भारत में चुनाव आयोग एक महत्वपूर्ण संस्था है। चुनाव आयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 के तहत काम करता है। संविधान के तहत काम करने के कारण न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका को चुनाव आयोग की बातों पर गौर करना होता है। चुनाव आयोग का सबसे महत्वपूर्ण कार्य देश में समय-समय पर चुनाव करवाना और राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह देने के साथ-साथ उन्हें राष्ट्रीय,क्षेत्रीय और राज्य की राजनीतिक पार्टियों में विभाजित करना है। चुनाव आयोग को लोग कई बार बिना दांत का शेर कह देते हैं क्योंकि चुनाव आयोग दहाड़ तो देता है लेकिन कार्रवाई नहीं करता है। चुनाव के समय चुनाव आयोग का महत्व बढ़ जाता है। ये काफी हद सही है। 2019 आम चुनाव में चुनाव आयोग की कार्रवाई को देखकर तो बिल्कुल नहीं लगता कि चुनाव आयोग बिना दांत का शेर है।
चुनाव आयोग ने 2019 के आम चुनाव में बता दिया कि उसके पास क्या अधिकार हैं और वह क्या कर सकता है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर बनी फिल्म पर चुनाव आयोग ने रोक लगी दी। चुनाव आयोग का कहना था कि इससे एक पार्टी विशेष को फायदा होगा। जब फिल्म पर रोक लगाई गई तो फिल्म के निर्माता सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट में निर्माताओं ने यह दलील दी की चुनाव आयोग ने बिना फिल्म देखे फिल्म पर रोक लगा दी। इस पर सु्प्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि आपको फिल्म देखना चाहिए। चुनाव आयोग के अधिकारियों ने फिल्म देखी और फिल्म के कुछ डायलॉग पर आपत्ति जता दी। आखिरकार परिणाम क्या हुआ? फिल्म पर बैन बरकरार है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि चुनाव आयोग द्वारा फिल्म पर रोक लगाई है इसमें कोई दखल नहीं दे सकते। यानि फिल्म अब 19 मई के बाद ही रिलीज होगी।
बात केवल फिल्म की नहीं है बल्कि वेब सीरीज और ऑनलाइन टीवी की भी है। चुनाव आयोग ने तमाम वेबसाइट पर उपलब्ध प्रधानमंत्री से संबंधित फिल्म जो वेबसाइट पर हैं उन पर भी बैन लगा दिया है। इसके अलावा नमो टीवी पर आंशिक बैन लगा दिया। इस टीवी में लाइव प्रोग्राम का प्रसारण किया जा सकता है लेकिन मतदान से 48 घंटे पहले तक किसी भी प्रकार के रिकॉर्डेड प्रोग्राम का प्रसारण नहीं कर सकते। नमो टीवी एक ऑनलाइन टीवी चैनल है जिस पर प्रधानमंत्री के भाषण और बीजेपी से जुड़ी जानकारियां प्रसारित की जाती हैं। इन सब पर बैन लगाकर जता दिया की चुनाव आयोग क्या कर सकता है? इसके अलावा ममता बनर्जी पर बनी फिल्म 'बाघिनी' के ट्रेलर पर चुनाव आयोग ने रोक लगा दी। ममता बनर्जी पर बनी फिल्म का ट्रेलर पांच वेबसाइट पर रिलीज होना था।
हाल ही में आयकर विभाग ने दिल्ली और मध्यप्रदेश के कई ठिकानों पर आयकर छापेमारी की। इसे विपक्षी दल कांग्रेस ने बदले की कार्रवाई कहा। चुनाव आयोग ने इस पर संज्ञान लेते हुए आयकर विभाग से कहा कि किसी भी छापेमारी से पहले चुनाव आयोग को इस बाबत जानकारी दे। इस पर आयकर विभाग ने कहा कि हमें इस बात की जानकारी है कि आदर्श आचार संहिता के दौरान चुनाव आयोग को लूप में लिया जाना है। इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि जब आपको जानकारी थी तो आपने इसका पालन क्यों नहीं किया?
