रविवर्मा भातखण्डे भाग्यचन्द्रः स भूपतिः
कलावंतश्च विख्याताः स्मरणीया निरन्तरम्॥
इस संस्कृत के श्लोक में उन लोगों के नाम हैं जिन्होंने कला को भारत में सर्वोच्च स्थान दिया। चाहे चित्रकला हो, संगीत हो, नृत्य हो भारत में एक अलग ही स्थान पर स्थापित करवाया। आज हम देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती, महाराणा प्रताप, शंकुतला, जटायु वध, अर्जुन-सुभद्रा, सैरंध्री, कार्तिकेय जैसे जो चित्र देखते हैं जो मानव रूप में दिखाई देते हैं। इन चित्रों में जान फूंकने का काम किया है भारत के महान चित्रकार राजा रविवर्मा ने। रविवर्मा ने भारतीय चित्रकला को वो आयाम दिया जिससे भारत में कला की क्रांति आ गई।
ऐसा बिल्कुल नहीं है कि राजा रवि वर्मा से पहले भारत में चित्रकला नहीं होती थी। मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में स्थित भीमबेटका में तो ईसा से हजारों साल पहले की चित्रकारी देख सकते हैं। यही नहीं महाराष्ट्र की अजंता गुफाओं, एमपी की बाघ की गुफाओं, लेपाक्षी मंदिर और तंजौर के मंदिर में मानवीय रूप में चित्रकारी की गई। यह सिलसिला चलता रहा और बाद में कई क्षेत्रीय कला में इसे प्रोत्साहन मिलता चला गया। रवि वर्मा ने केवल चित्रकारी ही नहीं की बल्कि प्रयोग किए हैं।
केरल के किलिमानूर में जन्मे रवि वर्मा बचपन से ही चित्रकारी में धनी रहे हैं। केरल में एक प्रथा थी जिसमें विवाह करने के बाद पति अपनी पत्नी के घर पर ही रहता था। रवि वर्मा के माता-पिता ने भी इसी प्रथा को मानते हुए रवि वर्मा के मामा राजा राज वर्मा के घर रूके। रवि वर्मा को बचपन में लोग प्यार से कोच्चू के नाम से पुकारते थे। एक बार कोच्चू और उनकी बहन मंदिर के बगल में स्थित बगीचे में खेल रहे थे। उन्होंने अपनी बहन से बोला कि मैं मंदिर की दीवार पर घोड़े की आकृति बनाता हूं। उनकी बहन ने बोला जी भइया। बहन ने कोच्चू को कोयला का टुकड़ा उठाकर दिया। इसी कोयले के टुकड़े से कोच्चू ने मंदिर की दीवार पर एक शानदार छलांग भरता हुआ घोड़ा बनाया।
मंदिर की दीवार पर घोड़े की आकृति देखकर माली ने बच्चों से कहा कि मैं तुम दोनों की शिकायत राजा से करता हूं। माली ने बच्चों की शिकायत राजा से की। राजा राज वर्मा ने माली से कहा कि वो चित्रकारी कहां है मुझे भी देखना है। जैसे ही राजा राज वर्मा उस दीवार के पास पहुंचे तो उनके मुंह से चित्रकारी की तारीफ के अलावा कुछ नहीं निकला। माली ने राजा राज वर्मा से कहा कि इन बच्चों ने मंदिर की दीवार गंदी कर दी और आप तारीफ कर रहे हैं। राजा राज वर्मा ने माली से कहा कि कोच्चू ने वाकई अच्छी चित्रकारी की है। कोच्चू के मामा स्वयं भी एक चित्रकार थे। कोच्चू अर्थात रवि वर्मा के शुरुआती गुरु उनके मामा ही थे।
