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शुक्रवार, 29 मई 2020

चलते-चलते (सीरीज -16)

बचपन बड़ा ही मासूम होता है। कुछ सोचकर भी समझने की कोशिश अलग ही अंदाज में करता है। जब मैंने पहली महामारी का नाम सुना था तब शायद मेरी उम्र 9-10 साल रही होगी। उस समय तो केवल इतना ही पता था महामारी कोई बीमारी है। लेकिन ये क्या बला है? इसका अंदाजा उस उम्र में नहीं था। उस समय तो एक-दो बार मैंने महामारी को महाबीमारी तक लिख दिया। अब तो उस बात को सोचता हूं तो हंसी आती है। वो प्यारा बचपन जिसमें कोई भी संकट आ जाए सब झेलने की भावना थी क्योंकि संकट का पता ही नहीं होता था कहते किसे हैं। 

जब धीरे-धीरे बड़े हुए तब मालूम हुआ कि महामारी किस बला का नाम है। महामारी यानी इंग्लिश में एपिडैमिक। जब बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बड़ी तेजी से फैलती है और एक बड़े हिस्से को प्रभावित करती है तो इसे महामारी कहते है। बचपन से लेकर दिसंबर 2019 तक मेरा सामना किसी बीमारी से नहीं हुआ। जब कोरोना वायरस जैसी महामारी का पता चला तो जीवन में बहुत से बदलाव आ गए। किताबों, टीवी और बड़े लोगों से केवल सुनते थे कि चेचक, हैजा जैसी महामारी का प्रकोप कभी भारत में हुआ था। 

आज की स्वास्थ्य व्यवस्था को देखकर लगता है कि उस समय स्थिति कितनी भयावह रही होगी। कोरोना वायरस ने आज वही स्थिति पैदा कर दी है जो आज से कई साल पहले थी। 
डब्ल्यूएचओ ने कोरोना को महामारी नहीं बल्कि विश्वमारी घोषित किया है। इस विश्वमारी इंग्लिश में पेनडैमिक कहते हैं। इसने विश्व के सभी देशों को प्रभावित किया है। अमेरिका से लेकर जापान और रूस से लेकर ऑस्ट्रेलिया सभी देश आज इसकी चपेट में हैं। महामारी की विभीषिका कितनी भयानक होती है आज देखने को मिल रहा है। हमें अलेक्जेंडर फ्लेमिंग का शुक्रगुजार होना चाहिए कि एंटीबायोटिक की खोजकर उन्होंने मानवजाति को वरदान दिया है। 

चीन से पनपा ये वायरस आज भारत के गांव तक पहुंच गया है। जीवन में दहशत का एक नया अध्याय जोड़ दिया है इस कोरोना वायरस ने। आज मुझे जब मालूम हुआ कि मेरे सेक्टर में फिर से कोरोना वायरस की दस्तक हुई है तो शुरू में मन शांत था लेकिन मन की लहर तीव्र गति से अशांति की जाने लगी। कभी-कभी लगता है कि ये बीमारी कब खत्म होगी? होगी भी या नहीं। दुनिया के कई सारे देश वैक्सीन बनाने में जुटे हैं। क्या होगा यदि वैक्सीन शत-प्रतिशत सही नहीं हुई तो? जीवन का अंत ऐसे में करीब नजर आने लगता है। आज डॉक्टर कोरोना से पीड़ित जिन मरीजों का इलाज कर रहे हैं। डॉक्टर इलाज नहीं कर रहे बल्कि अंधेरे में तीर चला रहे हैं। कोई एचआईवी एड्स की दवा, कोई मलेरिया की दवा तो कोई फ्लू में काम आने वाली दवा उपयोग कर रहा है। पता नहीं क्या होगा? 

कोरोना वायरस जिसे कोविड 19 के नाम से भी जाना जाता है इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि आजतक इसका सोर्स पता नहीं चल पाया है। वुहान वायरोलॉजिस्ट की वैज्ञानिक जिसे आज लोग बैट वूमेन के नाम से जानते हैं उसने कहा कि ये तो मात्र एक वायरस है जो चमगादड़ में पाया जाता है ऐसे कई वायरस है जो पूरी दुनिया को परेशान कर सकते हैं। कोविड 19 कोई पहला वायरस नहीं है जो जानवर से इंसानों में आया। इससे पहले सॉर्स, मर्स, इबोला जैसी बीमारियों की लंबी सूची है। 

लोगों ने कई सारे प्लान बनाए थे जो कोरोना की वजह से धराशायी हो गए। मैंने भी प्लान बनाए थे। घुमक्कड़ी का शौक रखने वाला मैं, घूमने के लिए कई सारे डेस्टिनेशन खोज लिए थे। गर्मी इस बार पहाड़ों पर बिताऊंगा ऐसा सोचा था लेकिन किस्मत इस बार कोरोना के साथ थी। साल 2020 सभी के लिए काला रहा है। त्योहार, पर्व, इवेंट, शादी, प्लान की बलि चढ़ गई। कई लोगों की नौकरी चली गई तो कई लोग काल के गाल में समा गए। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट इस बार निगेटिव रखी है। इससे भयानक और क्या हो सकता है। जब तक इस कोरोना से पीछा नहीं छूटता सब भयानक है भयावह है। 

मंगलवार, 19 मई 2020

चलते-चलते (सीरीज-15)



पहले लॉकडाउन आया,इसके बाद लॉकडाउन 2.0 आया फिर लॉकडाउन 3.0, इसके बाद लॉकडाउन 4.0 पता नहीं आगे क्या होने वाला है। क्या फिर से लॉकडाउन बढ़ेगा या फिर लॉकडाउन  को खत्म कर हमारी जिंदगी फिर से सामान्य हो जाएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर तमाम मेडिकल से जुड़े व्यक्तियों का कहना है कि कोरोना वायरस अब हमारे साथ रहेगा। इसका मतलब है कि आने वाले समय कोरोना आम फ्लू की तरह हो जाएगा। इस फ्लू के साथ हम जीवन बिताएंगे। लेकिन ये कब तक होगा? किसी को इस बात की जानकारी नहीं।

वैज्ञानिक वैक्सीन की खोज में डटे हुए हैं। दुनियाभर के देशों में कोरोना के खिलाफ जंग जारी है। बांग्लादेश के वैज्ञानिकों का कहना है कि पशुओं में कीड़े मारने वाली दवा आईवरमेक्टिन और डॉक्सीसायक्लिन का कॉम्बिनेशन बनाया। इस कॉम्बिनेशन से कोरोना के इलाज में मदद मिलेगी। ये तो समय ही बता पाएगा  कि क्या इलाज के लिए बेहतर है क्या नहीं? कुछ समय पहले तक हाइड्रोक्सीक्लोरीक्वीन के लिए पूरी दुनिया में शोर मच रहा था। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने तो हाइड्रोक्सीक्लोरीक्वीन के लिए भारत को धमकी तक दे डाली थी। हांलाकि भारत ने एशिया से लेकर अमेरिका तक हाइड्रोक्सीक्लोरीक्वीन बांटी। ट्रंप से उलट अमेरिका के कई वैज्ञानिकों ने इस दवा के प्रभाव को नकार दिया और यहां तक कहा कि भारत से आने वाली ये दवा घटिया क्वालिटी की है।

हाइड्रोक्सीक्लोरीक्वीन दवा मुख्य रूप से मलेरिया में उपयोग होने वाली दवा है। भारत इस दवा का सबसे बड़े उत्पादक देश में से है। भारत की महानता तो देखिए कि कोरोना से लड़ाई कोई देश ना हारे इसलिए पाकिस्तान को भी मेडिकल सप्लाई दी। पाकिस्तान में इस बात का विरोध हुआ कि हम दुश्मन देश से मेडिकल सप्लाई कैसे ले सकते हैं। वहां पीएम इमरान खान ने जांच कमेटी बैठा दी। वाह रे! राजनीति क्या-क्या करवा देती है। जब हम चीन से घटिया मास्क और पीपीई किट ले सकते हैं तो हमने तो पाक को अच्छी क्वालिटी का सामान दिया था।

