रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए ना ऊबरै , मोती, मानस, चून ।। रहीम ने आज से लगभग 500 साल पहले बताया था कि पानी का क्या महत्व है। पानी के बिना जीवन कितना अधूरा है। पानी को सहेजना होगा क्योंकि मानव (Human) से लेकर मोती (Pearl) तक सबकुछ पानी से ही है। पानी ही सबकुछ है लेकिन कोरोना के संकटकाल में लोगों को पता चल गया कि केवल पानी ही सबकुछ नहीं है। जीवन जीने के लिए और जीवित रहने के लिए हमें सूखे खाने को भी इकट्ठा करने की जरूरत है।
इतिहास बताता है कि आक्रमणकारी कई दिनों की यात्रा करके एक स्थान से दूसरे स्थान जाया करते थे। इनकी विशाल सेना में हाथी, घोड़े, शस्त्र-अस्त्र के अलावा ढेर सारा खाना भी होता था। वे ऐसा खाना लेकर चलते थे जो आसानी से खाया जा सके। जब किसी जगह पडाव होता था तो वहां के स्थानीय फसल और शिकार का इस्तेमाल किया जाता था। ये आक्रमणकारी अपने साथ फल, सूखे मेवे जैसे खाने के सामान लेकर चलते थे। इतना ही नहीं ये लोग अपने साथ मसाले भी ले जाया करते थे।
भारतीय पाक कला हजारों साल पुरानी है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज से लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों से चावल के प्रमाण मिले हैं जो ये बताता है कि वे केवल पशुपालन पर निर्भर नहीं थे। सिंधु घाटी सभ्यता के समय भारत का व्यापार मिस्त्र (Egypt), मेसोपोटामिया जैसी सभ्यताओं से रहा था। भारतीय व्यापारी इन सभ्यताओं को अनाज और कपास निर्यात करते थे बदले में ये सभ्याताएं मसाले और रत्न, कीमती धातु देते थे। धीरे-धीरे व्यापार का स्वरूप बदलता गया। मौर्य साम्राज्य के समय यूनान (Greece) के साथ व्यापारिक संबंध अच्छे थे।
ग्रीस मौर्य दरबार में अपने राजदूत नियुक्त करते थे। इसके बदले में भारत को सूखे मेवे जैसे खूबानी और इसके अलावा शराब आयात की जाती थी। व्यापारी जब एक जगह से दूसरी जगह जाते थे तो कई दिनों का सफर तय करते थे। इन कई दिनों के सफर में ऐसा खाना ले जाते थे जो हल्का हो जिससे वजन ना बढ़े और जल्दी खराब ना हो। गुजरात और राजस्थान के व्यापारियों में इस तरह के प्रमाण मिलते है कि वे अपने साथ बेसन से बने खाद्य पदार्थ के अलावा अचार भी ले जाया करते थे।
आज भी दोनों राज्यों के खानपान पर बेसन का प्रभाव साफ-साफ दिखाई देता है। गुजरात के व्यापारियों के खाने से लेकर अचार तक में शक्कर का इस्तेमाल किया जाता था। इसके पीछे एक कारण था कि शरीर में ग्लूकोज की मात्रा में कमी ना हो। शक्कर खाने में होने से व्यापारियों को अलग से मीठे खाद्य पदार्थ लेने की आवश्यकता ही नहीं थी। राजस्थान में तो इसके उलट खाने में लाल मिर्च का इस्तेमाल किया जाता है। राजस्थान के व्यंजनों में लाल मिर्च डालने का सबसे बड़ा कारण शरीर से विषाक्तता निकलना। लाल मिर्च का सेवन करने से पसीना आता था और इससे शरीर से अनावश्यक पदार्थ बाहर निकल जाते थे।
भारत में हर क्षेत्र की अपनी एक विशेषता है। यही विशेषता खाने में साफ-साफ दिखाई देती है। दक्षिण भारत में चावल की अधिक पैदावार होती है जो वहां के खाने में दिखाई देती है। इडली, डोसा, पुतरेकू, अवियल जैसे खाने तो सामान्य तौर पर खाते ही हैं लेकिन चावल से बने सूखे पदार्थ को लंबे समय तक खाने के लिए रखा जाता है। दक्षिण भारत में जून से सितंबर तक भारत की सबसे ज्यादा बारिश वाला समय होता है तब ये काम आता है।
