पहले लॉकडाउन आया,इसके बाद लॉकडाउन 2.0 आया फिर लॉकडाउन 3.0, इसके बाद लॉकडाउन 4.0 पता नहीं आगे क्या होने वाला है। क्या फिर से लॉकडाउन बढ़ेगा या फिर लॉकडाउन को खत्म कर हमारी जिंदगी फिर से सामान्य हो जाएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर तमाम मेडिकल से जुड़े व्यक्तियों का कहना है कि कोरोना वायरस अब हमारे साथ रहेगा। इसका मतलब है कि आने वाले समय कोरोना आम फ्लू की तरह हो जाएगा। इस फ्लू के साथ हम जीवन बिताएंगे। लेकिन ये कब तक होगा? किसी को इस बात की जानकारी नहीं।
वैज्ञानिक वैक्सीन की खोज में डटे हुए हैं। दुनियाभर के देशों में कोरोना के खिलाफ जंग जारी है। बांग्लादेश के वैज्ञानिकों का कहना है कि पशुओं में कीड़े मारने वाली दवा आईवरमेक्टिन और डॉक्सीसायक्लिन का कॉम्बिनेशन बनाया। इस कॉम्बिनेशन से कोरोना के इलाज में मदद मिलेगी। ये तो समय ही बता पाएगा कि क्या इलाज के लिए बेहतर है क्या नहीं? कुछ समय पहले तक हाइड्रोक्सीक्लोरीक्वीन के लिए पूरी दुनिया में शोर मच रहा था। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने तो हाइड्रोक्सीक्लोरीक्वीन के लिए भारत को धमकी तक दे डाली थी। हांलाकि भारत ने एशिया से लेकर अमेरिका तक हाइड्रोक्सीक्लोरीक्वीन बांटी। ट्रंप से उलट अमेरिका के कई वैज्ञानिकों ने इस दवा के प्रभाव को नकार दिया और यहां तक कहा कि भारत से आने वाली ये दवा घटिया क्वालिटी की है।
हाइड्रोक्सीक्लोरीक्वीन दवा मुख्य रूप से मलेरिया में उपयोग होने वाली दवा है। भारत इस दवा का सबसे बड़े उत्पादक देश में से है। भारत की महानता तो देखिए कि कोरोना से लड़ाई कोई देश ना हारे इसलिए पाकिस्तान को भी मेडिकल सप्लाई दी। पाकिस्तान में इस बात का विरोध हुआ कि हम दुश्मन देश से मेडिकल सप्लाई कैसे ले सकते हैं। वहां पीएम इमरान खान ने जांच कमेटी बैठा दी। वाह रे! राजनीति क्या-क्या करवा देती है। जब हम चीन से घटिया मास्क और पीपीई किट ले सकते हैं तो हमने तो पाक को अच्छी क्वालिटी का सामान दिया था।
कई देशों में रेमडेसिवर दवा का इस्तेमाल किया जा रहा है। रेमडेसिवर दवा इबोला के लिए विकसित की गई थी लेकिन उपयोगी सिद्ध होने से कोरोना के काम आ रही है। भारत में फेविपीरावीर नामक दवा का ड्रग ट्रायल शुरू किया जाएगा। ये दवा चीन और जापान में फ्लू के लिए इस्तेमाल की जाती है। इसके पहले भारत में दूसरी दवाओं के साथ प्रयोग देखा गया है। इन दवाओं में एड्स की दवा भी शामिल है। जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में डॉक्टरों ने इस दवा का उपयोग किया था जो कहीं हद तक सफल रहा था। कई जगह खांसी-जुकाम में काम आने वाली पैरासिटामॉल के साथ भी प्रयोग देखा गया।
कोरोना पर कौनसी दवा का असर होगा? किस दवा का असर नहीं होगा? समय ही बता पाएगा। कोरोना ने जीवन को माफ कीजिएगा दैनिक जीवन को बदल दिया है। मास्क के बिना अब जीवन अधूरा सा लगता है। ऐसा लगता है मानो कुछ छूट गया हो। जब पीएम ने कहा है कि गमछा भी कारगर है तभी से हम भी गमछामैन बन गए। इस भंयकर महामारी के बीच भी ऑफिस जाते है और बहुत सारे जतन करके जाते हैं। सैनिटाइजर और सोशल डिस्टेंस अब जरूरी हो गया है। बिना मास्क के आपके साथ बुरा व्यवहार हो सकता है या फिर आपको मास्क पहनने के लिए बाध्य किया जा सकता है।
