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बुधवार, 14 सितंबर 2022

हिंदी दिवस स्पेशल : संस्कृत से हिंदी तक बनने में एक लंबा सफर लगा, आज व्यौहार राजेंद्र सिंह के जन्मदिवस पर हिंदी दिवस मनाया जाता है

हिंदी भाषा की जननी संस्कृत को कहा जाता है जबकि ऐसा नहीं है। हिंदी को हिंदी बनने में बहुत लंबा समय लगा है। सबसे पहले संस्कृत भाषा आई फिर प्राकृत फिर अर्द्धमागधी फिर अपभ्रंश फिर अवहट्ट अंतत: हिंदी भाषा का जन्म हो गया। हिंदी उपरोक्त भाषाओं से ताकतवर भाषा बन गई है क्योंकि हिंदी ने बहुत से शब्द भंड़ार बाहर से ग्रहण किए है जिनमें संस्कृत सबसे अहम है। 

तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी शब्दों का उपयोग करके हिंदी एक समृद्ध भाषा के रूप में विकसित हुई है। हिंदी भाषा की एक और ताकत है उसकी बोलियां जिसमें भोजपुरी, शौरसेनी अपभ्रंश, बघेली, छत्तीसगढ़ी, हडौती, ढूढांणी,मेवाती, मारवाडी, मालवी, निमाड़ी, ब्रज, अवधी, हरियाणवी, कुमायुनी आदि हैं। हिंदी भाषा को लिखने के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग किया जाता है।

प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 343(1) के तहत इसे राजभाषा का दर्जा दिया गया। हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है न कि राष्ट्रभाषा का क्योंकि हमारे संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में चिन्हित नहीं किया गया है। हिंदी को संविधान की  आठवी अनुसूची में शामिल किया गया है। स्वतंत्रता पश्चात् सरकारी कामकाज और जनसामान्य में व्यवहार करने के लिए एक भाषा की जरुरत पड़ी। 

तत्कालीन भारत बिखरा हुआ था जिसमें आज की तरह राज्य नहीं थे। देश की भाषा के रूप में कई भाषा के लिए जनप्रतिनिधियों और आमजन ने तमिल, बंगाली, असमिया, हिंदुस्तानी जैसी भाषा का नाम आगे किया। संविधान सभा की भाषा समिति ने सभी से राय लेते हुए और देश की बहुसंख्यक आबादी की बोलने वाली भाषा के रूप में हिंदी को राजभाषा स्वीकार किया गया। हिंदी के साथ-साथ इंग्लिश को पन्द्रह वर्षों के लिए सरकारी भाषा के रूप में स्वीकार किया गया।

व्यौहार राजेन्द्र सिंह का जन्म 14 सितंबर 1916 को हुआ और जन्मदिवस की 50वीं वर्षगांठ अर्थात् 14 सितंबर 1949 को भारत सरकार ने हिंदी को राजभाषा घोषित कर दिया। इसी दिन को 'हिंदी दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। यह बहुत कम लोग जानते है कि हिंदी को राजभाषा के रूप में स्थापित करने का श्रेय व्यौहार राजेन्द्र सिंह को जाता है। 

जबलपुर की जागीरदार के घर जन्मे राजेन्द्र सिंह गांधीवादी विचारधारा के व्यक्ति थे। समाजसेवी और साहित्यकार भी थे। व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने मैथिली शरण गुप्त, काका कालेलकर, सेठ गोविंददास और हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसी महान हस्तियों के साथ मिलकर दक्षिण भारत में हिंदी को राजभाषा के रूप में घोषित कराने के लिए अभियान चलाया। अमेरिका में सपन्न हुए पहले हिंदी सम्मेलन का सफल आयोजन कर भारतीय तिरंगा झंड़ा फहराया।

भक्ति काल में हिंदी ने जनसामान्य में जगह बनाने की शुरुआत की इसमें बड़े-बड़े कवियों ने रचनाओं का सृजन कर हिंदी को समृद्ध किया। मीरा, कबीर, तुलसीदास, सूरदास, बिहारी, केशवदास, दादू , रहीम, भूषण आदि रचनाकार है जिन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने की नींव रखी। आचार्य रामचंद्र शुक्ल, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु, राही मासूम रज़ा, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, मैथिली शरण गुप्त, सुमित्रानंदन पंत, गजानन माधव मुक्तिबोध, गणेश शंकर विधार्थी, देवकीनंदन खत्री, माखनलाल चतुर्वेदी, भवानी प्रसाद मिश्र जैसे साहित्य के अग्रदूतों ने विशेष योगदान दिया।