कई देशों में रेमडेसिवर दवा का इस्तेमाल किया जा रहा है। रेमडेसिवर दवा इबोला के लिए विकसित की गई थी लेकिन उपयोगी सिद्ध होने से कोरोना के काम आ रही है। भारत में फेविपीरावीर नामक दवा का ड्रग ट्रायल शुरू किया जाएगा। ये दवा चीन और जापान में फ्लू के लिए इस्तेमाल की जाती है। इसके पहले भारत में दूसरी दवाओं के साथ प्रयोग देखा गया है। इन दवाओं में एड्स की दवा भी शामिल है। जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में डॉक्टरों ने इस दवा का उपयोग किया था जो कहीं हद तक सफल रहा था। कई जगह खांसी-जुकाम में काम आने वाली पैरासिटामॉल के साथ भी प्रयोग देखा गया।

कोरोना पर कौनसी दवा का असर होगा? किस दवा का असर नहीं होगा? समय ही बता पाएगा। कोरोना ने जीवन को माफ कीजिएगा दैनिक जीवन को बदल दिया है। मास्क के बिना अब जीवन अधूरा सा लगता है। ऐसा लगता है मानो कुछ छूट गया हो। जब पीएम ने कहा है कि गमछा भी कारगर है तभी से हम भी गमछामैन बन गए। इस भंयकर महामारी के बीच भी ऑफिस जाते है और बहुत सारे जतन करके जाते हैं। सैनिटाइजर और सोशल डिस्टेंस अब जरूरी हो गया है। बिना मास्क के आपके साथ बुरा व्यवहार हो सकता है या फिर आपको मास्क पहनने के लिए बाध्य किया जा सकता है।

मैं पत्रकार हूं। जिसे रोजाना ऑफिस जाना होता है और कोरोना की भयावह खबरों से दो-चार होना पड़ता है। कोरोना के बढ़ते मामले देश के लिए विश्व के लिए खतरनाक है। दुनिया पर जितना सितम कोरोना ने किया है उतना शायद ही किसी और किया हो। लॉकडाउन से स्थिति में बहुत हद तक सुधार हुआ है। एक स्टडी कहती है कि यदि लॉकडाउन नहीं होता तो भारत में आज कोरोना वायरस  से संक्रमितों की संख्या 53 लाख होती। लॉकडाउन डबलिंग रेट 4 दिन था जो आज 13 दिन हो गया है और रिकवरी रेट भी बढ़ गया है। लॉकडाउन की महिमा अपरंपार है।

इस लॉकडाउन की वजह से प्रकृति सास ले रही है। पुख्ता तौर पर तो नहीं कह सकता लेकिन इस लॉकडाउन की वजह से अभी तक सबसे कम गर्मी पड़ी। अप्रैल 2020 तक मौसम विभाग का कहना है कि भारत में 12 साल में सबसे कम गर्मी हुई। रुक-रुककर बारिश होना और तेज आंधी-तूफान इस प्रकृति जनित हो सकता है लेकिन ये सुहावना रहा। मैं इस मौसम को पहली इंज्वाय कर रहा हूं। मौसम विभाग ने भविष्यवाणी किया है कि इस साल मानसून पांच दिन देरी आएगा। ये देरी किसानों के साथ-साथ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय है। मूडीज ने भारत की अर्थव्यवस्था के बारे में संभावना जताई है कि भारत में इतिहास की सबसे बड़ी मंदी आएगी।