मैं पत्रकार हूं। जिसे रोजाना ऑफिस जाना होता है और कोरोना की भयावह खबरों से दो-चार होना पड़ता है। कोरोना के बढ़ते मामले देश के लिए विश्व के लिए खतरनाक है। दुनिया पर जितना सितम कोरोना ने किया है उतना शायद ही किसी और किया हो। लॉकडाउन से स्थिति में बहुत हद तक सुधार हुआ है। एक स्टडी कहती है कि यदि लॉकडाउन नहीं होता तो भारत में आज कोरोना वायरस से संक्रमितों की संख्या 53 लाख होती। लॉकडाउन डबलिंग रेट 4 दिन था जो आज 13 दिन हो गया है और रिकवरी रेट भी बढ़ गया है। लॉकडाउन की महिमा अपरंपार है।
इस लॉकडाउन की वजह से प्रकृति सास ले रही है। पुख्ता तौर पर तो नहीं कह सकता लेकिन इस लॉकडाउन की वजह से अभी तक सबसे कम गर्मी पड़ी। अप्रैल 2020 तक मौसम विभाग का कहना है कि भारत में 12 साल में सबसे कम गर्मी हुई। रुक-रुककर बारिश होना और तेज आंधी-तूफान इस प्रकृति जनित हो सकता है लेकिन ये सुहावना रहा। मैं इस मौसम को पहली इंज्वाय कर रहा हूं। मौसम विभाग ने भविष्यवाणी किया है कि इस साल मानसून पांच दिन देरी आएगा। ये देरी किसानों के साथ-साथ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय है। मूडीज ने भारत की अर्थव्यवस्था के बारे में संभावना जताई है कि भारत में इतिहास की सबसे बड़ी मंदी आएगी।
अर्थव्यवस्था को झटका तो लगने वाला है। देशभर में इस लॉकडाउन की वजह कई कंपनियां बंद हुई हैं। लोग बेरोजगार हुए हैं। मजदूर वर्ग इस लॉकडाउन से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। मजदूरों का पलायन जारी है। काम नहीं है, खाना नहीं मिल रहा है, पैसा नहीं है, जमापूंजी खत्म हो रही है, मजदूर अपने घर से पैसे मंगवाकर जीवनयापन कर रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अबतक 22 लाख मजदूर अपने घर लौटे हैं। राज्य सरकार दूसरे राज्यों से लगने वाली सीमा तक मजदूरों को बसों के जरिए छोड़ रही है बाकी मजदूरों की जिंदगी भगवान के भरोसे। खाना के पता नहीं, घरों तक कैसे पहुंचेंगे पता नहीं, शौचालय नहीं है, कैंपों में पर्याप्त व्यवस्था नहीं।
देशभर से पलायन जारी है। दक्षिण भारत और महाराष्ट्र, गुजरात से पलायन करने वाला मजदूर एमपी गुजरकर अपने घरों तक जा रहा है। एमपी सरकार इतनी सक्षम नहीं की सारा बोझ झेल ले। एमपी में एनएच 3 और एनएच 7 पलायन का सबसे बड़ा जरिया बना है जो दक्षिण को उत्तर से जोड़ता है। इन पर लाखों मजदूर चल रहे हैं। मैं तो यही सोचता हूं कि कोई अनहोनी ना हो। सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेन और राजधानी जैसे ट्रेन चलाई लेकिन इनमें सवार होना भी बहुत मुश्किल है। बिहार और यूपी जाने वाली ट्रेनों के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।
कोरोना ने लोगों को वो दौर दिखाया है जो सबके लिए आसान नहीं है। महाराष्ट्र के 1000 से ज्यादा पुलिसकर्मी कोरोना संक्रमित पाए गए। जब सुरक्षा में सेंध लग जाए तो क्या होगा? मैंने लोगों को जागरूक होते देखा है। सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, हैंड वॉश करना और हेल्दी खाने की आदत में बदलते देखा है। मैंने अपनी जिंदगी में इतनी रोटी नहीं बनाई जितनी की इस लॉकडाउन पीरियड में बनाई है। मेरा घूमना बंद है। इतने समय तक कभी किसी एक ही शहर में नहीं गुजारा। अब तो जिंदगी ऑफिस से घर और घर से ऑफिस हो गई है। फ्लैट की बालकनी से दूर दिखती हरियाली और बिल्डिंग को निहारना अच्छा अनुभव है। देखो बाकी क्या होगा। जो होगा सब अच्छा होगा।
📃BY_vinaykushwaha
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें