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शनिवार, 9 जून 2018

भारतीय वास्तुकला (श्रृंखला-चार)


भारतीय वास्तुकला में विदेशियों का भी योगदान है यहां बहुत सी ऐसी स्थापत्य कला हमें देखने के मिलती है जिसे मुस्लिम स्थापत्य कला के रूप में जानते है। जब मुस्लिम स्थापत्य कला का भारत में प्रवेश हुआ तो यह हिंदु-मुस्लिम स्थापत्य कला या इंडो-इस्लामिक स्थापत्य कला हो गई। मुस्लिम धर्म में मूर्ति पूजा वर्जित है जिसके कारण मुस्लिम शासकों के द्वारा तैयार किए गए स्मारकों, मस्जिदों,मकबरों,भवनों या किसी भी संरचना में मूर्ति देखने को नहीं मिलती है। मूर्तियों की जगह फूल-पत्ती, मेहराब, गुंबद, मीनार, बुर्ज, जाली आदि ने लियी। इनके उपयोग से भारत में नए-नए स्थापत्य कला का विकास हुआ।

मुस्लिम शासकों ने अपने शासन में सर्वाधिक जोर मस्जिद बनाने में दिया। मस्जिगों में मीनार, गुंबद, मेहराब पर दिया गया। जहां मंदिरों में शिखर हुआ करते थे वही मस्जिदों में उनकी जगह गुंबद ने ली। भारत का सबसे बड़ा गुंबद कर्नाटक के बीजापुर में स्थित है। यह अपने आप में कारीगरी का बेमिसाल उदाहरण है। यह बीजापुर के शासक ने बनवाया था। यह बलुआ पत्थर से तैयार किया गया है। गुंबद बनाने गोलाकार या यूं कहे कि उल्टा कटोरा होता है। उत्तर भारत और दक्षिण भारत दोनों में सामग्री के इस्तेमाल में विभिन्न पाई गई है। मुगलों समय जहां उत्तर भारत में लाल पत्थर का उपयोग किया वही दक्षिण भारत में ग्रेनाइट और बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया।

मीनार, मुस्लिम स्थापत्य कला का अभिन्न हिस्सा हैजिसे सामान्यतया हर मस्जिद देखा जा सकता है। मस्जिद में अजान के लिए इन मीनारों का उपयोग किया जाता था। भारत की सबसे ऊंची मीनार कुतुब मीनार है जो विश्व विरासत स्थल में शामिल है। इसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने करवाया था जिसे पूरा कराने का श्रेय इल्तुतमिश हो जाता है। इन मीनार का निर्माण भी स्थान विशेष पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर किया जा जाता था। कही लाल पत्थर,तो कही बलुआ पत्थर तो कही बेसाल्ट का उपयोग किया जाता था। मीनारों को कलात्मक बनाया जाता था जिसमें नक्काशी की जाती थी।


मीनार के शिखर पर जाने के लिए सीढ़ियां बनाई जाती थी। कई बार यह सीढ़ियों अंदर से होती थी और कई बार बाहर से। जैसे कुतुब मीनार में सीढ़ियां मीनार के अंदर से बनाई गई जबकि जूनागढ़ के बहाउद्दीन के मकबरे में मीनार के बाहर से बनाई गई है। इन मीनारों की कलात्मकता देखते ही बनती है। मीनारों को इस प्रकार भी बनाया जाता था कि यह मुख्य संरचना को कोई नुकसान न पहुंचाए। यदि कभी भूकंप वगैरह आए तो मीनार बाहर की ओर या मुख्य संरचना से विपरीत गिरें। इसका सबसे बड़ा उदाहरण ताजमहल है जिसमें मीनारों को इस प्रकार बनाया है कि मीनारें बाहर की ओर गिरे।

किसी भी संरचना को सुंदर बनाने के लिए बड़ी-बड़ी मीनारों के अलावा छोटी-छोटी मीनारों का उपयोग किया जाता था। ताजमहल में इस प्रकार की संरचना देखने को मिलती है।

मुगलकाल और बाद दरवाजें बनवाने का प्रचलन चला। अकबर ने गुजरात विजय पर भारत का सबसे ऊंचा दरवाजें का निर्माण करवाया। जिसका नाम फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाजा है। इसका निर्माण लाल पत्थर से किया गया है। इसके अलावा लखनऊ, जयपुर, मांडू, भोपाल, अहमदाबाद  आदि जगह दरवाजा परम्परा देखने को मिलती है। दरवाजों को सुंदर और कलात्मक के साथ-साथ भव्य बनाया जाता था। इसका कारण यह था कि जो पड़ोसी राज्य है उसके राज्य की वैभव-विलासता को पहचान सके। दरवाजों का वर्णन हमें प्राचीन समय से सुनने को मिलता है लेकिन यहां बात इस्लामिक संरचना पर बने दरवाजों की हो रही है।


