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बुधवार, 14 सितंबर 2022
हिंदी दिवस स्पेशल : संस्कृत से हिंदी तक बनने में एक लंबा सफर लगा, आज व्यौहार राजेंद्र सिंह के जन्मदिवस पर हिंदी दिवस मनाया जाता है
शुक्रवार, 9 सितंबर 2022
बुक रिव्यू : 'डार्क हॉर्स' सफलता और असफलता की एक ऐसी कहानी कहती है जो सिविल सेवा परीक्षा के बारे में आपकी आंखें खोल देगी!!!
रविवार, 4 सितंबर 2022
शहडार जंगल : इतना घना जंगल जहां सूरज की रोशनी भी जमीन तक नहीं पहुंचती, कटनी का ये जंगल आपको कर देगा दंग!!!
कटनी शहर से 40 किमी दूर शहडार जंगल है। ये जगह नेचर लवर्स के लिए स्वर्ग से कम नहीं है। घना जंगल जहां सूरज की रोशनी जमीन तक नहीं पहुंचती। आसमान को छूते पेड़ और कई स्तरों पर पेड़ों और लताओं की कतार नजर आती है। शहडार का ये जंगल कटनी वन मंडल के अंतर्गत आता है। इस जंगल में कई तरह के पशु-पक्षी रहते हैं। इनमें तेंदुआ, भालू, चीतल, हिरण, जंगली सुअर, सियार, जंगली कुत्ता, नीलगाय आदि हैं। कई तरह के सांप जैसे करैत, डबल करैत, धामन, गडैता, बफ स्ट्रिप्ड कीलबेक भी मिलते हैं। किंगफिशर, मोर और विभिन्न प्रकार के पक्षी भी पाए जाते हैं। ये जंगल वन विभाग के अंतर्गत आता है तो यहां पर किसी भी प्रकार से वन और वन्य जीवों को हानि पहुंचाना गैर-कानूनी है।
शहडार का ये जंगल उष्णकटिबंधीय अर्द्धपर्णपाती वन (TROPICAL WET DECIDUOUS FOREST) के अंतर्गत आता है क्योंकि इस क्षेत्र में 100 से लेकर 200 सेमी के बीच बारिश होती है। यहां सागवान, साल, सखुआ, खैर आदि पेड़ पाए जाते हैं जो आर्थिक रूप से काफी महत्त्वपूर्ण हैं। इसके अलावा बरगद, पीपल, हर्रा, बहेड़ा, नीम, बबूल, अर्जुन, महुआ, सप्तपर्णी, गुलमोहर, बेर आदि के पेड़ बहुतायत में दिखाई देते हैं।
इस जंगल के अनेक रूप दिखाई देते हैं। बारिश के समय तो मानो यहां हरी चादर सी बिछ जाती है। बारिश के मौसम में जंगल की जमीन से लेकर पेड़ों के शिखर तक सबकुछ हरा ही हरा नजर आता है। कोपल जैसे नए जीवन के प्रतीक तरह दिखाई देती है। हरे जंगल के बीच से गुजरती काली सड़क काली नागिन तरह लगती है।
बारिश का अतिरिक्त पानी सड़क के किनारे से जब गुजरता है तो लगता है मानो नदी साथ-साथ चल रही है। यही पानी इकट्ठा होकर कहीं-कहीं मैदान में जमा हो जाता है तो कहीं छोटे झरने का रूप ले लेता है। शहडार के जंगल की इन खासियस के अलावा जंगल के बीच-बीच में मैदान का होना जो कई सारे जानवरों की जगह होती है।
