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बुधवार, 24 अप्रैल 2019

ये चुनावी बदजुबानी....



बोया पेड़ बबूल का आम कैसे फरें? ये कहावत हम बचपन से सुनते हुए आ रहे हैं। भारतीय राजनीति में सबकुछ बहुत जल्दी बदल जाता है। नेता अपने वादों से मुकर जाते हैं और उनकी नीयत पार्टी से बदल जाती है। चुनाव आते ही सारे नेता जुबानी जंग में इस तरह तैयार होकर निकलते हैं जैसे उन्हें किसी किले को फतह करना हो। किला फतह हो ना हो पर एक बात उनके साथ अच्छी हो जाती है कि वे फेमस हो जाते हैं। फेमस हैं तो और फेमस हो जाते हैं। प्रधानमंत्री से लेकर छोटे से उम्मीदवार तक जुबानी जंग इतनी बदजुबानी हो जाती है कि लगता है कि ये नेता एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राहुल गांधी को नामदार  के नाम से बुलाते हैं। जब एक इंटरव्यू में उनसे पूछा जाता है कि वे राहुल गांधी को उनके नाम से क्यों नहीं बुलाते हैं? प्रधानमंत्री की ओर से जवाब मिलता है कि इससे आपको क्या तकलीफ है? सर हमें तकलीफ क्यों होगी? हम पत्रकार की जमात हैं। हमें सवाल पूछने की आदत है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महागठबंधन को महामिलावटी तक कहते हैं। यूपी में बीएसपी, एसपी और आरएलडी का गठबंधन हुआ तो पीएम मोदी ने इसे संक्षिप्त रूप से 'सराब' कहा। सराब को उन्होंने कही ना कही शराब से जो़ड़ना चाहा। इस जुबानी जंग में अकेले प्रधानमंत्री नहीं हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है।

राहुल गांधी तो एक कदम आगे निकलते हुए प्रधानमंत्री को चोर ही कह दिया। राहुल गांधी ने ‘चौकीदार चोर है’  का नारा गढ़ा। राहुल गांधी  अपनी हर रैली में मंच से खड़े होकर बोलते है कि चौकीदार, जनता के बीच से आवाज आती है कि चोर है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका जवाब ऐसे दिया कि वे मंच से बोलते है कि फिर एक बार, जनता के बीच से आवाज आती है ‘मोदी सरकार’।

राजनीति में दोस्ती और रिश्तेदारी कितने दिन टिकेगी ये कहना मुश्किल होता है। कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी कुछ दिन पहले तक बीजेपी और शिवसेना के खिलाफ खुलकर बोलती थीं। आज शिवसेना में शामिल होकर राजनीति में ताल ठोक रही हैं। आजम खान और जया प्रदा राजनीति के आकाश में तब नजर आए जब आजम खान ने जया प्रदा के बारे में ऐसे शब्द बोले कि मैं यहां लिख नहीं सकता। मर्यादा कहा रह गई है। ये वही आजम खान हैं जिन्हें जया प्रदा को राजनीति में लाने का श्रेय जाता है।

हिमाचल प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती भी इतनी महान आत्मा है कि चुनावी मंच से गाली देने में नहीं डरते। इतनी अश्लील भाषा का उपयोग करते हैं कि मैं वो शब्द यहां लिख नहीं सकता। राहुल गांधी को गाली सूचक शब्दों से पुकारना या कहना कितना सही है?

केंद्र सरकार में मंत्री महेश शर्मा तो व्ययंग में विश्वास रखते हैं। प्रियंका गांधी के राजनीति में पदार्पण करने और कांग्रेस की उपाध्यक्ष बनने पर ऐसा कुछ कह दिया कि सुर्खियां बन गईं। महेश शर्मा ने कहा- अभी तक राजनीति में पप्पू था अब पप्पू की पप्पी भी आ गई। यह कहना उचित है? मेरे हिसाब से तो बिल्कुल उचित नहीं है।

उदाहरणों की कमी मेरे पास तो नहीं है। महागठबंधन के फतेहपुर सीकरी से प्रत्याशी गुड्डू पंडित भी किसी से पीछे नहीं हैं। गुड्डू पंडित कहते हैं कि राज बब्बर के .....और उसकी नचनियां को दौड़ा-दौड़ाकर चप्पलों से पीटूंगा, यदि समाज में झूठ फैलाया तो गंगा मां की सौगंध चप्पलों से पीटूंगा।