हिंदी आज के समय में एक ऐसी भाषा बन चुकी है जिसका लोहा पूरी दुनिया मानती है। भाषाविद् हिंदी को भारोपीय श्रेणी में रखते है। हिंदी दुनिया की चौथी सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा बन चुकी है जिसके भारत समेत विश्व में लगभग 615 मिलियन बोलने वाले लोग है। हिंदी भारत में ही नहीं कई और देशों में बोली जाती है जिनमें गुएना, मॉरिशस, सिशेल्स, त्रिनिदाद और टुबैगो, फिजी आदि। फिजी की अधिकारिक भाषा फिजी हिंदी है। भारत के अलावा नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, भूटान और मालद्वीप में हिंदी को समझने वाले आसानी से मिल जाते हैं।

इंटरनेट और सोशल साइट पर जहां इंग्लिश का एकछत्र राज था जिसे हिंदी ने खत्म करने में सफलता पाई है। आज इंटरनेट पर लगभग सभी जानकारी हिंदी में उपलब्ध है। सोशल मीडिया में धडल्ले से हिंदी का उपयोग किया जा रहा है। बड़ी-बड़ी सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां और वेबसाइट्स हिंदी को महत्ता प्रदान कर रही है क्योंकि हिंदी आज विश्व में एक नवीन ताकत के रूप में उभर कर सामने आई है। जहां पहले उच्च शिक्षा बिना इंग्लिश माध्यम के सम्पन्न नहीं हो पाती थी वही आज भारत से लेकर विदेश तक उच्च शिक्षा के लिए हिंदी विश्वविधालय खुल रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र में पहली बार हिंदी में भाषण देने वाले प्रथम प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई हुए। आज पीएम नरेन्द्र मोदी अपने प्रत्येक कार्यक्रम में हिंदी ही भाषण देते है चाहे वे देश में हो या विदेश में। यह सब हिंदी भाषा को विश्व में गरिमामय उपस्थिति दर्ज कराने के लिए किया जा रहा है। हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की कामकाज की भाषा बनाने के लिए भारत प्रयासरत है।

हिंदी को किसी भाषा से डर नहीं परंतु कुछ लोग कुंठित मानसिकता के फलस्वरुप हिंदी भाषी और गैर हिंदी भाषी के बीच द्वंद कराने से नहीं चूकते है।

हिंदी तो सबकी है, हिंदी का प्रयोग करें।
हिंदी को बिंदी न बनाए।

📃विनय कुशवाहा

शुक्रवार, 9 सितंबर 2022

बुक रिव्यू : 'डार्क हॉर्स' सफलता और असफलता की एक ऐसी कहानी कहती है जो सिविल सेवा परीक्षा के बारे में आपकी आंखें खोल देगी!!!

लेखक - नीलोत्पल मृणाल
प्रकाशक - हिंदी युग्म प्रकाशन 

सिविल सेवा का नाम जब सामने आता है तो सबसे पहले एक शहर सबसे पहले कौंधता है दिल्ली। दिल्ली का मुखर्जी नगर इसके लिए गढ़ माना जाता है। सिविल सेवक बनने के लिए लाखों-लाख लोग आते हैं कई को सफलता मिलती है और कई को असफलता हाथ लगती है। दिल्ली के मुखर्जी नगर की एक पूरी की पूरी फिल्म दिखाती किताब है 'डार्क हॉर्स'। 

आज हम 'डार्क हॉर्स' किताब का बुक रिव्यू करने जा रहे हैं...इसके लेखक हैं नीलोत्पल मृणाल। 

डार्क हॉर्स कहानी कहती है उन ढेर सारे उम्मीदवारों की जो भारत की सबसे प्रतिष्ठित सेवा आईएएस, आईपीएस आदि बनने अलग-अलग राज्यों से दिल्ली आते हैं। दिल्ली में कुछ के सपने साकार होते हैं और कुछ के नहीं। कोई इस दिल्ली नामक चकाचौंध में भ्रमित हो जाता है तो कोई तमाम कोशिश के बाद भी सफल नहीं हो पाता है।

कहानी संतोष, मनोहर, रायसाहब उर्फ कृपाशंकर, विमलेंदु , गुरु, मयूराक्षी, जावेद, पायल और विदिशा के चारों ओर घूमती है। रायसाहब हैं जो सबसे बुजुर्ग हैं कई बार परीक्षा दे चुके हैं फिर भी कुछ नहीं हुआ। लेकिन जहां लकड़ी देखी वहीं अपनी बिसात जमाना शुरू कर देते हैं। जहां मुंह मारते हैं वहीं धोखा मिलता है।