चुनाव आयोग इस बार सख्ती बरतने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। सोशल मीडिया पर होने वाले प्रचार पर भी चुनाव आयोग की गिद्ध दृष्टि है। चुनाव आयोग का कहना है कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा सोशल मीडिया पर प्रचार के लिए खर्च की गई राशि को भी जोड़ा जाएगा। ऐसा करना चुनाव आयोग ने अनिवार्य कर दिया है। यदि कोई राजनीतिक पार्टी या राजनेता चुनाव आयोग का कहना नहीं मानते तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। चुनाव आयोग ने 628 कंटेंट सोशल मीडिया से हटाए। इन कंटेंट में सबसे ज्यादा 574 फेसबुक पेज हैं। गूगल, फेसबुक, व्हाट्एप चुनाव प्रचार के लिए प्राथमिकता की सूची में हैं। चुनाव आयोग ने भी इन सोशल साइट्स को भी निर्देश दिया है कि ऐसी किसी भी प्रकार का कंटेंट अपनी साइट्स में ना रखें जिससे चुनाव प्रचार के साथ-साथ वैमनस्यता फैलाई जा रही हो।
तेलंगाना के 62 उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति का सही ब्यौरा नहीं दिया तो चुनाव आयोग ने उनका नामांकन ही रद्द कर दिया। नामांकन में विसंगतियां पाए जाने के बाद चुनाव आयोग ने कई उम्मीदवारों के नामांकन रद्द कर दिए हैं। नामांकन रद्द करने के पीछे कारण केवल चुनाव आयोग द्वारा अपनी उपस्थिति दर्ज कराना नहीं है बल्कि चुनाव प्रक्रिया को 'स्पष्ट और निष्पक्ष' बनाना है। चुनाव आयोग ने cVIGIL नाम से गूगल प्ले स्टोर पर एक एप उपलब्ध कराई है। इस एप की सहायता से आप जिस निर्वाचन क्षेत्र में रहते हैं उस निर्वाचन क्षेत्र के बारे में शिकायत कर समाधान पा सकते हैं। यदि आपके क्षेत्र में किसी उम्मीदवार ने आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया है तो उसकी फोटो खींचकर या वीडियो बनाकर चुनाव आयोग को सूचित कर सकते हैं। यदि आपको किसी भी प्रकार की सहायता या शिकायत करनी है तो आप चुनाव आयोग के नंबर 1950 पर कॉल कर सकते हैं। भारत के आम चुनाव कोई आम चुनाव नहीं होते बल्कि यह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का पर्व होता है। चुनाव आयोग इस चुनाव को वोटर फ्रेंडली बनाना चाहता है।
कई बार कहा जाता है कि अक्सर बड़ी मछलियां जाल में नहीं फंसती हैं, हमेशा छोटी मछलियों को ही त्याग करना पड़ता है। चुनाव के दौरान जितनी बदजुबानी होती है शायद ही और कभी होती हो। चुनाव के दौरान बड़े-बड़े नेता कुछ भी बोलकर निकल लेते थे। इस बार चाहे मछली छोटी हो या बड़ी सभी पर शिकंजा कसा है। इस बार चुनाव आयोग ने बीजेपी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी के नेताओं की बोलती बंद की है। चुनाव आयोग ने मायावती, मेनका गांधी, आजम खान, नवजोत सिंह सिद्धू, जया प्रदा, सतपाल सिंह
सत्ती, योगी आदित्यनाथ, मिलिंद देवड़ा आदि पर कार्रवाई की। आयोग ने केवल कार्रवाई ही नहीं की बल्कि 48 से 72 घंटे का बैन लगाकर बता दिया की चुनाव आयोग क्या कर सकता है। बैन के दौरान इन नेताओं को रैली करने, प्रेस कॉन्फ्रेंस करने, सोशल मीडिया में प्रचार करने, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से प्रचार करने पर रोक थी। चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के अणुव्रत मंडल को नजरबंद करने का आदेश दे दिया। अणुव्रत को नजरबंद करने के पीछे केवल इतना कारण था कि वह एक बाहुबली नेता है और मतदान के समय अड़चनें पैदा कर सकता है।
भारत में चुनाव आयोग को मामूली सा विभाग समझ लिया जाता है। आज के परिदृश्य में देखें तो चुनाव आयोग और मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को धन्यवाद कहना चाहिए। मुख्य चुनाव आयुक्त ने अपनी गरिमा के अनुसार काम किया है। सुनील अरोड़ा ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन की याद को ताजा कर दिया। शेषन ने चुनाव आयुक्त के पद पर रहते हुए बहुत से सुधार किए और कई बेहतरीन मिसालें पेश की। शेषन ने मुख्य चुनाव आयुक्त रहते 17 सूत्रीय मांग भारत सरकार के सामने रखी। शेषन ने साफ-साफ कहा कि देश में तब तक चुनाव नहीं होंगे जब तक 17 सूत्रीय मांग पूरी नहीं कर ली जाती हैं। शेषन ने तो चुनाव आयोग को भारत सरकार का अंग मानने से मना कर दिया था। शेषन कहते थे कि अब मुख्य चुनाव आयुक्त कानून मंत्री के ऑफिस के बाहर मीटिंग के लिए समय की आशा में नहीं बैठेगा।
📃BY_vinaykushwaha