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रविवार, 25 मार्च 2018

यूपी की फिज़ा


दूर-दूर तक फैला पठारी इलाका जिसमें पेड़ों की संख्या न तो बहुत ज्यादा है न ही बहुत कम। जमीन भी ऐसी कि कही थोड़े उंचे पहाड़ है तो कही समतल जमीन है। जहां समतल जमीन वहां जमीन के अंदर से स्वयंभू शिव की तरह निकली हुई चिमनियां है जिनसे धुआं तो नहीं निकल रहा लेकिन नीचे भट्टी में ईंट पक रही है। विन्ध्य की महक आने लगी है। बेशक यह यूपी है। मध्यप्रदेश के उत्तरी भाग को पार करते ही यूपी का दक्षिणी छोर कुछ इसी प्रकार दिखाई देता है। यह गंगा का मैदान का दक्षिणी भाग भी है।

यूपी कहे या उत्तरप्रदेश या उत्तमप्रदेश सभी तो श्रेष्ठ है। यदि ऐसा कहा जाए कि राज्यों में सर्वश्रेष्ठ या यूं कहे राज्यों का राजा। मैंने उत्तर प्रदेश  की यात्रा कई बार की है और हर बार मैंने यहां कुछ नया ही पाया है। हवा में घुली पेडे की मिठास हो या अध्यात्म की हवन वेदी से उठती खुशबू हो सभी कुछ तन-मन को उत्साहित कर देती है। इलाहाबाद की धरा पर कदम रखने का सौभाग्य कई बार मिला परंतु पहले उस फिज़ा में घुली ताज़गी का आनंद नहीं लिया जो इस बार मिला है। इलाहाबाद कोई आम जगह नहीं है यह तो सभी जानते है।

पूर्वांचल का सबसे प्रमुख शहर जिसके बिना पूर्वांचल की कल्पना पूरी नहीं हो सकती है। गंगा और यमुना का संगम तो पहले भी कई बार देखा है लेकिन इस इसमें कुछ नयापन देखने को मिला। यमुना नदी का श्याम जल हो या गंगा नदी का हरित जल इस बार इसमें कुछ नयापन है। हिमालय से मां गंगा और यमुना के द्वारा लाई गई रेत एक नए संसार का निर्माण कर रही है। संगम के जल में जाते हाथ केवल कंकण स्नान के लिए ही नहीं बल्कि अर्घ्य के लिए भी उठते है। तेज बहाव वाली गंगा हो या शांत यमुना दोनों श्रद्धालुओं को उतना ही मौका दे रही है जितना वे चाहते हैं।

श्रद्धा के दीपक आज कुछ अलग ही छटा बिखेर रहे हैं। फूलों की लड़ी हो या नावों का जमावड़ा सब कुछ देखा हुआ है फिर भी अनोखा है। बरसों पहले जब पहली बार आया था तब भी किले की दीवार यूं ही सीना ताने खड़ी थी और आज भी लेकिन इनकी रंगत में चटकपन-सा आ गया है। लाई बताशा की सजी दुकाने हो या फूलों से सजे दौने, पंडों की मडई हो या गोताखोरी की टोली नया न होते हुए भी कुछ अलग है। पानी की लहरों पर गोता खाते गोताखोर हो या पानी में उतरते नौसिखिया सब पहले भी तो देखा है लेकिन इस बार अंदाज अलग लग रहा है।

नाव का कालिंदी की लहरों के साथ कलाबाजियां करना हो या मछलियों का पैरों को छूकर जाना पहले भी देखा है लेकिन ऐसी अनुभूति पहली बार हुई है। संगम के जल को छूकर तन को छूती पवन से पहले भी कई बार सुखमय अनुभूति हुई है लेकिन इस बार इसमें कुछ शीतलता ज्यादा ही है। रेत के टीले पर दूर-दूर तक आशा का दीपक पहले भी दीप्तमान थे आज भी हैं। साइबेरियन गल्स होवर की उड़ान और पानी में खेल तो कई देखा है परंतु इनकी अठखेलियां में कुछ आज अनोखा पन है।

इलाहाबाद कोई मुसाफिरों का शहर नहीं है बल्कि यह तो शांति से अपने अंदाज में जीने वालों का शहर है। इस शहर को पहले भी कई बार देखा है लेकिन इसमें नयापन पहली बार देखा है।

📃BY_vinaykushwaha


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