भोपाल से बीजेपी प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा कहती हैं कि मुंबई हमले में शहीद हेमंत करकरे को मेरा श्राप लगा इसलिए मारे गए। साध्वी प्रज्ञा ने बाद में सफाई दी कि हेमंत करकरे ने मुझे जेल में प्रताड़ित किया इसलिए मैंने ऐसा कहा। बिहार के बक्सर से सांसद और फिर से बीजेपी उम्मीदवार अश्विनी चौबे भी गजब करते हैं। लालू यादव की पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को कहते हैं कि, राबड़ी जी भाबी हैं उन्हें घूंघट में रहना चाहिए। इस पर राबड़ी देवी ने जवाब दिया कि उनकी पार्टी की कितनी महिला नेता घूंघट में रहती हैं, पहले उन्हें घूंघट में रहने के लिए बोलिए। अश्विनी चौबे बयानवीर हैं। उनका एक और बयान हवा में तैर रहा है कि मुझे कलेक्टर का बुखार उतारना आता है। इन बयानों से क्या होगा? राजनीति में थोड़ी प्रसिद्धि जरूर मिल जाएगी लेकिन बाद में आप एक दागदार की तरह दिखने लगेंगे। ना तो आप कामदार रह जाएंगे और ना ही नामदार।

मेरठ से बीजेपी उम्मीदवार राजेंद्र अग्रवाल कहते हैं कि शहीद हेमंत करकरे कैसे ATS चीफ थे जो बिना तैयारी के आतंकियों से लड़ने गए। बाद में सफाई देते हुए कहते हैं कि मेरे ट्विटर हैंडल का दुरुपयोग करके किसी ने ट्वीट किया। एक कहावत है प्यार और जंग में सब कुछ जायज है। आज नेताओं ने राजनीति को लड़ाई का अखाड़ा बना दिया है। इस अखाड़ा में धर्म को हथियार बनाकर लड़ा जाता है। इस चुनाव में भगवान हनुमान को राजनीति में लाकर खड़ा कर दिया। एक तरफ भगवान हनुमान की जाति बताई जाती है वहीं दूसरी ओर जाति के आधार पर वोट मांगा जाता है। बेगूसराय से बीजेपी प्रत्याशी गिरिराज सिंह SP नेता आजम खान से
कहते हैं कि एक बार बेगूसराय का चुनाव खत्म हो जाए फिर हम रामपुर आकर बताएंगे कि हनुमान क्या हैं? भगवान के नाम पर डराया जाता है।

आजम खान के किस्से यहीं खत्म नहीं होते। आजम खान तो मतदाताओं को गद्दार कहने से नहीं चूकते। आजम खान की की भाषा में विपक्षी जो उन पर बयानबाजी करते हैं वे गंदगी खाने के बराबर वाला काम करते हैं। वे कहते हैं कि यदि गंदगी खाना है तो चांदी का वर्क लगाकर मत खाओ, गंदगी खाना है तो सीधे खाओ। आजम खान के सुपुत्र तो और आगे निकलकर कहते है कि, ‘हमें अली भी चाहिए और बजरंगबली भी चाहिए लेकिन अनारकली नहीं चाहिए’। ऐसी कौन सी राजनीति है जो इस तरह की भाषा बोलने पर मजबूर करती है।

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तरह-तरह की उपमाओं से नवाजा जाता है। कांग्रेस और उसके सहयोगी दल तरह-तरह के शब्दों का उपयोग करते हैं। हिटलर, हत्यारा, और चोर आदि तक की संज्ञा दी गई। बीजेपी ने तो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मौन-मोहन तक कहा। एक कांग्रेस नेता ने तो MODI का नया मतलब M = मसूद अजहर, O = ओसामा, D = दाउद, I = आईएसआई बताया। यह मतलब किस हद तक सही है। यह तय करना जनता का काम है। जहां तक बदजुबानी की बात है तो जनता का निर्णय सर्वोपरि होता है। चुनाव नेताओं के बीच होता है लेकिन जीत उसी की होती है जिसे जनता पसंद करती है।

 मैंने इस लेख की शुरुआत में एक कहावत लिखी थी कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कैसे फरें। इस कहावत के लिखने का मतलब था कि आप अपने उम्मीदवार का चयन सावधानी से करें ताकि बाद में आपको पछताना ना पड़े।

BY_vinaykushwaha

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