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बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

ईरान और भारत

       

अमेरिका के बार-बार मना करने पर भी ईरान परमाणु बमों का परीक्षण कर रहा था। जिसके कारण अमेरिका और  तमाम दूसरे देशों ने उस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। लेकिन एक देश अब भी ऐसा था जिसने ऐसा नहीं किया और ईरान का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करता रहा वो देश है भारत। भारत के ईरान के साथ रिश्तें कोई 200-400 साल पुराना नहीं है। यह रिश्ता तो लगभग 2000 साल से भी ज्यादा पुराना है। मौर्य काल हो या बाद के काल दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध रहे हैं। भारत भी कई सभ्यताओं के बाद जन्मा एक महान राष्ट्र है। ईरान में भी बेबीलोन जैसी सभ्यता ने जन्म लिया।

ईरान का पुराना नाम पर्सिया है। पर्सिया होने के पीछे परसियन साम्राज्य का होना है। यह वही देश है जहां पारसी धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। पारसी धर्म एक शांति प्रिय धर्म है जिसनेे जुल्म और सितम सहें। पारसी धर्म को हिंदु धर्म की तरह देखा जाता है। इस धर्म में भी अग्नि और जल को एक पवित्र तत्व माना गया है। पारसी धर्म विश्व के सबसे पुराने धर्मों में से एक है। जब ईरान में पारसी धर्म के मतावलम्बियों को कष्ट हुआ तो वे अपनी जन्मभूमि को छोड़कर भारत की ओर रुख कर लिया। मुंबई और गुजरात में साफ-साफ साक्ष्य मौजूद है। आज भी इन्हीं जगहों पर सर्वाधिक पारसी रहते हैं।

भारत और ईरान एक मित्र राष्ट्र के रुप में एक-दूसरे से व्यवहार करते है। ईरान कब शिया मुस्लिम बहुल राष्ट्र बन गया यह तो सर्वविद्यित है। जरुरत समाज की एक आवश्यकता है।  भारत और ईरान को भी एक-दूसरे की जरुरत है क्योंकि विश्व रुपी समाज में सभी देशों को एक-दूसरे की जरुरत है। ईरान के पास कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, और भौगोलिक स्थिति है। इन्हीं सारी चीजों की भारत को जरुरत है।

भारत आने वाले समय की महाशक्ति है। भारत की जरुरत को पूर्ण करने में कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस की आवश्यकता है। भारत अपनी जरुरत का 75 प्रतिशत तेल और गैस आयात करता है। भारत सस्ती और आसानी से उपलब्ध तेल और गैस की तलाश में है। ईरान पर जब आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए थे तब भी  भारत ही था जिसने ईरान से व्यापार जारी रखा और तेल का आयात करता रहा। आज के दौर में किसी भी देश के लिए तेल, गैस और भौगोलिक स्थिति (geographical position) के बहुत मायने है। हसन रुहानी भारत आए तो यही तीन मुद्दे हावी रहे। इसमें सर्वाधिक चर्चित मुद्दा चाबहार पोर्ट रहा।

चाबहार पोर्ट ईरान का एक पोर्ट है जो अरब सागर में स्थित है। यह पोर्ट ग्वादर पोर्ट के निकट है। यह वही ग्वादर पोर्ट है जो पाकिस्तान और चीन की संयुक्त परियोजना है जो कि ओबीओआर का भाग है। चीन आज के समय में दूसरे देश की जमीन का उपयोग करके अपने लिए एक बैकअप बनाने और उसके पड़ोसी देश को घेरने की तैयार करने की कोशिश कर रहा है। भारत भी अब चीन को चीन की तरह से ही घेरने की कोशिश में है। चाबहार पोर्ट एक रास्ता है जो भारत की पहुंच को मध्य एशिया तक आसान बनाएगा।

खासतौर पर पाकिस्तान, अफगानिस्तान में भारत की एंट्री नहीं होने देना चाहता। भारत ने पाकिस्तान के सामने एक प्रस्ताव रखा था कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत एक सड़क परियोजना से जुड़े लेकिन पाकिस्तान ने मना कर दिया। इस मनाही का विकल्प चाबहार के रूप में निकला। भारत ने एक तीर से कई सारे निशाने साधे हैं। पहला कि भारत को मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए आसान और छोटा रास्ता मिल गया। दूसरा अफगानिस्तान पहुंचने के लिए अब तक केवल हवाई मार्ग से ही सीधे पहुंचा जा सकता था जो कि आयात-निर्यात के लिए उपयुक्त माध्यम नहीं है।चाबहार के बन जाने के बाद इस समस्या का लगभग निराकरण हो जाएगा। तीसरा पाकिस्तान में हो रही गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है। चौथा, इस क्षेत्र में बढ़ रहे चीन के प्रभाव को कम करने और संतुलन स्थापित करने में महत्वपूर्ण है।

भारत और ईरान सदा का साथ है और बना रहेगा। ईरान, भारत से अपनापन जताता है और भारत, ईरान से। भौगोलिक दूरियों को कम किया जा सकता है।

                           ।।जय हिन्द।।

📃BY_vinaykushwaha

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