भारत का पहला विराट गुरुकुल सम्मेलन मध्यप्रदेश की आध्यात्मिक नगरी उज्जैन में 28-30अप्रैल को आयोजित किया गया। असलियत में इस आयोजन का पूरा नाम अंतरराष्ट्रीय गुरुकुल सम्मेलन था। इसका आयोजन भारतीय शिक्षण मंडल और मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग के सहयोग से संपन्न हुआ। आखिर उज्जैन में ही क्यों इसका आयोजन किया गया? इसके पीछे सबसे बड़ा कारण रहा है, ऋषि सांदीपनि का आश्रम। यह वही ऋषि है जिन्होंने भगवान श्रीकृष्ण और बलराम को शिक्षा-दीक्षा दी थी।
यह विराट गुरुकुल सम्मेलन में भारत समेत विश्व के सात देशों के गुरुकुल या उनके प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इनमें नेपाल, भूटान, म्यानमार, थाईलैंड, जापान, इंडोनेशिया और कतर जैसे देश थे। भारत की इस धरा पर इस प्रकार का यह प्रथम आयोजन था।
इस आयोजन को करने के पीछे उद्देश्य क्या था? गुरुकुल परंपरा को बचाना या परपंरा को समृद्धि बनाना। इस परपंरा को भारत की पहचान कही जाए तो अतिश्योक्ति न होगी। जहां शिक्षा पद्धति बिना किसी लोभ के दी जाती है और बच्चों के सर्वांगीण विकास की बात की जाती है तो इस परपंरा को बचाना हमारा कर्त्तव्य बनता है। इस सम्मेलन में भारत के हर कोने से गुरुकुल में सम्मिलित होने के लिए लोगों का आगमन हुआ। लगभग 3000 प्रतिनिधियों ने इस आयोजन में हिस्सा लिया।
इस आयोजन का मूल गुरुकुल शिक्षा पद्धति को बढ़ावा देना और आधुनिक शिक्षा पद्धति को कैसे गुरुकुल शिक्षा पद्धति के माध्यम से सरल बनाया जा सकता है? इस पर देश के कोने-कोने से प्रबुद्ध और विद्वतजनों ने चर्चा की। गुरुकुल केवल वेदपाठ या संस्कृत का अध्ययन नहीं कराता बल्कि यह तो बौद्धिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, तकनीकी, तार्किक और शारीरिक शिक्षा देता है। लोगों के मन में भ्रम रहता है कि गुरुकुलों में केवल संस्कृत और वेद -उपनिषद् जैसे विषयों का ही ज्ञान दिया जाता है। इसी भावना को तोड़ने के लिए और लोगों को गुरुकुल से जोड़ने के लिए इस प्रकार का भव्य आयोजन किया गया।
गुरुकुल सम्मेलन भारत और विदेशी गुरुकुलों का आपसी मिलन भी था। इस सम्मेलन के माध्यम से एक गुरुकुल ने दूसरे गुरुकुल को जानने की कोशिश की। यही नहीं उनकी शिक्षा पद्धति को आवश्यक रुप से समृद्ध करने की कोशिश की। आज विश्वभर में गुरुकुल परपंरा को अपनाने की बात चल रही है। इसका एक ही कारण है प्राचीन भारतीय ज्ञान परपंरा के साथ-साथ आधुनिक विषयों का अध्ययन-अध्यापन करना।
सम्मेलन में विभिन्न वक्ताओं के द्वारा भारतीय ज्ञान परपंरा और शिक्षा पद्धति को जानने का मौका मिला। कार्यशालाओं का आयोजन किया गया जिसमें भारतीय ज्ञान परपंरा जिसमें आयुर्वेद, ज्योतिष, वैदिक गणित, गणित पर गहन चर्चा हुई। इसके साथ ही भारतीय और विदेशों से आए प्रतिनिधियों के साथ संवाद चर्चा का भी आयोजन किया गया। पाकशाला, गौशाला जैसी कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें माता-पिता, गुरु और बच्चों की बीच भावनात्मक जुड़ाव पर गंभीरता से चर्चा की गई।
कार्यशाला के आयोजन के अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया गया। इसमें बौद्धिक, शारीरिक और नृत्य आदि का मंचन किया गया। मंच से कत्थक, भरतनाट्यम, कालबेलिया जैसे नृत्यों की प्रस्तुति हुई तो वही भारतीय मार्शल आर्ट कलियारीपयाट्टू, मलखंभ, रोपमलखंभ का आयोजन किया गया। वही मंच से वैदिक गणित जैसे साश्वत विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया जिसमें केवल वस्तुओं की प्रदर्शनी ही नहीं बल्कि स्वदेशी को प्रोत्साहित करती हुई प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इसमें कॉटन के कपड़ा से लेकर लकड़े के सामान तक इस प्रकार के स्टॉल को लगाकर इस प्रदर्शनी को चार-चांद लगाए गए। पुराने सिक्कों का संग्रहण हो या भारतीयता को दर्शाता पुस्तकों हो सभी प्रदर्शनी जान नजर आ रही थी।
इस आयोजन की सबसे बड़ी बात श्रोत यज्ञ का आयोजन था। यह यज्ञ विश्व के कल्याण के लिए आयोजित किया गया था। इस यज्ञ का उद्देश्य और पूर्णाहूति "सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया" की भावना से किया गया था।
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