अर्थव्यवस्था को झटका तो लगने वाला है। देशभर में इस लॉकडाउन की वजह कई कंपनियां बंद हुई हैं। लोग बेरोजगार हुए हैं। मजदूर वर्ग इस लॉकडाउन से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। मजदूरों का पलायन जारी है। काम नहीं है, खाना नहीं मिल रहा है, पैसा नहीं है, जमापूंजी खत्म हो रही है, मजदूर अपने घर से पैसे मंगवाकर जीवनयापन कर रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अबतक 22 लाख मजदूर अपने घर लौटे हैं। राज्य सरकार दूसरे राज्यों से लगने वाली सीमा तक मजदूरों को बसों के जरिए छोड़ रही है बाकी मजदूरों की जिंदगी भगवान के भरोसे। खाना के पता नहीं, घरों तक कैसे पहुंचेंगे पता नहीं, शौचालय नहीं है, कैंपों में पर्याप्त व्यवस्था नहीं।

देशभर से पलायन जारी है। दक्षिण भारत और महाराष्ट्र, गुजरात से पलायन करने वाला मजदूर एमपी गुजरकर अपने घरों तक जा रहा है। एमपी सरकार इतनी सक्षम नहीं की सारा बोझ झेल ले। एमपी में एनएच 3 और एनएच 7 पलायन का सबसे बड़ा जरिया बना है जो दक्षिण को उत्तर से जोड़ता है। इन पर लाखों मजदूर चल रहे हैं। मैं तो यही सोचता हूं कि कोई अनहोनी ना हो। सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेन और राजधानी जैसे ट्रेन चलाई लेकिन इनमें सवार होना भी बहुत मुश्किल है। बिहार और यूपी जाने वाली ट्रेनों के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।

कोरोना ने लोगों को वो दौर दिखाया है जो सबके लिए आसान नहीं है। महाराष्ट्र के 1000 से ज्यादा पुलिसकर्मी कोरोना संक्रमित पाए गए। जब सुरक्षा में सेंध लग जाए तो क्या होगा? मैंने लोगों को जागरूक होते देखा है। सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, हैंड वॉश करना और हेल्दी खाने की आदत में बदलते देखा है। मैंने अपनी जिंदगी में इतनी रोटी नहीं बनाई जितनी की इस लॉकडाउन पीरियड में बनाई है। मेरा घूमना बंद है। इतने समय तक कभी किसी एक ही शहर में नहीं गुजारा। अब तो जिंदगी ऑफिस से घर और घर से ऑफिस हो गई है। फ्लैट की बालकनी से दूर दिखती हरियाली और बिल्डिंग को निहारना अच्छा अनुभव है। देखो बाकी क्या होगा। जो होगा सब अच्छा होगा।

📃BY_vinaykushwaha

सोमवार, 4 मई 2020

राजा रवि वर्मा : एक ऐसा चित्रकार जिसने चित्रों में भगवान को जीवित कर दिया


रविवर्मा भातखण्डे भाग्यचन्द्रः स भूपतिः
कलावंतश्च विख्याताः स्मरणीया निरन्तरम्‌॥
इस संस्कृत के श्लोक में उन लोगों के नाम हैं जिन्होंने कला को भारत में सर्वोच्च स्थान दिया। चाहे चित्रकला हो, संगीत हो, नृत्य हो भारत में एक अलग ही स्थान पर स्थापित करवाया। आज हम देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती, महाराणा प्रताप, शंकुतला, जटायु वध, अर्जुन-सुभद्रा, सैरंध्री, कार्तिकेय जैसे जो चित्र देखते हैं जो मानव रूप में दिखाई देते हैं। इन चित्रों में जान फूंकने का काम किया है भारत के महान चित्रकार राजा रविवर्मा ने। रविवर्मा ने भारतीय चित्रकला को वो आयाम दिया जिससे भारत में कला की क्रांति आ गई।

