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गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

चलते-चलते (श्रृंखला 13)

ट्रेन का सफर सबक और लोगों को समझने का मौका होता है। ट्रेनों में लोग पैसेंजर बनकर सफर ही नहीं करते है बल्कि गांव-घर से लेकर देश की राजनीति की बात भी करते हैं। कभी-कभी तो ये बातचीत इतनी भयानक मोड़ ले लेती है कि नौबत बहस से आगे पहुंच जाती है। खासकर वो बातें और रोमांचक होती हैं। दिसंबर की बात थी मैं दिल्ली से कटनी जा रहा था। कई लोग अपने बच्चों की मानसिक क्षमता का प्रदर्शन कर रहे थे। ये समझ लीजिए कि दो गुट बन गए थे एक सवाल पूछता और दूसरा जवाब देता। सवाल और जवाब की प्रतियोगिता में कई सवाल और जवाब बड़े रोमांचित कर देने वाले थे। 

एक गुट ने दूसरे से पूछा कि देश का राष्ट्रपति कौन? सामने से जवाब आया नरेंद्र मोदी। फिर सामने वाले गुट ने सही जवाब बताते हुए कहा रामनाथ कोविंद। फिर सवाल आया देश का प्रधानमंत्री कौन? जवाब आया अमित शाह। सही जवाब देते हुए दूसरे गुट ने कहा अमित शाह नहीं नरेंद्र मोदी। मैंने अपना माथा पीट लिया। जिन लोगों को देश का प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का नाम मालूम ना हो वे क्या करेंगे? 

मुझे इन सबके बीच वो वीडियो याद आ गया जिसमें दो बच्चियां नरेंद्र मोदी और अमित शाह को अपशब्द कहते हुए दिखाई देती हैं। वो कहती हैं कि दोनों मुसलमानों को भारत में नहीं रहने देना चाहता। फिर इन्हीं दो बच्चियों से आजादी वाले नारे लगवाए जाते हैं। क्या इन्हें पता है कि वे क्या कर रहीं हैं? अपशब्दों से किसका भला हुआ है? आजादी वाले नारे लगाने से क्या होगा? क्या वे जानती हैं कि वे जाने-अनजाने जहर बोने वालों को और सबल दे रही हैं। बच्चियों के मन में इतना जहर किसने घोला? जहर घोलने वाले लोग हमारे बीच में से ही कोई है जो आने वाली पीढ़ी को सच से वाकिफ नहीं करवाना चाहती। 

सड़कों पर उतरे ये लोग बच्चों की आड़ में गलत बात कहकर बचना चाहते हैं। भ्रम फैलाकर लोगों को गुमराह करना चाहते है। सोशल मीडिया से लेकर वास्तविक दुनिया तक वाहवाही लूटना चाहते हैं। बच्चे तो गीली मिट्टी होती है जिसे जो आकार दिया जाए वो पा लेता है। यदि हम बच्चों को सच नहीं बताएंगे और झूठ के सहारे उन्हें बड़ा करेंगे तो उनका जीवन देश के लिए नासूर बन जाएगा।