भारतीय वास्तुकला में विदेशियों का भी योगदान है यहां बहुत सी ऐसी स्थापत्य कला हमें देखने के मिलती है जिसे मुस्लिम स्थापत्य कला के रूप में जानते है। जब मुस्लिम स्थापत्य कला का भारत में प्रवेश हुआ तो यह हिंदु-मुस्लिम स्थापत्य कला या इंडो-इस्लामिक स्थापत्य कला हो गई। मुस्लिम धर्म में मूर्ति पूजा वर्जित है जिसके कारण मुस्लिम शासकों के द्वारा तैयार किए गए स्मारकों, मस्जिदों,मकबरों,भवनों या किसी भी संरचना में मूर्ति देखने को नहीं मिलती है। मूर्तियों की जगह फूल-पत्ती, मेहराब, गुंबद, मीनार, बुर्ज, जाली आदि ने लियी। इनके उपयोग से भारत में नए-नए स्थापत्य कला का विकास हुआ।
मुस्लिम शासकों ने अपने शासन में सर्वाधिक जोर मस्जिद बनाने में दिया। मस्जिगों में मीनार, गुंबद, मेहराब पर दिया गया। जहां मंदिरों में शिखर हुआ करते थे वही मस्जिदों में उनकी जगह गुंबद ने ली। भारत का सबसे बड़ा गुंबद कर्नाटक के बीजापुर में स्थित है। यह अपने आप में कारीगरी का बेमिसाल उदाहरण है। यह बीजापुर के शासक ने बनवाया था। यह बलुआ पत्थर से तैयार किया गया है। गुंबद बनाने गोलाकार या यूं कहे कि उल्टा कटोरा होता है। उत्तर भारत और दक्षिण भारत दोनों में सामग्री के इस्तेमाल में विभिन्न पाई गई है। मुगलों समय जहां उत्तर भारत में लाल पत्थर का उपयोग किया वही दक्षिण भारत में ग्रेनाइट और बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया।
मीनार, मुस्लिम स्थापत्य कला का अभिन्न हिस्सा हैजिसे सामान्यतया हर मस्जिद देखा जा सकता है। मस्जिद में अजान के लिए इन मीनारों का उपयोग किया जाता था। भारत की सबसे ऊंची मीनार कुतुब मीनार है जो विश्व विरासत स्थल में शामिल है। इसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने करवाया था जिसे पूरा कराने का श्रेय इल्तुतमिश हो जाता है। इन मीनार का निर्माण भी स्थान विशेष पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर किया जा जाता था। कही लाल पत्थर,तो कही बलुआ पत्थर तो कही बेसाल्ट का उपयोग किया जाता था। मीनारों को कलात्मक बनाया जाता था जिसमें नक्काशी की जाती थी।
मीनार के शिखर पर जाने के लिए सीढ़ियां बनाई जाती थी। कई बार यह सीढ़ियों अंदर से होती थी और कई बार बाहर से। जैसे कुतुब मीनार में सीढ़ियां मीनार के अंदर से बनाई गई जबकि जूनागढ़ के बहाउद्दीन के मकबरे में मीनार के बाहर से बनाई गई है। इन मीनारों की कलात्मकता देखते ही बनती है। मीनारों को इस प्रकार भी बनाया जाता था कि यह मुख्य संरचना को कोई नुकसान न पहुंचाए। यदि कभी भूकंप वगैरह आए तो मीनार बाहर की ओर या मुख्य संरचना से विपरीत गिरें। इसका सबसे बड़ा उदाहरण ताजमहल है जिसमें मीनारों को इस प्रकार बनाया है कि मीनारें बाहर की ओर गिरे।
किसी भी संरचना को सुंदर बनाने के लिए बड़ी-बड़ी मीनारों के अलावा छोटी-छोटी मीनारों का उपयोग किया जाता था। ताजमहल में इस प्रकार की संरचना देखने को मिलती है।
मुगलकाल और बाद दरवाजें बनवाने का प्रचलन चला। अकबर ने गुजरात विजय पर भारत का सबसे ऊंचा दरवाजें का निर्माण करवाया। जिसका नाम फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाजा है। इसका निर्माण लाल पत्थर से किया गया है। इसके अलावा लखनऊ, जयपुर, मांडू, भोपाल, अहमदाबाद आदि जगह दरवाजा परम्परा देखने को मिलती है। दरवाजों को सुंदर और कलात्मक के साथ-साथ भव्य बनाया जाता था। इसका कारण यह था कि जो पड़ोसी राज्य है उसके राज्य की वैभव-विलासता को पहचान सके। दरवाजों का वर्णन हमें प्राचीन समय से सुनने को मिलता है लेकिन यहां बात इस्लामिक संरचना पर बने दरवाजों की हो रही है।