ठंड के मौसम में ये जंगल अपने अलग ही अंदाज में दिखाई देता है। ठंड में शहडार के जंगल में सूरज की रोशनी कुछ इस आती हुई लगती है मानो किसी ने छन्नी लगा दी हो। घास जमा ओंस की बूंद सूरज की रोशनी से चमकने लगती है और ऐसी दिखती हैं जैसे कई सारे घास के पत्तियों पर हीरे लगा दिए हों। ठंड में जितनी प्यारी धूप इंसानों को लगती है उतनी जानवरों को भी लगती है। शहडार के जंगल में हिरण, चीतल, नीलगाय आदि जानवार चहलकदमी करते नजर आते हैं। तेंदुए जैसे जानवर शिकार करते नजर आते हैं।
ठंड के मौसम के बाद नमी को सुखा देने वाली गर्मी का मौसम आता है। हरी घास सूखकर सुनहरी हो जाती है। बड़े-बड़े पेड़ के पत्ते भी सुनहरे हो जाते हैं और आखिरकार शाख को छोड़ देते हैं। कुछ पेड़ बचते हैं जिनके सैनिक की तरह पत्ते अंत तक लड़ाई लड़ते हैं। शिरीष, गुलमोहर, पलाश, अमलताश के सफेद , लाल और पीले फूले से धहकता शहडार का जंगल भी रंग-बिरंगा नजर आता है। गर्मी के इस मौसम में आलस पसर जाता है। जंगल का कोना-कोना बारिश के इंतजार में आस लगाए बैठा होता है।
शहडार का जंगल मुख्य रूप मध्यप्रदेश के कटनी जिले में स्थित है। इस जंगल की सीमा उमरिया और जबलपुर जिलों से भी लगती है। शहडार के जंगल के पास ही भारत का केंद्र बिंदु (CENTRE POINT) करौंदी है। शहडार जंगल, बांधवगढ़ नेशनल पार्क के नजदीक स्थित है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के नजदीक होने के कारण शहडार का जंगल बफर जोन में आता है। यहां टाइगर का मूवमेंट भी देखने को मिल जाता है।
नजदीकी पर्यटन स्थल
(NEAREST TOURIST ATTRACTION)
शहडार के जंगल के पास कई सारे टूरिस्ट प्लेस हैं जिनमें रुपनाथ शिलालेख, बांधवगढ़ नेशनल पार्क, धुंआधार फॉल जबलपुर, चौंसठ योगिनी मंदिर जबलपुर, पनपठा सेंक्चुरी, भारत का सेंटर प्वॉइंट 'करौंदी', शारदा देवी मंदिर मैहर आदि।
कब जाएं
(BEST TO VISIT)
शहडार के जंगल घूमने का सबसे अच्छा मौसम जुलाई से फरवरी है। बारिश के मौसम में जंगल हरा-भरा हो जाता है नेचर लवर के लिए स्वर्ग से कम होता है। वहीं ठंड के मौसम में आपको बड़ी संख्या में जंगली जानवरों की चहलकदमी नजर आती है।
कैसे पहुंचे
(HOW TO REACH)
शहडार के जंगल पहुंचने के लिए एयर, रेल और बस तीनों माध्यम उपलब्ध हैं।
एयरपोर्ट - शहडार के जंगल से नजदीकी एयरपोर्ट जबलपुर है जो लगभग 90 किमी है। यहां से आप टैक्सी कर सकते हैं।
रेल - शहडार से नजदीकी सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन कटनी है जो 40 किमी दूर स्थित है। यहां से आप टैक्सी किराये पर ले सकते हैं।
बस - कटनी बस स्टैंड नजदीक है जहां से छोटे-बड़े शहरों के लिए बस उपलब्ध है।
बुधवार, 24 अगस्त 2022
बुक रिव्यू : 'आनंदमठ' की बात जाए तो दो ही बातें सबसे पहले ध्यान में आती है पहली 'वंदे मातरम' और दूसरी संन्यासी विद्रोह
सबसे पहले बंकिमचंद्र चट्टोपध्याय की किताब 'आनंदमठ' में मिलता है...आज हम इसी किताब का बुक रिव्यू करने जा रहे हैं...