कई लोग कहते हैं कि रवि वर्मा को प्रारंभिक चित्रकारी उनके चाचा ने सिखाई थी। राजा राज वर्मा ने किलीमानूर में रवि वर्मा को चित्रकारी वॉटर कलर से करना सिखाया। रवि वर्मा कुशाग्र बुद्धि के धनी व्यक्ति थे। रवि वर्मा ने मात्र 18 वर्ष की उम्र में तमिल, मलयालम भाषा का ज्ञान, संगीत, वादन और कथकली नृत्य सीख लिया था। पहले तिरुवनंतपुरम को त्रिवेंद्रम के नाम से भी जाना जाता था। त्रिवेंद्रम के राजा तिरुनल ने राजा राज वर्मा को बुलावा भेजा और संदेश दिया कि वे राजधानी त्रिवेंद्रम आएं और साथ में एक ऐसे बालक को लेकर आएं जिसकी आयु विवाह योग्य हो। राजा राज वर्मा अपने साथ तरुण रवि वर्मा को ले गए। राज वर्मा ने जब राजा तिरुनल से रवि वर्मा के बारे में बताया तो तिरुनल आश्चर्यचकित रह गया। राजा राज वर्मा ने आग्रह किया कि रवि वर्मा किलीमानूर में जितनी शिक्षा ग्रहण कर सकता था कर चुका है। यदि आप चाहें तो रवि वर्मा त्रिवेंद्रम में रहकर आगे कुछ सीख सकता है। राजा तिरुनल ने इस आग्रह को तुरंत स्वीकार कर लिया।
कोच्चू अब राजा रवि वर्मा बनने की दिशा में पैर रख चुका था। एक ऐसी दिशा जहां उसे संघर्ष, हुनर, इज्जत, शोहरत और बेइज्जती मिलने वाली थी। अब कोच्चू त्रिवेंद्रम में रहने लगा। राजा तिरुनल ने उस समय के प्रसिद्ध चित्रकार रामास्वामी नायकर को कोच्चू के शिक्षक के रूप में नियुक्त कर दिया। रामास्वामी नायकर को जब मालूम चला कि रंगों की कूची चलाने में कोच्चू मुझसे ज्यादा माहिर है तो वह सिखाने में टालमटोल करने लगा। हां, कोच्चू ने नायकर से कुछ सीखा हो या नहीं एक अच्छी शुरुआत जरूर हुई वो थी ऑयल पेंटिंग। जब राजा तिरुनल को पता चला कि नायकर कोच्चू को चित्रकारी नहीं सिखा रहा तब राजा ने कोच्चू को पुराने चित्र देकर अभ्यास करने के लिए कहा। यही अभ्यास कोच्चू को आगे तक ले गए।
इसी समय नीदरलैंड्स का प्रसिद्ध चित्रकार थियोडोर जेंसन राज दरबार में आया हुआ था। राजपरिवार ने जेंसन को पोट्रेट बनवाने के लिए बुलवाया था। राजा तिरुनल ने तय किया कि कोच्चू चित्रकार थियोडोर जेंसन से पोट्रेट बनाने और ऑयल पेंटिंग के गुर सीखेगा। जेंसन को जब मालूम चला कि राजा इस बारे में सोच रहे हैं तो उसने कोच्चू को सिखाने से मना कर दिया। इस बात पर राजा नाराज हो गया और कहा कि हमें पोट्रेट नहीं बनवाना है। इसके बाद थियोडोर जेंसन ने कोच्चू को पोट्रेट बनाना सिखाया क्योंकि वो ऐसा ना करता तो उसे मोटी रकम और इज्जत गंवानी पड़ती। रवि वर्मा ने जैसे-तैसे पोट्रेट बनाना सीख ही लिया। जो रवि वर्मा के जीवन में बड़ा काम आया। पोट्रेट, चित्रकारी की विधा है जिसमें चित्रकार सामने बैठे किसी व्यक्ति की चित्रकारी कैनवास पर उतारता है।
रवि वर्मा ने आगे की शिक्षा मैसूर और बडौदा में हासिल की। रवि वर्मा ने देशभर के चक्कर लगाए। भारतीय संस्कृति को समझने में रवि वर्मा को भारत यात्रा बहुत काम आई। इन्हीं यात्राओं के बाद रवि वर्मा ने अपनी चित्रकारी की जादूगरी बिखेरी। भारत यात्रा से पहले भी रवि वर्मा ने कई चित्र बनाए थे लेकिन उन्हें अब समझ आ गया था कि उन्हें करना क्या है? भारतीय संस्कृति के नायकों और देवी-देवताओं की ऑयल पेटिंग बनाना शुरू कर दी। देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती, भगवान कार्तिकेय, राधा-कृष्ण, सीता हरण, जटायु वध, अष्टसिद्धि, भीष्म प्रतिज्ञा, अर्जुन-सुभद्रा, शांतनु-मत्स्यगंधा, कण्व ऋषि और ऋषि कन्या, राम की वरुण विजय जैसी शानदार ऑयल पेंटिंग रवि वर्मा ने बनाई। शुरुआत में रवि वर्मा पेंटिंग में तंजौर कला का उपयोग करते थे लेकिन समय के साथ-साथ एक मिश्रित कला में बदल गई।
