लोग रहते हैं। पानी की कमी के कारण लोगों को भारी कष्ट उठाना पड़ा। लोगों को चेन्नई ना आने की हिदायत दी गई, रेस्टोरेंट में खाना परोसने के लिए पत्तल का उपयोग किया जाने लगा। चेन्नई में जलसंकट इतना बढ़ गया था कि एक ड्रम पानी की कीमत 2-3 हजार रुपये तक पहुंच गई थी। चेन्नई के लिए यह दुर्भाग्य की बात है कि पहली बार कोई रेलगाड़ी पानी लेकर चेन्नई पहुंची। लोगों ने तो चेन्नई को भारत का केप टाउन कहना शुरू कर दिया था।

केप टाउन दक्षिण अफ्रीका का शहर है। यह दक्षिण अफ्रीका की राजधानी भी है। इस शहर को 2018 में जीरो सिटी घोषित कर दिया गया था। जीरो सिटी से मतलब होता है कि जिस शहर में पानी बचा ही ना हो। केप टाउन में पीने के लिए भी पानी की किल्लत हो गई थी। दूसरे शहरों से पानी की कमी को पूरा किया गया। केप टाउन ने लीकेज की समस्या को दूर करके जलसंकट को 40 फीसदी तक कम कर दिया। यही बात भारतीय शहरों को  भी सीखना होगा। एक रिपोर्ट के अनुसार 2020 तक भारत के बीस शहरों का ग्राउंड वॉटर लेवल जीरो हो जाएगा। यदि यह सच हुआ तो हमारे लिए खतरे की घंटी है।

नरेंद्र मोदी ने दोबारा भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। मोदी सरकार 2 में एक नए मंत्रालय का गठन किया गया जिसका नाम  जल शक्ति मंत्रालय है। जल शक्ति मंत्रालय के गठन के पीछे मोदी सरकार की नीति जल संरक्षण और जलापूर्ति पर विशेष तौर पर है। संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने 2024 तक हर घर नल-हर घर जल की बात कही। इसके बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी बजट के दौरान 2024 तक हर घर नल-हर घर जल की बात को दोहराया। मुझे लगता है कि यह सब तो जरूरी है कि लोगों को साफ पानी मिले लेकिन कैसे? हमारी नदियां, तालाब, ग्राउंड वॉटर सूख रहा है तो जलापूर्ति कैसे होगी?

सरकार को सबसे पहला अपने जल स्त्रोतों को बचाना होगा।  नमामि गंगे जैसी योजना केवल गंगा तक सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि देश की अन्य नदियों के लिए भी इसी प्रकार की योजना लागू करना चाहिए। दक्षिण की दो सबसे बड़ी नदियां गोदावरी और कावेरी का गर्मियों में क्या हाल हुआ सब जानते हैं। तालाबों को पाटकर इमारतें बनाई जा रही हैं, कुओं को और ज्यादा गहरा करने की जगह उन्हें डस्टबिन बनाया जा रहा है। बावड़ियों को साफ ना करके उन्हें कचरे के ढेर में तब्दील किया जा रहा है। समय आ गया है कि हम आसपास के जल स्त्रोतों को बचाएं। कुओं की साफ-सफाई करवाकर गहरीकरण करवाया जाए, तालाबों का गहरीकरण किया जाए, बावड़ियों को  उनके पुराने स्वरूप में लाया जाए, नदियों को जोड़ने का काम जल्द से जल्द पूरा किया जाए, बड़े डैम की जगह छोटे डैम को तबज्जो दी जाए।

सबसे आखिर में बारिश के पानी का संग्रह किया जाए। रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को उपयोग में लाया जाए। नालियों में बारिश के पानी को बहने से रोका जाए। बारिश के पानी का ट्रीटमेंट करके पीने योग्य बनाया जाए। बारिश का पानी केवल बॉलीवुड के गानों की तरह भीगने पर मजा नहीं देता बल्कि इसके संग्रह से यह आपको कई महीनों तक के लिए जलापूर्ति करता है।

शुक्रवार, 31 मई 2019

सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र



लोकसभा चुनाव आखिरकार खत्म हुआ। सात चरणों में लोकसभा चुनाव का 23 मई को समापन हो गया। इस बार कई लोगों के लिए आंकड़े चौंकाने वाले रहे तो कई लोगों को सुकून देने वाले। इस बार एग्जिट पोल की भविष्यवाणी सच साबित हुई, यदि कुछ एग्जिट पोल को छोड़ दिया जाए तो। लगभग इस बार सभी एग्जिट पोल ने एनडीए को 350 के पार पहुंचाया था। एग्जिट पोल की डगर पर चलते हुए लोकसभा के नतीजे भी सच साबित हुए। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत पार्टी के तमाम नेता कहते थे कि पिछले बार मोदी लहर थी लेकिन इस बार मोदी की सुनामी है। अमित शाह स्वयं कहते थे कि बीजेपी 300 से अधिक सीटें लेकर आएगी और एनडीए 350 सीटें जीतेगी। बीजेपी ने 2014 को दोहराते हुए 2019 में एक बड़े आंकड़े तक पहुंच बनाई। इस बार के आम चुनाव के नतीजों में बीजेपी अपनी दम पर 303 सीटें लेकर आई है तो वहीं एनडीए का आंकड़ा 350 के पार पहुंच गया है।

2019 के आम चुनाव में मोदी इतनी सीटें लाने में कैसे सफल रहे? क्या मोदी के खिलाफ कोई एंटी इंकम्बेंसी नहीं थी? लोगों में मोदी के खिलाफ गुस्सा नहीं था? क्या मोदी से बड़ा नेता आज भारत में कोई नहीं है? विपक्ष इतना कमजोर है कि मोदी का मुकाबला कर पाने में सक्षम नहीं है? इस पूरे परिदृश्य में जो चीज उभरकर सामने आती है वो यह है कि इस बार पॉलिटिकल पंडितों की सारी भविष्यवाणियां फेल हो गईं है। मैं इस लेख में बीजेपी की जीत पर प्रकाश डालूंगा। तथ्यों को सामने लाने की कोशिश करूंगा।

सबसे पहले मैं बात करूंगा नरेंद्र मोदी की छवि की। मोदी की छवि के कारण कहीं ना कहीं बीजेपी को फायदा मिला है। 2014 के बाद मोदी और बड़ी छवि बनकर उभरे हैं। आज के समय में कहा जाए तो मोदी से बड़ा नेता देश में कोई दूसरा नहीं है। केंद्र में सरकार बनाने के बाद नरेंद्र मोदी ने कई ऐसे काम किए जिसने मोदी की छवि बदलने का काम किया। मोदी के इन कामों में सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, अभिनंदन की रिहाई, मसूद अजहर को ग्लोबल आंतकी घोषित करवाना, स्वच्छ भारत अभियान, 21 जून को योग दिवस घोषित करवाना जैसे मुद्दे शामिल हैं। इन कामों ने मोदी की छवि को बड़े से और बड़ा कर दिया। नरेंद्र मोदी की बोलने की कला और भाषण के दौरान लोगों से जुड़ने की कला, मोदी को लोगों के नजदीक लेकर गई। मोदी देश के जिस भी हिस्से में जाते हैं वहां की भाषा के शब्दों को अपने भाषण में शामिल करते हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने 5 साल के दौरान हर महीने के आखिरी रविवार को मन की बात करते हुए लोगों से उन्होंने जुड़ाव बनाए रखा। इसके अलावा शिक्षक दिवस के दिन छात्रों से बात करते थे।