ये किताब बात करती है आजादी के पहले के भारत की जब अंग्रेज अपने शासन की नींव रख रहे थे...लोगों का गुस्सा जहां लगान वसूल करने वाले मुस्लिम शासकों से तो था ही इसके साथ-साथ अंग्रेजों को लोग मलिच्छ समझा करते थे। मुस्लिमों और अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए कुछ लोगों ने सन्यासी का वेश धारण किया। किताब इन्हीं सन्यासियों की बात करती है जो दिन में तो सन्यासी के वेश में भीख मांगते हैं और रात होते ही क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देते हैं।
आनंदमठ की कहानी कई सारे किरदार हैं। इसमें सत्यानंद, जीवानंद, भावानंद, महेंद्र, शांति और कल्याणी हैं और कहानी इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है। सत्यानंद सन्यासियों द्वारा की जा रही क्रांतिकारी गतिविधियों के कर्ता-धर्ता हैं। इन्हीं के द्वारा आनंदमठ में सन्यासी को क्रांतिकारी बनाया जाता है। किताब का टाइटल आनंदमठ है जो क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र रहता है। आनंदमठ शहर से दूर घने जंगल के बीचों-बीच स्थित होता है।
किताब में सन्यासी कौन होते हैं इस बात का जिक्र किया गया है जिसमें घर
लेखक ने किताब में जितना पुरुष के शौर्य की चर्चा होती है वहीं महिला की ताकत का बखान भी किया गया है। शांति से नवीनानंद तक कहानी भी रोचक है जो किसी प्रेरणा से कम नहीं है। लड़ाई लड़ने से लेकर वाकपटुता, वेद-पुराण, व्याकरण के ज्ञान में अव्वल है। सत्यानंद भी इन्हीं खूबियों के कारण उसे आनंदमठ में प्रवेश करने न रोक सके। शांति के आनंदमठ में प्रवेश से पहले तक महिला सन्यासी नहीं बन सकती थीं। वहीं कल्याणी कोमल ह्रदय और ममता के समुंदर वाली औरत है जिसके दिल में परिवार और देश के लिए मर मिटने की ख्वाहिश हमेशा रहती है।
इस किताब का करेक्टर जीवानंद पराक्रमी योद्धा है जिसका मन तो देश के लिए क्रांति करने में लगा रहता है लेकिन दिल में आज भी उसके शांति ही होती है। जब शांति नवीनानंद बनकर आनंदमठ आ जाती है तो जीवानंद भी चौंक जाता है। लेकिन जीवानंद के दिमाग में प्रायश्चित बात घूमने लगती है क्योंकि सन्यासी रहते हुए जीवानंद शांति से मिलने गया था।
किताब में लेखक ने सन्यासी के बारे में जो बताया है वो कुछ इस तरह है कि सन्यासी गेरुआ कपड़े पहनते हैं वे किसी साधु की तरह दिखाई देते हैं। वैष्णव धर्म का पालन करते हैं। लेकिन देश के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। अंग्रेजों के लिए काल का काम करते हैं। ये सन्यासी लूटपाट करते है खासकर अंग्रेजी खजाने को और जरुरत पड़ने पर हत्या करने से भी नहीं हिचकते। इसलिए अंग्रेज इन्हें अपना दुश्मन मानते हैं।
इसी किताब का अंत होता है एक जोरदार लड़ाई से जो सन्यासी और अंग्रेजों के बीच होती है। इस लड़ाई में जहां अंग्रेजों की ओर से देसी-विदेशी मुट्ठीभर सैनिक लड़े वहीं सन्यासियों की ओर से दसों हजार सैनिकों ने हिस्सा लिया। इस लड़ाई में महेंद्र ने जहां तोपें बनाकर लड़ाई का रुख सन्यासी की ओर किया तो वहीं जीवानंद, धीरानंद का लड़ाई के मैदान में जौहर कमाल का था। इस लड़ाई में सन्यासियों की जीत होती है।
आनंदमठ की बात जाए और वंदे मातरम का नाम आए ऐसा कैसे हो सकता है? इसी उपन्यास से वंदे मातरम गीत लिया गया है। पूरे उपन्यास में वंदे मातरम जोश जगाने वाला गीत था। जो मातृभूमि के प्रति समर्पण जाहिर करने का तरीका है। वंदे मातरम का गान युद्ध की भूमि से लेकर पूजा करने तक शामिल है। वंदे मातरम गीत भारतीय स्वतंत्रता का गीत बना जो बाद में हमारे देश का राष्ट्रीय गीत बना।
किताब की बात की जाए तो बेहद ही शानदार है जो हमारे इतिहास और कल्चर के बारे में बताती है। जरूर इस किताब को पढ़ना चाहिेए। जय हिंद!!!