ऐसा बिल्कुल नहीं है कि राजा रवि वर्मा से पहले भारत में चित्रकला नहीं होती थी। मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में स्थित भीमबेटका में तो ईसा से हजारों साल पहले की चित्रकारी देख सकते हैं। यही नहीं महाराष्ट्र की अजंता गुफाओं, एमपी की बाघ की गुफाओं, लेपाक्षी मंदिर और तंजौर के मंदिर में मानवीय रूप में चित्रकारी की गई। यह सिलसिला चलता रहा और बाद में कई क्षेत्रीय कला में इसे प्रोत्साहन मिलता चला गया। रवि वर्मा ने केवल चित्रकारी ही नहीं की बल्कि प्रयोग किए हैं।


केरल के किलिमानूर में जन्मे रवि वर्मा बचपन से ही चित्रकारी में धनी रहे हैं। केरल में एक प्रथा थी जिसमें विवाह करने के बाद पति अपनी पत्नी के घर पर ही रहता था। रवि वर्मा के माता-पिता ने भी इसी प्रथा को मानते हुए रवि वर्मा के मामा राजा राज वर्मा के घर रूके। रवि वर्मा को बचपन में लोग प्यार से कोच्चू के नाम से पुकारते थे। एक बार कोच्चू और उनकी बहन मंदिर के बगल में स्थित बगीचे में खेल रहे थे। उन्होंने अपनी बहन से बोला कि मैं मंदिर की दीवार पर घोड़े की आकृति बनाता हूं। उनकी बहन ने बोला जी भइया। बहन ने कोच्चू को कोयला का टुकड़ा उठाकर दिया। इसी कोयले के टुकड़े से कोच्चू ने मंदिर की दीवार पर एक शानदार छलांग भरता हुआ घोड़ा बनाया।

मंदिर की दीवार पर घोड़े की आकृति देखकर माली ने बच्चों से कहा कि मैं तुम दोनों की शिकायत राजा से करता हूं। माली ने बच्चों की शिकायत राजा से की। राजा राज वर्मा ने माली से कहा कि वो चित्रकारी कहां है मुझे भी देखना है। जैसे ही राजा राज वर्मा उस दीवार के पास पहुंचे तो उनके मुंह से चित्रकारी की  तारीफ के अलावा कुछ नहीं निकला। माली ने राजा राज वर्मा से कहा कि इन बच्चों ने मंदिर की दीवार गंदी कर दी और आप तारीफ कर रहे हैं। राजा राज वर्मा ने माली से कहा कि कोच्चू ने वाकई अच्छी चित्रकारी की है। कोच्चू के मामा स्वयं भी एक चित्रकार थे। कोच्चू अर्थात रवि वर्मा के शुरुआती गुरु उनके मामा ही थे।


कई लोग कहते हैं कि रवि वर्मा को प्रारंभिक चित्रकारी उनके चाचा ने सिखाई थी। राजा राज वर्मा ने किलीमानूर में रवि वर्मा को चित्रकारी वॉटर कलर से करना सिखाया। रवि वर्मा कुशाग्र बुद्धि के धनी व्यक्ति थे। रवि वर्मा ने मात्र 18 वर्ष की उम्र में तमिल, मलयालम भाषा का ज्ञान, संगीत, वादन और कथकली नृत्य सीख लिया था। पहले तिरुवनंतपुरम को त्रिवेंद्रम के नाम से भी जाना जाता था। त्रिवेंद्रम के राजा तिरुनल ने राजा राज वर्मा को बुलावा भेजा और संदेश दिया कि वे राजधानी त्रिवेंद्रम आएं और साथ में एक ऐसे बालक को लेकर आएं जिसकी आयु विवाह योग्य हो। राजा राज वर्मा अपने साथ तरुण रवि वर्मा को ले गए। राज वर्मा ने जब राजा तिरुनल से रवि वर्मा के बारे में बताया तो तिरुनल आश्चर्यचकित रह गया। राजा राज वर्मा ने आग्रह किया कि रवि वर्मा किलीमानूर में जितनी शिक्षा ग्रहण कर सकता था कर चुका है। यदि आप चाहें तो रवि वर्मा त्रिवेंद्रम में रहकर आगे कुछ सीख सकता है। राजा तिरुनल ने इस आग्रह को तुरंत स्वीकार कर लिया।