नरेंद्र मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 146 रैलियां की। पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक पीएम ने रैलियां की। मेरठ से अपनी चुनावी सभा की शुरूआत करके एमपी के खरगोन में अपनी चुनावी अभियान को विराम दिया। कांग्रेस का 'चौकीदार चोर है' वाले बयान को लेकर पीएम ने अपनी हर रैली में कांग्रेस पर चौकीदार नाम का बम फोड़ा। ट्विटर पर अपने नाम के आगे चौकीदार लगाकर चौकीदार वर्ग का वोट समेट लिया। कांग्रेस के साथ-साथ महागठबंधन और टीएमसी को इस चुनाव में मोदी ने आड़े हाथों लिया। जहां महागठबंधन को महामिलावट कहा तो वहीं ममता बनर्जी को स्पीड ब्रेकर कहा। इन सब में सबसे बड़ी बात यह रही की इस बार बीजेपी कांग्रेस से भी ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही थी। बीजेपी ने 2019 का आम चुनाव 435 सीटों पर लड़ा। बीजेपी ने भले ही 435 सीटों पर चुनाव लड़ी लेकिन प्रत्याशी केवल एक ही था वो है 'मोदी'। बीजेपी ने पिछला आम चुनाव मोदी लहर के नाम पर लड़ा था लेकिन यह चुनाव बीजेपी ने मोदी के नाम पर लड़ा। बीजेपी नेता कहते भी थे कि पिछले चुनाव में मोदी लहर थी तो इस बार मोदी की सुनामी है।

विपक्ष हमेशा कहता था कि पीएम मोदी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करते, इंटरव्यू नहीं देते, पीएम हमेशा वन-वे कम्यूनिकेशन करते हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने इस चुनाव में इंटरव्यू के साथ-साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीवी से लेकर प्रिंट तक सभी को इंटरव्यू दिया। आखिरी चरण के चुनाव प्रचार के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की। इस बार प्रधानमंत्री मोदी ने पॉलिटिकल इंटरव्यू के साथ-साथ नॉन-पॉलिटिकल इंटरव्यू भी दिया। इसके अलावा मोदी ने कई रोड शो भी किए जिसमें काशी में किया रोड शो भव्य था।

बीजेपी की इस शानदार जीत के पीछे एक बहुत बड़ा कारण है मोदी-शाह की जोड़ी। पिछले आम चुनाव की तरह इस चुनाव में भी मोदी-शाह की जोड़ी ने कमाल कर दिखाया। पॉलिटिकल पंडित कहते थे कि बीजेपी को सरकार बनाने के लिए दूसरे दलों की जरुरत पड़ेगी। दोनों की जोड़ी ने इस बात को नकार दिया। अमित शाह को बीजेपी का चाणक्य कहा जाता है। अमित शाह ने शिवसेना को मनाने का काम किया, जेडीयू को फिर से एनडीए में लाने का श्रेय भी अमित शाह को जाता है। अमित शाह ने नरेंद्र मोदी से 17 रैलियां ज्यादा करके लोगों तक पहुंच बनाई। बूथ मैनेजमेंट और लोगों को बीजेपी से जोड़ने का काम अमित शाह ने किया। नरेंद्र मोदी की बिजनेस मैन, फिल्मी सितारों के साथ बैठक आदि भी अमित शाह के दिमाग की उपज है। बीजेपी ने राजस्थान, बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखंड, तमिलनाडु, महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन किया। तमिलनाडु को यदि छोड़ दिया तो बाकी राज्यों में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया। अमित शाह की रणनीति के काऱण आज बंगाल में बीजेपी 18 सीटें लाने में सफल रही है। इस चुनाव में बीजेपी का फोकस यूपी और बिहार ना होकर पश्चिम बंगाल और ओडिशा था। इन दोनों राज्यों में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया। बीजेपी अध्यक्ष होने के नाते अमित शाह ने बीजेपी को सशक्त बनाया बल्कि एनडीए को भी और ज्यादा मजबूत किया। बीजेपी की इस धुंआधार जीत के पीछे प्रचार-प्रसार का अहम योगदान रहा। इसमें कोई शक नहीं है कि बीजेपी ने इस चुनाव में प्रचार में सबसे ज्यादा पैसे खर्च किए हैं। सोशल मीडिया से लेकर ग्राउंड जीरो तक बीजेपी ने खूब पैसे बहाए। इस चुनाव में बीजेपी का चुनाव प्रचार विवाद का विषय रहा। नमो टीवी को लेकर विपक्ष बहुत आक्रामक रहा। व्हाट्सएप ग्रुप से लेकर फेसबुक और व्यक्तिगत रूप से फोन करके लोगों को बीजेपी के पक्ष में लाने का प्रयास बीजेपी ने किया। बीजेपी के साथ अपार जनसमर्थन जुड़ने के पीछे एक कारण और भी है।

सरकार की योजनाओं को घर-घर तक पहुंचाना और उनका प्रचार-प्रसार करना। उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय का निर्माण करवाना। जिन परिवारों के पास ये सारी सुविधाएं नहीं थी यदि उऩको यह सब मिलता है तो व्यक्ति-व्यक्ति का लाभ पहुंचाने वालों को ही जाएगा।
कमजोर विपक्ष का होना भी बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हुआ। 2014 के अपेक्षा बीजेपी 2019 में और बड़ी पार्टी बनकर उभरी। 2014 में बीजेपी को अपने दम पर जहां 282 सीट मिली थीं तो वहीं 2019 में बढ़कर 303 हो गईं। विपक्ष और कमजोर हो गया। ऐसा कहना गलत वहीं होगा कि विपक्ष ने कोई प्रयास ही नहीं किया। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को 2014 के आम चुनाव में 44 सीटें मिली थीं तो 2019 में यह मामूली बढ़त के साथ 52 हो गईं। इन सबमें सबसे बड़ी बात यह है कि देश के सबसे बड़े सियासी सूबे में कांग्रेस सिमटकर एक पर आ गई।  17 राज्यों में कांग्रेस खाता तक नहीं खोल पाई। बिहार जैसे राज्य में एनडीए ने 40 में से 39 सीटें जीतने में कामयाब रही। पश्चिम बंगाल में बीजेपी दो से 18 सीटों वाली बनी तो वहीं ओडिशा में बीजेपी एक से आठ पर पहुंच गई।  कई राज्यों में बीजेपी क्लीन स्वीप करने में कामयाब रही जिनमें राजस्थान, गुजरात, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ जैसे राज्य शामिल हैं। 2019 का आम चुनाव कई दिग्गजों की हार वाला चुनाव रहा जिसमें दिग्विजय सिंह, शरद यादव,  राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुशील कुमार शिंदे, नबाम टुकी जैसे बड़े-बड़े नाम धराशायी हो गए। 

विपक्ष ने मेहनत की या नहीं की इसका कोई मतलब नहीं क्योंकि बीजेपी ने बाजी मार ली है। नरेंद्र मोदी में एक बात बहुत खास है कि वे विपक्ष के मुद्दे को कैच कर लेते हैं।  2017 के गुजरात चुनाव में मणिशंकर अय्यर ने पीएम मोदी को नीच कहा था।  इस बयान को पीएम मोदी ने इतना प्रचार किया कि कांग्रेस को इसका भुगतान भुगतना पड़ा। 2019 के आम चुनाव में राहुल गांधी ने चौकीदार चोर है नारा लगवाया तो नरेंद्र मोदी ने ट्विटर हैंडल पर अपना बदल कर चौकीदार नरेंद्र मोदी कर दिया। राहुल गांधी के द्वारा उठाए गए भष्ट्राचार के मुद्दे को पलटकर बोफोर्स तक ले गए।  सैम पित्रोदा के सिख दंगों पर दिए हुआ तो हुआ वाले बयान पर पीएम ने आधी जंग ही जीत ली।

कहते हैं कि चुनाव में जातीय समीकरण मायने रखते हैं। पार्टियां अपने उम्मीदवारों को जातीय आधार पर उतारती है।  इस चुनावी में सारे जातीय समीकरण लोधी-कुर्मी, एम-वाय, सवर्ण-दलित सभी समीकरण फेल हो गए। इस बार राष्ट्रवाद का मुद्दा हावी रहा। राष्ट्रवाद के साथ-साथ आतंकवाद का मुद्दा हावी रहा। सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक ने इसे और हवा दी। 

जिस तरह सुनामी में सब कुछ तबाह हो जाता है ठीक उसी तरह मोदी नाम की सुनामी में 2019 में विपक्ष बह गया। 
BY_vinaykushwaha

सोमवार, 20 मई 2019

आम और ये मैंगो पीपुल!


