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शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

अटल सोचते होंगे



  

भारतीय राजनीति में सत्ता पाना मात्र लक्ष्य नहीं होता बल्कि उस सत्ता का किस तरह अच्छी तरह उपयोग करें, इसका ज्यादा मतलब होता है। गन्ने का रस बेचने वाला गन्ने को मशीन में तब तक ड़ालता है जब तक कि उसका सारा रस न निकल जाए। नेता भी कुछ इसी तरह के होते हैं वे सत्ता पाने के बाद उन सभी दांव-पेंच का उपयोग करते हैं जो उन्हें दुबारा सत्ता में लाने के लिए काफी हो। सत्तासीन नेतागण यह भी देखते हैं कि सत्ता का इस्तेमाल करने से वे किसी मामले में पीछे न रह जाएं। भारत की राजनीति में अनेक ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं जहां सत्ता का दोहन इस हद तक किया गया कि राजनीति भी कराहने लगी।

सत्ता में आने वाली सरकार अपने पिछली सरकार से आगे निकलने की होड़ में रहती है। हमेशा ऐसा लगता सरकार जनता के बारे में चिंतामणि बनी हुई है। सरकार नई-नई योजनाओं को लेकर आती है ताकि लोगों को राहत और सहूलियत दी जा सके। इन सबके विपरीत चलता कुछ और ही है। सत्ता में आई सरकार ऑक्टोपस की तरह हो जाती है जो छद्म भेष धारण करने में माहिर होती है। पुरानी सरकार की योजनाओं को नए नाम के साथ पेश किया जाता है। जैसे बासी चावल को जीरा और प्याज का छौंक लगाकर परोस दिया गया हो। भारत में एक बड़ी समस्या नामकरण भी है।

नामकरण, जी हां। नया ब्रिज हो या सरकारी इमारत, नया हॉस्पिटल हो या सड़क सभी नामकरण की राजनीति का शिकार हुए हैं। सड़क का नाम बदलकर किसी नए नाम के साथ जोड़ देना हो या योजना में नाम बदलकर नया नाम रखना हो। कांग्रेस जब तक सत्ता में रही उसने खूब नामकरण किया अपने नेताओं को सम्मान देने के बहाने से योजनाओं, इमारतों, सड़क और बाग-बगीचों के नामकरण में कोई कमी नहीं छोड़ी है। जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी आदि का जमकर इस्तेमाल किया। सरकारी योजनाओं के नाम पर अपने नेताओं का प्रमोशन करते रहे हैं। एयरपोर्ट हो या बस अड्डा सभी को राजनीतिक रंग में रंगने की पुरजोर कोशिश की है।

यह तो अच्छी बात है कि 2016 में एक नियम लागू किया गया कि अब से किसी भी एयरपोर्ट का नाम किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं होगा। एयरपोर्ट के नामकरण के मामले में बीजेपी कही पीछे छूट गई। कांग्रेस ने यहां भी झंड़े गाड़े हैं। साल 2016 में लागू नियम में एक पेंच है जिसमें यह कहा गया है कि किसी भी एयरपोर्ट का नाम किसी भी व्यक्ति विशेष पर नहीं हो सकता लेकिन उसके टर्मिनल का नाम व्यक्ति विशेष पर हो सकता है। यह राजनीति का असली खेल होता है।

मोदी सरकार 2014 में आने के बाद उसने कई योजनाओं, रेलवे स्टेशन, सड़कों के अलावा बीजेपी ने शहरों तक के नाम बदल ड़ाले। बैंगलोर को बंगलुरू, मैसूर को मैसूरू, गुड़गांव को गुरूग्राम कर दिया गया। बीजेपी की सबसे ज्यादा किरकिरी गुड़गांव को गुरूग्राम करने पर ही हुई थी। उड़ीसा का नाम ओडिशा हो गया। सबसे ज्यादा विवादित रहा मुगलसराय जंक्शन का नाम बदलना। बीजेपी का कहना था कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय का देहांत इसी जगह हुआ था। इस कारण स्टेशन का नाम बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन कर दिया गया है। वजह जो भी हो नाम तो बदल चुका है।

इस मामले में क्षेत्रीय पार्टियां भी पीछे नहीं रही हैं। शिवसेना ने मुंबई का नाम बॉम्बे और बम्बई से मुंबई कराकर ही दम लिया। इसके अलावा केरल की राजधानी त्रिवेन्द्रम से तिरूवनंतपुरम और कोचीन , कोच्चि हो गया। तमिलनाडु में आते हैं तो आज की राजधानी चेन्नई का पहले नाम मद्रास हुआ करता था। पश्चिम बंगाल की राजधानी 2001 में नाम बदलकर कलकत्ता से कोलकाता कर दिया गया। इसके पीछे कारण यह था कि यह बंगाली में इसका उच्चारण कोलकाता है। ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की सत्ता में आने के बाद पश्चिम बंगाल का नाम हिंदी, इंग्लिश और बंगाली में अलग-अलग रखने की कोशिश की। इसके लिए ममता ने केन्द्र को प्रस्ताव भी भेजा गया लेकिन केन्द्र सरकार ने मना कर दिया।