कोच्चू अब राजा रवि वर्मा बनने की दिशा में पैर रख चुका था। एक ऐसी दिशा जहां उसे संघर्ष, हुनर, इज्जत, शोहरत और बेइज्जती मिलने वाली थी। अब कोच्चू त्रिवेंद्रम में रहने लगा। राजा तिरुनल ने उस समय के प्रसिद्ध चित्रकार रामास्वामी नायकर को कोच्चू के शिक्षक के रूप में नियुक्त कर दिया। रामास्वामी नायकर को जब मालूम चला कि रंगों की कूची चलाने में कोच्चू मुझसे ज्यादा माहिर है तो वह सिखाने में टालमटोल करने लगा। हां, कोच्चू ने नायकर से कुछ सीखा हो या नहीं एक अच्छी शुरुआत जरूर हुई वो थी ऑयल पेंटिंग। जब राजा तिरुनल को पता चला कि नायकर कोच्चू को चित्रकारी नहीं सिखा रहा तब राजा ने कोच्चू को पुराने चित्र देकर अभ्यास करने के लिए कहा। यही अभ्यास कोच्चू को आगे तक ले गए।


इसी समय नीदरलैंड्स का प्रसिद्ध चित्रकार थियोडोर जेंसन राज दरबार में आया हुआ था। राजपरिवार ने जेंसन को पोट्रेट बनवाने  के लिए बुलवाया था। राजा तिरुनल ने तय किया कि कोच्चू चित्रकार थियोडोर जेंसन से पोट्रेट बनाने और ऑयल पेंटिंग के गुर सीखेगा। जेंसन को जब मालूम चला कि राजा इस बारे में सोच रहे हैं तो उसने कोच्चू को सिखाने से मना कर दिया। इस बात पर राजा नाराज हो गया और कहा कि हमें पोट्रेट नहीं बनवाना है। इसके बाद थियोडोर जेंसन ने कोच्चू को पोट्रेट बनाना सिखाया क्योंकि वो ऐसा ना करता तो उसे मोटी रकम और इज्जत गंवानी पड़ती। रवि वर्मा ने जैसे-तैसे पोट्रेट बनाना सीख ही लिया। जो रवि वर्मा के जीवन में बड़ा काम आया। पोट्रेट, चित्रकारी की विधा है जिसमें चित्रकार सामने बैठे किसी व्यक्ति की चित्रकारी कैनवास पर उतारता है।


रवि वर्मा ने आगे की शिक्षा मैसूर और बडौदा में हासिल की। रवि  वर्मा ने देशभर के चक्कर लगाए। भारतीय संस्कृति को समझने में रवि वर्मा को भारत यात्रा बहुत काम आई। इन्हीं यात्राओं के बाद रवि वर्मा ने अपनी चित्रकारी की जादूगरी बिखेरी। भारत यात्रा से पहले भी रवि वर्मा ने कई चित्र बनाए थे लेकिन उन्हें अब समझ आ गया था कि उन्हें करना क्या है? भारतीय संस्कृति के नायकों और देवी-देवताओं की ऑयल पेटिंग बनाना शुरू कर दी। देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती, भगवान कार्तिकेय, राधा-कृष्ण, सीता हरण, जटायु वध, अष्टसिद्धि, भीष्म प्रतिज्ञा, अर्जुन-सुभद्रा, शांतनु-मत्स्यगंधा, कण्व ऋषि और ऋषि कन्या, राम की वरुण विजय जैसी शानदार ऑयल पेंटिंग रवि वर्मा ने बनाई। शुरुआत में रवि वर्मा पेंटिंग में तंजौर कला का उपयोग करते थे लेकिन समय के साथ-साथ एक मिश्रित कला में बदल गई।