इस्लामिक स्थापत्य कला में एक विशेष प्रकार की सामग्री का उपयोग किया गया। वह सामग्री है संगमरमर। इसकी सबसे बड़ी मिसाल ताजमहल है। ताजमहल, संगमरमर से बनी पहली इमारत नहीं है बल्कि आगरा में ही बनी ऐतमाद्दौला का मकबरा है। पूर्ण रूप से संगमरमर से बनी यह पहली इमारत थी। इन दोनों इमारत को बनाने में मकराना के संगमरमर का उपयोग किया गया है। मुगलों के काल में राजस्थान से संगमरमर के साथ-साथ लाल पत्थर का भी निर्यात किया जाता था।
भारत में विदेश से कई प्रकार की कला का आगमन हुआ जिसमें पेट्राडोरा या पित्रादुरा कहते है। पेट्राडोरा एक कला है जिसका आगमन ईरान से हुआ है। यह कला संगमरमर के पत्थर पर विभिन्न प्रकार को रत्नों को खोदकर सजाया जाता है। विभिन्न प्रकार के आकार और आकृति के पत्थर पर अलग-अलग सजावट के साथ बनाया जाता है। इसमें पेड़- पौधे, फूल, पत्ती, विभिन्न प्रकार की आकृतियों को उकेरकर उसमें विभिन्न रंगों जैसे लाल, पीला, हरा, नीला, गुलाबी, फिरोजी आदि रंगों का उपयोग किया जाता है।
इस्लामिक स्थापत्य कला में एक और कला सामने आती है। जाली, इस्लामिक स्थापत्य कला में एक अहम स्थान रखती है। चाहे मकबरा हो या मस्जिद हो या दरगाह हो या किला हो या महल हो या छतरी हो मुगलकाल से जाली का महत्व बढ़ गया। अहमदाबाद में निर्मित जामा मस्जिद या जुम्मा मस्जिद में हिन्दु स्थापत्य कला या भारतीय स्थापत्य कला या मंदिर स्थापत्य कला की छाप आसानी से देखने को मिलती है। यहां आसानी कई ऐसी आकृतियां देखने को मिलता है भारतीय संस्कृति और संस्कार को दर्शाती हैं। इसके अलावा हैदराबाद की चार मीनार भी शानदार नमूना है। यह एक दरवाजे की तरह है जिसमें चार मीनार है। मध्यप्रदेश के मांडू में बने अनेक महल इस्लामिक स्थापत्य कला को दर्शाते हैं। इन महलों या संरचना में जहाज की आकृति के तरह बना जहाज महल, गुजरी महल, होशंगशाह का मकबरा, अशर्फी महल आदि सभी एक प्रतीक है।
दिल्ली और आगरा का लाल किला, हुमाऊं का मकबरा, सिकंदरा मकबरा, हौज खास, कशमीरी गेट, फतेहपुर सीकरी, भोपाल की ताज-उल-मस्जिद, हैदराबाद की मोती मस्जिद, गोलकुंडा का किला, बीजापुर का गोल गुबंद आदि इस्लामिक स्थापत्य कला के नमूने हैं। इस्लामिक स्थापत्य कला में आगरा स्थित ताजमहल को बेमिसाल प्रतीक माना जाता है। लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा, बुरहानपुर की ऐतिहासिक इमारत इसी स्थापत्य कला का नमूना। बुरहानपुर में स्थित कुंडी भंडारा जल व्यवस्था का अद्वितीय उदाहरण है। वही कुछ बदसूरत इमारत भी भारत में देखने को मिलता है। ऑरंगजेब द्वारा बनवाया गया बीबी मकबरा ताजमहल की फूहड नकल मात्र है।
भारत में इस्लामिक स्थापत्य कला में इमारत ही नहीं बल्कि एक और संरचना दिखाई देती है। यह संरचना "चार बाग" है। चार बाग एक प्रकार से गार्डन ही है। यह संरचना मुगलकाल से सामने आया या शुरु हुआ। इसमें एक गार्डन बनाया जाता है जिसे समकोण पर काटती दो सड़क द्वारा गार्डन को चार भाग में विभक्त कर दिया जाता है। चार बाग के साथ एक संरचना और जुड़ी हुई है जिसका नाम फव्वारा है। फव्वारा के कारण इमारत की सुंदरता बढ़ जाती है।
📃BY_vinaykushwaha