बिहारी नौजवान मनोहर जो नए नवेले अंदाज में रहता है। मॉडर्न लुक रखता है। बाकायदा सिर से लेकर पैर तक और कपड़ों से लेकर परफ्यूम तक का ध्यान रखता है। सिविल सेवा के अखाड़ा में इनकी पहलवानी जमी नहीं। लेकिन महिला मित्र बनाने में अव्वल रहा और दोस्तों को जोड़ने का काम किया।

गुरु जो पढ़ाई में अव्वल रहा और साक्षात्कार तक पहुंचने वाले लोगों में से एक है। गुरु को पढाई के साथ-साथ सामाजिक दुनिया का ज्ञान है जो अपने लंबे-चौड़े भाषण में यदा-कदा देता रहता है। वहीं विमलेंदु, गुरु का दोस्त है और वह भी साक्षात्कार दे चुका है।

इस उपन्यास की कहानी शुरू होती है संतोष के सफर से जो बिहार के भागलपुर से ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद दिल्ली का रुख करता है। भागलपुर से दिल्ली तक का सफर संतोष के लिए खट्टे-मीठे अनुभव लिए रहता है। संतोष दिल्ली पहुंचते ही रायसाहब के रुम पर रुकता है। फिर उसकी मुलाकात होती है बाकी दोस्तों मतलब मनोहर, गुरु, विमलेंदु, भरत, पायल और विदिशा से। 

पायल और विदिशा दोनों दोस्त हैं जो खुले विचार वाली हैं। जहां पायल के लिए कोई बंदिश की सीमा नहीं है जो हर बार नया प्रयोग करके देखना चाहती है। उसने कई बार प्रयोग किए। वहीं विदिशा मर्यादा के बंधन में बंधी लड़की है जो हमेशा नपे-तुले अंदाज में रहती है।

संतोष के लिए कोचिंग का अनुभव भी खास न रहा। कोचिंग के मोहजाल में न चाहते हुए भी फंस गया। कोचिंग के पाखंड से बच न सका। लेकिन कोचिंग की रिसेप्शनिस्ट को दिल दे बैठने वाले संतोष को सारी कोचिंग के सामने जलील होना पड़ा। यही से छरका संतोष संभल गया।

इस किताब में लव स्टोरी आपको ढूंढने से भी नहीं मिलेगी। जो हैं भी वो क्षणिक है। गुरु और मयूराक्षी का प्रेम भी शक के कारण परवान न चढ़ सका। वहीं मनोहर, पायल के प्रयोग से सहम कर उससे किनारा कर लिया।

उपन्यास में असफलता के कई सारे किस्से हैं लेकिन सफलता की भी चर्चा कम न रही। विमलेंदु और मयूराक्षी को सफलता मिली। जिन्हें नहीं मिली उन्होंने भाग्य को कोसा। 

किताब में रुलाने वाला और भयंकर पीड़ा देने वाला किस्सा है जावेद का। पिता की मृत्यु के बाद जावेद अपनी बीमार मां को घर पर छोड़कर दिल्ली तैयारी करने जाता है। मां की बीमारी में गांव की जमीन बिक जाती है। मां का एक सपना रहता है बेटा अधिकारी बने। एक चाचा है जो इस हालत में भी शोषण करने से बाज नहीं आता। जावेद की मुसीबत यही कम नहीं होती है सिविल सेवा परीक्षा पास नहीं कर पाता वहीं गांव से फोन आता है कि मां की तबीयत खराब है। गांव पहुंचता है तो दर्द कम होने की जगह बढ़ जाता है। मां का देहांत हो जाता है। लेकिन इस बीच उसे पता चलता है कि बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा पास कर लेता है।

वहीं संतोष की बात करें जो इस उपन्यास का मुख्य पात्र है। जब दो बार सिविल सेवा परीक्षा पास नहीं कर पाया तो उसने सबसे किनारा कर लिया। और "डार्क हॉर्स" बनकर निकला। डार्क हॉर्स का मतलब जिस व्यक्ति के बारे में किसी ने परीक्षा पास करने के बारे में सोचा नहीं वही व्यक्ति सफल होकर निकला। इसलिए इस किताब का नाम डार्क हॉर्स रखा गया। एक ऐसा घोड़ा जिस पर कोई दांव नहीं लगाता। वही घोड़ा रेस जीत जाता है।

किताब का सार यही है कि दिल्ली में आते तो बहुत हैं तैयारी करने वाले। जो दिल्ली की चकाचौंध, माया-मोहिनी के चक्कर में नहीं फंसता वही सफल होता है। 

जय हो!!!