देवी-देवताओं के चित्र के अलावा राजा रवि वर्मा ने महाराणा प्रताप, अप्सरा-रंभा, फल के साथ महिला, ग्वालिन,नायर जाति की स्त्री, विचारमग्न युवती शामिल हैं। यहां तक की रवि वर्मा ने अपनी बहू का पोट्रेट भी बनाया। रवि वर्मा की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति रही शकुंतला। पत्र लिखती शकुंतला, बगीचे में सखियों के साथ पीछे मुड़कर देखती शकुंतला, राजा के सम्मुख खड़ी शकुंतला जैसे अनेक चित्र बनाए। महाकवि कालिदास के अभिज्ञानशाकुन्तलम् पर आधारित ये चित्र इतने प्रसिद्ध रहे की विदेश में भी इसकी चर्चा हुई। इसी समय सर मोनियर विलियम्स ने अभिज्ञानशाकुन्तलम् का अंग्रेजी अनुवाद किया और पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर रवि वर्मा से प्रेम पत्र लिखती शकुंतला का चित्र छापने का आग्रह किया। इस आग्रह को रवि वर्मा ने स्वीकार कर लिया।


रवि वर्मा से चित्र और पोट्रेट बनवाने की मानो होड़ सी लग गई। अंग्रेज अफसरों से लेकर राजा-महाराजाओं ने रवि वर्मा से चित्र और पोट्रेट बनवाए। एक बार इसी काम के लिए उन्हें मैसूर राजघराने ने उन्हें दो हाथी तोहफे में दिए। एक बार रिचर्ड टैंपल-ग्रेनविले भारत आए तो उनका स्वागत त्रावणकोर के महाराज और उनके छोटे भाई ने किया। इस पेंटिंग की अंग्रेजों के बीच बहुत तारीफ हुई और इसकी नीलामी 1.2 मिलियन डॉलर में हुई। रवि वर्मा ने मुंबई में लिथोग्राफिक प्रेस भी खेला। इस प्रेस से उन्होंने बहुत धन कमाया और इज्जत भी। धन और इज्जत कई लोगों को हजम नहीं होती। रवि वर्मा पर यह कहते हुए आरोप लगाया कि वे नग्न तस्वीर बनाते हैं और मुंबई स्थित प्रेस पर कई लोगों ने हमला कर दिया। प्रेस को जला दिया गया जिससे कई सारी पेंटिंग जलकर स्वाहा हो गईं।


राजा रवि वर्मा की मुझे 'गैलेक्सी ऑफ म्युजिसियन्स' नामक की पेंटिंग सबसे अच्छी लगी। इस पेंटिंग विभिन्न परिधानों में 11 महिलाएं हैं जो भारत को प्रस्तुत कर रही हैं। कोई महिला वायलिन बजा रही है तो कोई तानपुरा सभी के चेहरे पर शांत और गंभीर भाव देखने मिल रहा है। पेंटिंग का भाव महिला केंद्रित है जिसमें ये बताया गया है कि महिला ही इस ब्रह्मांड की जननी है।


लोगों ने रवि वर्मा की प्रेस को तो जला दिया लेकिन हुनर अभी भी जिंदा था जो ताउम्र उनके साथ रहा। अबनीन्द्रनाथ टैगोर जैसे चित्रकार ने तो रवि वर्मा को भारतीय चित्रकार होने पर ही प्रश्न खड़ा कर दिया। उनका कहना था कि रवि वर्मा पेंटिंग बनाने के लिए विदेशी तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। अंग्रेजों ने उन्हें कैसर-ए-हिंद सम्मान से नवाजा। राजा की उपाधि भी मिली और वे बन गए राजा रवि वर्मा। साल 1906 में मात्र 58 साल की उम्र में राजा रवि वर्मा का देहांत हो गया। शरीर भले ही नश्वर हो लेकिन उनकी कलाकृति आज भी जीवित है। सच में वे चित्रकारों में राजा थे राजा। आज भी उनके बनाए गए चित्र बडौदा के लक्ष्मी विलास पैलेस म्यूजियम में देखने को मिल जाएंगे। 

📃BY_vinaykushwaha

(नोट :- राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स के सभी चित्र इंटरनेट से डाउनलोड किए गए हैं।)