देवी-देवताओं के चित्र के अलावा राजा रवि वर्मा ने महाराणा प्रताप, अप्सरा-रंभा, फल के साथ महिला, ग्वालिन,नायर जाति की स्त्री, विचारमग्न युवती शामिल हैं। यहां तक की रवि वर्मा ने अपनी बहू का पोट्रेट भी बनाया। रवि वर्मा की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति रही शकुंतला। पत्र लिखती शकुंतला, बगीचे में सखियों के साथ पीछे मुड़कर देखती शकुंतला, राजा के सम्मुख खड़ी शकुंतला जैसे अनेक चित्र बनाए। महाकवि कालिदास के अभिज्ञानशाकुन्तलम् पर आधारित ये चित्र इतने प्रसिद्ध रहे की विदेश में भी इसकी चर्चा हुई। इसी समय सर मोनियर विलियम्स ने अभिज्ञानशाकुन्तलम् का अंग्रेजी अनुवाद किया और पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर रवि वर्मा से प्रेम पत्र लिखती शकुंतला का चित्र छापने का आग्रह किया। इस आग्रह को रवि वर्मा ने स्वीकार कर लिया।
रवि वर्मा से चित्र और पोट्रेट बनवाने की मानो होड़ सी लग गई। अंग्रेज अफसरों से लेकर राजा-महाराजाओं ने रवि वर्मा से चित्र और पोट्रेट बनवाए। एक बार इसी काम के लिए उन्हें मैसूर राजघराने ने उन्हें दो हाथी तोहफे में दिए। एक बार रिचर्ड टैंपल-ग्रेनविले भारत आए तो उनका स्वागत त्रावणकोर के महाराज और उनके छोटे भाई ने किया। इस पेंटिंग की अंग्रेजों के बीच बहुत तारीफ हुई और इसकी नीलामी 1.2 मिलियन डॉलर में हुई। रवि वर्मा ने मुंबई में लिथोग्राफिक प्रेस भी खेला। इस प्रेस से उन्होंने बहुत धन कमाया और इज्जत भी। धन और इज्जत कई लोगों को हजम नहीं होती। रवि वर्मा पर यह कहते हुए आरोप लगाया कि वे नग्न तस्वीर बनाते हैं और मुंबई स्थित प्रेस पर कई लोगों ने हमला कर दिया। प्रेस को जला दिया गया जिससे कई सारी पेंटिंग जलकर स्वाहा हो गईं।
राजा रवि वर्मा की मुझे 'गैलेक्सी ऑफ म्युजिसियन्स' नामक की पेंटिंग सबसे अच्छी लगी। इस पेंटिंग विभिन्न परिधानों में 11 महिलाएं हैं जो भारत को प्रस्तुत कर रही हैं। कोई महिला वायलिन बजा रही है तो कोई तानपुरा सभी के चेहरे पर शांत और गंभीर भाव देखने मिल रहा है। पेंटिंग का भाव महिला केंद्रित है जिसमें ये बताया गया है कि महिला ही इस ब्रह्मांड की जननी है।
लोगों ने रवि वर्मा की प्रेस को तो जला दिया लेकिन हुनर अभी भी जिंदा था जो ताउम्र उनके साथ रहा। अबनीन्द्रनाथ टैगोर जैसे चित्रकार ने तो रवि वर्मा को भारतीय चित्रकार होने पर ही प्रश्न खड़ा कर दिया। उनका कहना था कि रवि वर्मा पेंटिंग बनाने के लिए विदेशी तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। अंग्रेजों ने उन्हें कैसर-ए-हिंद सम्मान से नवाजा। राजा की उपाधि भी मिली और वे बन गए राजा रवि वर्मा। साल 1906 में मात्र 58 साल की उम्र में राजा रवि वर्मा का देहांत हो गया। शरीर भले ही नश्वर हो लेकिन उनकी कलाकृति आज भी जीवित है। सच में वे चित्रकारों में राजा थे राजा। आज भी उनके बनाए गए चित्र बडौदा के लक्ष्मी विलास पैलेस म्यूजियम में देखने को मिल जाएंगे।
📃BY_vinaykushwaha
(नोट :- राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स के सभी चित्र इंटरनेट से डाउनलोड किए गए हैं।)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें