यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 24 अगस्त 2022

बुक रिव्यू : 'आनंदमठ' की बात जाए तो दो ही बातें सबसे पहले ध्यान में आती है पहली 'वंदे मातरम' और दूसरी संन्यासी विद्रोह


आपने सन्यासी विद्रोह के बारे में तो सुना ही होगा...लगभग 200 साल पहले अंग्रेजों के विरुद्ध सन्यासियों द्वारा किया गया विद्रोह था...इस विद्रोह का जिक्र

सबसे पहले बंकिमचंद्र चट्टोपध्याय की किताब 'आनंदमठ' में मिलता है...आज हम इसी किताब का बुक रिव्यू करने जा रहे हैं...

ये किताब बात करती है आजादी के पहले के भारत की जब अंग्रेज अपने शासन की नींव रख रहे थे...लोगों का गुस्सा जहां लगान वसूल करने वाले मुस्लिम शासकों से तो था ही इसके साथ-साथ अंग्रेजों को लोग मलिच्छ समझा करते थे। मुस्लिमों और अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए कुछ लोगों ने सन्यासी का वेश धारण किया। किताब इन्हीं सन्यासियों की बात करती है जो दिन में तो सन्यासी के वेश में भीख मांगते हैं और रात होते ही क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देते हैं।

आनंदमठ की कहानी कई सारे किरदार हैं। इसमें सत्यानंद, जीवानंद, भावानंद, महेंद्र, शांति और कल्याणी हैं और कहानी इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है। सत्यानंद सन्यासियों द्वारा की जा रही क्रांतिकारी गतिविधियों के कर्ता-धर्ता हैं। इन्हीं के द्वारा आनंदमठ में सन्यासी को क्रांतिकारी बनाया जाता है। किताब का टाइटल आनंदमठ है जो क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र रहता है। आनंदमठ शहर से दूर घने जंगल के बीचों-बीच स्थित होता है।
किताब में सन्यासी कौन होते हैं इस बात का जिक्र किया गया है जिसमें घर

 को छोड़ने वाला, शाकाहार अपनाने वाला, पत्नी का त्याग करने वाला, वैष्णव धर्म का कड़ा पालन करने वाला होना चाहिए। सन्यासी यदि इन बातों का उल्लंघन करता है तो उसे प्रायश्चित के रूप में अपने प्राणों की बलि देनी होती है। 

किताब के अन्य किरदारों की बात करें तो महेंद्र और कल्याणी तो दोनों पति-पत्नी हैं। लंबे सूखे से परेशान होकर शहर को छोड़कर चले जाते हैं। रास्ते में दोनों के रास्ते जुदा हो जाते हैं। कल्याणी फिर से शहर पहुंच जाती है और पति महेंद्र सन्यासी बन जाता है। जीवानंद और शांति दोनों पति-पत्नी होते हैं लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद ही जीवानंद सन्यासी बन जाता है। वहीं शांति हथियार चलाने और पढ़ाई-लिखाई में कुशाग्र होती है।

लेखक ने किताब में जितना पुरुष के शौर्य की चर्चा होती है वहीं महिला की ताकत का बखान भी किया गया है। शांति से नवीनानंद तक कहानी भी रोचक है जो किसी प्रेरणा से कम नहीं है। लड़ाई लड़ने से लेकर वाकपटुता, वेद-पुराण, व्याकरण के ज्ञान में अव्वल है। सत्यानंद भी इन्हीं खूबियों के कारण उसे आनंदमठ में प्रवेश करने न रोक सके। शांति के आनंदमठ में प्रवेश से पहले तक महिला सन्यासी नहीं बन सकती थीं। वहीं कल्याणी कोमल ह्रदय और ममता के समुंदर वाली औरत है जिसके दिल में परिवार और देश के लिए मर मिटने की ख्वाहिश हमेशा रहती है।



इस किताब का करेक्टर जीवानंद पराक्रमी योद्धा है जिसका मन तो देश के लिए क्रांति करने में लगा रहता है लेकिन दिल में आज भी उसके शांति ही होती है। जब शांति नवीनानंद बनकर आनंदमठ आ जाती है तो जीवानंद भी चौंक जाता है। लेकिन जीवानंद के दिमाग में प्रायश्चित बात घूमने लगती है क्योंकि सन्यासी रहते हुए जीवानंद शांति से मिलने गया था।

किताब में लेखक ने सन्यासी के बारे में जो बताया है वो कुछ इस तरह है कि सन्यासी गेरुआ कपड़े पहनते हैं वे किसी साधु की तरह दिखाई देते हैं। वैष्णव धर्म का पालन करते हैं। लेकिन देश के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। अंग्रेजों के लिए काल का काम करते हैं। ये सन्यासी लूटपाट करते है खासकर अंग्रेजी खजाने को और जरुरत पड़ने पर हत्या करने से भी नहीं हिचकते। इसलिए अंग्रेज इन्हें अपना दुश्मन मानते हैं।

इसी किताब का अंत होता है एक जोरदार लड़ाई  से जो सन्यासी और अंग्रेजों के बीच होती है। इस लड़ाई में जहां अंग्रेजों की ओर से देसी-विदेशी मुट्ठीभर सैनिक लड़े वहीं सन्यासियों की ओर से दसों हजार सैनिकों ने हिस्सा लिया। इस लड़ाई में महेंद्र ने जहां तोपें बनाकर लड़ाई का रुख सन्यासी की ओर किया तो वहीं जीवानंद, धीरानंद का लड़ाई के मैदान में जौहर कमाल का था। इस लड़ाई में सन्यासियों की जीत होती है।

आनंदमठ की बात जाए और वंदे मातरम का नाम आए ऐसा कैसे हो सकता है? इसी उपन्यास से वंदे मातरम गीत लिया गया है। पूरे उपन्यास में वंदे मातरम जोश जगाने वाला गीत था। जो मातृभूमि के प्रति समर्पण जाहिर करने का तरीका है। वंदे मातरम का गान युद्ध की भूमि से लेकर पूजा करने तक शामिल है। वंदे मातरम गीत भारतीय स्वतंत्रता का गीत बना जो बाद में हमारे देश का राष्ट्रीय गीत बना।

किताब की बात की जाए तो बेहद ही शानदार है जो हमारे इतिहास और कल्चर के बारे में बताती है। जरूर इस किताब को पढ़ना चाहिेए। जय हिंद!!!