सोमवार, 24 मई 2021
बकस्वाहा जंगल : सवा दो लाख पेड़ों की कीमत पर हीरे की चमक फीकी हो जाएगी
2,15,875 लाख पेड़ काटे जाएंगे। शायद ये आंकड़ा इससे भी ज्यादा हो या बहुत ज्यादा हो। मैं कहूंगा कि ये पेड़ नहीं काटे जाएंगे बल्कि पर्यावरण की हत्या होगी। जिस बुंदेलखंड में लोग पानी के लिए तरसते हैं। जहां खेती के नाम पर साल का आधा समय वीरान रहता है वहां इस तरह की हरकत बड़े विनाश को जन्म देगी। बुंदेलखंड संस्कृति और सभ्यता का गढ़ रहा है। इसमें कोई दोराय नहीं की बुंदेलखंड खनिज के मामले में अग्रणी है। खासकर मध्यप्रदेश वाले जिले।
मंगलवार, 20 अप्रैल 2021
कोरोना 2.0 बच्चों के लिए काल बनकर आया है!
देश में अबतक 12 करोड़ लोगों को वैक्सीन लग चुकी है। ये 12 करोड़ लोग कुल जनसंख्या का लगभग 9 फीसदी बैठता है। जहां भारत में 45 साल से ऊपर वालों को वैक्सीन ड्राइव चलाई जा रही है वहीं यूएस में 16 साल से अधिक उम्र के लोगों का टीकाकरण किया जा रहा है।भारत में कोरोना की पहली लहर में जहां बच्चे काफी हद तक सुरक्षित थे, वहीं कोरोना की दूसरी लहर में बच्चों पर प्रभाव दिखना शुरू हो गया है। कई मीडिया रिपोर्टस में सामने आया है कि कोरोना की दूसरी लहर में बच्चे ज्यादा शिकार हो रहे हैं। भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से बच्चों में किसी भी प्रकार के घातक प्रभाव के बारे में कोई जानकारी पब्लिक डोमेन में नहीं आई है।
कोरोना की दूसरी लहर जिसे इंडियन म्यूटेंट भी कहा जा रहा है। हेल्थ एक्सपर्ट का कहना है कि ये डबल म्यूटेंट वायरस है जो पहले की अपेक्षा ज्यादा खतरनाक है। वायरोलॉजिस्ट का कहना है कि भारत में ये डबल म्यूटेंट वायरस यूके और ब्राजील से भारत में आया। यूके और ब्राजील वेरियेंट ने भारत में आकर अधिक तबाही मचाई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन कहना है कि कोरोना से बच्चे ज्यादा संक्रमित नहीं होते बल्कि वे इसके वाहक होते हैं। भारत में अब वयस्कों के साथ-साथ बच्चे भी इसका शिकार बन रहे हैं।