BY_VINAYKUSHWAHA

रविवार, 4 सितंबर 2022

शहडार जंगल : इतना घना जंगल जहां सूरज की रोशनी भी जमीन तक नहीं पहुंचती, कटनी का ये जंगल आपको कर देगा दंग!!!

 


कटनी शहर से 40 किमी दूर शहडार जंगल है। ये जगह नेचर लवर्स के लिए स्वर्ग से कम नहीं है। घना जंगल जहां सूरज की रोशनी जमीन तक नहीं पहुंचती। आसमान को छूते पेड़ और कई स्तरों पर पेड़ों और लताओं की कतार नजर आती है। शहडार का ये जंगल कटनी वन मंडल के अंतर्गत आता है। इस जंगल में कई तरह के पशु-पक्षी रहते हैं। इनमें तेंदुआ, भालू, चीतल, हिरण, जंगली सुअर, सियार, जंगली कुत्ता, नीलगाय आदि हैं। कई तरह के सांप जैसे करैत, डबल करैत, धामन, गडैता, बफ स्ट्रिप्ड कीलबेक भी मिलते हैं। किंगफिशर, मोर और विभिन्न प्रकार के पक्षी भी पाए जाते हैं। ये जंगल वन विभाग के अंतर्गत आता है तो यहां पर किसी भी प्रकार से वन और वन्य जीवों को हानि पहुंचाना गैर-कानूनी है। 


शहडार का ये जंगल उष्णकटिबंधीय अर्द्धपर्णपाती वन (TROPICAL WET DECIDUOUS FOREST) के  अंतर्गत आता है क्योंकि इस क्षेत्र में 100 से लेकर 200 सेमी के बीच बारिश होती है। यहां सागवान, साल, सखुआ, खैर आदि पेड़ पाए जाते हैं जो आर्थिक रूप से काफी महत्त्वपूर्ण हैं। इसके अलावा बरगद, पीपल, हर्रा, बहेड़ा, नीम, बबूल, अर्जुन, महुआ, सप्तपर्णी, गुलमोहर, बेर आदि के पेड़ बहुतायत में दिखाई देते हैं। 


इस जंगल के अनेक रूप दिखाई देते हैं। बारिश के समय तो मानो यहां हरी चादर सी बिछ जाती है। बारिश के मौसम में जंगल की जमीन से लेकर पेड़ों के शिखर तक सबकुछ हरा ही हरा नजर आता है। कोपल जैसे नए जीवन के प्रतीक तरह दिखाई देती है। हरे जंगल के बीच से गुजरती काली सड़क काली नागिन तरह लगती है। 


बारिश का अतिरिक्त पानी सड़क के किनारे से जब गुजरता है तो लगता है मानो नदी साथ-साथ चल रही है। यही पानी इकट्ठा होकर कहीं-कहीं मैदान में जमा हो जाता है तो कहीं छोटे झरने का रूप ले लेता है। शहडार के जंगल की इन खासियस के अलावा जंगल के बीच-बीच में मैदान का होना जो कई सारे जानवरों की जगह होती है। 


ठंड के मौसम में ये जंगल अपने अलग ही अंदाज में दिखाई देता है। ठंड में शहडार के जंगल में सूरज की रोशनी कुछ इस आती हुई लगती है मानो किसी ने छन्नी लगा दी हो। घास जमा ओंस की बूंद सूरज की रोशनी से चमकने लगती है और ऐसी दिखती हैं जैसे कई सारे घास के पत्तियों पर हीरे लगा दिए हों। ठंड में जितनी प्यारी धूप इंसानों को लगती है उतनी जानवरों को भी लगती है। शहडार के जंगल में हिरण, चीतल, नीलगाय आदि जानवार चहलकदमी करते नजर आते हैं। तेंदुए जैसे जानवर शिकार करते नजर आते हैं।


ठंड के मौसम के बाद नमी को सुखा देने वाली गर्मी का मौसम आता है। हरी घास सूखकर सुनहरी हो जाती है। बड़े-बड़े पेड़ के पत्ते भी सुनहरे हो जाते हैं और आखिरकार शाख को छोड़ देते हैं। कुछ पेड़ बचते हैं जिनके सैनिक की तरह पत्ते अंत तक लड़ाई लड़ते हैं। शिरीष, गुलमोहर, पलाश, अमलताश के सफेद , लाल और पीले फूले से धहकता शहडार का जंगल भी रंग-बिरंगा नजर आता है। गर्मी के इस मौसम में आलस पसर जाता है। जंगल का कोना-कोना बारिश के इंतजार में आस लगाए बैठा होता है। 