इस्लामिक स्थापत्य कला में एक विशेष प्रकार की सामग्री का उपयोग किया गया। वह सामग्री है संगमरमर। इसकी सबसे बड़ी मिसाल ताजमहल है। ताजमहल, संगमरमर से बनी पहली इमारत नहीं है बल्कि आगरा में ही बनी ऐतमाद्दौला का मकबरा है। पूर्ण रूप से संगमरमर से बनी यह पहली इमारत थी। इन दोनों इमारत को बनाने में मकराना के संगमरमर का उपयोग किया गया है। मुगलों के काल में राजस्थान से संगमरमर के साथ-साथ लाल पत्थर का भी निर्यात किया जाता था।

भारत में विदेश से कई प्रकार की कला का आगमन हुआ जिसमें पेट्राडोरा या पित्रादुरा कहते है। पेट्राडोरा एक कला है जिसका आगमन ईरान से हुआ है। यह कला संगमरमर के पत्थर पर विभिन्न प्रकार को रत्नों को खोदकर सजाया जाता है। विभिन्न प्रकार के आकार और आकृति के पत्थर पर अलग-अलग सजावट के साथ बनाया जाता है। इसमें पेड़- पौधे, फूल, पत्ती, विभिन्न प्रकार की आकृतियों को उकेरकर उसमें विभिन्न रंगों जैसे लाल, पीला, हरा, नीला, गुलाबी, फिरोजी आदि रंगों का उपयोग किया जाता है।


इस्लामिक स्थापत्य कला में एक और कला सामने आती है। जाली, इस्लामिक स्थापत्य कला में एक अहम स्थान रखती है। चाहे मकबरा हो या मस्जिद हो या दरगाह हो या किला हो या महल हो या छतरी हो मुगलकाल से जाली का महत्व बढ़ गया। अहमदाबाद में   निर्मित जामा मस्जिद या जुम्मा मस्जिद में हिन्दु स्थापत्य कला या भारतीय स्थापत्य कला या मंदिर स्थापत्य कला  की छाप आसानी से देखने को मिलती है। यहां आसानी कई ऐसी आकृतियां देखने को मिलता  है भारतीय संस्कृति और संस्कार को दर्शाती हैं। इसके अलावा हैदराबाद की चार मीनार भी शानदार नमूना है। यह एक दरवाजे की तरह है जिसमें चार मीनार है। मध्यप्रदेश के मांडू में बने अनेक महल इस्लामिक स्थापत्य कला को दर्शाते हैं। इन महलों या संरचना में जहाज की आकृति के तरह बना जहाज महल, गुजरी महल, होशंगशाह का मकबरा, अशर्फी महल  आदि सभी एक प्रतीक है।

दिल्ली और आगरा का लाल किला, हुमाऊं का मकबरा, सिकंदरा मकबरा, हौज खास, कशमीरी गेट, फतेहपुर सीकरी, भोपाल की ताज-उल-मस्जिद, हैदराबाद की मोती मस्जिद, गोलकुंडा का किला, बीजापुर का गोल गुबंद आदि इस्लामिक स्थापत्य कला के नमूने हैं। इस्लामिक स्थापत्य कला में आगरा स्थित ताजमहल को बेमिसाल प्रतीक माना जाता है। लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा, बुरहानपुर की ऐतिहासिक इमारत इसी स्थापत्य कला का नमूना। बुरहानपुर में स्थित कुंडी भंडारा जल व्यवस्था का अद्वितीय उदाहरण है। वही कुछ बदसूरत इमारत भी भारत में देखने को मिलता है। ऑरंगजेब द्वारा बनवाया गया बीबी मकबरा ताजमहल की फूहड नकल मात्र है।


भारत में इस्लामिक स्थापत्य कला में इमारत ही नहीं बल्कि एक और संरचना दिखाई देती है। यह संरचना "चार बाग" है। चार बाग एक प्रकार से गार्डन ही है। यह संरचना मुगलकाल से सामने आया या शुरु हुआ। इसमें एक गार्डन बनाया जाता है जिसे समकोण पर काटती दो सड़क द्वारा गार्डन को चार भाग में विभक्त कर दिया जाता है। चार बाग के साथ एक संरचना और जुड़ी हुई है जिसका नाम फव्वारा है। फव्वारा के कारण इमारत की सुंदरता बढ़ जाती है।

📃BY_vinaykushwaha






शुक्रवार, 8 जून 2018

पुस्तक समीक्षा: हम असहिष्णु लोग


आप तो मां सरस्वती के पुत्र हो तर्क के आधार पर सरकार को कठघरे में खड़े कीजिए। वरना समाज तो यही कहेगा कि आप साहित्य को राजनीति में घसीट रहे हैं। इन्हीं तथ्यपरक बातों के साथ देश में फैली अराजकता पर कटाक्ष करती एक पुस्तक 'हम असहिष्णु लोग'। अर्चना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक लोकेन्द्र सिंह ने लिखी है। इस पुस्तक में देश में हो रहे कथित आंदोलनों और मुहिमों पर कड़ा तमाचा जड़ा है। लेखक ने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित अपने लेखों के संग्रह को एक पुस्तक की शक्ल दी है।