बसपा सुप्रीमो और उत्तरप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने तो सबसे आगे जाते हुए कई पांसे चल दिए। उन्होंने उत्तर प्रदेश को तीन बांटने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा था जिसे सरकार ने इंकार कर दिया था। इसके अलावा उन्होंने कई जिलों का निर्माण किया जिनका कांशीराम नगर, संत कबीर नगर, अंबेडकर नगर आदि नाम रखा गया।

हमारे देश की राजनीति में एक और काम पूरी श्रद्धाभाव से किया जाता है। नेताओं की समाधि का निर्माण कार्य। जवाहर लाल नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक जिस तरह समाधि निर्माण किया गया उससे यही प्रतीत होता है कि यह महिमा मंडन ही है। आजादी के बाद 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी का निधन हुआ तो उनके आदर्शों और संस्कारों के साथ उनका समाधि निर्माण रामघाट नाम से किया गया। इसके पीछे कारण था कि वे अंतिम समय में भी भगवान राम का नाम ले रहे थे।

दुनिया में सबसे बड़ी समाधि के रुप में लेनिनग्राड में बनी है। लेनिन की समाधि को माना जाता है। समाधि एक आस्था हो सकती है लेकिन उत्सव नहीं। डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की समाधि को जहां बनाया गया उसे दीक्षा भूमि नाम दिया गया। लोगों में दीक्षा भूमि के प्रति आस्था है। सादगी पसंद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को भी विजय घाट के नाम से जगह दी गई। इस सभी के प्रश्न यह उठता है कि क्या कभी लाल बहादुर शास्त्री यह उम्मीद करते। बाल ठाकरे के निधन के बाद भी शिवसेना ने खूब राजनीति की थी। पहले तो आजाद मैदान में ही बाल ठाकरे का अंतिम संस्कार किया गया और फिर वही समाधि बना दी। समाधि बनाने की रोक के बावजूद ऐसा किया गया। नियमों में सख्ती के कारण शिवसेना वहां से समाधि हटाना ही पड़ी।
 
इंदिरा गांधी और राजीव की हत्या के बाद उनका दाह संस्कार क्रमश: शक्ति स्थल और वीरभूमि में किया गया। नेता के निधन के बाद राजनीति और महिमा मंडन करने की परंपरा केवल राष्ट्रीय राजनीति में ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय राजनीति में भी है। चेन्नई का मेरीना बीच अपने सुंदर समुद्री तट के अलावा नेताओं की समाधि के लिए भी जाना है। जहां एमजी रामचंद्रन, जे जयललिता और एम करूणानिधि की समाधियां हैं। इनमें से करुणानिधि के निधन के वक्त राजनीति हुई। हुआ यह कि एआईएडीएमके ने एक नियम बनाकर मेरीना बीच में नेताओं की समाधि बनाने पर बैन लगा दिया। जिसका डीएमके ने विरोध किया। विरोध बढ़ता देख एआईएडीएमके ने करुणानिधि की समाधि बनाने की छूट दे दी।

अटल बिहारी वाजपेयी अपने समय के कद्दावर नेताओं में गिने जाते थे। भारत रत्न मिलने की बात सुनकर मुस्कुरा देने वाले अटल इस बात को गहराई से जानते थे कि उन्हें यह क्यों मिल रहा है। आपातकाल के बाद सूरजकुंड में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो रही थी। अटल बिहारी वाजपेयी बैठक की बजाय पटना के अगमकुआं में जयप्रकाश नारायण से मिलने गए थे। जेपी से जैसे ही मिलकर बाहर निकले तो रिपोर्टरों ने पूछा क्या बातचीत हुई? इस पर उन्होंने कहा उधर कुंड इधर कुंआ बीच में धुआं ही धुआं। इस प्रकार के विचार रखने अटल ने कभी यह नहीं सोचा होगा उनका इस तरह महिमा मंडन किया जाएगा।

अटल बिहारी वाजपेयी जी का दाह संस्कार राष्ट्रीय स्मृति स्थल पर किया गया। यह कोई आम अंतिम संस्कार नहीं बकायदा इसके लिए नियम बदले गए। इसके बाद उन्हें दो पूर्व प्रधानमंत्री के बीच‌ स्थान प्रदान किया गया। इससे पहले नियम था कि इस क्षेत्र में किसी भी नेता का अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा। इस नियम को अटल बिहारी वाजपेयी जी के लिए बदला गया। इसके बाद भी उनकी अस्थियों को देशभर की 100 बड़ी नदियों में विसर्जित किया जाएगा। देशभर में शांति सभा का आयोजन किया जाएगा।

इसके बाद कई ऐसे निर्णय लिए गए जो शायद न भी होता तो चलता। छत्तीसगढ़ सरकार ने नया रायपुर का नाम अटल नगर करने की घोषणा की। मध्यप्रदेश सरकार ने प्रदेश में बन रही सात स्मार्ट सिटी में लाइब्रेरी का नाम अटल बिहारी वाजपेयी जी नाम पर किए जाने की घोषणा कर दी। उत्तर प्रदेश सरकार ने लखनऊ का प्रसिद्ध चौराहा हज़रत गंज से बदलकर अटल चौक करने की घोषणा की है।

यह सब आपकी और मेरी नजर का फेर है बाकि तो प्रेम और श्रद्धा है। आज अटल सोच रहे होंगे कि इस अटल बिहारी वाजपेयी को महाअटल बना दिया है।

📃BY_vinaykushwaha