हर शहर में सुबह होती होगी पर मेरी जान इंदौर में सुबह नहीं धमाकेदार सुबह होती है। सुबह पोहा और जलेबी के बिना पॉसिवल हो ही नहीं सकती। पलासिया हो या भंवरकुआ, राजवाड़ा हो या एलआईजी , महुनाका हो या विजयनगर नमकीन और सेव के बिना एक इंदौरी का दिन पूरा नहीं हो सकता है। बोलने का स्टाइल सबसे अलग और रहने का अंदाज एक नंबर। ऐसा मेरा इंदौर सबसे अलग और अनोखा। राजवाड़ा, इंदौर की वो जगह है जहां सुबह से लेकर रात तक लोगों का गवाह बनता है। रविवार तो इंदौर को एक मेले में तब्दील कर देता है। विजयनगर से लेकर राजवाड़ा तक जहां देखो वहां भीड़ दिखाई देती है। रविवार को राजवाड़ा का रास्ता गाड़ियों के कारण नहीं लोगों से जाम होता है। रीगल चौराहा से राजवाड़ा तक ट्रेफिक रेंगने लगता है। इंदौर के कोने-कोने में कपड़े के व्यापारी आसानी मिल जाते है। ऐसा है मेरा इंदौर।
मिनी मुंबई के नाम से मशहूर मेरा इंदौर यूं ही नहीं है। देश के हर जगह का प्रतिनिधित्व करता है। मारवाडी हो या मराठी , गुजराती हो या बिहारी, छत्तीसगढ़िया हो या तमिल सभी को अपनी बाहों में समेटे हुए है। अन्नपूर्णा मंदिर से लेकर खजराना गणेश मंदिर तक, बड़ा गणपति से लेकर जूनी इंदौर तक, बीजासन मंदिर से लेकर कृष्णपुराछत्री तक इंदौर की विरासत फैली हुई है। मेघदूत गार्डन हो या अटल बिहारी पार्क , शिवाजी वाटिका हो या चिडियाघर इंदौर के माहौल को खुशनुमा बनाते हैं। राजवाड़ा हो या मालवा पैलेस , सेंट्रल म्यूजियम हो या बोलिया सरकार की छत्री , गांधी भवन हो या कांच मंदिर हो सभी इंदौर की सांस्कृतिक विरासत को दिखाती है।
इंदौर उन लोगों के लिए बिल्कुल नहीं है जो खाना नहीं जानते। कैपिटल ऑफ नमकीन इंदौर चटकारे लगाने वालों का शहर है। मालवा की दाल-बाटी हो या दाल-बाफले मुंह में पानी ला देने वाले है। इंदौरी पोहा तो पूरी दुनिया में मशहूर है। 56 दुकान से लेकर सराफा तक चटोरे इंदौरी की पनाहगाह है। जैसे-जैसे रात शुरु होती है वैसे-वैसे इंदौरी तरह-तरह के अनसुनी डिशेस् खाने निकलते है। हां, एक बहुत जरुरी बात बिना सेव के कुछ भी नहीं चाहे पानीपुरी हो या बर्गर, समोसा हो या चाट। इंदौर के खाने की बात ही निराली है। यदि किसी ने मालवा थाली खाली तो फिर तो इंदौर से उसका नाता पक्का हो गया।
मॉल कल्चर हो या स्ट्रीट शॉपिंग इंदौर सभी जगह नंबर एक है। एमटी क्लॉथ मार्केट हो या कोठारी मार्केट सभी जगह एक सा माहौल है। यूं ही इंदौर टॉप टेन बेस्ट बिजनेस डेस्टिनेशन ऑफ इंडिया नहीं है। इंदौर को समझने जिसे देर लगे वो इंदौर के लायक ही नहीं है। इंदौर तो उस मालपुए कि तरह जिसकी सुगंध से उसके टेस्ट का पता लगाया जा सकता है।
मुझे इंदौर ने जीना सिखाया है। कैसे खुलकर जिंदगी जीते ये मुझे इंदौर ने सिखाया। खाने का अंदाज भी सिखाया और बाजार करना भी। कैसे अलग-अलग भाषा बोलने वालों के बीच रहा जाता है सब कुछ इंदौर ने मुझे सिखाया है। मैं शुरु से ही बोल रिया हूं इंदौर बेमिसाल। थैंक्यू इंदौर।
Arre Waah ...!!
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