पुस्तक के शीर्षक को देखें तो एक बार ऐसा लगता है कि यह किसी अराजकता की बात कह रहा है लेकिन ऐसा नहीं है। इस पुस्तक का शीर्षक 'हम असहिष्णु लोग' रखने के पीछे लेखक का देश में हो रही गतिविधियों से हैं जिसमें कुछ लोग स्वयं अराजकता फैला रहे है और समाज व देश की भोली-भाली जनता को बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं साथ ही अव्यवस्था का ठीकरा किसी और फोड़ रहे हैं। यह पुस्तक उन अनैतिक गतिविधियों की गवाह है जिन्हें देश में बड़े जोर-शोर से चलाया जाता रहा। अवॉर्ड वापसी, यह एक ऐसा अभियान था जिसमें लेखक, साहित्यकार आदि में अपने अवॉर्ड वापस करने की होड़ मची थी। इस मुहिम को लेखक ने अवॉर्ड वापसी गैंग का नाम दिया है। सच ही है कि यह एक गैंग है जिसने असहिष्णुता के नाम पर अवॉर्ड वापसी की मुहिम चलाकर लोगों को बरगलाया गया। चाहे नयनतारा सहगल हो या अशोक बाजपेयी हो ने अपने अवॉर्ड वापस किए और तर्क भी ऐसे दिए कि जिनका मेल दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। एक साहित्यकार ने तो तर्क दिया कि सिक्ख दंगों के वजह से मैं अपना अवॉर्ड वापस कर रहा हूं। इसी मुहिम के खिलाफ लेखक ने जमकर लताड़ लगाई है।

इस पुस्तक में अवॉर्ड वापसी के अलावा असहिष्णुता के मुद्दे पर देश भर में फैलाई जा रही भ्रांतियों के बारे में लिखा है कि कैसे एक अभिनेता अपनी असुरक्षा के बारे में बात करता है और उनकी पत्नी कहती है कि यदि ऐसा ही माहौल रहा तो हमें देश छोड़ना होगा। देश में अव्यवस्था फैलाने  वाले ऐसे लोगों पर तर्क सहित अपनी बातें रखी हैं। चाहे मामला गोमांस भक्षण का हो या किसी वर्ग विशेष को प्रोत्साहन देने की इन विषयों पर लेखक ने अपनी बात को बेबाकी से रखा है। सारे आम गोमांस खाकर हिन्दु धर्म के लोगों को चिढ़ाया जा रहा है और इसे बीफ पार्टी का नाम दिया जा रहा है। केरल जैसे राज्य जहां साक्षतरता दर सर्वाधिक है वहां सार्वजनिक स्थलों पर बीफ पार्टी का आयोजन किया जा रहा है। इसी विषय को किताब में जगह दी गई है और तर्कों के साथ बताया है कि किस प्रकार कुछ मुट्ठी भर लोग समाज में अव्यवस्था और साम्प्रदायिकता  फैलाने का कार्य कर रहे हैं।

इन सबके अलावा पुस्तक में देश विरोधी अभियान और देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में हुई देश विरोधी गतिविधियों को भी शामिल किया गया है। जहां जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में देश विरोधी नारे सुनाई दिए वही देश के अन्य विश्वविद्यालयों में देश और समाज को बांटने वाली गतिविधियों के तार्किक विश्लेषण को लेखक ने अपनी किताब में जगह दी है। यहां तक की विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय आस्था की केन्द्र भारतमाता और हिन्दु धर्म की बेइज्जती के मामले में भी लेखक ने बड़ी सटीकता के साथ लिखा है। अफजल गुरु और याकूब मेनन को महिमामंडित करके उनके पक्ष में नारे लगाकर देश की न्यायव्यवस्था को धता बताया गया, जिस पर लेखक ने अपनी पुस्तक में कटाक्ष किया है।

रास्ते के नाम बदलने की बात हो या  पूर्व उपराष्ट्रपति  हामिद अंसारी की कर्त्तव्यपरायणता की बात हो सभी मुद्दों को लेखक ने जगह दी। कुछ वर्ग विशेष के द्वारा केन्द्र सरकार के उस फैसले पर रोष जताया जिसमें ऑरंगजेब रोड का नाम बदलकर कलाम रोड किया गया। लेखक ने इसका तथ्यपरक विश्लेषण करके अपनी किताब में लिखा कि कैसे कुछ लोग अभी भी उस व्यक्ति को याद करना चाहते है जिसने देश को लूटा, अत्याचार किया, मानवता को तार-तार किया। इसके अलावा पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के उन गतिविधियों पर करारा प्रहार किया जिसमें उनके द्वारा सेना को सलामी न देना, राष्ट्रीय ध्वज को सलामी न देना और हिन्दु-मुस्लिम राजनीति की बात करना जैसे मुद्दे शामिल है।

हम असहिष्णु लोग पुस्तक देश में हो रही देश विरोधी गतिविधियों का एक प्रमाण है जिसमें उन अराजक ताकतों के बारे में लिखा है जो देश को बांटने का काम कर रही है। इस पुस्तक में  सभी मुद्दों को  तथ्यों और तार्किक के साथ बड़ी सटीकता से लिखा गया है। एक बार जरूर पढ़े 'हम असहिष्णु लोग'।

📃BY_vinaykushwaha