यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 9 सितंबर 2022

बुक रिव्यू : 'डार्क हॉर्स' सफलता और असफलता की एक ऐसी कहानी कहती है जो सिविल सेवा परीक्षा के बारे में आपकी आंखें खोल देगी!!!

लेखक - नीलोत्पल मृणाल
प्रकाशक - हिंदी युग्म प्रकाशन 

सिविल सेवा का नाम जब सामने आता है तो सबसे पहले एक शहर सबसे पहले कौंधता है दिल्ली। दिल्ली का मुखर्जी नगर इसके लिए गढ़ माना जाता है। सिविल सेवक बनने के लिए लाखों-लाख लोग आते हैं कई को सफलता मिलती है और कई को असफलता हाथ लगती है। दिल्ली के मुखर्जी नगर की एक पूरी की पूरी फिल्म दिखाती किताब है 'डार्क हॉर्स'। 

आज हम 'डार्क हॉर्स' किताब का बुक रिव्यू करने जा रहे हैं...इसके लेखक हैं नीलोत्पल मृणाल। 

डार्क हॉर्स कहानी कहती है उन ढेर सारे उम्मीदवारों की जो भारत की सबसे प्रतिष्ठित सेवा आईएएस, आईपीएस आदि बनने अलग-अलग राज्यों से दिल्ली आते हैं। दिल्ली में कुछ के सपने साकार होते हैं और कुछ के नहीं। कोई इस दिल्ली नामक चकाचौंध में भ्रमित हो जाता है तो कोई तमाम कोशिश के बाद भी सफल नहीं हो पाता है।

कहानी संतोष, मनोहर, रायसाहब उर्फ कृपाशंकर, विमलेंदु , गुरु, मयूराक्षी, जावेद, पायल और विदिशा के चारों ओर घूमती है। रायसाहब हैं जो सबसे बुजुर्ग हैं कई बार परीक्षा दे चुके हैं फिर भी कुछ नहीं हुआ। लेकिन जहां लकड़ी देखी वहीं अपनी बिसात जमाना शुरू कर देते हैं। जहां मुंह मारते हैं वहीं धोखा मिलता है।

बिहारी नौजवान मनोहर जो नए नवेले अंदाज में रहता है। मॉडर्न लुक रखता है। बाकायदा सिर से लेकर पैर तक और कपड़ों से लेकर परफ्यूम तक का ध्यान रखता है। सिविल सेवा के अखाड़ा में इनकी पहलवानी जमी नहीं। लेकिन महिला मित्र बनाने में अव्वल रहा और दोस्तों को जोड़ने का काम किया।

गुरु जो पढ़ाई में अव्वल रहा और साक्षात्कार तक पहुंचने वाले लोगों में से एक है। गुरु को पढाई के साथ-साथ सामाजिक दुनिया का ज्ञान है जो अपने लंबे-चौड़े भाषण में यदा-कदा देता रहता है। वहीं विमलेंदु, गुरु का दोस्त है और वह भी साक्षात्कार दे चुका है।

इस उपन्यास की कहानी शुरू होती है संतोष के सफर से जो बिहार के भागलपुर से ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद दिल्ली का रुख करता है। भागलपुर से दिल्ली तक का सफर संतोष के लिए खट्टे-मीठे अनुभव लिए रहता है। संतोष दिल्ली पहुंचते ही रायसाहब के रुम पर रुकता है। फिर उसकी मुलाकात होती है बाकी दोस्तों मतलब मनोहर, गुरु, विमलेंदु, भरत, पायल और विदिशा से। 

पायल और विदिशा दोनों दोस्त हैं जो खुले विचार वाली हैं। जहां पायल के लिए कोई बंदिश की सीमा नहीं है जो हर बार नया प्रयोग करके देखना चाहती है। उसने कई बार प्रयोग किए। वहीं विदिशा मर्यादा के बंधन में बंधी लड़की है जो हमेशा नपे-तुले अंदाज में रहती है।

संतोष के लिए कोचिंग का अनुभव भी खास न रहा। कोचिंग के मोहजाल में न चाहते हुए भी फंस गया। कोचिंग के पाखंड से बच न सका। लेकिन कोचिंग की रिसेप्शनिस्ट को दिल दे बैठने वाले संतोष को सारी कोचिंग के सामने जलील होना पड़ा। यही से छरका संतोष संभल गया।

इस किताब में लव स्टोरी आपको ढूंढने से भी नहीं मिलेगी। जो हैं भी वो क्षणिक है। गुरु और मयूराक्षी का प्रेम भी शक के कारण परवान न चढ़ सका। वहीं मनोहर, पायल के प्रयोग से सहम कर उससे किनारा कर लिया।

उपन्यास में असफलता के कई सारे किस्से हैं लेकिन सफलता की भी चर्चा कम न रही। विमलेंदु और मयूराक्षी को सफलता मिली। जिन्हें नहीं मिली उन्होंने भाग्य को कोसा। 

किताब में रुलाने वाला और भयंकर पीड़ा देने वाला किस्सा है जावेद का। पिता की मृत्यु के बाद जावेद अपनी बीमार मां को घर पर छोड़कर दिल्ली तैयारी करने जाता है। मां की बीमारी में गांव की जमीन बिक जाती है। मां का एक सपना रहता है बेटा अधिकारी बने। एक चाचा है जो इस हालत में भी शोषण करने से बाज नहीं आता। जावेद की मुसीबत यही कम नहीं होती है सिविल सेवा परीक्षा पास नहीं कर पाता वहीं गांव से फोन आता है कि मां की तबीयत खराब है। गांव पहुंचता है तो दर्द कम होने की जगह बढ़ जाता है। मां का देहांत हो जाता है। लेकिन इस बीच उसे पता चलता है कि बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा पास कर लेता है।

वहीं संतोष की बात करें जो इस उपन्यास का मुख्य पात्र है। जब दो बार सिविल सेवा परीक्षा पास नहीं कर पाया तो उसने सबसे किनारा कर लिया। और "डार्क हॉर्स" बनकर निकला। डार्क हॉर्स का मतलब जिस व्यक्ति के बारे में किसी ने परीक्षा पास करने के बारे में सोचा नहीं वही व्यक्ति सफल होकर निकला। इसलिए इस किताब का नाम डार्क हॉर्स रखा गया। एक ऐसा घोड़ा जिस पर कोई दांव नहीं लगाता। वही घोड़ा रेस जीत जाता है।

किताब का सार यही है कि दिल्ली में आते तो बहुत हैं तैयारी करने वाले। जो दिल्ली की चकाचौंध, माया-मोहिनी के चक्कर में नहीं फंसता वही सफल होता है। 

जय हो!!!

BY_VINAYKUSHWAHA

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें