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शनिवार, 3 मार्च 2018

अंबेडकर और बौद्ध धर्म

          

दीक्षाभूमि नागपुर गवाह है कि कैसे? डॉ भीमराव अंबेडकर जी ने अपने लगभग 5 लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। यह दुनिया का सबसे बड़ा धर्म परिवर्तन कहा जाता है क्योंकि इससे पहले इतिहास में कभी इतनी संख्या में किसी ने एक साथ धर्म परिवर्तन नहीं किया था। 14 अक्टूबर 1956 को हिन्दु धर्म छोड़ते हुए बौद्ध धर्म अपना लिया। यह धर्म परिवर्तन कोई दबाव में की गई प्रक्रिया नहीं थी बल्कि यह तो अव्यवस्था को लेकर किया गया एक समूह निर्णीत एक कार्य था जिसका प्रतिनिधित्व डॉ भीमराव अंबेडकर ने किया था।

अंबेडकर महार जाति में जन्में एक महान व्यक्तिव्य थे।  जन्म से ही छुआछूत और भेदभाव का दंश झेला था। यद्यपि उनके माता-पिता या परिवार में कोई हिन्दु धर्म के खिलाफ नहीं थे बल्कि उनके माता-पिता तो सदैव उन्हें धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते थे। इसी कारण अंबेडकर जी ने बचपन में महाभारत, रामायण आदि समेत धर्म ग्रंथों का अध्ययन कर लिया था। अंबेडकर कभी भी हिन्दु धर्म या इसके पद्धति के खिलाफ नहीं थे बल्कि वे तो ब्राह्मणवाद और उनके द्वारा की जा रही कुरीतियों के सख्त खिलाफ थे। डॉ अंबेडकर एक प्रतिभावान व्यक्ति थे उन्होने लगभग 51 पुस्तकें लिखी। वे भारत के पहले व्यक्ति है जिन्होंने अपनी पीएचडी इकोनोमिक्स से पूरी की थी।

अंबेडकर का धर्म परिवर्तन एकाएक हुई कोई घटना नहीं है बल्कि यह सतत् सामाजिक प्रक्रिया की देन है।बचपन में जहां उन्हें सामान्य बच्चों के साथ कक्षा में बैठने की अनुमति नहीं थी, पानी या पानी के पात्र को छूने की अनुमति नहीं थी। वही जब वे थोड़े आगे बढ़े और बडौदा रियासत में नौकरी किया करते थे तो प्यून उन्हें फाइलें फेंककर देते थे। यह सब देखकर उनका मन विचलित हो गया था। सबसे बड़ी घटना तो तब हुई जब वे आंदोलन करते हुए खानदेश पहुंचे और वहां उन्हें दलित होने के कारण तांगें वाले ने बैठाने से ही मना कर दिया। यह सब धर्म परिवर्तन का कारण बना।

हिन्दु धर्म में इस छुआछूत और भेदभाव को मिटाने के लिए अंबेडकर ने कई प्रयास किए। महाड सत्याग्रह जैसे प्रयासों को नहीं भुलाया जा सकता है। कालेराम मंदिर, नासिक में कई हजार समर्थकों के साथ प्रवेश किया जो केवल कुरीतियों को तोड़ने वाला ही था। उनके जीवन की एक घटना जब उनकी पत्नी ने कहा कि वे पंढ़रपुर जाना चाहती है लेकिन उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि वहां दलितों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता है। यही इच्छा उनकी पत्नी की आखिरी इच्छा बनी जो कभी पूरी नहीं हो सकी थी।

हिंदु धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाने से पूर्व उन्होंने हर धर्म का गहन अध्ययन किया था। मुस्लिम धर्म की ओर आकर्षित हुए परंतु जब उन्होंने वहां व्याप्त कुरीतियों को देखा तो उनका मोहभंग हो गया। यहां भी ऊंची जातियों के द्वारा नीची जातियों से दुर्व्यवहार किया जाता था। मुस्लिम धर्म में सबसे बड़ी बात जो अंबेडकर को नगबार गुजरी वह थी कि स्त्रियों की कोई भूमिका और सम्मान न होना। फिर कुछ समय बाद उन्होंने सिक्ख धर्म का रुख किया लेकिन यहां भी उन्हें कुरीतियां दिखाई दी। यहां दलितों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था। जिसके कारण उन्होंने सिक्ख धर्म को अपनाने की बात टाल दी। अंत में बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हुए और इसका अध्ययन किया । इसी कारण उन्होंने कई किताबें बुद्ध और धम्म के विषय में लिखी थी।

अन्त्वोगत्वा उन्होंने बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघं शरणं गच्छामि के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया।

                        ।।जय हिन्द।।

📃BY_vinaykushwaha


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