मंच पर रखे दो माइक, छत्तीसगढ़ की पारंपरिक वेशभूषा, एक हाथ में एकतारा और नंगे पैर मंच पर महाभारत के पात्रों को सजीव करती हैं महान तीजनबाई। पंडवानी से लोगों का मन मोह लेने वाली तीजनबाई नहीं... नहीं... डॉ तीजनबाई। छत्तीसगढ़ की लोक नाट्य शैली पंडवानी महाभारत की कथा है। इस कथा को डॉ तीजनबाई मंच जीवित करती हैं, एक बार नहीं कई बार करती है। चाहे दु:शासन वध हो या द्रौपदी चीर हरण सजीव कर देती हैं। तीजनबाई स्वयं कहती हैं कि जब मंच पंडवानी गाती हैं तो लगता महाभारत फिर जिंदा हो गई।
मंच पर पान खाने से हुए लाल दांत लिए जब वे पंडवानी गाती हैं तो आंखें द्रवित और रोम-रोम जाग उठता है। मंच पर योद्धा की तरह अग्रसर बनकर अपनी पुरुष मंडली को दिखाती हैं कि महिला में कितनी ताकत है। बचपन में जब उन्हें पंडवानी गाने के लिए ताने और मां से पिटाई मिलती थी तब ये नहीं पता था कि वे एक दिन वे पहली महिला पंडवानी गायक बनेंगी। पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ते हुए आकाश का तारा बनेंगी।
स्वभाव से बेहद विनम्र डॉ तीजनबाई जमीन से जुड़ी हुई कलाकार हैं। वे मंच से कहती हैं कि मैं अंगूठाछाप हूं मुझे ज्यादा अच्छे से हिंदी नहीं आती, कोई भूल हो जाए तो माफ करना। ऐसे कलाकार को महान कहना न्यायोचित होगा। तीजनबाई का एकतारा कभी भीम का गदा बनता है तो कभी वीणा। एक तारे पर लगे मोरपंख भगवान कृष्ण को इंगित करते हैं। डॉ तीजनबाई कहती हैं कि पंडवानी उनका जीवन है, बिना पंडवानी के तीजनबाई संपूर्ण नहीं है।
छत्तीसगढ़ के दुर्ग के एक छोटे से गांव से भारत के दूसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म विभूषण का सफर तीजनगाथा को बताता है। बिना पढ़े लिखे तीजनबाई से डॉ तीजनबाई का सफर आसान नहीं रहा लेकिन प्रतिभा और कला ने सबकुछ आसान बना दिया। मुझे एक बार महान तीजनबाई के पंडवानी गायन को सुनने का मौका मिला। सच बताऊं तो मेरा अनुभव एक शब्द कहता है अद्वितीय। महाभारत को सुनते ही रोगंटे खड़े हो गए।
तीजनबाई ने अपनी पहली प्रस्तुति दुर्ग के ही एक छोटे से गांव में दी थी। इससे पहले ही उन्हें 10 रूपये प्रोत्साहन मिल चुका था जो तीजनबाई को छुपकर गाने से करके मंच तक खींच लाया। शायद ही लोग जानते हों कि श्याम बेनेगल के भारत एक खोज में भी तीजनबाई हिस्सा रहीं। देश से लेकर विदेश तक अपनी प्रतिभा अलख जगाने वाली तीजनबाई का आज जन्मदिन है। मैं उम्मीद करता हूं कि उन्हें भारतरत्न दिया जाए ताकि हुनर और संघर्ष को असली जगह मिल पाए।
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