"कोई बाघ आदमखोर खुद से नहीं बनता है बल्कि उसे मजबूरी में आदमखोर बनना पड़ता है।" यह पंक्ति है मशहूर बाघ संरक्षक जिम कार्बेट की। जिम कार्बेट को बाघों का संरक्षक कहा जाता है। जिम के साथ एक विरोधाभास जुड़ा हुआ है कि उन्होंने 33 बाघ-बाघिन को मारा था। इनमें मैन ईटर ऑफ कुमाऊं भी शामिल है। इस मैन ईटर ने 435 आदमियों को मारा था। अपनी किताब मैन ईटर ऑफ कुमाऊं में उन्होंने इस बात का जिक्र किया था। जिम की छवि एक अच्छे व्यक्ति के रुप में है क्योंकि उन्होंने आदमखोरों के आतंक से मुक्ति दिलाई थी। लेकिन बाद में उन्होंने बंदूक की जगह कलम को उठा लिया था। वे इस बात से वाकिफ थे कि हिमालय में बाघों की संख्या कम होने का मतलब है कि पारिस्थितिकी तंत्र में गड़बड़ी होना है। जिम कार्बेट लेखक और दार्शनिक भी रहे हैं। उन्हीं के नाम पर उत्तराखंड के राष्ट्रीय पार्क का नाम जिम कार्बेट नेशनल पार्क है। इसी नेशनल पार्क से प्रोजेक्ट टाइगर मिशन की शुरुआत की गई थी।
तारीख 2 नवंबर 2018 सभी को वैसे तो पता होगी लेकिन यह एक ऐसा दिन जिस दिन से सभी को पशुओं के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है। लोग अब यह भी सोचने लगे हैं कि जानवरों को क्यों मारा जा रहा है। मैं बात कर रहा हूं बाघिन 'अवनि' की। कई लोग बाघिन अवनि को अवनी लिख रहे हैं। इस बाघिन का अाधिकारिक नाम टी-1 है। बाघिन अवनी को मार दिया गया। अवनी पर आरोप था कि उसने दो सालों में 14 लोगों की जान ली है। अवनी को मारने के लिए बकायदा वन विभाग से 100 लोगों की टीम को तैयार किया गया। पांढरकवड़ा के जंगल में बाघिन को खोजने के लिए गोल्फर ज्योति रंधावा के खोजी कुत्तों को बुलाया गया। पेड़ों आदि पर कैमरों का कड़ा पहरा लगा दिया गया। बाघिन को चारा देने के नाम पर नकली भेड़-बकरियों को बांधा गया। अमेरिकी से विशेष प्रकार का इत्र मंगाया गया ताकि बाघिन आकर्षित होकर जल्द से जल्द घने जंगलों से निकलकर खुले मैदान में आ जाए।
सारे जाल बिछा दिए गए बस अब बाघिन का फंसना बाकी था। बाघिन आई और जाल में फंस गई। हैदराबाद से शार्प शूटर शाफत अली खान को बुलाया गया था। शाफत के पास एक लंबा अनुभव था कि कैसे जानवर को मारा जाता है। उनके दादा भी यही काम करते थे। वन विभाग के अनुसार शाफत को मुख्य रुप से बाघिन को ट्रैंकुलाइज करने के लिए बुलाया गया था। अवनी जैसे ही थोड़े खुले हिस्से में आई तो उसे पहले ट्रैंकुलाइज गन से टैंकुलाइज्ड किया गया फिर उसे 10 मीटर दूर से पिछले हिस्से में गोली मार दी गई। आखिरकार आदमखोर बाघिन का अंत हो गया। यह बाघिन अवनी की दुखद अंत की कहानी है।
असली कहानी तो अवनी की मौत के बाद शुरू होती है। अवनी की मौत के बाद कई पशुप्रेमी और राजनेता सामने आए और उन्होंने जमकर इस बात का विरोध किया की अवनी की हत्या की गई है। अवनी की मौत से पहले कई पशु प्रेमियों और एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर अवनी पर दया दिखाकर जीवनदान की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिका को यह कहते हुए नकार दिया था कि चीफ लाइफ वार्डन ने यह स्वीकार किया है कि अवनी पर कार्रवाई जरुरी है। अब आते हैं राजनीति पर। केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने महाराष्ट्र के सीएम देवेन्द्र फडणवीस को पत्र लिखकर महाराष्ट्र के वन मंत्री सुधीर मुनगंटीवार को बर्खास्त करने की मांग की। आपको यहां बताते चलें कि मेनका गांधी की छवि एक पशु प्रेमी की है, वे कई सालों से पशुओं के संरक्षण में काम रही हैं। मेनका गांधी शायद भूल गई थी कि केन्द्र में उनकी सरकार और महाराष्ट्र में एनडीए नीत सरकार फिर पत्र की औपचारिकता क्यों? इसके बाद सुधीर मुनगंटीवार ने उल्टा मेनका गांधी पर आरोप लगाते हुए कहा कि वे भी तो फर्जी बाबा के पास जाती हैं। मुझे नहीं लगता है कि इतने संवेदनशील मुद्दे पर ऐसी बात उछालने की जरूरत थी।