आज जब मैं यह पोस्ट लिख रहा हूं तो 2019 का आम चुनाव खत्म हो चुका है। आम चुनाव खत्म होने के साथ ही देश भर में चुनाव प्रचार का शोर थम चुका है। अब सबकी नजर 23 मई को आने चुनाव के नतीजे पर हैं। यह पोस्ट नॉन पॉलिटिकल है जिस तरह प्रधानमंत्री का इंटरव्यू नॉन पॉलिटिकल था। अभिनेता अक्षय कुमार के सवाल का जवाब देते पीएम बड़े ही मासूम नजर आ रहे थे। आम की कहानी तो उन्होंने इस तरह बताई की मुझे अपने बचपन के दिन ध्यान आ गए क्योंकि हम भी लग्जरी में पले-बढ़े नहीं हैं। पत्रकार रवीश कुमार को तो बाकायदा प्राइम टाइम ही आम करना पड़ा। आम सफेदा हो या लंगड़ा, बादाम हो या दशहरी यही बताना पड़ा। गर्मी के मौसम में आम और आम से बने जूस आदि का आनंद हर व्यक्ति उठाता है। मैंने बचपन से लेकर आजतक बादाम, केसरी, तोतापरी, नीलम, लंगड़ा, दशहरी, चौसा, मोती, कल्मी, गोविंदगढ़ का आम खाया है। बचपन में हमने भी आम तोड़कर खाया है। हम भी प्रधानमंत्री बने तो कोई हमसे पूछे कि क्या आप भी आम खाते हैं? मेरा जवाब तैयार होगा हां, हमारी फैमिली में ऐसी कोई लक्जरी तो नहीं कि हम आम खरीद कर खा पाएं।

मैं नहीं जानता कितने लोगों ने अपनी जिंदगी गांव में बिताई है या गांव में रहकर गांव के जीवन को करीब से देखा है। मेरे पिताजी गांव से निकलकर शहर में नौकरी करने चले गए। शहर का जीवन मैंने जीया है लेकिन गांव को मैंने करीब से देखा है। गर्मी में स्कूल के छुट्टी के दरम्यान हम (हम मतलब मम्मी, भइया और मैं) गांव का रुख करते थे। सीधी-सीधी बात कहूं तो गांव का जीवन चले जाते थे। चूल्हे पर पकी चाय का सौंधापन क्या शानदार लगता था। मैंने चाय बेची नहीं है। हंडी में पकी दाल और हाथों से पोई रोटी का स्वाद जो गांव के खाने में था आज मैं याद करता हूं। उस खाने को भुलाया नहीं जा सकता है। आकाश तले रात गुजारना और दिन में बिजली आने का इंतजार करना दोनों का एक सुखद अनुभव था। गर्मी के दिनों में खाट पर सोना और कुत्तों के भौंकने की तेज आवाज आज भी याद आती है। खेत के किनारे खाट डालकर सोने का अनुभव तो और भी शानदार था। रात में फसल को छूकर आने वाली हवा गर्मी की उजाले वाली रात को और भी ठंडा कर देती थी।

मेरे गांव के घर में एक बारी थी। जो लोग बारी के बारे में कुछ नहीं जानते तो उनको बताता चलूं कि बारी एक ऐसी जगह होती है जिसे हम छोटा-सा बगीचा कह सकते हैं। गांव वाली बारी में एक छोटा-सा घर था जिसमें दादा-दादी रहते थे। इसी घर से दो कदम की दूरी पर एक बड़ा-सा कुंआ था। गर्मियों में इसी कुंए से पानी निकालकर हम ठंडा-ठंडा पानी पिया करते थे। गांव की बारी में कटहल (jack fruit), करौंदा, नींबू, सीताफल (custard apple) और आम के पेड़ थे। हम जब भी गांव जाते थे तो आम के पेड़ पर चढ़कर आम खाते थे क्योंकि हमारे पास कोई लक्जरी तो थी नहीं। दादी अक्सर खटिया पर अमावट बनाती थी। अमावट को शायद ही आजकल के लोग जानते हों। अमावट पके हुए आम का गूदा निकालकर उसे खटिया में चादर बिछाकर एक परतदार के रूप में आकार दिया जाता है। मैं बघेली हूं और हमारे यहां आम और आम से बनीं चीजों का बहुत इस्तेमाल किया जाता है। आम चाहे कच्चा हो या पका दोनों का इस्तेमाल बराबर होता है।

मैं जब छोटा था तो मई-जून के महीने में तूफान बारिश होने पर कैरियां गिर जाती थीं। मैं और मेरे दोस्त कैरियां अपनी टी-शर्ट में भरकर घर ले जाते थे। कई बार तो पत्थर मारकर,बांस की लग्गी बनाकर कैरी तोड़ी हैं क्योंकि हमारे पास कोई लक्जरी तो थी नहीं। कैरी बड़े काम का फल है। बघेली लोग कैरी की सब्जी, कैरी की कढ़ी, कैरी की चटनी, कैरी का पना, कैरी से आचार, कैरी को सुखाकर अमचूर बनाते हैं। कैरी से बने कई सारे पाकवान के बारे में लोग जानते हैं लेकिन डिश जो बघेली बड़े चाव से खाते हैं वो है 'बगजा'। बगजा, कैरी से बनता है। कैरियों को उबाला जाता है। कैरी का गूदा निकाला जाता है। इस गूदे में गुड़ मिलाया जाता है इसके साथ नमक,भुना जीरा मिलाया जाता है। इसके बाद बेसन का घोल तैयार करके सेंव बनाया जाता है। गूदे को सरसों के तेल में खड़ी लाल मिर्च, जीरा, खड़े मसाले के साथ छौंक लगाया जाता है। इस छौंक में सेंव को मिलाया जाता है, इसे कहते हैं 'बगजा'। बघेली इस डिश को बड़े चाव से खाते हैं और मैं भी क्योंकि हमारे पास कोई लक्जरी तो थी नहीं।

जैसे-जैसे बड़े होते गए तो आम खाने का तरीका बदलता गया। पहले तो हमें केवल रीवा के गोविंदगढ़ का आम और दशहरी पता था। जैसे-जैसे बड़े होते गए वैसे-वैसे आम के नए-नए नाम भी पता चलते गए। मैं मध्यप्रदेश से हूं। एमपी से यूपी तक आते-आते आम का राजा भी बदल गया। एमपी में जहां बादाम आम का राजा था तो वहीं यूपी आने के बाद आम का राजा सफेदा हो गया। आम रस तो बचपन में भी पीते थे। आमरस के साथ दाल की रोटी खाने का आनंद तो सच्चा बघेली ही जान सकता है। बचपन में आम का रस निकालकर हम उसमें काजू,किशमिश,बादाम, दूध और थोड़ी शक्कर मिलाकर फ्रिज में जमने के लिए रख देते थे। यही हमारे लिए आइसक्रीम थी। अब तो केवल दुकानों में ही मैंगो फ्लेवर वाली आइसक्रीम खाना होता है। आम रस के नाम पर बाजार में दस-पांच रुपये में मिल रहे मैंगो जूस को पीकर अपने आप को तृप्त करते हैं।