ब्राजील में अबतक कोरोना की वजह से 1300 बच्चे काल के गाल में समा गए हैं। दक्षिण अमेरिका के इस देश ने सबको चौंका दिया है क्योंकि ब्राजील की स्वास्थ्य प्रणाली विश्व की बेहतरीन थी। लेकिन चूक कहा हुई एक्सपर्ट का कहना है कि ब्राजील में कोविड 19 के टेस्ट बहुत ही कम हो रहे हैं। ऐसी भी खबर सामने आ रही है कि टेस्ट न होने की वजह से रोगी का सही ट्रीटमेंट नहीं हो पा रहा है और कोरोना के कारण उसकी मृत्यु हो जा रही है। भारत में बच्चों में कोरोना के लक्षण सामने आने का एक कारण ये भी हो सकता है कि लोग बच्चों का कोरोना टेस्ट करा रहे हैं।
भारत में कोरोना की पहली लहर में सबकुछ बंद था। कोई भी गतिविधि नहीं हो रही थी। ट्रेन, बस, एयरपोर्ट सब बंद थे। मॉल, स्कूल-कॉलेज, यूनिवर्सिटी, बाजार, सरकारी ऑफिस भी बंद था। लोग घरों में कैद हो गए हो गए थे। बच्चों का घरों से बाहर निकलना बंद हो गया था। बच्चों ने हाइजिन की नई परिभाषा सीख ली थी। मास्क, सैनिटाइजर और दो गज की दूरी रखना बच्चों ने सीख लिया था। भारत में जैसे ही धीरे-धीरे अनलॉक होने लगा तो बच्चों में ये आदतें धीरे-धीरे जाती रही। लोग बच्चों को लेकर शादी, सोशल प्रोग्राम, नई-नई जगह घूमने जाने लगे जिसका नतीजा नए स्ट्रेन ने बच्चों को भी अपनी गिरफ्त लेना शुरू कर दिया ।
इसमें कोई दोराय नहीं है कि कोरोना का दूसरी लहर ने लोगों को परेशान किया है। आईसीएमआर(ICMR), नीति आयोग और एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुछ मुख्य आंकड़ें दिए गए। इन आंकड़ों में कहा गया है कि भारत के कुल संक्रमितों में 0 से 19 आयु वर्ग वाले बच्चों का हिस्सा मात्र 5.8 फीसदी है। यह आंकड़ा पिछली लहर से मात्र 1.8 फीसदी ज्यादा है जो पिछली बार 4.2 फीसदी था। दूसरी लहर में कोरोना से संक्रमित होने वाले सबसे ज्यादा लोगों में 40 से अधिक आयु वर्ग वाले लोगों का है।
बच्चों की चिंता सबको है क्योंकि वे देश का भविष्य हैं। कोरोना इस दुनिया के लिए अभिशाप है। लोगों को धैर्य से काम रखना होगा। बच्चों में कोई लक्षण दिखाई दे तो टेस्ट कराएं। टेस्ट कराने के बाद सबकुछ सामने आता है। बेवजह न घबराएं। मास्क, सैनिटाइजर और दो गज की दूरी का पालन करवायें। यही एक उपाय है।
BY_vinaykushwaha
रविवार, 18 अप्रैल 2021
कोरोना की भयंकर लहर में किसान आंदोलन की कितनी जरुरत है?