मैं मध्यप्रदेश का रहने वाला हूं जहां हर मौसम की एक फसल होती है। यहां बारिश का मौसम तेज बरसात वाला और लंबा होता है जिस कारण हरी सब्जियां मिलना मुश्किल होता है। बरसात के मौसम में खाने में बड़ी (बरी) और बिजौरे का होता है। ठंड के समय कद्दू और उड़द की दाल से बनी बरी और तिल के साथ बनने वाले बिजौरे काम आते हैं। एमपी में सोयाबीन की पैदावार अच्छी होने के कारण यहां सोयाबीन की बरी खाने का प्रचलन है। सूखे खाद्य पदार्थ जो ऐसे समय काम आते हैं जब आपको हरी सब्जियां उपलब्ध नहीं होती हैं।
भारत में ठंड का मौसम हरी सब्जियों वाला होता है। इस मौसम में सब्जियां बहुतायत में पैदा होती हैं। मेथी (Fenugreek), पालक (Spinach) जैसी हरे पत्तेदार सब्जियां होती हैं। इन्हें सुखाकर बरसात के समय खाने में इस्तेमाल किया जाता है। पहाड़ी इलाकों में राजमा, चने, चौले, मटर जैसी सब्जियां होती है जो सालभर खाने में सब्जी के रूप में इस्तेमाल की जाती है। खाना समुचित पोषक तत्व से भरपूर हो इसके लिए भारत में हमेशा से इसका ध्यान रखा जाता है। ठंड के समय तिल, राजगीर, लाई, गुड के लड्डू बनाए जाते हैं जो पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। पूर्वी एमपी और छत्तीसगढ़ में चावल की पैदावार जमकर होती है यही चावल ठंड के समय लड्डू बनाने के काम भी आता है।
जम्मू कश्मीर में आए दिन लॉकडाउन और बंद का सामना करना पड़ता है। लॉकडाउन और बंद के अलावा यहां सर्दियां कटीली और कष्टदायक होती है। इसी वजह से यहां सूखे खाद्य पदार्थ को इकट्ठा करने की विशेषता रही है। यहां राजमा, काबुली चने, सूखे मेवे का इस्तेमाल किया जाता है। ठंड के समय में चाय बनाने के लिए समोवार का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें चायपत्ती की जगह गुलदाउदी की पत्ती, केसर, मेवे और नमक का इस्तेमाल किया जाता है। यहां समोवार में बनने वाली चाय मीठी नहीं नमकीन होती है। इसी तरह उत्तराखण्ड और हिमाचल में आलू की पैदावार अच्छी होती है जो यहां के खाने में सालभर दिखाई देता है।
कोविड-19 की वजह से भारत में लॉकडाउन के 36 दिन पूरे हो चुके हैं। करोड़ों लोग को सरकार और समाजसेवी संगठन राशन और सब्जियां उपलब्ध करा रहे हैं। भारत के उन इलाकों जहां सरकार और समाजसेवी संगठन की पहुंच नहीं वहां हाल क्या है ये वही बता सकता है जो भुक्तभोगी है। भारत और भारतीयों के लिए सीख है कि हमें अपने आप से सीखना होगा कि कैसे किसी विपदा से तैयार रहे हैं। जमाखोरी नहीं करना है बल्कि इसका दूसरा विकल्प खोजना है। इस विकल्प में ऐसे खाद्य पदार्थ एकत्रित करना है जो आसान से ही हमारे लिए उपलब्ध है। जैसे चाय बनाने के लिए चाय पत्ती ना हो तो आप सेवंती के फूल या गुलदाउदी के फूल को सुखा कर चायपत्ती के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि ऐसा संभव ना हो पाए तो घर के गमलों का इस्तेमाल करें एक गमले में अगिया घास लगाएं जो चायपत्ती के जगह इस्तेमाल किया जा सकता है।
विपदा के समय घर के गमले काम आ सकते हैं। इन गमले में केवल फूल और शो पत्ती ना उगाएं। इनका इस्तेमाल हरी सब्जी उगाने के लिए इस्तेमाल करें। किचन गार्डन में केवल गार्डन ना हो फल और सब्जियां उगाएं। गमलों में आप हरी धनिया, हरी मिर्च, लौकी, करेला, गिलकी, सेम, पुदीना, करी पत्ता, आलू, टमाटर जैसी सब्जी उगा सकते हैं। जब आपके घर में खाद्य तेल (edible oil) खत्म हो जाए तो उसका क्या विकल्प है? इसका विकल्प ये है कि दूध से घी बनाना सीखें जो आपका सालभर साथ देगा।
ये छोटी-छोटी चीज हैं जो भारत को विपदा में बचा सकती है। लोग अपने आप को सुरक्षित और जीवन में खुशहाली ला सकते हैं।
📃BY_vinaykushwaha🙂