आम को फलों का राजा कहा जाता है। आम सच में फलों का राजा होने लायक है भी क्योंकि आम खाने के लिए किसी प्रकार की लक्जरी की जरूरत नहीं है। एक आम इंसान से लेकर अमीर तक आम को खाता है। मैंने आज तक आम खाने के लिए किसी व्यक्ति को कहते हुए नहीं सुना कि हमारे पास लक्जरी तो थी नहीं, सिवाय एक के। आम के लिए अब तो एक मौसम विशेष तक रुकने की जरुरत भी नहीं है क्योंकि अब आम बारहमासी हो गया है। जब मन करे आम खरीदो और खाओ। आम की टक्कर आज कीवी, ड्रेगन फ्रूट, आवोकाडो से हो गई है। मेरे लिए तो आम ही 'द बेस्ट' है जिसके लिए लक्जरी की जरुरत नहीं पड़ती है। हां मैंने आज तक मैंगो लस्सी का स्वाद नहीं चखा है। मैंगो लस्सी का स्वाद तो मैं कभी चख लूंगा लेकिन इसके लिए मैं लक्जरी को दोष नहीं दूंगा। मैंगो लस्सी के एवज में मैंने मैंगो फ्लेवर वाली टॉफी जरूर खाई है। पता नहीं और क्या बाकी है और क्या नहीं लेकिन मेरे हिसाब भारत का कोई भी वर्ग हो उसे आम खाने के लिए लक्जरी की जरुरत नहीं है।  आम की तरह हम भी तो मैंगो पीपुल(mango people) हैं।

मंगलवार, 14 मई 2019

लद्दाख के निर्माता - कुशोक बकुला रिम्पोछे



जम्मू कश्मीर के लद्दाख को अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है। हिमालय की ऊंची-ऊंची पर्वतश्रृंखला, बौद्ध मठ और दूर-दूर तक फैली शांति सभी को लद्दाख आकर्षित करती है। लद्दाख की चीन की सीमा से करीबी सुरक्षा की दृष्टि से डर पैदा करता है। लद्दाख में इस डर का सबसे पहले जिक्र कुशोक बकुला रिम्पोछे ने किया था। कुशोक बकुला रिम्पोछे को आधुनिक लद्दाख का निर्माता कहा जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने लद्दाख में एयरपोर्ट का उद्घाटन किया तो उन्होंने कुशोक बकुला रिम्पोछे को आधुनिक लद्दाख का निर्माता कहा था। कुशोक बकुला रिम्पोछे का जन्म 19 मई 1917 में लद्दाख में हुआ था। कुशोक बकुला का असली नाम लोबजंग थुबथन छोगनोर था। असलियत में कुशोक बकुला को भगवान बुद्ध के सोलह अर्हतों में से एक माना जाता है। बकुला भगवान बुद्ध के समकालीन थे और उन्हें बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए स्वयं भगवान बुद्ध ने कहा था। बकुला के उन्नीसवें अवतार को कुशोक बकुला रिम्पोछे के नाम से जाना जाता है।

कुशोक बकुला की शिक्षा-दीक्षा तिब्बत में हुई थी। तिब्बत में कुशोक ने चौदह वर्षों तक बौद्ध धर्म का अध्ययन किया और शिक्षा पूरी की। लद्दाख के साथ-साथ उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार विदेशों में भी किया। लद्दाख के गांव-गांव में जाकर उन्होंने बुद्ध और उनकी शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने का काम किया। भारत के विभिन्न हिस्सों में जाकर उन्होंने बुद्ध के बचनों को लोगों तक पहुंचाया। मंगोलिया जाकर बकुला ने बौद्ध धर्म को फिर से जागृत करने का काम किया। मंगोलिया को ईसाई धर्म के मिशनरियों से बचाकर उन्होंने बौद्ध धर्म की पताका मंगोलिया में लहराने दी। 1996 में ब्रिटेन में मजहबों और पर्यावरण संरक्षण सम्मेलन में भारत से कुशोक बकुला रिम्पोछे और स्वामी चिदानंद गए थे। कुशोक ने इस सम्मेलन में ईसाई मिशनरियों के बारे में काले सच को उजागर किया कि कैसे ईसाई मिशनरी लोगों से जबरन धर्म परिवर्तन करा रहे हैं और ईसाई धर्म कबूल करवाने पर मजबूर कर रहे हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से निवेदन किया की भगवान बुद्ध के दो शिष्यों सारिपुत्त और महामोदगलायन के अस्थि अवशेषों को लद्दाख लाया जाए। इस निवेदन को जवाहर लाल नेहरू ने स्वीकार और महाबोधि सभा की देखरेख में लेह में ले जाया गया। यहां ढ़ाई महीने तक लोगों ने अस्थि अवशेषों के दर्शन किए।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान की ओर से गतिविधियां बढ़ गईं तो उन्होंने इस पर चिंता जाहिर की। पंडित जवाहर लाल नेहरू से इस बात को साझा किया। तत्कालीन जम्मू कश्मीर के राजा डॉ हरिसिंह के निर्णय के खिलाफ कुशोक ने नाराजगी जताई थी। हरिसिंह ने जम्मू कश्मीर को अलग देश बनाने की मांग रखी थी। जम्मू कश्मीर को जब भारत का अंग बनाया गया तब कुशोक बकुला ने यह आशंका जताई थी कि पाकिस्तान के कबीले और सेना जम्मू कश्मीर को अस्थिर करने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कारगिल को बेहद संवेदनशील इलाका कहा था और लद्दाख को मुख्य धारा से जोड़ने की बात कही थी। कुशोक बकुला लद्दाख की आधारभूत संरचना(fundamental development)बारे में कहते थे। जब वे लद्दाख से विधायक बने तो केवल विधायक ही नहीं बने बल्कि उन्होंने लद्दाख को वो सबकुछ देने की कोशिश की जो एक पिता करता है। शेख अब्दुल्ला की सरकार में उन्हीं की पार्टी से विधायक होते हुए उन्होंने लद्दाख को दी जा रही धनराशि के बारे में प्रश्न उठाया। जम्मू कश्मीर की विधानसभा में उन्होंने लद्दाख को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए आधारभूत संरचना को मजबूत करने, आधुनिक शिक्षा पद्धति लागू करने, विश्वविद्यालय और कॉलेज खोलने की बात कही। इसके साथ-साथ उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार को कभी बाधक नहीं बनने दिया।

लद्दाख में बोली जाने वाली भोटी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में  शामिल करने के लिए संघर्षरत रहे। जम्मू कश्मीर सरकार में विधायक रहते हुए उन्होंने सरकारी कामकाज की भाषा अंग्रेजी और उर्दू का विरोध किया। उनका कहना था कि अंग्रेजी और उर्दू दोनों कश्मीर की भाषा नहीं हैं इसकी जगह पर डोगरी,कश्मीरी या भोटी को शामिल किया जाना चाहिए। कुशोक बकुला कहते थे कि भोटी भाषा लद्दाख से अरुणाचल तक बोली जाती है और इस भाषा को बोलने वालों की संख्या 5 लाख है। अरुणाचल सरकार ने बाद में भोटी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए एक प्रस्ताव भी पारित किया था। ऐसा नहीं था कि उन्होंने और प्रयास नहीं किए। जब वे सांसद बने तो उन्होंने संसद में इस मुद्दे के साथ-साथ लद्दाख के विकास के मुद्दे को भी उठाया था। संसद के सदन में कुशोक बकुला ने उन रुपयों का जिक्र भी किया जो लद्दाख के विकास के लिए भेजे जाते थे। उनका कहना था कि लद्दाख के लिए जो धनराशि जारी की जाती है वो धनराशि लद्दाख तक पहुंचती नहीं है।