भारत में कोविड 19 के अब 2 लाख से ज्यादा केस रोजाना मिलने लगे हैं। विश्व में
भारत फिर से रोजाना कोविड 19 के रोजाना केस के मामले में सबसे आगे बढ़ने की होड़
में है। हर रोज कोरोना काल बनकर 800 लोगों को लील रहा है। कोविड की दूसरी लहर जानलेवा है...नहीं-नहीं....भयानक
महाविनाश है। लोगों को समझ आ गया है कि करना क्या है। आज लोगों को मास्क और
सैनिटाइजर की अहमियत समझ आ गई है। कुछ लोग है कि मानते ही नहीं। उन्हें न तो अपनी
चिंता है न औरों की । वो तो केवल अपने तथाकथित अधिकारों की बात कर रहे हैं।
किसान आंदोलन इस कोरोना की भयानक लहर में भी जारी है। दिल्ली की बॉर्डर पर
बैठे ये किसान अपने अधिकारों की बात कर रहे हैं। तीन कृषि कानून को वापस लेने के
लिए सरकार के आगे दृढ़निश्चय होकर संकल्प लेकर बैठ गए हैं। किसानों का कहना है कि
जब तक मांग पूरी नहीं होगी तब तक दिल्ली बॉर्डर से हिलेंगे तक नहीं। मुझे समझ नहीं
आता कि ये किस तरह का विरोध प्रदर्शन है जहां एक ओर सारा देश कोरोना से जंग लड़
रहा है, वहीं दूसरी ओर ये किसान अपनी मांगों को लेकर अड़िग हैं।
इन किसानों ने गर्मी का सारा इंतजाम कर लिया है। एयर कंडीशनर वाली हट या
झोपड़ी तैयार हो गई हैं। सबकुछ इंतजाम हो गया है। किसानों को लग रहा है कि उनका भी
वही हाल न हो जाए जो शाहीनबाग का हुआ था। कोरोना के कारण शाहीन बाग से
प्रदर्शनकारियों को हटाया गया था। किसानों को समझना चाहिए ये समय लड़ाई का नहीं
समन्वय का है। आंदोलन तो सबकुछ सामान्य होने के बाद भी जारी रख सकते हैं। भारतीय
किसान यूनियन (बीकेयू) के अध्यक्ष राकेश टिकैत का
कहना है कि हमारे मांगें पूरी होंगी तभी यहां से हटेंगे।
एक निजी चैनल को इंटरव्यू देते हुए कहा कि क्या हमारे आंदोलन खत्म करने से देश
में कोरोना खत्म हो जाएगा? बंगाल के चुनाव में भी किसान आंदोलन की बयार चल रही है। किसानों के मुद्दों
को किसान संगठन बंगाल के कोने-कोने तक फैला रहे हैं। दबी खबर तो ये है कि सरकार
किसान आंदोलन को खत्म करने पर विचार कर
रही हैं। कई मीडिया रिपोर्टस कह रही हैं कि केंद्र सरकार ने हरियाणा सरकार को
किसानों को दिल्ली बॉर्डर से हटाने की जिम्मेदारी दी है। केंद्र सरकार हवाई
सर्वेक्षण करवाकर अर्ध्दसैनिकों के व्दारा किसानों को सिंघु और टीकरी बॉर्डर से
हटवाना चाहती है।
कोरोना के चलते लॉकडाउन और किसान आंदोलन के चलते रास्ते बंद होना लोगों के लिए
सिर दर्द बन गया है। परेशान लोग अब किसी नतीजे का इंतजार कर रहे हैं। खबर है कि
लोगों ने यूपी सरकार उच्च अधिकारियों के जरिये सीएम योगी आदित्यनाथ तक रास्ते की
सिरदर्दी वाली खबर पहुंचाई है। लोगों को भी आशा है कि ये आंदोलन खत्म हो तो हमें
राहत की सांस लेने मिले।
किसानों को अपनी और दूसरों की चिंता होनी चाहिए। दिल्ली में कोरोना के
रोजाना मामले 20 हजार को पार कर गए हैं।
वहीं यूपी में 26 हजार और 7 हजार से ज्यादा रोजाना कोरोना के केस सामने आ रहे हैं।
दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल ने वीकेंड लॉकडाउन लगा दिया है। दिल्ली में कभी
संपूर्ण लॉकडाउन लग सकता है। यूपी में पंचायत चुनाव खत्म होने वाले हैं तो इसके
बाद तो यूपी में भी लॉकडाउन लगना तय है। किसान चारों ओर से फंस जाएंगे फिर उन्हें
अपनी ही बात अंधेरे में तीर मारने जैसे लगने लगेगी।
📖 BY_vinaykushwaha