शहडार का जंगल मुख्य रूप मध्यप्रदेश के कटनी जिले में स्थित है। इस जंगल की सीमा उमरिया और जबलपुर जिलों से भी लगती है। शहडार के जंगल के पास ही भारत का केंद्र बिंदु (CENTRE POINT) करौंदी है। शहडार जंगल, बांधवगढ़ नेशनल पार्क के नजदीक स्थित है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के नजदीक होने के कारण शहडार का जंगल बफर जोन में आता है। यहां टाइगर का मूवमेंट भी देखने को मिल जाता है। 


नजदीकी पर्यटन स्थल 

(NEAREST TOURIST ATTRACTION)


शहडार के जंगल के पास कई सारे टूरिस्ट प्लेस हैं जिनमें रुपनाथ शिलालेख, बांधवगढ़ नेशनल पार्क, धुंआधार फॉल जबलपुर, चौंसठ योगिनी मंदिर जबलपुर, पनपठा सेंक्चुरी, भारत का सेंटर प्वॉइंट 'करौंदी', शारदा देवी मंदिर मैहर आदि। 


कब जाएं

(BEST TO VISIT)


शहडार के जंगल घूमने का सबसे अच्छा मौसम जुलाई से फरवरी है। बारिश के मौसम में जंगल हरा-भरा हो जाता है नेचर लवर के लिए स्वर्ग से कम होता है। वहीं ठंड के मौसम में आपको बड़ी संख्या में जंगली जानवरों की चहलकदमी नजर आती है। 


कैसे पहुंचे

(HOW TO REACH)


शहडार के जंगल पहुंचने के लिए एयर, रेल और बस तीनों माध्यम उपलब्ध हैं।


एयरपोर्ट - शहडार के जंगल से नजदीकी एयरपोर्ट जबलपुर है जो लगभग 90 किमी है। यहां से आप टैक्सी कर सकते हैं।


रेल - शहडार से नजदीकी सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन कटनी है जो 40 किमी दूर स्थित है। यहां से आप टैक्सी किराये पर ले सकते हैं।


बस - कटनी बस स्टैंड नजदीक है जहां से  छोटे-बड़े शहरों के लिए बस उपलब्ध है।

बुधवार, 24 अगस्त 2022

बुक रिव्यू : 'आनंदमठ' की बात जाए तो दो ही बातें सबसे पहले ध्यान में आती है पहली 'वंदे मातरम' और दूसरी संन्यासी विद्रोह


आपने सन्यासी विद्रोह के बारे में तो सुना ही होगा...लगभग 200 साल पहले अंग्रेजों के विरुद्ध सन्यासियों द्वारा किया गया विद्रोह था...इस विद्रोह का जिक्र

सबसे पहले बंकिमचंद्र चट्टोपध्याय की किताब 'आनंदमठ' में मिलता है...आज हम इसी किताब का बुक रिव्यू करने जा रहे हैं...

ये किताब बात करती है आजादी के पहले के भारत की जब अंग्रेज अपने शासन की नींव रख रहे थे...लोगों का गुस्सा जहां लगान वसूल करने वाले मुस्लिम शासकों से तो था ही इसके साथ-साथ अंग्रेजों को लोग मलिच्छ समझा करते थे। मुस्लिमों और अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए कुछ लोगों ने सन्यासी का वेश धारण किया। किताब इन्हीं सन्यासियों की बात करती है जो दिन में तो सन्यासी के वेश में भीख मांगते हैं और रात होते ही क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देते हैं।

आनंदमठ की कहानी कई सारे किरदार हैं। इसमें सत्यानंद, जीवानंद, भावानंद, महेंद्र, शांति और कल्याणी हैं और कहानी इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है। सत्यानंद सन्यासियों द्वारा की जा रही क्रांतिकारी गतिविधियों के कर्ता-धर्ता हैं। इन्हीं के द्वारा आनंदमठ में सन्यासी को क्रांतिकारी बनाया जाता है। किताब का टाइटल आनंदमठ है जो क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र रहता है। आनंदमठ शहर से दूर घने जंगल के बीचों-बीच स्थित होता है।
किताब में सन्यासी कौन होते हैं इस बात का जिक्र किया गया है जिसमें घर