तिब्बत के जनसामान्य के बीच दलाई लामा का जितना महत्व है ठीक उसी तरह लद्दाख वासियों के लिए कुशोक बकुला रिम्पोछे का महत्व था। कुशोक बकुला के जीवन में तिब्बत का विशेष स्थान था। तिब्बत में उन्होंने शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की और जीवन जीने की कला भी उन्होंने तिब्बत से ही सीखी थी। कुशोक बकुला, चौदहवें दलाई लामा के बारे में चिंतित रहते थे। सन 1956 में भारत सरकार ने भगवान गौतम बुद्ध की 2500वीं जयंती मनाने का निर्णय लिया। इस अवसर पर भारत सरकार ने एक प्रतिनिधिमंडल का गठन किया। इस प्रतिनिधिमंडल का काम था तिब्बत जाकर दलाई लामा और पंचेन लामा का समारोह के लिए आमंत्रित करना। इस प्रतिनिधिमंडल का अध्यक्ष कुशोक बकुला रिम्पोछे को बनाया गया। कुशोक हमेशा से ही तिब्बत की सलामती के बारे में सोचते थे। कुशोक बकुला तिब्बत को एक राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे। उनका कहना था कि यदि तिब्बत एक राष्ट्र के रूप में उभरता है तो यह चीन और भारत के बीच बफर जोन की तरह काम करेगा। वे हमेशा चीन की तरफ से आने वाले संकट की ओर इशारा करते थे। शायद उन्हें पहले ही ज्ञात हो गया था कि चीन ,भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़ कर कायराना हरकत करेगा। सन् 1959 में तिब्बत में हालात बेहद नाजुक हो गए थे। चीन सरकार जबरदस्ती तिब्बत वासियों को नास्तिकता की ओर धकेल रही थी। इसी समय चौदहवें दलाई लामा को भारत लाया गया।

दलाई लामा और उनके साथ आए अनुयायियों को बसाने की जिम्मेदारी कुशोक बकुला ने अपने हाथ ले ली थी। सरकार की तरफ से तिब्बतियों को बसाने के लिए 1200 एकड़ जमीन दी गई। कुशोक बकुला रिम्पोछे ने  तिब्बतियों को जल्द से जल्द बसाने का काम करने के लिए उन्होंने भारत सरकार को पत्र लिखा। कुशोक बकुला, दलाई लामा के साथ कई बौद्ध समारोह में हिस्सा लिया। दलाई लामा और कुशोक बकुला साथ में मंगोलिया भी गए थे। दलाई लामा ने वहां पर ईसाई मिशनरी द्वारा किए जा रहे कार्य की सराहना की लेकिन कुशोक बकुला इस व्यक्तव्य के साइड इफेक्ट को समझ गए थे। उन्हें पता था कि दलाई लामा की बात का ईसाई मिशनरी फायदा उठाएंगे। ऐसा इसलिए था क्योंकि साम्यवादी विचारों को मंगोलिया पर थोपा जा रहा था। चीन, मंगोलिया को ईनर मंगोलिया कहकर चीन का हिस्सा का बताता था।

जब मंगोलिया के वे राजदूत बने तो उन्होंने अपने आपको दूसरा भिक्खू कहकर संबोधित किया। भारत से पाकिस्तान और चीन के रिश्ते हमेशा ठीक नहीं रहे। सन् 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण करके लद्दाख का कुछ हिस्सा छीन लिया। इस हिस्सा को चीन, अक्साई चीन कहता है। कुशोक बकुला ने हमेशा से चीन तरफ से आने वाले संकट की ओर इशारा किया था। वहीं वे आतंरिक शांति पर जोर देते थे। कुशोक बकुला का कहना था कि शांत रहकर बड़े से बड़ा काम किया जा सकता है। शेख अब्दुल्ला की सरकार में विधायक रहते हुए उन्होंने जम्मू कश्मीर विधानसभा में लद्दाख के संदर्भ में जोरदार भाषण दिया। कुशोक बकुला का भाषण भोटी भाषा में था। इस भाषण का सदन के कई सदस्यों ने भाषण की भाषा को लेकर सवाल उठाया। कुशोक बकुला ने इस भाषण में लद्दाख के विकास को लेकर शेख अब्दुल्ला सरकार को जो लताड़ लगाई उससे तो स्वयं शेख अब्दुल्ला को बगले झांकने पर मजबूर होना पड़ा। शेख अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर में एक कानून बनाया जिसमें कोई भी 22 एकड़ से ज्यादा जमीन नहीं रख सकता था। इस कानून का कुशोक बकुला ने विरोध किया। इस कानून से मोनेस्ट्री का नुकसान होता।

भगवान गौतम बुद्ध की 2545वीं जयंती पर लद्दाख में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। पूरे देश से लोग कुशोक बकुला से मिलने और आशीर्वाद लेने आए। अपनी आखिरी मंगोलिया यात्रा के दौरान उन्हें निमोनिया हो गया। मंगोलिया में ट्रीटमेंट और अस्पताल की ठीक व्यवस्था ना होने के कारण उन्हें एयर एंबुलेंस से चीन की राजधानी बीजिंग ले जाया गया। बीजिंग में कुशोक बकुला की तबीयत सुधरने के जगह और बिगड़ने लगी। कुशोक बकुला को बीजिंग से नई दिल्ली लाया गया और एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया। समय को जो मंजूर होता है वही होता है। दिल्ली आने के बाद भी कुशोक बकुला की तबीयत सुधरी नहीं और चीवरधारी यह प्रखर व्यक्तिव्य इस दुनिया को छोड़कर चले गया।


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सोमवार, 29 अप्रैल 2019

चुनाव आयोग की लाठी में आवाज नहीं होती है...




भारत में चुनाव आयोग एक महत्वपूर्ण संस्था है। चुनाव आयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 के तहत काम करता है। संविधान के तहत काम करने के कारण न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका को चुनाव आयोग की बातों पर गौर करना होता है। चुनाव आयोग का सबसे महत्वपूर्ण कार्य देश में समय-समय पर चुनाव करवाना और राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह देने के साथ-साथ उन्हें राष्ट्रीय,क्षेत्रीय और राज्य की राजनीतिक पार्टियों में विभाजित करना है। चुनाव आयोग को लोग कई बार बिना दांत का शेर कह देते हैं क्योंकि चुनाव आयोग दहाड़ तो देता है लेकिन कार्रवाई नहीं करता है। चुनाव के समय चुनाव आयोग का महत्व बढ़ जाता है। ये काफी हद सही है। 2019 आम चुनाव में चुनाव आयोग की कार्रवाई को देखकर तो बिल्कुल नहीं लगता कि चुनाव आयोग बिना दांत का शेर है।

चुनाव आयोग ने 2019 के आम चुनाव में बता दिया कि उसके पास क्या अधिकार हैं और वह क्या कर सकता है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर बनी फिल्म पर चुनाव आयोग ने रोक लगी दी। चुनाव आयोग का कहना था कि इससे एक पार्टी विशेष को फायदा होगा। जब फिल्म पर रोक लगाई गई तो फिल्म के निर्माता सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट में निर्माताओं ने यह दलील दी की चुनाव आयोग ने बिना फिल्म देखे फिल्म पर रोक लगा दी। इस पर सु्प्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि आपको फिल्म देखना चाहिए। चुनाव आयोग के अधिकारियों ने फिल्म देखी और फिल्म के कुछ डायलॉग पर आपत्ति जता दी। आखिरकार परिणाम क्या हुआ? फिल्म पर बैन बरकरार है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि चुनाव आयोग द्वारा फिल्म पर रोक लगाई है इसमें कोई दखल नहीं दे सकते। यानि फिल्म अब 19 मई के बाद ही रिलीज होगी।

बात केवल फिल्म की नहीं है बल्कि वेब सीरीज और ऑनलाइन टीवी की भी है। चुनाव आयोग ने तमाम वेबसाइट पर उपलब्ध प्रधानमंत्री से संबंधित फिल्म जो वेबसाइट पर हैं उन पर भी बैन लगा दिया है। इसके अलावा नमो टीवी पर आंशिक बैन लगा दिया। इस टीवी  में लाइव प्रोग्राम का प्रसारण किया जा सकता है लेकिन मतदान से 48 घंटे पहले तक किसी भी प्रकार के रिकॉर्डेड प्रोग्राम का प्रसारण नहीं कर सकते। नमो टीवी एक ऑनलाइन टीवी चैनल है जिस पर प्रधानमंत्री के भाषण और बीजेपी से जुड़ी जानकारियां प्रसारित की जाती हैं। इन सब पर बैन लगाकर जता दिया की चुनाव आयोग क्या कर सकता है? इसके अलावा ममता बनर्जी पर बनी फिल्म 'बाघिनी' के ट्रेलर पर चुनाव आयोग ने रोक लगा दी। ममता बनर्जी पर बनी फिल्म का ट्रेलर पांच वेबसाइट पर रिलीज होना था।

हाल ही में आयकर विभाग ने दिल्ली और मध्यप्रदेश के कई ठिकानों पर आयकर छापेमारी की। इसे विपक्षी दल कांग्रेस ने बदले की कार्रवाई कहा। चुनाव आयोग ने इस पर संज्ञान लेते हुए आयकर विभाग से कहा कि किसी भी छापेमारी से पहले चुनाव आयोग को इस बाबत जानकारी दे। इस पर आयकर विभाग ने कहा कि हमें इस बात की जानकारी है कि आदर्श आचार संहिता के दौरान चुनाव आयोग को लूप में लिया जाना है। इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि जब आपको जानकारी थी तो आपने इसका पालन क्यों नहीं किया?

चुनाव आयोग इस बार सख्ती बरतने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। सोशल मीडिया पर होने वाले प्रचार पर भी चुनाव आयोग की गिद्ध दृष्टि है। चुनाव आयोग का कहना है कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा सोशल मीडिया पर प्रचार के लिए खर्च की गई राशि को भी जोड़ा जाएगा। ऐसा करना चुनाव आयोग ने अनिवार्य कर दिया है। यदि कोई राजनीतिक पार्टी या राजनेता चुनाव आयोग का कहना नहीं मानते तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। चुनाव आयोग ने 628 कंटेंट सोशल मीडिया से हटाए। इन कंटेंट में सबसे ज्यादा 574 फेसबुक पेज हैं। गूगल, फेसबुक, व्हाट्एप चुनाव प्रचार के लिए प्राथमिकता की सूची में हैं। चुनाव आयोग ने भी इन सोशल साइट्स को भी निर्देश दिया है कि ऐसी किसी भी प्रकार का कंटेंट अपनी साइट्स में ना रखें जिससे चुनाव प्रचार के साथ-साथ वैमनस्यता फैलाई जा रही हो।

तेलंगाना के 62 उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति का सही ब्यौरा नहीं दिया तो चुनाव आयोग ने उनका नामांकन ही रद्द कर दिया। नामांकन में विसंगतियां पाए जाने के बाद चुनाव आयोग ने कई उम्मीदवारों के नामांकन रद्द कर दिए हैं। नामांकन रद्द करने के पीछे कारण केवल चुनाव आयोग द्वारा अपनी उपस्थिति दर्ज कराना नहीं है बल्कि चुनाव प्रक्रिया को 'स्पष्ट और निष्पक्ष' बनाना है। चुनाव आयोग ने cVIGIL नाम से गूगल प्ले स्टोर पर एक एप उपलब्ध कराई है। इस एप की सहायता से आप जिस निर्वाचन क्षेत्र में रहते हैं उस निर्वाचन क्षेत्र के बारे में शिकायत कर समाधान पा सकते हैं। यदि आपके क्षेत्र में किसी उम्मीदवार ने आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया है तो उसकी फोटो खींचकर या वीडियो बनाकर चुनाव आयोग को सूचित कर सकते हैं। यदि आपको किसी भी प्रकार की सहायता या शिकायत करनी है तो आप चुनाव आयोग के नंबर 1950 पर कॉल कर सकते हैं। भारत के आम चुनाव कोई आम चुनाव नहीं होते बल्कि यह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का पर्व होता है। चुनाव आयोग इस चुनाव को वोटर फ्रेंडली बनाना चाहता है।

कई बार कहा जाता है कि अक्सर बड़ी मछलियां जाल में नहीं फंसती हैं, हमेशा छोटी मछलियों को ही त्याग करना पड़ता है। चुनाव के दौरान जितनी बदजुबानी होती है शायद ही और कभी होती हो। चुनाव के दौरान बड़े-बड़े नेता कुछ भी बोलकर निकल लेते थे। इस बार चाहे मछली छोटी हो या बड़ी सभी पर शिकंजा कसा है। इस बार चुनाव आयोग ने बीजेपी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी के नेताओं की बोलती बंद की है। चुनाव आयोग ने मायावती, मेनका गांधी, आजम खान, नवजोत सिंह सिद्धू, जया प्रदा, सतपाल सिंह
सत्ती, योगी आदित्यनाथ, मिलिंद देवड़ा आदि पर कार्रवाई की। आयोग ने केवल कार्रवाई ही नहीं की बल्कि 48 से 72 घंटे का बैन लगाकर बता दिया की चुनाव आयोग क्या कर सकता है। बैन के दौरान इन नेताओं को रैली करने, प्रेस कॉन्फ्रेंस करने, सोशल मीडिया में प्रचार करने, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से प्रचार करने पर रोक थी। चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के अणुव्रत मंडल को नजरबंद करने का आदेश दे दिया। अणुव्रत को नजरबंद करने के पीछे केवल इतना कारण था कि वह एक बाहुबली नेता है और मतदान के समय अड़चनें पैदा कर सकता है।

भारत में चुनाव आयोग को मामूली सा विभाग समझ लिया जाता है। आज के परिदृश्य में देखें तो चुनाव आयोग और मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को धन्यवाद कहना चाहिए। मुख्य चुनाव आयुक्त ने अपनी गरिमा के अनुसार काम किया है। सुनील अरोड़ा ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन की याद को ताजा कर दिया। शेषन ने चुनाव आयुक्त के पद पर रहते हुए बहुत से सुधार किए और कई बेहतरीन मिसालें पेश की। शेषन ने मुख्य चुनाव आयुक्त रहते 17 सूत्रीय मांग भारत सरकार के सामने रखी। शेषन ने साफ-साफ कहा कि देश में तब तक चुनाव नहीं होंगे जब तक 17 सूत्रीय मांग पूरी नहीं कर ली जाती हैं। शेषन ने तो चुनाव आयोग को भारत सरकार का अंग मानने से मना कर दिया था। शेषन कहते थे कि अब मुख्य चुनाव आयुक्त कानून मंत्री के ऑफिस के बाहर मीटिंग के लिए समय की आशा में नहीं बैठेगा।   


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बुधवार, 24 अप्रैल 2019

ये चुनावी बदजुबानी....