बात यदि महाराष्ट्र की हो और शिवसेना का जिक्र ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। शिवसेना ने सरकार पर आरोप मढ़ दिया की सरकार ने अवनी की हत्या की है। मनसे भी कहां पीछे रहने वाली थी। राज ठाकरे ने अवनी पर बयान दे दिया। सबसे आखिर में एंट्री हुई कांग्रेस की। मुंबई से पूर्व सांसद संजय निरुपम ने इस सारे मामले को हगणदारी प्रथा से जोड़ दिया। हगणदारी प्रथा, महाराष्ट्र में खुले में शौच मुक्त करने के अभियान से जुड़ा है। संजय निरुपम ने हगणदारी प्रथा का जिक्र इसलिए किया क्योंकि वे बताना चाहते थे कि चंद्रपुर में जंगल में शौच करने गई महिला को बाघ ने मार दिया। अब बात अवनी की मौत से हगणदारी तक पहुंच गई। इस पर महाराष्ट्र के वन मंत्री सुधीर मुनगंटीवार कहते हैं कि अवनी की मौत पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। अरे साहब असली राजनीति की शुरुआत तो आपने ही की थी।
11 नवंबर को 168 संस्थाओं ने कैंडल मार्च निकालकर बाघिन अवनी की मौत का विरोध किया। यह कैंडल मार्च मात्र दिखावा नहीं बने। इस बात की बेहद अहमियत है कि पर्दे के पीछे की सच्चाई क्या है? बात यह है कि बाघिन को मारने के बाद उसे नागपुर ले जाया गया जहां उसे डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया। पोस्टमार्टम में यह पता चला कि उसके पिछले भाग पर गोली मारी गई थी। ऑटोप्सी करने के बाद पता चला कि अवनी ने 4-5 दिनों से कुछ खाया ही नहीं था क्योंकि उसके पेट में गैस और तरल पदार्थ भरा हुआ था। इसके अलावा उसके शरीर में नमी की कमी पाई गई और इंसानी मांस का कहीं कोई जिक्र नहीं हुआ। अवनी तो चली गई लेकिन अपने कई राज छोड़ गई।
बाघ और जंगली जानवर इतने आक्रामक क्यों रहे हैं? इसका सीधा सटीक कारण है अतिक्रमण। इंसान अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए वन्य जीवों के क्षेत्र में अतिक्रमण कर रहा है। खेती और आवास के लिए जंगलों का सफाया किया जा रहा है। नेशनल पार्क और अभ्यारण्यों में वन्यजीवों के आवास को छेड़ा जा रहा है। इन सबसे वन्यजीवों की इंसानी बस्ती में चहलकदमी बढ़ गई है। इन सबका नतीजा सबके सामने है। हमारे संविधान के भाग-4 में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का जिक्र किया है। अनुच्छेद 48(क) में जिक्र है कि पर्यावरण और वन्यजीवों का राज्यों द्वारा संरक्षण और संवर्धन किया जाएगा। मैं राज्यों से पूछना चाहता हूं कि अवनी की तरह? यह हमारा भी व्यक्तिगत दायित्व बनता है कि हम अपने पर्यावरण और वन्यजीवों को संरक्षित और संवर्धित करें।
अब सबसे बड़ी बात यह है कि हमारे देश का कानून क्या कहता है? क्या अवनी को मारना सही है? महाराष्ट्र वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार बताया गया कि उन्हें राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण से अवनी पर कार्रवाई की इजाजत प्राप्त थी। भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार बाघिन अवनी की हत्या नहीं हुई है। उसे मारना सही है। अधिनियम कहता है कि यदि कोई बाघ आदमखोर हो चुका है, गंभीर बीमारी से ग्रस्त है या किसी अन्य कारण को लेकर चीफ लाइफ वार्डन तय कर सकता है कि बाघ को मारा जाए या नहीं। चीफ लाइफ वार्डन ही तय करता है कि उसे बेहोश किया जाए, स्थानांतरित किया जाए या गोली मार दी जाए। हमारा कानून यह भी कहता है कि आत्मरक्षा के लिए आप बाघ को मार सकते है और इसके साथ ही यदि वह सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है तो उसे मारा जा सकता है। यह है हमारा कानून। वन विभाग की टीम ने आत्मरक्षा का तर्क देते हुए बाघिन पर गोली चलाई थी। कई पशु प्रेमियों का कहना है कि यह गलत है कि उस पर गोली चलाई गई यदि आत्मरक्षा के लिए गोली चलाई गई होती तो गोली बाघिन के पिछले हिस्से की जगह अगले हिस्से में लगती।
अवनी चली गई। अपने पीछे कई सवाल छोड़ गई और बहस के लिए विषय भी। अवनी अपने पीछे दो नन्हें बच्चे भी छोड़ गई जिनका ध्यान रखना हमारा दायित्व है।
📃BY_vinaykushwaha