 को छोड़ने वाला, शाकाहार अपनाने वाला, पत्नी का त्याग करने वाला, वैष्णव धर्म का कड़ा पालन करने वाला होना चाहिए। सन्यासी यदि इन बातों का उल्लंघन करता है तो उसे प्रायश्चित के रूप में अपने प्राणों की बलि देनी होती है। 

किताब के अन्य किरदारों की बात करें तो महेंद्र और कल्याणी तो दोनों पति-पत्नी हैं। लंबे सूखे से परेशान होकर शहर को छोड़कर चले जाते हैं। रास्ते में दोनों के रास्ते जुदा हो जाते हैं। कल्याणी फिर से शहर पहुंच जाती है और पति महेंद्र सन्यासी बन जाता है। जीवानंद और शांति दोनों पति-पत्नी होते हैं लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद ही जीवानंद सन्यासी बन जाता है। वहीं शांति हथियार चलाने और पढ़ाई-लिखाई में कुशाग्र होती है।

लेखक ने किताब में जितना पुरुष के शौर्य की चर्चा होती है वहीं महिला की ताकत का बखान भी किया गया है। शांति से नवीनानंद तक कहानी भी रोचक है जो किसी प्रेरणा से कम नहीं है। लड़ाई लड़ने से लेकर वाकपटुता, वेद-पुराण, व्याकरण के ज्ञान में अव्वल है। सत्यानंद भी इन्हीं खूबियों के कारण उसे आनंदमठ में प्रवेश करने न रोक सके। शांति के आनंदमठ में प्रवेश से पहले तक महिला सन्यासी नहीं बन सकती थीं। वहीं कल्याणी कोमल ह्रदय और ममता के समुंदर वाली औरत है जिसके दिल में परिवार और देश के लिए मर मिटने की ख्वाहिश हमेशा रहती है।



इस किताब का करेक्टर जीवानंद पराक्रमी योद्धा है जिसका मन तो देश के लिए क्रांति करने में लगा रहता है लेकिन दिल में आज भी उसके शांति ही होती है। जब शांति नवीनानंद बनकर आनंदमठ आ जाती है तो जीवानंद भी चौंक जाता है। लेकिन जीवानंद के दिमाग में प्रायश्चित बात घूमने लगती है क्योंकि सन्यासी रहते हुए जीवानंद शांति से मिलने गया था।

किताब में लेखक ने सन्यासी के बारे में जो बताया है वो कुछ इस तरह है कि सन्यासी गेरुआ कपड़े पहनते हैं वे किसी साधु की तरह दिखाई देते हैं। वैष्णव धर्म का पालन करते हैं। लेकिन देश के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। अंग्रेजों के लिए काल का काम करते हैं। ये सन्यासी लूटपाट करते है खासकर अंग्रेजी खजाने को और जरुरत पड़ने पर हत्या करने से भी नहीं हिचकते। इसलिए अंग्रेज इन्हें अपना दुश्मन मानते हैं।

इसी किताब का अंत होता है एक जोरदार लड़ाई  से जो सन्यासी और अंग्रेजों के बीच होती है। इस लड़ाई में जहां अंग्रेजों की ओर से देसी-विदेशी मुट्ठीभर सैनिक लड़े वहीं सन्यासियों की ओर से दसों हजार सैनिकों ने हिस्सा लिया। इस लड़ाई में महेंद्र ने जहां तोपें बनाकर लड़ाई का रुख सन्यासी की ओर किया तो वहीं जीवानंद, धीरानंद का लड़ाई के मैदान में जौहर कमाल का था। इस लड़ाई में सन्यासियों की जीत होती है।

आनंदमठ की बात जाए और वंदे मातरम का नाम आए ऐसा कैसे हो सकता है? इसी उपन्यास से वंदे मातरम गीत लिया गया है। पूरे उपन्यास में वंदे मातरम जोश जगाने वाला गीत था। जो मातृभूमि के प्रति समर्पण जाहिर करने का तरीका है। वंदे मातरम का गान युद्ध की भूमि से लेकर पूजा करने तक शामिल है। वंदे मातरम गीत भारतीय स्वतंत्रता का गीत बना जो बाद में हमारे देश का राष्ट्रीय गीत बना।

किताब की बात की जाए तो बेहद ही शानदार है जो हमारे इतिहास और कल्चर के बारे में बताती है। जरूर इस किताब को पढ़ना चाहिेए। जय हिंद!!!