बोया पेड़ बबूल का आम कैसे फरें? ये कहावत हम बचपन से सुनते हुए आ रहे हैं। भारतीय राजनीति में सबकुछ बहुत जल्दी बदल जाता है। नेता अपने वादों से मुकर जाते हैं और उनकी नीयत पार्टी से बदल जाती है। चुनाव आते ही सारे नेता जुबानी जंग में इस तरह तैयार होकर निकलते हैं जैसे उन्हें किसी किले को फतह करना हो। किला फतह हो ना हो पर एक बात उनके साथ अच्छी हो जाती है कि वे फेमस हो जाते हैं। फेमस हैं तो और फेमस हो जाते हैं। प्रधानमंत्री से लेकर छोटे से उम्मीदवार तक जुबानी जंग इतनी बदजुबानी हो जाती है कि लगता है कि ये नेता एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राहुल गांधी को नामदार  के नाम से बुलाते हैं। जब एक इंटरव्यू में उनसे पूछा जाता है कि वे राहुल गांधी को उनके नाम से क्यों नहीं बुलाते हैं? प्रधानमंत्री की ओर से जवाब मिलता है कि इससे आपको क्या तकलीफ है? सर हमें तकलीफ क्यों होगी? हम पत्रकार की जमात हैं। हमें सवाल पूछने की आदत है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महागठबंधन को महामिलावटी तक कहते हैं। यूपी में बीएसपी, एसपी और आरएलडी का गठबंधन हुआ तो पीएम मोदी ने इसे संक्षिप्त रूप से 'सराब' कहा। सराब को उन्होंने कही ना कही शराब से जो़ड़ना चाहा। इस जुबानी जंग में अकेले प्रधानमंत्री नहीं हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है।

राहुल गांधी तो एक कदम आगे निकलते हुए प्रधानमंत्री को चोर ही कह दिया। राहुल गांधी ने ‘चौकीदार चोर है’  का नारा गढ़ा। राहुल गांधी  अपनी हर रैली में मंच से खड़े होकर बोलते है कि चौकीदार, जनता के बीच से आवाज आती है कि चोर है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका जवाब ऐसे दिया कि वे मंच से बोलते है कि फिर एक बार, जनता के बीच से आवाज आती है ‘मोदी सरकार’।

राजनीति में दोस्ती और रिश्तेदारी कितने दिन टिकेगी ये कहना मुश्किल होता है। कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी कुछ दिन पहले तक बीजेपी और शिवसेना के खिलाफ खुलकर बोलती थीं। आज शिवसेना में शामिल होकर राजनीति में ताल ठोक रही हैं। आजम खान और जया प्रदा राजनीति के आकाश में तब नजर आए जब आजम खान ने जया प्रदा के बारे में ऐसे शब्द बोले कि मैं यहां लिख नहीं सकता। मर्यादा कहा रह गई है। ये वही आजम खान हैं जिन्हें जया प्रदा को राजनीति में लाने का श्रेय जाता है।

हिमाचल प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती भी इतनी महान आत्मा है कि चुनावी मंच से गाली देने में नहीं डरते। इतनी अश्लील भाषा का उपयोग करते हैं कि मैं वो शब्द यहां लिख नहीं सकता। राहुल गांधी को गाली सूचक शब्दों से पुकारना या कहना कितना सही है?

केंद्र सरकार में मंत्री महेश शर्मा तो व्ययंग में विश्वास रखते हैं। प्रियंका गांधी के राजनीति में पदार्पण करने और कांग्रेस की उपाध्यक्ष बनने पर ऐसा कुछ कह दिया कि सुर्खियां बन गईं। महेश शर्मा ने कहा- अभी तक राजनीति में पप्पू था अब पप्पू की पप्पी भी आ गई। यह कहना उचित है? मेरे हिसाब से तो बिल्कुल उचित नहीं है।

उदाहरणों की कमी मेरे पास तो नहीं है। महागठबंधन के फतेहपुर सीकरी से प्रत्याशी गुड्डू पंडित भी किसी से पीछे नहीं हैं। गुड्डू पंडित कहते हैं कि राज बब्बर के .....और उसकी नचनियां को दौड़ा-दौड़ाकर चप्पलों से पीटूंगा, यदि समाज में झूठ फैलाया तो गंगा मां की सौगंध चप्पलों से पीटूंगा।

भोपाल से बीजेपी प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा कहती हैं कि मुंबई हमले में शहीद हेमंत करकरे को मेरा श्राप लगा इसलिए मारे गए। साध्वी प्रज्ञा ने बाद में सफाई दी कि हेमंत करकरे ने मुझे जेल में प्रताड़ित किया इसलिए मैंने ऐसा कहा। बिहार के बक्सर से सांसद और फिर से बीजेपी उम्मीदवार अश्विनी चौबे भी गजब करते हैं। लालू यादव की पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को कहते हैं कि, राबड़ी जी भाबी हैं उन्हें घूंघट में रहना चाहिए। इस पर राबड़ी देवी ने जवाब दिया कि उनकी पार्टी की कितनी महिला नेता घूंघट में रहती हैं, पहले उन्हें घूंघट में रहने के लिए बोलिए। अश्विनी चौबे बयानवीर हैं। उनका एक और बयान हवा में तैर रहा है कि मुझे कलेक्टर का बुखार उतारना आता है। इन बयानों से क्या होगा? राजनीति में थोड़ी प्रसिद्धि जरूर मिल जाएगी लेकिन बाद में आप एक दागदार की तरह दिखने लगेंगे। ना तो आप कामदार रह जाएंगे और ना ही नामदार।

मेरठ से बीजेपी उम्मीदवार राजेंद्र अग्रवाल कहते हैं कि शहीद हेमंत करकरे कैसे ATS चीफ थे जो बिना तैयारी के आतंकियों से लड़ने गए। बाद में सफाई देते हुए कहते हैं कि मेरे ट्विटर हैंडल का दुरुपयोग करके किसी ने ट्वीट किया। एक कहावत है प्यार और जंग में सब कुछ जायज है। आज नेताओं ने राजनीति को लड़ाई का अखाड़ा बना दिया है। इस अखाड़ा में धर्म को हथियार बनाकर लड़ा जाता है। इस चुनाव में भगवान हनुमान को राजनीति में लाकर खड़ा कर दिया। एक तरफ भगवान हनुमान की जाति बताई जाती है वहीं दूसरी ओर जाति के आधार पर वोट मांगा जाता है। बेगूसराय से बीजेपी प्रत्याशी गिरिराज सिंह SP नेता आजम खान से
कहते हैं कि एक बार बेगूसराय का चुनाव खत्म हो जाए फिर हम रामपुर आकर बताएंगे कि हनुमान क्या हैं? भगवान के नाम पर डराया जाता है।

आजम खान के किस्से यहीं खत्म नहीं होते। आजम खान तो मतदाताओं को गद्दार कहने से नहीं चूकते। आजम खान की की भाषा में विपक्षी जो उन पर बयानबाजी करते हैं वे गंदगी खाने के बराबर वाला काम करते हैं। वे कहते हैं कि यदि गंदगी खाना है तो चांदी का वर्क लगाकर मत खाओ, गंदगी खाना है तो सीधे खाओ। आजम खान के सुपुत्र तो और आगे निकलकर कहते है कि, ‘हमें अली भी चाहिए और बजरंगबली भी चाहिए लेकिन अनारकली नहीं चाहिए’। ऐसी कौन सी राजनीति है जो इस तरह की भाषा बोलने पर मजबूर करती है।

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तरह-तरह की उपमाओं से नवाजा जाता है। कांग्रेस और उसके सहयोगी दल तरह-तरह के शब्दों का उपयोग करते हैं। हिटलर, हत्यारा, और चोर आदि तक की संज्ञा दी गई। बीजेपी ने तो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मौन-मोहन तक कहा। एक कांग्रेस नेता ने तो MODI का नया मतलब M = मसूद अजहर, O = ओसामा, D = दाउद, I = आईएसआई बताया। यह मतलब किस हद तक सही है। यह तय करना जनता का काम है। जहां तक बदजुबानी की बात है तो जनता का निर्णय सर्वोपरि होता है। चुनाव नेताओं के बीच होता है लेकिन जीत उसी की होती है जिसे जनता पसंद करती है।

 मैंने इस लेख की शुरुआत में एक कहावत लिखी थी कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कैसे फरें। इस कहावत के लिखने का मतलब था कि आप अपने उम्मीदवार का चयन सावधानी से करें ताकि बाद में आपको पछताना ना पड़े।

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सोमवार, 1 अप्रैल 2019

जाति का विनाश कितना जरूरी है?

जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो।समाज के प्रवाह को नयी दिशा में मोड़ दो। यह उद्बोधन जेपी ने अपने आंदोलन के समय दिया था। जात-पात तोड़ दो, यह बात सबको आकर्षित करती है क्योंकि भारत में निम्न जाति के लोगों ने कभी न कभी जातिवाद का दंश झेला ही है। मैंने कुछ समय पहले एक किताब पढ़ी थी जिसका नाम "जाति का विनाश" है। यह किताब "Annihilation of caste" का हिंदी रूपांतरण है। इस किताब को बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने लिखी है। दरअसल यह एक किताब की शक्ल में भाषण का संकलन है। इस किताब में उसी भाषण का जिक्र किया गया है जिसे जात-पात तोड़क मंडल ने उन्हें देने नहीं दिया। जात-पात तोड़क मंडल का कहना था कि आंबेडकर जी का भाषण जाति व्यवस्था के बहिष्कार से ज्यादा हिंदू धर्म का अपमान है। जब कार्यक्रम रद्द हो गया तो आंबेडकर ने अपने भाषण को किताब की रूपरेखा में ढ़ाल  दिया। उन्होंने बताया कि उन्हें क्यों भाषण देने नहीं दिया गया? उनका कहना था कि जब मुझे अपने शब्दों को कहने की आजादी नहीं है तो मैं भाषण देने क्यों जाऊं?

जाति का विनाश किताब में बताया गया है कि कैसे जाति और जाति व्यवस्था हिंदू धर्म और मानने वाले लोगों के लिए अभिशाप है। उच्च जाति के लोग किस तरह निम्न जाति के लोगों पर कहर बरपाते हैं। आंबेडकर ने अपनी किताब में बताया कि कैसे जाति व्यवस्था भारत में आया और अब जड़ों तक समा चुका है। वैदिक सभ्यता के समय इस तरह के साक्ष्यों को पहली बार देखा गया था। उत्तर वैदिक काल में निम्न जाति को वेद आदि पढ़ने की अनुमति नहीं थी। जहां ऋग्वैदिक काल में व्यक्ति अपनी सुविधानुसार अपनी जाति बदल सकता था वहीं उत्तर वैदिक काल में यह व्यवस्था बदल गई। वैदिक काल में चार वर्णों वाली व्यवस्था अस्तित्व में आई थी उसने और विकराल रूप धारण कर लिया। वैदिक काल के बाद धीरे-धीरे जातीयता अन्य मुद्दों पर हावी होने लगी। ब्राह्मणवाद का विस्तार हिन्दू धर्म की नींव का हिलाने वाला था। किताब मैं बताया गया है कि वर्ण व्यवस्था में तिरस्कार केवल शूद्र को ही उठाना पड़ा है। किताब में महार जाति के बारे में बताया गया है कि कैसे उनके साथ गलत व्यवहार किया जाता था? जब महार जाति का कोई व्यक्ति  सड़क से निकलता था तो उसे कमर में झाड़ू बांधने और गले में एक मटका बांधने की सख्त हिदायत दी जाती थी। इस तरह की हिदायत देने का मतलब यह था कि सड़क गंदगी न हो। लेकिन इन सबके पीछे मुख्य कारण अपने वर्ण को सर्वश्रेष्ठ साबित करना था।

आंबेडकर ने अपनी आपबीती बताते हुए लिखा है कि कैसे  उनके साथ बचपन से लेकर नौकरी के समय तक छुआछूत किया जाता था। जहां बचपन में उन्हें स्कूल में अन्य बच्चों के साथ बैठने नहीं दिया जाता था और दिनभर उन्हें प्यासा रखा जाता था। जब उनकी नौकरी वडोदरा में लगी तो वहां नौकर उन्हें फाइल्स फेंक कर देता था और दिनभर प्यासा रखा जाता था। किताब में उन्होंने विभिन्न प्रकार के आंदोलन का जिक्र किया जिसमें सबसे महत्वपूर्ण महाड़ सत्याग्रह था। इसमें उन्होंने गांव के शूद्र जाति के लोगों के साथ जाकर तालाब के पानी को पिया और आचमन किया। किताब में एक मंदिर, एक कुंआ की बात लिखी हुई है। यह बात दर्शाती है कि कैसे निम्न जाति के लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता था।

किताब में केवल जाति व्यवस्था जैसी कुरीति पर जमकर कटाक्ष किया गया है। इस किताब में पूना पैक्ट 1932 के बारे में जिक्र किया गया है। यह समझौता महात्मा गांधी और आंबेडकर के बीच हुआ था। इस समझौते में आंबेडकर ने महात्मा गांधी की बात मानी और "Depressed class" (दमित वर्ग) को चुनाव में दिए जाने वाले आरक्षण को वापस ले लिया। इससे आंबेडकर दुखी हुए क्योंकि वे दलितों को उनका हक दिलाना चाहते थे। इस किताब में कई संदर्भ दिए गए हैं जब आंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच तीखी बहस होती थी। महात्मा गांधी  अपने समाचार पत्र हरिजन में जाति व्यवस्था पर लेख लिखते थे। इन्हीं लेखों की आलोचना आंबेडकर पत्र व्यवहार के माध्यम से करते थे। इस पत्र का जवाब महात्मा गांधी भी मूकनायक में प्रकाशित लेख को आधार बनाकर देते थे। आंबेडकर अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों को "Depressed class" कहते थे जबकि महात्मा गांधी हरिजन शब्द का उपयोग किया करते थे। इस किताब से स्पष्ट होता है कि कहीं न कहीं अनुसूचित जाति को अधिकार प्राप्त न होने के पीछे महात्मा गांधी को जिम्मेदार मानते थे।

आंबेडकर ने जहां अपनी किताब में आर्य समाज और स्वामी दयानंद सरस्वती की तारीफ की है। इसके अलावा उन्होंने राजा राममोहन राय की तारीफ की है क्योंकि उन्होंने समाज को कुरीतियों से मुक्त कराने लिए बहुत से काम किए। आंबेडकर ने दूसरी ओर हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियों छुआछूत, बाल-विवाह, सती प्रथा, अंतर जातीय विवाह पर प्रतिबंध के मामले पर जमकर लताड़ लगाई। किताब में डॉ आंबेडकर ने तो यहां तक लिख दिया कि हिन्दू धर्म की जाति व्यवस्था की वजह से भारत में अन्य धर्मों में जाति व्यवस्था के बीज फूट पड़े हैं। किताब में एक जगह यह भी लिखा है कि जातिवाद और वर्ण व्यवस्था का आरोप मनु पर नहीं लगा सकते हैं क्योंकि उसने तो जाति की एक व्यवस्था तैयार की थी

अपनी किताब में डॉ आंबेडकर ने विदेशी लोगों को भी नहीं छोड़ा उन्होंने उनकी भी जमकर खिंचाई की। रंगभेद में उनसे आगे कोई नहीं है। वे काले और गोरे में भेद करते हैं। ऐसा कहना था डॉ बाबासाहेब आंबेडकर का।
आपत्ति:- डॉ आंबेडकर ने जाति व्यवस्था जैसी कुरीति को केवल हिन्दू धर्म के साथ जोड़ा जबकि यह आधा सत्य है। अन्य धर्मों में भी जाति और वर्गों की प्रधानता है। ईसाई धर्म कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट, एवनजीलक, आर्थोडॉक्स आदि शाखाओं में बंटा हुआ है। इन सभी के अलग-अलग चर्च होते हैं और ये एक-दूसरे के चर्च में नहीं जाते। यही हाल मुस्लिम धर्म का भी है। बौद्ध धर्म भी मुख्यतया दो भागों में विभाजित है हीनयान और महायान। जातिवाद का सारा दोष हिन्दू धर्म पर मढ़ना गलत है। 
एक बार जरूर इस किताब को पढ़ें और निष्कर्ष पर पहुंचें।
BY_vinaykushwaha